पीएम मोदी का काशी से चुनावी शंखनाद
==================के. पी. मलिक==========
पीएम मोदी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस से तमाम परियोजनाओं की घोषणा करते हुए विधानसभा चुनाव का आगाज कर दिया है। या यूं कहें कि मोदी ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में चुनावी बिगुल बजा दिया है। अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में तमाम योजनाओं की घोषणा करते हुए उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह यूपी ने कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका, वो अभूतपूर्व है। मैं शासन-प्रशासन और कोरोना योद्धाओं की संपूर्ण टीम का आभारी हूं।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहीं भी उन लोगों का जिक्र नहीं किया, जो इस महामारी की भेंट चढ़ गए और जिस प्रकार से महामारी में कुप्रबंधन की स्थिति रही, उस पर पीएम का शोक व्यक्त नहीं करना लोगों को अखरा है। मेरे विचार से प्रधानमंत्री को कहना चाहिए था कि प्रदेश में सरकार ने अच्छा प्रबंधन करने की कोशिश की है, लेकिन कहीं न कहीं इतने बड़े राज्य में जिस की आबादी लगभग 25 करोड़ है, उसमें हर एक व्यक्ति की समस्या का निदान करना मुश्किल हो ही जाता है। तो अब मान लिया जाए कि चुनाव के आधिकारिक ऐलान के साथ चुनावी युद्ध के शंखनाद का बिगुल बजा दिया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश की कानून व्यवस्था और कोरोना महामारी के बेहतरीन प्रबंधन का जिक्र किया, इससे स्पष्ट है कि पार्टी को पूरी तरह से चुनावी मोड में रहने का इशारा कर दिया गया है। पीएम मोदी का सीएम योगी और प्रदेश सरकार की जमकर सराहना, तमाम आलोचनाओं और कयासों को दरकिनार करना। तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद यह जानते और देखते हुए कि प्रदेश के हालात कैसे हैं? प्रधानमंत्री के द्वारा प्रदेश सरकार के कामकाज की प्रशंसा करना यानी चुनाव का वक्त आ चुका है, तैयारी शुरू हो चुकी है।
तो जाहिर सी बात है कि जिस सेनापति की अगुवाई में चुनाव लड़ना है आपको उसकी तारीफ करनी पड़ेगी और बताना पड़ेगा कि जो पिछले कुछ दिनों से कयास लगाए जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बदला जा सकता है, तमाम विधायक और मंत्री इस संशय में थे कि वह जयकारा मुख्यमंत्री योगी का लगाएं या प्रधानमंत्री मोदी का। क्योंकि माना जा रहा था कि यूपी में सत्ता के दो केंद्र बन गए हैं, जिसमें से एक केंद्र लखनऊ और दूसरा नई दिल्ली था।
जिससे केंद्र और लखनऊ के बीच तल्खी और तनाव की स्थिति को देखते हुए कार्यकर्ताओं में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी, जिससे पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं की स्थिति में थे और उनको लग रहा था कि चुनावी साल में इसका नुकसान प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है। लेकिन इन तमाम कयासों पर पूर्णविराम लगाते हुए पीएम मोदी ने साफ किया कि आने वाले विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ की सरपरस्ती में ही लड़ा जाएगा।
लिहाज़ा इस चुनावी युद्ध के सेनापति योगी ही होंगे। जाहिर है कि केंद्रीय नेतृत्व पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के तमाम प्रयासों के बाद सरकार न बनाने से कहीं न कहीं परेशान दिखाई पड़ता है। इसलिए वह उत्तर प्रदेश में कोई भी इस तरह का निर्णय लेने से बचने का प्रयास कर रहा है कि जिससे पार्टी के अंदर टकराव की स्थिति पैदा हो, इसीलिए पहले ही यह साफ कर दिया गया है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव की कमान योगी के हाथ में होगी।
उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए समाजवादी पार्टी का तहसील स्तर पर विरोध प्रदर्शन करना जताता है कि समाजवादी पार्टी आक्रामक होकर मैदान में उतर चुकी है, जिस प्रकार से पार्टी कार्यकर्ताओं ने सैकड़ों की संख्या में लाल टोपी पहनकर प्रधानमंत्री मोदी की रैली में विरोध प्रदर्शन किया है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से समाजवादी पार्टी के बारे में यह कहा जा रहा था कि वह घरों से नहीं निकलते हैं, सड़क का रास्ता भूल गए हैं, इन्हें शायद सड़क पर उतरना नहीं आता। तो दो दिन पहले समाजवादी पार्टी प्रदेश के 300 से ज्यादा तहसील मुख्यालयों पर उतरी और जोरदार प्रदर्शन करके अपनी ताकत का एहसास भी कराया कि जो कैडर समाजवादी पार्टी के पास है, वह विपक्ष में शायद किसी के पास नहीं है। सपा ने अपनी ताक़त भाजपा, मीडिया और अपने आलोचकों को भी दिखाई जो बार बार उसको यह ताना मारते थे कि वह केवल सोशल मीडिया या ट्विटर पर रह गए हैं। तो आज समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपनी ताकत दिखा कर बता दिया कि आगामी चुनाव में भाजपा उनको कम ना आंके, वह फुल तैयारी में है।
उसी को देखते हुए कांग्रेस पार्टी की प्रियंका गांधी भी एक्टिव नजर आ रही हैं उनके लखनऊ और उत्तर प्रदेश पहुंचने के लगातार कार्यक्रम बताए जा रहे हैं। जाहिर है कि प्रियंका गांधी प्रदेश के मुद्दों को सोशल मीडिया और टेलीविजन बाइट्स के जरिए उठाती रहती हैं, लेकिन अब वह खुद रूबरू होना चाहती हैं। उन्होंने लखनऊ में घर भी ले लिया है और उनका पार्टी दफ्तर भी तैयार हो चुका है। प्रियंका गांधी का राजधानी लखनऊ से चुनाव का संचालन करने का इरादा है। इसके अलावा आगामी 22 जुलाई से बसपा सुप्रीमो मायावती के भी चुनावी कार्यक्रमों की खबरें आ रही हैं। हालांकि विपक्षी दल मायावती की बसपा को भाजपा की बी टीम बता रहे हैं, लेकिन यह तो समय ही बताएगा कि बसपा का हाथी किस करवट बैठता है?
