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इसे कहते है जनता में फूट डालो और राज करो ,दुष्यंत को ठेंगा दिखा मनोहर खट्टर-हुड्डा के बीच “गजब” का याराना

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 इसे कहते है जनता में फूट डालो और राज करो ,खट्टर-हुड्डा के बीच “गजब” का यारानाहुड्डा के चहेते लोगों को सूचना आयुक्त बनवाकर खट्टर ने दिया दोस्ती का बड़ा तोहफाबीजेपी वाले देखते रह गए और हुड्डा के करीबी बड़े ओहदे पा गए

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 चंडीगढ़। मीडिया कई बार इस बात का पर्दाफाश कर चुका है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और बीजेपी के बीच “गहरा” रिश्ता है और इसी रिश्ते के चलते जहां भूपेंद्र हुड्डा “जेल” जाने से बच रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बीजेपी सरकार की सारी “खताएं” हुड्डा “माफ” कर रहे हैं।मीडिया के सामने बेशक हुड्डा और सीएम खट्टर एक दूसरे पर सवालिया निशान खड़े करते हो लेकिन हकीकत यह है कि दोनों “अंदर” से पक्के दोस्त बन चुके हैं। सीएम खट्टर ने आज एक बार फिर यह साबित कर दिया कि बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बजाय उन्हें हुड्डा की दोस्ती ज्यादा “प्यारी” है। सीएम खट्टर ने आज भूपेंद्र हुड्डा के दो करीबी लोगों ज्योति अरोड़ा और मदन मेहता को सूचना आयुक्त बनाकर भूपेंद्र हुड्डा को दोस्ती का बड़ा “तोहफा” दे दिया। यह दोनों ही शख्सियतें “मीलों” दूर तक बीजेपी से नहीं “जुड़ी” हुई है बल्कि उनका भूपेंद्र हुड्डा के साथ बेहद “करीबी” रिश्ता रहा है और ऐसे में दोनों का कांग्रेस की सरकार नहीं होने के बावजूद “रसूख” वाला पद मिलना सिर्फ हुड्डा और खट्टर की “दोस्ती” का कारण संभव हो सका है। पहले हम ज्योति अरोड़ा की बात करते हैं। ज्योति अरोड़ा खुद रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं और उन आईएएस अधिकारी राजीव अरोड़ा की पत्नी हैं जो भूपेंद्र हुड्डा के 9 साल के शासन काल में उनके बेहद करीबी “नजदीकी” अफसरों में शामिल रहे हैं। इसी कारण जमीन घोटालों में राजीव अरोड़ा को भूपेंद्र हुड्डा के साथ सह आरोपी बनाया गया था और उनके घर पर ईडी की रेड भी पड़ी थी। वही राजीव अरोड़ा आजकल खट्टर सरकार में एसीएस होम के बड़े ओहदे पर बैठे हैं। यानी राजीव अरोड़ा ने पहले हुड्डा राज में जमकर “मलाई” खाई और अब वे खट्टर सरकार में भी “ऐश” कर रहे हैं। राजीव अरोड़ा भूपेंद्र हुड्डा के उन चंद करीबी अफसरों में शामिल थे जिन्हें “खुलकर” खेलने की पूरी आजादी मिली हुई थी। उनकी पत्नी ज्योति अरोड़ा को खट्टर साहब ने सूचना आयुक्त बनाकर भूपेंद्र हुड्डा को खुश कर दिया। दूसरे सूचना आयुक्त पंकज मेहता भी भूपेंद्र हुड्डा के चाहने वालों में शामिल रहे हैं। मदन मेहता 2000 से लेकर 2007 तक हिसार कांग्रेस के शहरी जिलाध्यक्ष रहे और वह पेशे से वकील हैं। हुड्डा परिवार के साथ साथ साथ पंकज मेहता जिंदल परिवार के भी “भरोसेमंद” लोगों में