AtalHind
लेख

आरएसएस और भाजपा की घिनौनी चाल ,,, जो 30 साल बाद सत्ता हथियाने के लिए सिखों को खालिस्तानी और आंतकी बता ,फिर हिंदू दिमाग में सिख को लेकर संदेह और द्वेष भरने का संगठित प्रयास किया

 साहिबजादों के प्रति आदर का भाव नहीं बल्कि पहले नेहरू और बाल दिवस को छोटा करने बाल दिवस 14 नवंबर को ओझल करने या छोटा करने का मकसद है

 भाजपा की इन ओछी हरकतों से भारतीय समाज में कड़वाहट, तनाव और हिंसा बढ़ेगी ही.

Advertisement

               BY अपूर्वानंद

सिख धर्म का दोहरा इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी कर रही है. उसे मुसलमानों के खिलाफ हमला करने के लिए हथियार की तरह और हिंदुओं को डराने के लिए खालिस्तान के नाम पर हौव्वे की तरह. यह साथ-साथ किया जाता है. खालिस्तान का हौव्वा पिछले दो साल से किसान आंदोलन के दौरान पूरे देश में खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा के नेताओं ने खड़ा किया. मीडिया ने उनका साथ दिया.

Advertisement

किसान आंदोलन का मुख्य आधार पंजाब था. सिख किसानों की मौजूदगी स्पष्ट और मुखर थी. इसे दिखलाकर हिंदुओं में प्रचार किया गया कि यह वास्तव में किसानों का नहीं, खालिस्तानियों का आंदोलन है. वे माओवादियों के साथ मिलकर इस आंदोलन की आड़ में देश पर (जो मानो हिंदुओं का ही है) हमला करना चाहते हैं.

तीन दशक बाद फिर हिंदू दिमाग में सिख को लेकर संदेह और द्वेष भरने का संगठित प्रयास आरएसएस और भाजपा ने मीडिया को मदद से किया. यह प्रयास की सिख किसान को सामान्य हिंदू खालिस्तानी षड्यंत्रकारी के रूप में देखने लगें.

Advertisement

यह तो भला हो हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों का कि आंदोलन में उनकी बड़ी संख्या में भागीदारी ने भाजपा का यह प्रचार सफल नहीं होने दिया. लेकिन भाजपा ने अंतिम दम तक कोशिश छोड़ी नहीं.

पिछले साल 26 जनवरी को लाल किले पर एक खंभे पर किसी ने सिखों का धार्मिक प्रतीक निशान साहब लगा दिया तो भाजपा ने तूफ़ान खड़ा कर दिया यह प्रचार करके कि देश को तोड़ने और अपमानित करने के लिए खालिस्तान का झंडा लगा दिया गया है, कि साजिश लाल किले पर कब्जे की थी, कि यह साफ़ सबूत है कि किसानों की आड़ में खालिस्तानी काम कर रहे हैं.

Advertisement

इसमें एक तरह की सांस्कृतिक मूर्खता थी जो निशान साहब का अर्थ भी नहीं समझ सकती. जैसे यह हर हरे झंडे को पाकिस्तानी झंडा मान लेती है. यह वही सांस्कृतिक मूर्खता है जो साहबजादों को बालक के प्रतिनिधि रूप में प्रचारित कर रही है.

अगर खेती से जुड़े कानूनों की वापसी के चलते यह सोचा था कि भाजपा को अपनी गलती समझ में आई है तो हम गलत थे. हाल में फिरोजपुर के रास्ते से जब नरेंद्र मोदी ने अपने काफ़िले को वापस मोड़कर और अपनी जान पर खतरे का नाटक करके फिर खालिस्तानी हौव्वा खड़ा कर दिया.प्रधानमंत्री ज़िंदा लौट आए, उन्होंने खालिस्तानियों और पाकिस्तानियों की साजिश नाकाम कर दी, यह प्रचार भाजपा ने करना शुरू कर दिया. ख़तरा? खालिस्तानी? आगे रास्ते पर तो भाजपा और सरकार का विरोध करने वाले किसान थे. लेकिन पूछा गया कि क्या रास्ते में खालिस्तानी नरेंद्र मोदी की हत्या करने को किसानों में छुपे हुए थे?

Advertisement

खालिस्तान कहते ही तुक मिलाने को पाकिस्तान तो है ही. इनका जोड़ हिंदू मन को डराने के लिए काफी है. भाजपा ने यह पहले किया है और आगे भी करती रहेगी, इस एक घटना से यह मालूम हो जाता है.

