स्त्री के स्तन के प्रति आकर्षण क्यों ?——–
नौ वर्ष तक बच्चे माँ का स्तनपान कर सकते है
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिन बच्चों को मां का स्तन जल्दी छुड़ा लिया जाता है, वे जिंदगी भर स्त्रियों के स्तन में उत्सुक रहते हैं। रहेंगे ही।
वह बचपन में जो स्तन छुड़ा लिया गया, वह झंझट की बात हो गई। मन स्तन से भर नहीं पाया।
अब जो कवि सिर्फ स्तन ही स्तन की कविताएं लिखता है
और जो चित्रकार स्तन ही स्तन के चित्र बनाता है,
और जो मूर्तिकार स्तन ही स्तन खोदता है –
जरूर कहीं अड़चन है, जरूर कहीं कोई बात अटकी रह गई है।
उसे स्त्री दिखाई ही नहीं पड़ती, स्तन ही दिखाई पड़ते हैं। उसका सारा संसार स्तनों से भरा हुआ है।
उसके सपनों में स्तन गुब्बारों की तरह तैरते हैं।
यह रुग्ण है। इसे कहीं अटकी बात रह गई। इसकी मां ने स्तन जल्दी छुड़ा लिया। यह बच्चा पक नहीं पाया था।
अब तुम चकित होओगे जान कर: आदिवासी जातियों में— यहां अभी ऐसी जातियां मौजूद हैं, इस देश में भी मौजूद हैं— जिनमें स्त्रियां स्तन नहीं ढांकती। ढांकने की जरूरत नहीं है। यहां स्त्रियां, सभ्य समाजों में, स्तन क्यों ढांकती हैं। क्यों ढांक कर चलना पड़ता है उन्हें। क्योंकि चारों तरफ जिनके स्तन बचपन में छीन लिए गए हैं, वे चल रहे हैं।
उनकी आंखें उनके स्तनों पर ही गड़ी हैं। कहीं पल्लू न सरक जाए, स्त्री घबडाई रहती है।
क्योंकि चारों तरफ बच्चे हैं — कम उम्र के बच्चे!
जिनकी शरीर की उम्र बढ़ गई है, लेकिन मानसिक उम्र जिनकी बहुत छोटी है। उनकी नजर ही स्तन पर लगी है। वे और कुछ देखते ही नहीं।
आदिवासी जातियां स्तन को नहीं ढांकती। और कोई आदिवासी स्तन में उत्सुक नहीं है। कारण।
बच्चे नौ साल और दस साल के हो जाते हैं, तब तक स्तन पीते रहते हैं। जब चुक ही जाते हैं बिल्कुल मां नहीं छुड़ाती स्तन, जब बच्चा ही भागने लगता है स्तन से कि अब नहीं, मुझे नहीं पीना, अब बहुत हो गया, अब मुझे छोड़ो— जब बच्चा ही भागने लगता है स्तन से, तो उसकी बात समाप्त हो गई।
बात खत्म हो गई। अब उसका कोई रस न रहा।
अब जिंदगीभर उसको स्तन में न कोई कविता दिखाई पड़ेगी, न काव्य, न सौंदर्य— कुछ भी नहीं। स्तन उसके लिए थन हो गए। अब उसको और कुछ नहीं रहा उनमें।
तुम जरा अपने मन की खोज -बीन करना।
तुम किन बातों में अटके हो,
जरा भीतर उनके पीछे जाना।
जरा विश्लेषण करना,
जरा अतीत में उतरना।
और तुम चकित हो जाओगे : वे वही बातें हैं, जो बचपन में तुम करना चाहते थे और नहीं कर पाए। अब करना चाहते हो, लेकिन अब बेहूदी मालूम पड़ती हैं।
हर चीज एक उम्र में संगत मालूम होती है।
एक उम्र के बाद असंगत हो जाती ही है।
जो बचपन में हो जाना चाहिए, वह बचपन में कर लेना।
कहीं सरकती हुई बात न रह जाए।
कहीं कोई तार अटका न रह जाए।
मनोविज्ञान से पूछो।
मनोविज्ञान कहता है : जो — जो बातें बचपन में अटकी रह गई हैं, वे कभी न कभी पूरी करनी पड़ती हैं। और जब तुम बाद में पूरी करोगे, तो बड़ी मुश्किल हो जाती है। बड़ी मुश्किल हो जाती है!
ओशो