प्री-मेच्योर बच्चों की विशेष देखभाल की आवश्यकता : डॉ श्रेया दुबे
विश्व में प्रतिवर्ष 15 मिलियन से अधिक प्री-टर्म बच्चों का जन्म
विश्व के कुल प्री- मेच्योर बच्चों में 24 प्रतिशत का भारत में होता है जन्म
पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में सबसे ज्यादा संख्या प्री-मैच्योर बच्चों की
सीके बिरला अस्पताल ने अब तक कराई ऐसी 2000 सफल डिलीवरी
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम 6 दिसंबर । सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम करीब 2000 प्री-मैच्योर बच्चों की सफल डिलीवरी का जश्न मनाया। जो यहां नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) वार्ड से हंसते-खेलते अपने घर गए । सीके बिरला अस्पताल के इस जश्न के कार्यक्रम मे डॉक्टर, पैरेंट्स और वो बच्चे मौजूद रहे जिनकी सीके बिरला अस्पताल में सफल प्री-मैच्योर डिलीवरी कराई गई ।
अस्पताल के अत्याधुनिक एनआईसीयू से 2000 प्री-मैच्योर बच्चों को सफलतापूर्वक डिस्चार्ज करना अस्पताल की केयर और सुविधा को दर्शाता है. एडवांस मेडिकल तकनीक का उपयोग करके यहां समर्पित डॉक्टरों की टीम काम करती है जो हाई क्वालिटी हेल्थ केयर प्रदान करते हैं और नवजात शिशुओं को स्वस्थ भविष्य देने में अहम भूमिका निभाते हैं.
यह उपलब्धि दुनिया भर में नवजात देखभाल को और बढ़ाने के लिए एक प्रेरणा के रूप में कार्य करती है, जो आने वाले न जाने कितने प्री-मैच्योर शिशुओं के लिए बेहतर परिणाम सुनिश्चित करती है. गुरुग्राम के सीके बिरला अस्पताल में नियोनेटोलॉजी और पीडियाट्रिक्स की कंसल्टेंट डॉक्टर श्रेया दुबे ने कहा, “37 सप्ताह से पहले पैदा हुए प्री-टर्म शिशुओं को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. एनआईसीयू में रहने के दौरान इन शिशुओं को पर्याप्त केयर मिलने से अच्छे परिणाम आते हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, वैश्विक स्तर पर हर साल 15 मिलियन से अधिक प्री-टर्म बच्चे पैदा होते हैं, जिनमें से भारत का योगदान लगभग 24 प्रतिशत है. शिशु मृत्यु दर और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में सबसे ज्यादा संख्या प्री-मैच्योर बच्चों की मौत की होती है.”
कार्यक्रम के दौरान, डॉक्टरों ने कहा कि गर्भवती महिलाओं के लिए प्रारंभिक और नियमित प्रसवपूर्व जांच काफी अहम होती है, जिससे शरीर के अंदर की समस्याओं का पता लगाने और भ्रूण व उसके विकास पर नज़र रखने में मदद मिलती है. गर्भवती महिलाओं में डायबिटीज, हाई बीपी या डिप्रेशन जैसी परेशानियों को कम करके नवजात शिशुओं के लिए स्वास्थ्य खतरों को कम किया जा सकता है. डॉक्टर श्रेया दुबे ने कहा, ”ज्यादा आय वाले देशों में, प्रत्येक 10 प्री-टर्म शिशुओं में से नौ को बचाया जाता है, जबकि भारत में यह संख्या बहुत कम है, और यहां प्रत्येक 10 प्री-टर्म शिशुओं में से केवल एक प्री-टर्म जीवित रहता है.”