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भाजपा की लगातार गिरती साख व मोदी की घटती लोकप्रियता से आरएसएस में मची खलबली

भाजपा की लगातार गिरती साख व मोदी की घटती लोकप्रियता से आरएसएस में मची खलबली
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भाजपा की लगातार गिरती साख व मोदी की घटती लोकप्रियता से आरएसएस में मची खलबली 50 फीसदी लोगों ने माना कोरोना की दूसरी लहर सही से न संभाल सके पीएम-भाजपा की लगातार गिरती साख व मोदी की घटती लोकप्रियता से आरएसएस में मची खलबली-2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को लग सकता है बड़ा झटका-सर्वे के मुताबिक, 51 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सरकार उनकी आशाओं पर दो साल में खरी उतरी-सर्वे में देश के 280 जिलों के 70 हजार लोगों से करीब 1,69,000 प्रतिक्रियाएं मिलींनई दिल्ली (ईएमएस)। देश की सत्ता पर नरेंद्र मोदी को काबिज हुए सात साल पूरे हो गए हैं। इस तरह से मोदी सरकार 2.0 की दूसरी सालगिरह 26 मई को थी। सालगिरह के 3 दिन बाद आए एक सर्वे में दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की रेटिंग में दो साल में 24 फीसदी गिरावट आई है। साथ ही बताया गया कि पोल में शामिल होने वाले आधे लोगों ने माना कि पीएम कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी सही से संभाल नहीं पाए। इससे पहले आरएसएस के साथ ही कई संगठनों के सर्वे में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की गिरती साख पर सवाल उठाया गया है।अभी तक जितने सर्वे आए हैं उनमें कहा गया है कि कोरोना संक्रमण कंट्रोल करने में मोदी सरकार असफल हुई है। इस कारण उसके हाथ से बाजी फिसलती जा रही है। अगर यही स्थिति रही तो 2022 में यूपी सहित विभिन्न राज्यों के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है। ऐसे में डैमेज कंट्रोल करने के लिए संघ में मार्चा संभाल लिया है। भाजपा की लगातार गिरती साख व मोदी की घटती लोकप्रियता से आरएसएस में मची खलबली49 फीसदी ने माना मोदी सरकार की गिरी साखप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की परफॉर्मेंस का आकलन करने के लिए ‘लोकल सर्किल्स डॉट कॉम ने देशभर में सर्वे करवाया है। सर्वे के मुताबिक, 51 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सरकार उनकी आशाओं पर दो साल में खरी उतरी या फिर उससे आगे निकली। 21 प्रतिशत नागरिकों का कहना था कि केंद्र ने उनकी उम्मीदों से कहीं आगे बढ़कर काम किया, जबकि 30 प्रतिशत ने माना कि सरकार ने उनकी आस पर खरी उतरी। वहीं 49 प्रतिशत ने माना की सरकार की साख गिरी है। यह पोल बताता है कि मोदी सरकार की सिटिजन रेटिंग में कमी आने की वजह कोरोना की दूसरी लहर को ठीक से न संभाल पाना रहा। हालांकि, लोगों ने पहली लहर के दौरान किए कामों और उठाए गए कदमों की सराहना की।हर साल होता है वार्षिक मूल्यांकनलोकल सर्किल्स बीते सात साल से सरकार का परफॉर्मेंस रिकॉर्ड मापने के लिए सिटिजन सर्वे के जरिए इस तरह के वार्षिक मूल्यांकन करता आ रहा है। ताजा पोल का निष्कर्ष ऐसे वक्त पर सामने आया है, जब 30 मई 2021 को मोदी सरकार 2.0 को केंद्र में आए दो साल पूरे हो जाएंगे। ताजा सर्वे के लिए लोकल सर्किल्स लोगों के पास पहुंचा और उनसे पिछले दो साल में मोदी सरकार के 15 क्षेत्रों की रेटिंग करने के लिए कहा। जानकारी के अनुसार, देश के 280 जिलों के 70 हजार लोगों से करीब 1,69,000 प्रतिक्रियाएं मिलीं। प्रतिभागियों में 69 प्रतिशत पुरुष थे, तो 31 फीसदी महिलाएं। इससे पहले, छह मार्च, 2019 को (आम चुनाव से एक महीना पहले) जारी हुए सर्वे में सामने आया था कि 75 लोगों ने माना कि मोदी सरकार के पांच सालों का पहला कार्यकाल उनकी उम्मीदों पर खरा उतरा था या उससे आगे निकला था।सर्वे की बड़ी बातें: एक नजर में– मोदी सरकार 2.0 के साल के काम को कैसे देखते हैं? 21 फीसदी ने कहा कि यह उम्मीदों से आगे निकला। 30 प्रतिशत ने कहा कि यह आशाओं पर खरा उतरा, जबकि 49 फीसदी का मानना है कि जिनता उन्होंने सोचा था, वह उससे कम है।– क्या भारत (सरकार) पिछले दो सालों में बेरोजगारी की चुनौती से निपटने में सक्षम रहा? 27 फीसदी लोग ने हां और 61 फीसदी ने न कहा। वहीं, 12 प्रतिशत बोले कि वे इस बारे में कुछ कह नहीं सकते।– बीते दो सालों में भारत की छवि और प्रभाव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुधार आया? 59 प्रतिशत का कहना था हां, 35 प्रतिशत का मानना है नहीं, जबकि छह फीसदी लोग इस बारे में राय स्पष्ट नहीं कर पाए।– मानते हैं कि भारत के खिलाफ आतंकवाद कम हुआ है? 70 फीसदी ने माना हां। 24 प्रतिशत बोले नहीं और छह फीसदी कुछ नहीं बता पाए।– सरकार पिछले दो सालों में सांप्रदायिक सौहार्द कायम कराने और उसमें सुधार लाने में सफल रही? 49 फीसदी ने कहा हां, 45 प्रतिशत बोले नहीं और छह फीसदी ने कहा कि वे इस पर कुछ कह नहीं सकते।-अच्छे दिन से आत्मनिर्भर तकनरेंद्र मोदी ने 2014 में अच्छे दिन के वादे के जरिए सत्ता पर काबिज हुए और 2020 में आत्मनिर्भर का नारा दिया। मोदी को  एक मजबूत और लोकप्रिय नेता माना जाता रहा है। लेकिन नोटबंदी, जीएसटी, किसान आंदोलन, कोरोना आदि ने उनकी साख पर दाग लगाया है। मोदी इस बात से भी बेफिक्र रहते हैं कि जिस राह पर चलने का फैसला किया है वो कहां जाएगी और क्या नतीजे मिलेंगे। लोगों का मानना है कि मोदी ने नारों से सो मन मोहा है, लेकिन उनके पूरा नहीं होने से सरकार की साख गिरी है।Share this story

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