लेकिन सिख धर्म, परंपराओं और धार्मिक व्यक्तित्वों का एक दूसरा इस्तेमाल भी भाजपा और संघ के लिए है. वह हथियार है मुसलमानों और इस्लाम पर हमले के लिए. लेकिन सिख धार्मिक संस्थाओं और सिख धर्म के विद्वानों ने सिख धर्म को भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक उद्देश्य के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाने पर ऐतराज जताया है और उसकी निंदा की है.

Advertisement

इसका सबसे हाल का संदर्भ भाजपा नेता नरेंद्र मोदी का, जो भारत के प्रधानमंत्री भी हैं, वह ऐलान है कि इस साल से हर 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों की शहादत हुई थी. सिख धर्म से जुड़े नामों का एक अपने राजनीतिक और विचारधारात्मक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने का यह एक और दयनीय और क्षुद्र प्रयास है.

यह घोषणा क्षुद्र इसलिए है कि इसके पीछे कोई साहबजादों के प्रति आदर का भाव नहीं बल्कि पहले से चले आ रहे बाल दिवस 14 नवंबर को ओझल करने या छोटा करने का मकसद है. याद रखिए कि दो साल पहले से ही भाजपा के नेता 26 दिसंबर को बाल दिवस के रूप में मनाए जाने की मांग करते रहे हैं.

Advertisement

वे 14 नवंबर को बाल दिवस कहे जाने के विरोधी हैं. यह उसी किस्म की क्षुद्रता है जैसी ईसाइयों के पवित्र दिन 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के बहाने सुशासन दिवस के रूप में मनाने की सरकारी घोषणा. आधिकारिक तौर पर नहीं लेकिन भाजपा के लोगों द्वारा 25 दिसंबर को तुलसी पूजन करने के लिए हिंदुओं को कहना.

यह अलग बात है कि हिंदू बच्चे उसके बावजूद क्रिसमस ट्री सजाना ही पसंद करते हैं. लेकिन यह वैसे ही क्षुद्र कदम है जैसे 2 अक्टूबर को स्वच्छता दिवस और सत्याग्रह की शताब्दी को स्वच्छाग्रह के तौर पर मनाने की कोशिश.

Advertisement

यह जाहिर है कि साहबजादों की शहादत के प्रति सम्मान की जगह उनके बहाने औरंगजेब पर आक्रमण और अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमान विरोध का एक और मौक़ा तलाशा गया है. यह स्थापित करने का कि सिख धर्म का मुख्य विरोध या स्वाभाविक विरोध इस्लाम या मुसलमानों के साथ रहा है.विडंबना यह है कि सिख इसे मानने को तैयार नहीं. सिख अपने गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविंद सिंह के मुसलमान शासकों से संघर्ष को सिख धर्म और इस्लाम के बीच शत्रुता के तौर पर नहीं देखते. लेकिन हम आगे बात करेंगे कि क्यों यह सिखों से ज़्यादा हिंदुओं के मन में पहले से बैठे पूर्वाग्रह को और पक्का करने के मकसद से किया जा रहा है.

इसके पहले कच्छ के गुरुद्वारे से गुरुओं को याद करने के बहाने औरंगज़ेब, अब्दुल शाह अब्दाली आदि का नाम घृणापूर्वक लेकर उसका एक समकालीन उपयोग करने का भी प्रयास किया जा चुका है.

Advertisement

नरेंद्र मोदी ने कच्छ के लखपत गुरुद्वारे से अपने संबोधन में कहा कि औरंगज़ेब के खिलाफ गुरु तेग बहादुर की वीरता ने शिक्षा दी  है कि आतंकवाद और धार्मिक अतिवाद के ख़िलाफ़ कैसे लड़ा जाए. उन्होंने यह भी कहा कि गुरुओं ने जिन ख़तरों से सावधान किया था, वे आज भी मौजूद हैं. देश की रक्षा आज भी की जानी है.

गुरु नानक के बारे में बात करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि जिस समय उन्होंने अपनी शिक्षा दी, विदेशी आक्रमणकारी देश के आत्मविश्वास को तोड़ रहे थे. अगर उन्होंने प्रकाश नहीं दिखलाया होता तो देश का क्या होता? गुरुओं ने देश को सुरक्षित रखने का काम किया.

किन विदेशी आक्रमणकारियों से सिख गुरु लड़ रहे थे? देश के सामने कौन-से खतरे से थे जिनसे लड़ने को सिख गुरुओं ने उपदेश दिया? औरंगज़ेब से क्या विदेशी होने के कारण या उसके मुसलमान होने के कारण गुरुओं का संघर्ष था? इस मामले में सिख धार्मिक विद्वान और संस्थान आरएसएस के प्रचार को गलत मानते हैं.

