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कुछ पत्रकार तो भास्कर पर छापे से ख़ुश हैं!


कुछ पत्रकार तो भास्कर पर छापे से ख़ुश हैं! कुछ पत्रकार तो भास्कर पर छापे से ख़ुश हैं!

कुछ पत्रकार तो भास्कर पर छापे से ख़ुश हैं!

हर्ष कुमार- दैनिक भास्कर पर आईटी रेड… दैनिक भास्कर पर पड़ रहे आयकर छापों की राजनीतिक लिहाज़ से आलोचना की जा रही लेकिन मीडियाकर्मियों को तो इस पर खुश ही होना चाहिए। जिन लोगों ने इस संस्थान में काम किया हुआ है वह जानते हैं कि यह कितना कमीना संस्थान है।इस संस्थान की पॉलिसी रही है कि आपको ज्वाइनिंग के समय जो सैलरी बतायी जाएगी वो कभी नहीं दी जाएगी। हमेशा धोखाधड़ी का माहौल रहता है। जनवरी 2008 में दैनिक भास्कर के तत्कालीन ग्रुप एडिटर श्रवण कुमार गर्ग ने INS नई दिल्ली में मेरा इंटरव्यू लिया और मुझे चंडीगढ़ में स्पोर्ट्स एडिटर की पोस्ट ऑफ़र की। लेकिन उनकी शर्त यह थी कि मुझे सपरिवार चंडीगढ़ में शिफ़्ट होना होगा।मैंने कहा ऐसा क्यों? तो उनका कहना था कि अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर आप हर शनिवार को रविवार को छुट्टी मांगोगे। घर जाओगे, कभी बच्चा बीमार पड़ जाएगा, कभी माता जी की तबियत ख़राब हो जाएगी आदि। मैंने उनसे कहा कि सर इंसान परिवार के लिए ही नौकरी करता है और अगर उसके लिए ही समय नहीं मिलेगा तो फिर इस नौकरी की क्या ज़रूरत है? श्रवण गर्ग ने कहा कि नहीं तुम सोच लो भाई और सोच समझकर ही फ़ैसला लेना।

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इंटरव्यू में मौजूद रहे उस समय के संपादक HR सुदेश गोड ने भी कहा कि एकदम फ़ैसला मत करो थोड़ा सोच समझकर बता देना।कोटा के संपादक अवनीश भी वहीं इंटरव्यू के समय बैठे थे और मेरे सीधे जवाब पर हतप्रभ थे। अंत में मैंने कहा-सर ऐसी नौकरी का क्या फ़ायदा है जो परिवार के रास्ते में बाधा बने और इनकार करके वहां से चला आया। ये कमीने संस्थान हैं और इनका समय समय पर इलाज होना ज़रूरी है।राजनीतिक लिहाज़ से हो सकता है कि सरकार ने ग़लत किया हो लेकिन भास्कर में काम करने वाले लोग सब ख़ुश होंगे।Share this story

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