–राजकुमार अग्रवाल –
हिसार()नारनौंद हलका उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का सबसे मजबूत गढ़ है?लोकसभा चुनाव में 90 हलकों में से जेजेपी और दुष्यंत चौटाला की साख बचाने वाले इकलौते नारनौंद हलके ने विधानसभा चुनाव में भी दुष्यंत के प्रति अपने लगाव पर खरा उतरते हुए राम कुमार गौतम के प्रति भारी नफरत को भूलकर विधायक बना दिया।अब उसी नारनौंद हलके पर वर्चस्व कायम करने के लिए कांग्रेसी दिग्गज पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने भी खास रणनीति को अमली-जामा पहना दिया है।दीपेंद्र हुड्डा आगामी 23 फरवरी को नारनौंद हलके के पेटवाड़ गांव में इनेलो के पूर्व युवा प्रदेश अध्यक्ष जस्सी पटवाड़ द्वारा आयोजित परिवर्तन रैली में शिरकत करेंगे।यह परिवर्तन रैली नारनौंद हलके के अलावा प्रदेश की जाट सियासत में शक्ति परीक्षण का आगाज साबित हो सकती है।
नारनौंद का क्यों है खास महत्व ?
नारनौंद हलका प्रदेश की सियासत में बेहद खास जगह रखता है। जाट बहुल हलका होने के कारण आसपास की एक दर्जन सीटों पर नारनौंद के माहौल का पूरा असर पड़ता है। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भी नारनौंद में जेजेपी की बनी हवा का असर आसपास के बरवाला, उकलाना, उचाना, नरवाना और जुलाना हलकों में भी पहुंचा और इन सभी सीटों पर जेजेपी विजयी रही।
भूपेंद्र हुड्डा नारनौंद हलके की अहमियत को पहचानते हैं। इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव से पूर्व ही वे दुष्यंत चौटाला के इस सबसे मजबूत गढ़ पर अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं।
बनाई खास रणनीति
नारनौंद हलके की कांग्रेस पॉलिटिक्स में पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा की वीटो पावर चलती है। पूर्व मंत्री स्वर्गीय बीरेंद्र सिंह के बेटे डॉक्टर अजय सिंह कुमारी शैलजा के सबसे खास सिपहसालार हैं और उनकी मर्जी के बगैर नारनौंद हलके में टिकट नहीं दी जाती है। नारनौंद हलके में अपनी पावर को बढ़ाने के लिए ही भूपेंद्र हुड्डा ने जस्सी पेटवाड़ को कांग्रेस में शामिल किया है। जस्सी पेटवाड़ के जरिए सिसाय बेल्ट में हुड्डा परिवार अपनी ताकत बढ़ाने का काम करेगा। जस्सी पेटवाड़ के बाद जेजेपी के पूर्व नेता उमेद लोहान भी भूपेंद्र हुड्डा के साथ भविष्य में खड़े नजर आ सकते हैं।
कुछ दूसरे नेताओं पर भी भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा डोरे डाल रहे हैं। हुड्डा परिवार की रणनीति में इनेलो और जेजेपी से जुड़े नेताओं के नाम सबसे ऊपर हैं।
दीपेंद्र के कैरियर का सवाल
नारनौंद विधानसभा क्षेत्र में भूपेंद्र हुड्डा की बढ़ती हुई सक्रियता दीपेंद्र हुड्डा के सियासी कैरियर की मोर्चाबंदी की तरफ इशारा कर रही है। भूपेंद्र हुड्डा बखूबी जानते हैं कि नई पीढी के जाट नेतृत्व की अगुवाई के लिए दुष्यंत चौटाला और दीपेंद्र हुड्डा में ही मुकाबला होगा।बेटे दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश स्तरीय मजबूत नेता बनाने के लिए भूपेंद्र हुड्डा ने सियासी पिच तैयार कर दी है और उसी हिसाब से पूरे प्रदेश में दीपेंद्र हुड्डा के कार्यक्रम कराए जा रहे हैं।हुड्डा नारनौंद में दुष्यंत चौटाला की घेराबंदी करके भूपेंद्र हुड्डा बेटे दीपेंद्र हुड्डा के सियासी कैरियर को मजबूती देने की जुगत भिड़ा रहे हैं। नारनौंद विधानसभा क्षेत्र की लड़ाई भाजपा के पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के दायरे से बाहर जाती हुए नजर आ रही है। आगामी विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला और दीपेंद्र हुड्डा के बीच वर्चस्व की जंग नारनौंद में ही लड़ी जाने के पूरे आसार हैं।बेशक दुष्यंत नारनौंद से चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन अपने सबसे मजबूत गढ़ की सुरक्षा के लिए वह कोई कोर कसर नहीं रखेंगे और दीपेंद्र हुड्डा की पैठ को बढ़ने से रोकने के लिए वह हर मुमकिन कार्रवाई को अंजाम देंगे।
भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा का नारनौंद में बढ़ता हुआ “इंटरेस्ट” इस बात का संकेत दे रहा है कि दुष्यंत चौटाला को उनके गढ़ में ही घेरकर मात देने के चक्रव्यूह को रचा जा रहा है।
अब देखना यही है कि दुष्यंत चौटाला अपने सबसे मजबूत गढ़ की हिफाजत के लिए क्या कदम उठाते हैं और किस तरह से हुड्डा परिवार के मंसूबों को धराशाई करते हैं।