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वृद्धों की उपेक्षा के गलत प्रवाह को रोके

 

विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस का मनाने का मुख्य उद्देश्य संसार के बुजुर्ग लोगों को सम्मान देने के अलावा उनकी वर्तमान समस्याओं के बारे में जनमानस में जागरूकता बढ़ाना है। प्रश्न है कि दुनिया में वृद्ध दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई? क्यों वृद्धों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की स्थितियां बनी हुई है? चिन्तन का महत्वपूर्ण पक्ष है कि वृद्धों की उपेक्षा के इस गलत प्रवाह को रोके। क्योंकि सोच के गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि आदमी-आदमी के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है।

वृद्धावस्था जीवन की सांझ है। वस्तुतः वर्तमान के भागदौड़, आपाधापी, अर्थ प्रधानता व नवीन चिन्तन तथा मान्यताओं के युग में जिन अनेक विकृतियों, विसंगतियों व प्रतिकूलताओं ने जन्म लिया है, उन्हीं में से एक है वृद्धों की उपेक्षा। वस्तुतः वृद्धावस्था तो वैसे भी अनेक शारीरिक व्याधियों, मानसिक तनावों और अन्यान्य व्यथाओं भरा जीवन होता है और अगर उस पर परिवार के सदस्य, विशेषतः युवा परिवार के बुजुर्गों/वृद्धों को अपमानित करें, उनका ध्यान न रखें या उन्हें मानसिक संताप पहुँचाएं, तो स्वाभाविक है कि वृद्ध के लिए वृद्धावस्था अभिशाप बन जाती है। इसीलिए तो मनुस्मृति में कहा गया है कि-“जब मनुष्य यह देखे कि उसके शरीर की त्वचा शिथिल या ढीली पड़ गई है, बाल पक गए हैं, पुत्र के भी पुत्र हो गए हैं, तब उसे सांसारिक सुखों को छोड़कर वन का आश्रय ले लेना चाहिए, क्योंकि वहीं वह अपने को मोक्ष-प्राप्ति के लिए तैयार कर सकता है।

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