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भारत में लोकतंत्र का घुटता दम

भारत में लोकतंत्र का घुटता दम
विजय प्रसाद | 21 Dec 2023
Translated by महेश कुमार
भारत,राजनीति
भारत के प्रगतिशील समाचार आउटलेट न्यूज़क्लिक पर हमले के साथ ही भारतीय संसद के 141 विपक्षी सदस्यों को निलंबित कर दिया गया, दोनों ही घटनाएं भारत के लोकतंत्र पर गंभीर हमला हैं।

 

18 और 19 दिसंबर को भारतीय संसद के दोनों सदनों के 141 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। इनमें से प्रत्येक सदस्य उन दलों से हैं जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते हैं। सरकार ने कहा कि इन निर्वाचित सदस्यों का निलंबन उनके “अनियंत्रित व्यवहार” की वजह से किया गया है। विपक्ष जिसने इंडिया ब्लॉक गठबंधन का आकार लिया है, उसमें लगभग हर वह पार्टी शामिल है जिसका भाजपा से कोई रिश्ता नहीं है। विपक्ष ने इस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह “लोकतंत्र की हत्या” है और आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने भारत में “अत्यधिक स्तर की तानाशाही” स्थापित कर दी है। यह कृत्य भारत के निर्वाचित विपक्ष को पहले कमजोर करने वाले कई प्रयासों की एक ओर कड़ी है।

इस बीच, 18 दिसंबर को, भारत की समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक ने घोषणा की कि आयकर (आईटी) विभाग ने “हमारे खातों को लगभग फ्रीज कर दिया है।” न्यूज़क्लिक अब अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं दे सकता है, जिसका अर्थ है कि यह समाचार मीडिया पोर्टल अब खामोश होने के करीब है। न्यूज़क्लिक के संपादकों ने कहा है कि आईटी विभाग की यह कार्रवाई “प्रशासनिक-कानूनी घेराबंदी की निरंतरता” है, जो फरवरी 2021 में प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी के साथ शुरू हुई थी, जो सितंबर 2021 में आईटी विभाग के सर्वेक्षण और बड़े पैमाने पर छापे से और बढ़ गई थी। 3 अक्टूबर, 2023 की छापेमारी के परिणामस्वरूप न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और इसके प्रशासनिक अधिकारी अमित चक्रवर्ती की गिरफ्तारी हुई और दोनों अब जेल में हैं।

भारतीय लोकतंत्र के अंग

फरवरी 2022 में, द इकोनॉमिस्ट ने नोट किया था कि “भारत के लोकतंत्र के अंग सड़ रहे हैं।” इस मूल्यांकन से ठीक दो साल पहले, भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता, अमर्त्य सेन ने कहा था कि “लोकतंत्र सरकार द्वारा चर्चा का होना चाहिए, और, यदि आप चर्चा को भयावह बनाते हैं, तो आप लोकतंत्र नहीं हैं, चाहे आप वोटों की गिनती कैसे भी करें, और यह अब व्यापक रूप से सच हो गया है। लोग अब डरे हुए हैं। मैंने पहले ऐसा कभी नहीं देखा है।” भारत के सबसे सम्मानित पत्रकार, एन. राम (द हिंदू के पूर्व संपादक) ने अगस्त 2023 में द प्रॉस्पेक्ट में भारतीय लोकतंत्र की इस “गिरती” साख और न्यूज़क्लिक पर हमले के संदर्भ में चर्चा के डर के बारे में लिखा था। उन्होंने लिखा, ”यह हमला मेरे देश में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में एक नई गिरावट का प्रतीक है, जो नरेंद्र मोदी के ‘नए भारत’ में एक दशक से चली आ रही निर्बाध गिरावट की प्रवृत्ति दर्शाता है। हमने न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार, डराने-धमकाने और निंदा करने का हुकूमत-निर्मित मैककार्थी अभियान देखा है।” उन्होंने लिखा, “दुनिया इसे भयभीत होकर देख रही होगी।”

मई 2022 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स और रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स सहित दस संगठनों ने एक कड़ा बयान जारी किया था, जिसमें कहा गया कि भारतीय अधिकारियों को “पत्रकारों और ऑनलाइन आलोचकों को निशाना बनाना, उन पर मुकदमा चलाना बंद करना चाहिए।” इस बयान में यह दर्शाया गया है कि कैसे भारत सरकार ने मीडिया को चुप कराने के लिए आतंकवाद विरोधी और राजद्रोह विरोधी कानूनों का इस्तेमाल किया है, खासकर तब, जब मीडिया सरकारी नीतियों की आलोचना करती है। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल – जैसे कि पेगासस – ने सरकार को पत्रकारों की जासूसी करने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए उनके निजी बातचीत/संचार का इस्तेमाल करने में मदद की है। पत्रकारों पर शारीरिक हमला किया गया और उन्हें डराया गया (विशेष रूप से मुस्लिम पत्रकारों, जम्मू-कश्मीर को कवर करने वाले पत्रकारों और 2021-22 के किसान विरोध आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जब सरकार ने न्यूज़क्लिक को निशाना बनाना शुरू किया, तो यह मीडिया पर इस व्यापक हमले का ही हिस्सा था। जब दिल्ली पुलिस ने पुरकायस्थ और चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया तो उस व्यापक हमले का विरोध पत्रकार यूनियनों ने स्पष्ट रूप से किया। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने नोट किया कि उसके सदस्य उक्त घटनाओं के बारे में “गहराई से चिंतित” थे, जबकि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि सरकार को “कठोर कानूनों की छाया के तहत डराने-धमकाने का आम माहौल नहीं बनाना चाहिए।”

