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मामा को खुड्डे लाइन , लगा दिया ,,जीत का इनाम शिवराज चौहान

क्यों खत्म हुआ शिव का राज?

बगावत का तोड़- RSS के खास, मोहन यादव को CM बनाने के पीछे 5 फैक्टर में BJP का गेम प्लान

बगावत का तोड़- RSS के खास, मोहन यादव को CM बनाने के पीछे 5 फैक्टर में BJP का गेम प्लान

बीजेपी ने जिस शिवराज चौहान के दम पर मध्य प्रदेश 2023 जीता उन्ही मामा को खुड्डे लाइन , लगा दिया ,,जीत का इनाम शिवराज चौहान

भोपाल (अटल हिन्द टीम )

मध्य प्रदेश में शिव का राज खत्म हो गया है, अब यहां मोहन राज होगा। साथ ही सत्ता के तीन केंद्र भी नजर आएंगे। इनमें मोहन यादव मुख्यमंत्री, राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा उपमुख्यमंत्री होंगे। आज भाजपा ने जैसे ही इन नामों का एलान किया उसके साथ मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज की डेढ़ दशक लंबी सियासी पारी खत्म हो गई। आइए, जानते हैं क्या हैं इसके तीन बड़े कारण?

मध्य प्रदेश में शिव का राज खत्म हो गया है

 

2018 के चुनाव में हार
सबसे पहले हमें कुछ पीछे चलना होगा। 2018 के चुनावों के समय। बता दें कि 2018 के चुनाव का पूरा नियंत्रण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में था। टिकट तय होने में भी उनकी अहम भूमिका रही। हालांकि, परिणाम भाजपा के अनुरूप नहीं रहे और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। 109 सीटों पर सिमटी भाजपा की हार का कारण कहीं न कहीं शिवराज का चेहरा माना जाने लगा था। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बदौलत भाजपा फिर सत्ता में लौटी और तब भी शिवराज की जगह कुछ और नाम आगे बढ़े थे। इन सबको देखते हुए इस चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए। अमित शाह और केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा गया। टिकट तय करते समय नई रणनीति अपनाई गई और केंद्रीय मंत्री-सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। इस बार केंद्र ने शिवराज को बिलकुल पीछे रखा और मोदी के चेहरे और नाम पर चुनाव लड़ा। केंद्रीय मंत्रियों को उतारने के पीछे मंशा भी यही थी कि प्रदेश के लोगों को नया सीएम मिलने की चर्चा खड़ी हो सके।

2. भाजपा का आंतरिक सर्वे
गौरतलब है कि 2023 के चुनावों से पहले भाजपा ने प्रदेश में आंतरिक सर्वे कराया था, जिसमें भाजपा की स्थिति का पता लगाने की कोशिश की गई थी। सर्वे में भाजपा काफी पिछड़ी नजर आ रही थी, इसे लेकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने काम करना शुरू किया। बूथ स्तर की बैठकें, संघ के साथ समन्वय और महीनों पहले टिकट तय कर दिए ताकि भाजपा को विरोध को साधने का वक्त मिले। केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज का नाम सीएम के लिए प्रस्तावित करने से परहेज किया और सभाओं में भी सीएम शिवराज का जिक्र कम ही किया गया। आखिर में जब भाजपा के पक्ष में नतीजे आए तो भाजपा ने सीएम के नाम को लेकर मंथन शुरू कर दिया। कहीं न कहीं सर्वे को आधार मानकर शीर्ष नेतृत्व शिवराज का नाम आगे बढ़ाने से कतरा रहा था ।

3. लोकसभा चुनाव की रणनीति
विधानसभा चुनावों के बाद अब 2024 में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के जरिए लोकसभा की तैयारियों और रणनीति को परखा है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व 2024 में भी प्रचंड जीत के लिए तैयारियां करने में जुट गया है। तीन राज्यों में सत्ता मिलने के बाद अपनी स्थिति इन राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए और मजबूत करना चाहती है। माना जा रहा है कि नई रणनीति के तहत तीनों राज्य में सीएम के लिए नए चेहरों पर भाजपा विचार कर रही है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा लोकसभा चुनावों में प्रदेश में जातिगत समीकरण साधने के मूड में नजर आ रही है, इसलिए शिवराज की जगह दूसरे नाम पर विचार किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश में नए मुख्यमंत्री का एलान हो चुका है। विधायक दल की बैठक में मोहन यादव को नेता चुना गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल को इस्तीफा दे दिया। राज्यपाल ने यादव को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है। 13 या 14 दिसंबर को नई सरकार शपथ ले लेगी।मोहन यादव पहुंचे सीएम हाउस
राज्यपाल से मुलाकात के बाद मोहन यादव ने केंद्रीय पर्यवेक्षकों को एयरपोर्ट पहुंचकर विदा किया। इसके बाद वे मुख्यमंत्री निवास पहुंचे। वहां कार्यवाहक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनका स्वागत किया। इस बीच, राजभवन ने मोहन यादव को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है। 13 या 14 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम तय होते ही शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन होगा। फिलहाल 13 दिसंबर को लाल परेड ग्राउंड पर शपथ ग्रहण समारोह होने की सूचना मिल रही है। समय बाद में तय होगा। उनके साथ कितने मंत्री शपथ लेंगे, यह भी एक-दो दिन में तय हो जाएगा |

 

बगावत का तोड़- RSS के खास, मोहन यादव को CM बनाने के पीछे 5 फैक्टर में BJP का गेम प्लान

बगावत का तोड़- RSS के खास, मोहन यादव को CM बनाने के पीछे 5 फैक्टर में BJP का गेम प्लान

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के बाद मध्यप्रदेश में भी सीएम पद के नाम का ऐलान कर दिया है. उज्जैन दक्षिण से तीसरी बार विधायक बने डॉ मोहन यादव एमपी के अगले सीएम बनने जा रहे हैं. नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बनाया गया है जबकि छत्तीसगढ़ की तर्ज पर एमपी में भी आलाकमान ने 2 डिप्टी सीएम बनाने का फैसला किया है- यह पद जगदीश देवड़ा और राजेश शुक्ला संभालेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि वह नाम सबसे आगे कैसे पहुंच गया जो लिस्ट में कहीं था ही नहीं? मोहन यादव ही क्यों एमपी में पार्टी के सबसे पसंदीदा चेहरा बने? इसे 5 फैक्टर के जरिए समझते हैं.