Advertisement

पंजाबी यूनिवर्सिटी में सिख विश्वकोश विभाग के अध्यक्ष परमवीर सिंह ने टेलीग्राफ अखबार को कहा कि ‘हमें लगता है कि साहबजादे की शहादत को राष्ट्रवाद तक सीमित किया जा रहा है. राष्ट्र मानवता के ऊपर नहीं है. गुरुओं ने मानवता को शासकों की निरंकुशता से बचाने का काम किया. सिख इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में पढ़ने की ज़रूरत है.’

औरंगज़ेब और गुरु गोविंद सिंह के बीच युद्ध के समय साहबजादों की तरफ से मलेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान ने ‘हा दा नारा’ (हक़ की पुकार) दिया था जब उन्हें दीवार में चुनवाने का हुक्म दिया जा रहा था. मलेरकोटला में हक़ की इस पुकार का स्मारक है गुरुद्वारा हा दा नारा.

Advertisement

खुद गुरु गोविंद सिंह को लुधियाना के मच्छीवाड़ा के दो पठानों ने मदद की थी. उस जगह पर उनके सम्मान में गुरुद्वारा श्री गनी खान नबी खान आज भी खड़ा है. उन्हें करीब की रियासत रायकोट ले जाया गया. वहां के नवाब राय कल्हा ने उन्हें पनाह दी.  2017 में उनकी तस्वीर अमृतसर के केंद्रीय संग्रहालय में गुरु गोविंद सिंह की तस्वीर की बगल में लगाई गई. मुसलमानों और सिखों के बीच यह ख़ास तरह का ऐतिहासिक रिश्ता है. उसे तोड़ने की कोशिश शैतानी हरकत है.

यही बात गुड़गांव के सिखों ने कही जब उन्होंने अपने गुरुद्वारे में मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने की दावत दी, जब हिंदू समूह उनकी जुमे की नमाज़ पर हमले कर रहे थे. ये हमलावर हिंदू समूह तब गुरुद्वारे में घुस गए और सिखों को कहने लगे कि गुरु तेग बहादुर को जब एक मुसलमान शासक ने मारा डाला था तो वे मुसलमानों से दोस्ती कैसे कर सकते हैं.

उस समय भी सिखों ने कहा कि गुरु का संघर्ष शासक के अत्याचार से था, उसके इस्लाम से नहीं. लेकिन हिंदू समूह और आरएसएस यह समझने को तैयार नहीं कि सिख  अपने धर्म का मुसलमानों के विरोध और संकीर्ण हिंदू राष्ट्रवाद के लिए इस्तेमाल नहीं करने देना चाहते.सिख धर्म को देश की रक्षा से बांधकर और यह कहकर कि गुरुओं का काम देश की रक्षा था, नरेंद्र मोदी आज की अपनी राष्ट्रीय असुरक्षा की राजनीति को ही रेखांकित कर रहे हैं.

Advertisement

सावरकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिंदू धर्म का राष्ट्रीयकरण करते रहे हैं, वैसे ही वे सिख और बौद्ध धर्म का भी राष्ट्रीयकरण करना चाहते रहे हैं. इसलिए वे इन धर्मों के स्वतंत्र अस्तित्व से भी इनकार करते रहे हैं और इन्हें हिंदू धर्म के भीतर उपधर्म मानते रहे हैं.

हिंदू धर्म का यह साम्राज्यवादी और संरक्षणवादी रवैया सिखों को पसंद नहीं और वे अपने आज़ाद वजूद को किसी राष्ट्रवाद के नाम पर मिटाने को तैयार नहीं.

Advertisement

इसका आधार है हिंदुओं के दिमाग में बैठी धारणा कि सिख धर्म का जन्म हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हुआ था. हम बचपन से सुनते आए थे कि सिख हिंदू धर्म के रक्षक हैं.

यानी सिख धर्म का अपना कोई स्वतंत्र उद्देश्य नहीं, वह अस्तित्व में आया ही इसलिए है कि हिंदू धर्म की रक्षा और सेवा करे. इसीलिए सिख धर्म को धर्म की जगह आरएसएस के लोग पंथ कहना पसंद करते हैं. वह हिंदू धर्म का एक पंथ है जैसे बौद्ध धर्म या जैन धर्म.पिछले महीने काशी के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रचार पत्र को नरेंद्र मोदी ने जारी किया. इसका शीर्षक है ‘काशी विश्वनाथ धाम का गौरवशाली इतिहास.’  इस पर्चे में लिखा है कि ‘पंजाब में सिख मत के स्थापना मुग़लों से सनातन धर्म की रक्षा के लिए की गई थी.’