शामिल हैं। वह उन चंद चेहरों में “शुमार” है जिन्हें हुड्डा और जिंदल परिवार दोनों का ही “विश्वासपात्र” माना जाता है। हिसार की सियासत के पचड़े के कारण पंकज मेहता पहले इनेलो में और उसके बाद जेजेपी में चले गए लेकिन 8 साल के दौरान उन्हें इनेलो और जेजेपी में कोई भी पद नहीं दिया गया। राजनीतिक महत्व नहीं मिलने के कारण पंकज मेहता घर पर बैठे हुए थे। उन्हें भी भूपेंद्र हुड्डा ने सूचना आयुक्त बनवाकर बड़ी कृपा दृष्टि कर दी। मेहता को सूचना आयुक्त बनाकर खट्टर ने जेजेपी के साथ भी “खेलोबा” कर दिया है क्योंकि कहने को वह जेजेपी के नेता हैं लेकिन दिल से जुड़ाव हुड्डा के साथ रखते हैं। दुष्यंत चौटाला के लिए खून पसीना बहाने वाले किसी नेता को सूचना आयुक्त बनाने की बजाय हुड्डा के खासम खास को यह पद देकर खट्टर ने बड़ा खेल खेल दिया है। सूचना आयुक्तों के लिए गठित चयन समिति में मनोहर लाल खट्टर और भूपेंद्र हुड्डा के अलावा शिक्षा मंत्री कृष्ण कंवरपाल गुर्जर भी शामिल थे। कोरोना पॉजिटिव होने के कारण हुड्डा आज बैठक में शामिल नहीं हुए लेकिन मनोहर लाल खट्टर के साथ बातचीत में उन्होंने ज्योति अरोड़ा और पंकज मेहता के नाम सूचना आयुक्त के लिए रख दिया जिन्हें बिना  “ना-नुकुर” मनोहर लाल खट्टर ने स्वीकार कर लिया ।ज्योति अरोड़ा और पंकज मेहता की नियुक्ति से बीजेपी के उन ऊर्जावान और निष्ठावान नेताओं की आशाओं पर “पानी” फिर गया जो सत्ता में हिस्सेदारी का 7 साल से इंतजार कर रहे हैं। पार्टी के लिए खून पसीना बहाने वाले लोगों को सूचना आयुक्त बनाने के बजाय मनोहर लाल खट्टर ने भूपेंद्र हुड्डा के करीबी लोगों को उपहार देकर जहां पार्टी के साथ विश्वासघात किया वही अपनी सियासी दोस्ती का नायाब नजारा पेश किया। बात यह है कि भूपेंद्र हुड्डा की खट्टर से यारी भाजपा नेताओं पर भारी पड़ रही है। खट्टर ने पहले भी भूपेंद्र हुड्डा के साथ घोटालों में आरोपी टीसी गुप्ता को बड़ा पद देकर दोस्ती निभाई थी और अब ज्योति अरोड़ा और मदन मेहता को सूचना आयुक्त बनाकर फिर से यह बता दिया कि उन्हें भाजपा नेताओं की फिक्र नहीं है बल्कि वे भूपेंद्र हुड्डा की सिफारिश को मानने में जरा भी देर नहीं करते हैं। भूपेंद्र हुड्डा भी खट्टर और बीजेपी के साथ याराना पूरी “शिद्दत” के साथ निभा रहे हैं और इसीलिए भाजपा सरकार की नाकामियों और जनविरोधी फैसलों के खिलाफ सड़क पर उतरने के बजाय सिर्फ “कागजी” बयानबाजी देकर “औपचारिकता” पूरी कर लेते हैं। भाजपा के साथ इसी “सांठगांठ” के कारण भूपेंद्र हुड्डा जहां जेल जाने से बच रहे हैं वहीं बीजेपी सरकार भी बिना किसी रूकावट के कामकाज कर रही है। सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से यह साफ हो गया है कि खट्टर और हुड्डा के बीच बड़ी सांठ-गांठ है और इसी का खामियाजा जहां एक तरफ कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ भाजपा के नेताओं को भी हक से वंचित रहना पड़ रहा है।

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