न्यूयॉर्क टाइम्स की भूमिका

अप्रैल 2020 में, न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में एक मजबूत शीर्षक के साथ एक स्टोरी प्रकाशित की थी: जिसका शीर्षक था “मोदी के तहत, भारत की प्रेस अब इतनी स्वतंत्र नहीं है।” उस स्टोरी में, पत्रकारों ने समझाया कि कैसे मोदी ने मार्च 2020 में प्रमुख मीडिया घरानों के मालिकों से मुलाकात की और उन्हें “प्रेरणादायक और सकारात्मक स्टोरी” प्रकाशित करने को कहा। जब भारतीय मीडिया ने कोविड-19 महामारी पर सरकार की विनाशकारी प्रतिक्रिया की रिपोर्ट करना शुरू किया, तो मोदी सरकार यह तर्क देने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई कि सभी भारतीय मीडिया को “आधिकारिक यानि सरकारी संस्करण प्रकाशित करना चाहिए।” न्यायालय ने सरकार के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया कि मीडिया को केवल सरकारी दृष्टिकोण को प्रकाशित करना चाहिए, बल्कि यह कहा कि मीडिया को अन्य व्याख्याओं के साथ सरकार के दृष्टिकोण को भी प्रकाशित करना चाहिए। द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि अदालत का आदेश “दुर्भाग्यपूर्ण” था और इसे “मीडिया में सामग्री की पूर्व सेंसरशिप के लिए मंजूरी देने” के रूप में देखा जा सकता है।

न्यूज़क्लिक पर भारत सरकार की “प्रशासनिक-कानूनी घेराबंदी” कुछ महीने बाद शुरू हुई क्योंकि वेबसाइट ने न केवल कोविड-19 महामारी पर बल्कि भारत के संविधान की रक्षा के लिए आंदोलन और किसानों के आंदोलन पर भी स्वतंत्र रिपोर्टिंग की थी। बार-बार खोज और पूछताछ के बावजूद, भारत सरकार की विभिन्न एजेंसियों को न्यूज़क्लिक के संचालन में कोई अवैधता नहीं मिली। विदेशों से धन की अनुचितता के बारे में अस्पष्ट सुझाव विफल हो गए, क्योंकि न्यूज़क्लिक ने कहा कि उसने धन हासिल करने में भारत के सभी कानूनों का पालन किया है।

जब न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ मामला ठंडा पड़ता दिखाई दिया, तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने – अगस्त 2023 में – उन फाउंडेशनों के ख़िलाफ़, जिन्होंने न्यूज़क्लिक को कुछ धनराशि दी थी, के बारे में बड़ी ही अटकलों वाला तथा अपमानजनक लेख प्रकाशित किया। कहानी सामने आने के अगले दिन, भारत सरकार के उच्च अधिकारी न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ भड़क उठे और इस कहानी को एक अपराध के “सबूत” के रूप में इस्तेमाल किया। न्यूयॉर्क टाइम्स को पहले ही चेतावनी दी गई थी कि इस तरह की कहानी का इस्तेमाल भारत सरकार प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए करेगी। दरअसल, न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख ने भारत सरकार को न्यूज़क्लिक को बंद करने की कोशिश करने की विश्वसनीयता प्रदान की, जो अब वे आईटी विभाग के फैसले के जरिए कर रहे हैं।

जिससे हलचल मच गई

संसद के 141 सदस्यों पर 13 दिसंबर को हुए संसद के उल्लंघन को उचित ठहराने का प्रयास करने का आरोप है। मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और मणिपुर में जातीय हिंसा के मुद्दों पर बहस करने में निर्वाचित सरकार/अधिकारियों की विफलता के विरोध में दो व्यक्ति प्रेस गैलरी से हॉल में कूद गए और धुआं छोड़ दिया। इन लोगों को भाजपा के सांसद प्रताप सिम्हा से संसद में प्रवेश के लिए पास मिले थे। उन्हें निलंबित नहीं किया गया। भाजपा ने इस घटना का इस्तेमाल विपक्षी सांसदों को निलंबित करने के लिए किया क्योंकि या तो उन्होंने इस घटना की निंदा नहीं की, या वे निलंबित किए गए सहयोगियों के बचाव में सामने आए।

संसद में धुआं बम चलाने वाले किसी भी व्यक्ति की राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है, विपक्ष से किसी भी तरह का संबंध तो दूर की बात है। मनोरंजन डी ने एक इंटरनेट फर्म में अपनी नौकरी खो दी थी और परिवार को खेत में काम करने में मदद करने के लिए वापस लौटना पड़ा; घर की आर्थिक समस्याओं के कारण स्कूल छोड़ने के बाद सागर शर्मा ने टैक्सी चलाई। नीलम आज़ाद ने एमए, एमएड और एमफिल किया, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। ये वे युवा पुरुष और महिलाएं हैं जो मोदी के भारत से निराश हैं, लेकिन उनका किसी से कोई राजनीतिक संबंध नहीं है। उन्होंने अपनी बात सुनाने के लिए सामान्य लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। उनका कृत्य हताशा भरा था, जो व्यापक सामाजिक संकट का लक्षण है; विपक्षी सांसदों का निलंबन और न्यूज़क्लिक के वित्त पर हमला भी उस संकट के लक्षण हैं: भारत में लोकतंत्र का दम घुट रहा है।

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फ़ेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। उन्होंने 20 से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें द डार्कर नेशंस और द पुअरर नेशंस शामिल हैं। उनकी नवीनतम पुस्तकें, स्ट्रगल मेक्स अस ह्यूमन: लर्निंग फ्रॉम मूवमेंट्स फॉर सोशलिज्म और (नोम चॉम्स्की के साथ) द विदड्रॉल: इराक, लीबिया, अफगानिस्तान, एंड द फ्रैगिलिटी ऑफ यूएस पावर हैं।

साभार: पीपुल्स डिस्पैच

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