किताब आगे बतलाती है कि गुरु गोविंद सिंह ने पंज पियारों को काशी इसलिए भेजा था कि वे सनातन धर्म का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करके इसकी रक्षा कर सकें. परमवीर सिंह ने इसे भी गलत ठहराया. एक तो पंज पियारों को काशी नहीं भेजा गया था. वे कोई और 5 सिख थे.

Advertisement

दूसरे, उन्हें सनातन धर्म के ज्ञान के लिए नहीं बल्कि संस्कृत और भारतीय परंपराओं के अध्ययन के लिए भेजा गया था. खालसा की स्थापना भी सनातन धर्म की रक्षा के लिए नहीं बल्कि पुरोहित वर्ग और शासक वर्गों से मानवता की रक्षा के लिए की गई थी.

उन्होंने कहा कि सिख अब उनके इतिहास  को विकृत करने वाली (संघ की) हरकतों से सावधान हो गए हैं. सिख अपने पूर्वजों को और गुरुओं को किस तरह देखते और संबोधित करते हैं, इसकी भी संघ और भाजपा को परवाह नहीं है.

Advertisement

जैसे साहबजादे को सिख बच्चा नहीं आदरपूर्वक बाबा कहते हैं. वे बच्चों के प्रतीक नहीं हो सकते. लेकिन नेहरू और बाल दिवस को छोटा करने और सिख परंपरा को मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लोभ में भाजपा ने एक तरह से उनका अपमान ही किया है. ठीक ही सिख समूहों की तरफ से उनकी आलोचना हो रही है.

वीरता को भी जिस हिंसक तरीके से भाजपा परिभाषित कर रही है, वह भी खतरनाक है. हम यह देख रहे हैं कि छोटे-छोटे हिंदू बच्चे मुसलमानों के खिलाफ हिंसक प्रचार और शारीरिक हिंसा में भी शामिल हो रहे हैं.

अभी मुसलमान औरतों की ऑनलाइन नीलामी के अश्लील कृत्य में भी 18 से 21 साल के लड़के-लड़कियां शामिल हैं. उनकी उम्र से लोग हैरान हैं, लेकिन जब बाल वीरता को मुसलमान-विरोध के संदर्भ में ही परिभाषित किया जा रहा हो, तो हिंदू किशोरों और किशोरियों के  इन अपराधों में शामिल होने पर आश्चर्य क्यों?

Advertisement

सिखों से भाजपा और संघ इसलिए भी खफा हैं कि बावजूद मध्यकालीन इतिहास के और बावजूद 1946 और 1947 की  भयंकर खूंरेज़ी के सिख मुसलमान विरोधी और पाकिस्तान द्वेषी नहीं हैं.

शाहीन बाग़ आंदोलन को सिखों का समर्थन मिला और किसान आंदोलन ने न सिर्फ सिख-मुसलमान एकता बल्कि हिंदू मुसलमान एकता का संदेश दिया. पंजाब में मुसलमान बहुल मलेरकोटला में शाहीन बाग़ आंदोलन में सिखों ने हिस्सा लिया.

इन सारी चीज़ों का भाजपा हिंदुओं में डर बैठाने के लिए इस्तेमाल करती है. यह बताने को कि मुसलमानों के साथ सिखों के मिल जाने से जाने क्या हो जाए. हिंदुओं के मन में पहले से बैठे आग्रहों का और दूसरे धर्मों से  उनके अपरिचय  का लाभ भी भाजपा और संघ को मिलता है.

Advertisement

इसीलिए जब-जब सिख धर्म से जुड़ी कोई घोषणा यह सरकार करे तो हमें समझना चाहिए कि वह सिखों से ज़्यादा हिंदुओं को संबोधित कर रही है. सिख अगर इसका विरोध  करें तो हिंदू उनसे ही नाराज़ होंगे क्योंकि वे तो उनको अपना रक्षक और सेवक मानते हैं. जो सिख इससे अलग कुछ करे वह खालिस्तानी और देशद्रोही हो जाएगा.

जो हो, भाजपा की इन ओछी हरकतों से भारतीय समाज में कड़वाहट, तनाव और हिंसा बढ़ेगी ही.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)photo—18

Advertisement
Advertisement

Related posts

भारत में अदालत नहीं बीजेपी का बुलडोजर करता है न्याय ,बनते झूठे केस गिरते आशियाने

editor

Lok Sabha elections-भारत में लोकसभा चुनाव और ‘द डिक्टेटर’ का यह दृश्य काफी लोकप्रिय हो गया

editor

Bella State-‘हम कहां जाएं, क्या हम भारत के वासी नहीं हैं”

editor

Leave a Comment

URL