इसके अलावा पश्चिम उत्तर प्रदेश पर पकड़ ऱखने वाला राष्ट्रीय लोकदल भी लगातार अपनी चुनावी रैलियां और अन्य कार्यक्रम कर रहा है। बागपत का जिला पंचायत का चुनाव जीतना इसके लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, इसके अलावा रालोद को किसानों के लोकप्रिय नेता अजितसिंह के निधन की सहानुभूति मिलने की संभावना है। तमाम छोटे-बड़े दलों का सक्रिय होना और हैदराबाद से ओवैसी जैसे लोगों का प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ना बताता है कि प्रदेश में चुनावी माहौल बन चुका है।
प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दों का जिक्र किया जाए, तो जाहिर है कि प्रदेश के सबसे बड़े अयोध्या विवाद जो हमेशा भाजपा का चुनावी मुद्दा रहता था। उसका निष्पादन प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास करके कर दिया है। राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद सुर्खियों में रहता था मैं मानता हूं कि भाजपा सरकार की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है कि इस विवाद को समाप्त कर लिया गया है, तो क्या माना जा सकता है कि इस बहुत बड़ी उपलब्धि का फायदा भाजपा को विधानसभा चुनाव में मिल पाएगा।
इसके अलावा जिस प्रकार से बनारस में संपूर्ण योजनाएं चल रही हैं और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में तमाम बड़ी सरकारी योजनाओं, जिस में पेट्रोल-डीजल के महंगे दामों को देखते हुए सरकार का एथनॉल कार्यक्रम तेजी से चल रहा है। जिसका परिणाम देर में आने की संभावना है। उसका फायदा भाजपा को तत्काल मिलता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि एथेनॉल का संबंध सीधे-सीधे चीनी मिलों और गन्ना किसान से है। लेकिन प्रदेश का गन्ना किसान भी पिछले तीन सालों से गन्ने का दाम नहीं बढ़ाने से नाराज है। हालांकि चुनावी साल को देखते हुए सम्भवतः भाजपा सरकार आने वाले सत्र में गन्ने की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि सकती है जिसका फायदा पार्टी को विधानसभा चुनाव में मिल सकता है।
बहरहाल सत्ताधारी दल आगामी चुनावी युद्ध के लिए कमर कस चुका है। तमाम राजनीतिक दलों के लिए यह चुनावी समर में उतरने और तैयारियों का समय है। प्रदेश में चुनाव का ऐलान हो चुका है मुख्य विपक्षी दल सड़क पर उतर चुका है, जो दल नहीं उतरे वह अगले हफ्ते में उतर रहे हैं। 2022 का विधानसभा चुनाव बहुत ही दिलचस्प होने वाला है। मुझे पूर्ण रूप से आशा है कि है चुनाव तमाम पिछले चुनाव से अलग होगा कई पार्टियों के लिए यह मरने-मारने और अपना अस्तित्व बचाए रखने जैसा होगा। कई राजनीतिक दल इसमें धराशाई होकर समाप्त हो जाएंगे और कई राजनीतिक दलों का अस्तित्व ही मिट जाएगा।
उत्तर प्रदेश 2022 की बड़ी तैयारी में लग चुका है परिणाम क्या होगा? मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के लिए के लिए करो या मरो की स्थिति बनी हुई है। बसपा के लिए इस चुनाव में खड़े होने और अपना अस्तित्व बचाने के लिए अंतिम मौका है। वही राजनीतिक तौर पर प्रदेश में जिंदा बचे रहने के लिए कांग्रेस के पास अंतिम मौका है क्योंकि गांधी परिवार का कोई सदस्य बहुत समय बाद उसको उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी को लीड करते हुए चुनाव लड़ा रहा है। मैं कहता हूं कि इस चुनाव में कई लोग और कुछ राजनीतिक दल खड़े हो जाएंगे, तो कुछ खत्म हो जाएंगे।
2022 के चुनाव में बहुत कुछ हो जाएगा, जो भी दिखाई दे रहा है, हो सकता है बहुत से लोगों को न दिखाई दे रहा हो। राजनीतिक रूप से चुनाव की तैयारियां तेजी से चल रही हैं। लेकिन यह भी कहा जाता है कि राजनीतिक दांवपेंच से अनजान जनता किसी भी बुरे शासन को पसंद नहीं करती। उत्तर प्रदेश के बारे में यह कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश की जनता बहुत ज्यादा समय तक किसी के हाथ में सत्ता नहीं रहने देती। लेकिन इस बार जनता के जनमत का ऊंट किधर बैठेगा, यह देखना बहुत दिलचस्प होगा। फिलहाल सभी पार्टियां जोरशोर से अपनी-अपनी जीत पक्की करने की तैयारियों में जुटी हैं।
(लेखक ‘दैनिक भास्कर’ राजनीतिक संपादक हैं)