 

1. OBC चेहरे पर फोकस

ओबीसी समुदाय से आने वाले मोहन यादव को चुनकर बीजेपी ने यह साफ कर दिया है कि वो 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले अपने सभी पत्ते सही से बिछा लेना चाहती है. बीजेपी आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के बाद एमपी में पिछड़ा चेहरा चुना है और वह विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ के जातिगत जनगणना के सभी दांव-पेंच को फ्रंट फुट पर खेलना चाहती है.

 

अब अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी ही नहीं कांग्रेस भी OBC समुदाय को अपने पाले में करने के लिए हर जतन कर रही है. ऐसे में बीजेपी ने शिवराज को हटाकर एमपी में OBC चेहरे से ही रिप्लेस किया है.

 

2. अंदर से बाहर तक बीजेपी कार्यकर्त्ता

डॉ मोहन यादव ही क्यों? इसका जवाब खोजने के लिए हमें डॉ मोहन यादव के राजनीतिक बैकग्राउंड को जनना पड़ेगा. यह समझना पड़ेगा कि वो बीजेपी की तरकश में कौन से तीर जोड़ने में सक्षम हैं.

 

मोहन यादव छात्र राजनीति के समय से ही बीजेपी के छात्र संगठन ABVP से जुड़े रहे हैं. मोहन यादव 1984 में ABVP के उज्जैन अध्यक्ष बने और 1986 तक इस पद पर रहे. ABVP की सीढ़ी पकड़े वे बीजेपी की राजनीतिक गलियारों की ओर कदम बढ़ाते रहे. उन्होंने मध्य प्रदेश ABVP के राज्य सह-सचिव और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य जैसी भूमिकाओं को निभाया.

3. आरएसएस के भी करीबी

दूसरी तरफ मोहन यादव आरएसएस के बेहद करीबी माने जाते हैं. छात्र राजनीति के समय से उन्होंने उज्जैन में आरएसएस की तमाम कार्यवाहियों में भाग लिया है और 1993 से 1995 के बीच वे आरएसएस (उज्जैन) शाखा के सहखंड कार्यवाह भी बने. आगे 1996 में वे उज्जैन आरएसएस शाखा में खण्ड कार्यवाह और नगर कार्यवाह बने.

 

बीजेपी और आरएसएस, दोनों के लिए एमपी लैब्रोटरी कही जाती है. अगले लोकसभा चुनाव में 6 महीने से भी कम का वक्त बचा है. ऐसे में बीजेपी आलाकमान ऐसे चेहरा चाहती थी जो जितना करीब बीजेपी के हो वह आरएसएस के नेतृत्व को भी अपने उतना ही करीब नजर आए. इस प्रोफाइल में मोहन यादव एकदम फिट बैठते हैं.

 

4. मालवा-निमाड़ पर फोकस

इस बार के चुनाव में मालवा-निमाड़ ने बीजेपी को सिर आंखों पर बैठाया और अब पार्टी ने उसी क्षेत्र से सीएम चुनकर यहां के लोगों को सन्देश भी दे दिया है कि 2024 में भी आशीर्वाद बना रहे. एमपी में सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए जीत की तिजोरी कहे जाने वाले मालवा-निमाड़ में 66 सीटों में से बीजेपी ने 48 अपने नाम किए हैं. पिछली बार यहां की 35 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस सिमट कर 17 पर आ गयी है.

5. शिवराज सिंह चौहान के करीबी, पार्टी बगावत का तोड़

एमपी में चुनाव से बीजेपी की इस प्रचंड जीत को शिवराज की जीत करार दी गयी. 16.5 साल सीएम रहने वाले शिवराज को पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए बिना चुनाव लड़ा. शिवराज ने भी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्त्ता की तरह अपना सब कुछ झोंक दिया और पार्टी को शानदार रिजल्ट दिया. जीत के बाद एक बार फिर कयास लगें कि शिवराज को सीएम बनाया जा सकता है लेकिन अब पार्टी ने मोहन यादव को चुना है. इसके बावजूद ऐसा लगता है कि पार्टी ने शिवराज को भले साइड किया है लेकिन उन्हें दूर नहीं किया है. मोहन यादव ही नहीं दोनों डिप्टी सीएम भी शिवराज के करीबी हैं.

 

अब उम्मीद लगाई जा रही है कि पार्टी शिवराज को केंद्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है.

छत्तीसगढ़ की तरफ एमपी में भी पार्टी हाईकमान ने वरिष्ठ नेताओं को किनारे करके नए नेताओं पर भरोसा दिखाया है. एमपी में शिवराज का राजनीतिक भविष्य अभी क्लियर नहीं है जबकि नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बनाए जाने से यह संकेत मिलता है कि शायद वे अब एक्टिव पॉलिटिक्स में कम ही नजर आये.

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