बैंकों ने 5 सालों में 10.6 लाख करोड़ के क़र्ज़ बट्टे खाते में डाले : केंद्र
वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने लोकसभा में बताया है कि क़रीब 2,300 लोन लेने वालों ने जानबूझकर लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया, जिनमें से प्रत्येक के पास 5 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज़ है.
नई दिल्ली: सरकार ने सोमवार (4 दिसंबर) को लोकसभा में बताया कि पिछले पांच सालों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) ने करीब 10.6 लाख रुपये का कर्ज बट्टे खाते में डाला है, जिसमें से लगभग आधी राशि बड़े औद्योगिक घरानों की है.
सरकार ने कहा है कि करीब 2,300 लोन लेने वालों ने जानबूझकर करीब 2 लाख करोड़ रुपये नहीं लौटाए, जिनमें से प्रत्येक के पास 5 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है.
हिंदू बिजनेसलाइन के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों और बैंक बोर्ड की स्वीकृत नीतियों के अनुसार बट्टे खाते में डाले गए कर्ज में पूर्ण प्रावधान के बाद बैलेंस शीट से गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) को हटाना शामिल है.
वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने एक लिखित प्रतिक्रिया में कहा, ‘बट्टे खाते में डाले गए इस तरह के ऋणों का मतलब उधारकर्ताओं को ऋण चुकाने की देनदारियों में छूट मिलना नहीं होता.’ कराड ने आगे कहा कि बट्टे खाते में डाले गए ऋण खातों के उधारकर्ता से बकाया वसूली की प्रक्रिया जारी रहती है, ऋण बट्टे खाते में डालने से उधारकर्ता को कोई लाभ नहीं होता है.
अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वित्त मंत्री ने उन लोन लेने वालों का नाम नहीं बताया है जिनके खातों को आरबीआई अधिनियम का हवाला देते हुए बट्टे खाते में डाला गया है.
आरबीआई डेटा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सभी एससीबी ने वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान ऋण के भुगतान में देरी के लिए जुर्माना शुल्क समेत दंड शुल्क के रूप में 5,309.80 करोड़ रुपये की कुल राशि प्राप्त की है.
एक अन्य प्रश्न के जवाब में कराड ने कहा कि एससीबी और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान 5 करोड़ और उससे अधिक के ऋण रखने वाले सभी उधारकर्ताओं की कुछ निश्चित क्रेडिट जानकारी के बारे में बड़े क्रेडिट पर सूचना का केंद्रीय भंडार (सीआरआईएलसी) को रिपोर्ट करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘जैसा कि सीआरआईएलसी डेटाबेस में बताया गया है कि 31.3.2023 तक कुल 2,623 उधारकर्ताओं को विलफुल डिफॉल्टर के तौर पर चिह्नित किया गया है, जिनके पास एससीबी का 1.96 करोड़ रुपये से अधिक बकाया है.’
वित्त राज्य मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों को सैटलमेंट के लिए समझौता करने की अनुमति देने के पीछे का प्राथमिक नियामक उद्देश्य ऋणदाताओं के लिए बिना किसी देरी के धन की वसूली के लिए कई रास्ते खोलना है. उन्होंने कहा कि समय के नुकसान के अलावा, अत्यधिक देरी के चलते परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट आती है, जिससे अंतिम वसूली बाधित होती है.
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