हरियाणा सरकार की मुश्किल महासंकट के बीच बढ़ी
मौलाना साद की भाषा बोल रहे तब्लीगी जमाती
संपर्क में आने वाले लोगों को ढूंढने में आ रही दिक्कतें
Trouble of Haryana government increased amidst panic
Delhi (Atal Hind)दिल्ली से सटा होने के कारण हरियाणा में तमाम उन गतिविधियों का असर पड़ता है,जो दिल्ली में होती हैं। कोरोना महासकंट के बीच दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके की तब्लीगी जमात के मरकज़ (केंद्रीय मुख्यालय) से हरियाणा पहुंचे जिन 503 जमातियों से गृह विभाग ने प्रारंभिक पूछताछ की है,वे सिर्फ मरकज के मुखिया मौलाना साद की वही भाषा बोल रहे हैं। इससे हरियाणा में कोरोना संकट को लेकर खतरा बढ़ गया है और हरियाणा सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है। जानकारी के अनुसार,हरियाणा के खुफिया विभाग ने मौलाना साद का विवादित वीडियो भी जुटा लिया है। हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने इसकी पुष्टि की है। प्रारंभिक तौर पर गृह मंत्री को हालांकि इन जमातियों के हरियाणा में प्रवेश के पीछे कोई साजिश भले ही नजर न आ रही हो,लेकिन गृह विभाग इन जमातियों के स्वास्थ्य की जांच के बाद तह में जाने के लिए लालायित है। आखिर इतनी संख्या में यह जमाती हरियाणा में कहां-कहां जाकर क्या कुछ शिक्षा-दीक्षा देने वाले थे। हरियाणा सरकार अब ऐसे लोगों को भी चिन्हित करने में लगी है, जिनके संपर्क में यह 503 लोग अभी तक आ चुके हैं। अब यहां सवाल खड़ा होता है कि आखिर मौलाना साद कौन है। इसके बारे में हम बताते हैं। जानकारी के अनुसार,मौलाना साद का जन्म 10 मई 1965 को दिल्ली में हुआ। साद ने हजरत निजामुद्दीन मरकज के मदरसा काशिफुल उलूम से 1987 में आलिम की डिग्री हासिल की थी। साद का पूरा नाम मौलाना मुहम्मद साद कंधलावी है और उनका ताल्लुक उत्तर प्रदेश के कांधला से है। साद तबलीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास कंधालवी का पड़पोता है। तबलीगी जमात भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी मुस्लिमों का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है। तब्लीगी जमात भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी मुस्लिमों का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है। साद ने खुद को तब्लीगी जमात का एकछत्र अमीर (सर्वोच्च नेता) घोषित कर रखा है। साद के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने महामारी अधिनियम 1897 और आइपीसी की दूसरी धाराओं के तहत केस दर्ज कर रखा है।
मौलाना साद का विवादों से पुराना नाता
मौलाना साद का विवादों से पुराना नाता है। जब उन्होंने खुद को तबलीगी जमात का एकछत्र अमीर (संगठन का सर्वोच्च नेता) घोषित कर दिया तो जमात के वरिष्ठ धर्म गुरुओं ने उसका जबरदस्त विरोध किया। हालांकि,मौलाना पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और सारे बुजुर्ग धर्म गुरुओं ने अपना रास्ता अलग कर लिया। बाद में साद का एक ऑडियो क्लिप भी आया,जिसमें उसने कहा कि मैं ही अमीर हूं…सबका अमीर…अगर आप नहीं मानते तो मत मानिए। साद द्वारा खुद को अमीर (सर्वोच्च नेता) घोषित किए जाने का विरोध इसलिए हुआ क्योंकि तब्लीगी जमात के पूर्व अमीर मौलाना जुबैर उल हसन ने संगठन का नेतृत्व करने के लिए सुरू कमेटी का गठन किया था। लेकिन,जब जुबैर का इंतकाल (निधन) हो गया तो मौलाना साद ने लीडरशिप में किसी को साथ नहीं लिया और अकेले अपने आप को ही तबलीगी जमात का सर्वेसर्वा घोषित कर दिया। साद जमात के संस्थापक के पड़पोते और संगठन के दूसरे अमीर के पोते हैं तो एक वर्ग का उनके प्रति पूरा लगाव रहा। 2017 के फरवरी महीने में दारुल उलूम देवबंद ने तबलीगी जमात से जुड़े मुस्लिमों को फतवा जारी कर कहा था कि साद कुरान और सुन्ना की गलत व्याख्या करते हैं। देवबंद का यह फतवा मौलाना साद के भोपाल सम्मेलन में दिए गए बयान के बाद आया,जिसमें उन्होंने कहा कि (निजामुद्दीन) मरकज मक्का और मदीना के बाद दुनिया का सबसे पवित्र स्थल है। दारुल उलूम देवबंद ने मौलान साद के इस बयान को पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बताया। इसके अलावा 2016 के जून महीने में मौलाना साद और मौलाना मोहम्मद जुहैरुल हसन की लीडरशिप वाले तबलीगी जमात के दूसरे ग्रुप के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। दोनों ग्रुप ने एक-दूसरे पर घातक हथियारों से हमले किए थे। तब कई वरिष्ठ सदस्य निजामुद्दीन छोड़कर भोपाल चले गए। इस तरह देश में तबलीगी जमात का दो धड़ा बन गया। एक धड़े का केंद्र निजामुद्दीन में है जबकि दूसरे का भोपाल में बताया जाता है।