AtalHind
दिल्लीराष्ट्रीय

नए नियम, ‘मानहानि’ करने पर पत्रकार खो सकते हैं केंद्रीय मान्यता

 पत्रकार ‘गैर-पत्रकारीय गतिविधियों’ के लिए मान्यता का इस्तेमाल करते हुए पाया जाता/जाती हैं या उन पर कोई ‘गंभीर संज्ञेय अपराध’ दर्ज होता है तो उनकी मान्यता को निलंबित या रद्द किया जा सकता है.

 

Advertisement

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय लाया नए नियम, ‘मानहानि’ करने पर पत्रकार खो सकते हैं केंद्रीय मान्यता

नई दिल्ली: सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित केंद्रीय मीडिया मान्यता संबंधी नए दिशानिर्देशों में 10 अयोग्यता क्लॉज़ (खंड) जोड़े गए हैं. इनके चलते किसी भी पत्रकार की पीआईबी मान्यता वैयक्तिक व्याख्या (Subjective interpretation) से प्रभावित हो सकती है.केंद्रीय मीडिया मान्यता दिशानिर्देश, 2022 तब लाए गए हैं जब पिछले दिनों विभिन्न पत्रकार समूहों द्वारा केंद्र सरकार के उस तरीके पर सवाल उठाया गया था जिसके तहत उसने मान्यता की प्रकिया से जुड़ीं पद्धतियों को मनमाने ढंग से बदल दिया था.बता दें कि यह मान्यता पत्रकारों को सरकारी कार्यालयों और आयोजनों में शामिल होने की अनुमति देती है.रिपोर्ट के अनुसार, जैसे ही पत्रकारों ने इन नए दिशानिर्देशों के बारे में ट्वीट किए, सोशल मीडिया की चर्चा इस बात पर केंद्रित हो गई कि कैसे इन नियमों का इस्तेमाल देश में स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटने के लिए किया जा सकता है.

मानहानि, उकसावा’मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश चिंताएं बढ़ाने वाले हैं क्योंकि इनमें ऐसा प्रावधान है कि पत्रकार की मान्यता निलंबित करने या रद्द करने संबंधी फैसला सरकार द्वारा नामित अधिकारी के विवेक पर निर्भर होगा. वह तय करेगा कि भारत की संप्रभुता या अखंडता के लिए क्या अपमानजनक या नुकसानदेह है.

Advertisement

दिशानिर्देशों के एक खंड में उल्लेख है कि यदि कोई पत्रकार कोई ऐसा काम करता/करती हैं जो भारत की संप्रुभता या अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक आदेश के लिए नुकसानदेह हो या अदालत की अवमानना करता हो, मानहानि या अपराध के लिए भड़काता हो, तो इन आधारों पर उनकी मान्यता निलंबित या रद्द की जा सकती है.

दिशानिर्देशों में एक मान्यता प्राप्त पत्रकार की मान्यता निलंबित या रद्द करने के संबंध में दस क्लॉज दिए गए हैं. दिशानिर्देशों में यह भी उल्लेख है कि यदि कोई पत्रकार ‘गैर-पत्रकारीय गतिविधियों’ के लिए मान्यता का इस्तेमाल करते हुए पाया जाता/जाती हैं या उन पर कोई ‘गंभीर संज्ञेय अपराध’ दर्ज होता है तो उनकी मान्यता को निलंबित या रद्द किया जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिशानिर्देशों के तहत एक पत्रकार सोशल मीडिया, विजिटिंग कार्ड या लेटरहेड पर ‘भारत सरकार से मान्यता प्राप्त’ जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं कर सकता है.

Advertisement

बता दें कि ऐसे प्रावधान 2013 में जारी दिशानिर्देशों में नहीं थे. दिशानिर्दशों में ‘मान्यता देने की प्रक्रिया’ और मामले में ‘प्रिंसिपल डीजी, पीईबी के अधिकारों’ का भी उल्लेख है.

इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि ‘भारत सरकार केंद्रीय मीडिया मान्यता समिति (सीएमएसी) नामक एक समिति का गठन करेगी, जिसकी अध्यक्षता पत्र सूचना आयोग (पीआईबी) के प्रधान महानिदेशक करेंगे और इसमें भारत सरकार द्वारा नामित 25 सदस्य तक हो सकते हैं, जो इन दिशानिर्देशों के तहत निर्धारित कार्यों का निर्वहन करेंगे.’

सीएमएसी का कार्यकाल दो साल का होगा और वह तीन माह में एक बार या फिर जरूरत के मुताबिक बैठक करेगी.

Advertisement

दिशानिर्देशों में दर्ज है कि सीएमएसी के फैसले उपस्थित सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिए जाएंगे और किसी भी असहमति को विधिवत दर्ज किया जाएगा.इससे पहले जनवरी की शुरुआत में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को लिखे एक पत्र में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने कहा था कि मान्यता प्रक्रिया में बदलाव या संशोधन से जुड़ी परामर्श प्रक्रिया को हटा दिया गया है.

उसका कहना था कि पहले केंद्रीय प्रेस मान्यता समिति, प्रेस संघ और अन्य वरिष्ठ पत्रकारों से परामर्श के बाद फैसले लिए जाते थे, लेकिन अब इसका पालन नहीं किया जा रहा है.पीआईबी द्वारा मान्यता संबंधी कार्डों के नवीनीकरण में अत्यधिक देरी’प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने ठाकुर को लिखे अपने पत्र में पीआईबी द्वारा जारी मीडिया मान्यता कार्डों के नवीनीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाने का भी आग्रह किया था.

पीसीआई ने ठाकुर से कहा था कि मान्यता के नवीनीकरण में देरी के कारण ऐसी आशंकाएं पैदा हो रही हैं कि सरकार समाचारों और विचारों के कवरेज को दबाना चाहती है. उन्होंने यह भी आग्रह किया था कि जब तक कि नए कार्ड जारी नहीं किए जाते हैं, पुराने कार्डों की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए.

Advertisement

पीसीआई ने साथ ही मान्यता का नवीनीकरण करने में असामान्य देरी को मीडियाकर्मियों को सरकारी दृष्टिकोण से अवगत कराने से रोकने का सरकार का प्रत्यक्ष या अपरोक्ष प्रयास करार दिया था.

साथ ही, उसने दावा किया था कि मीडिया को प्रक्रिया में इस देरी या बाधा के संबंध में कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया था. पीसीआई ने इस कदम को प्रेस की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का सरकारी प्रयास बताया था. 

Advertisement
Advertisement

Related posts

हरियाणा में न तो पुस्तकें उपलब्ध और न ही छात्रों के खाते में पैसे आये

admin

मृतकों को नदियों में बहाने का चलन रहा है

admin

हिंदू जनता सिर्फ़ राजनीतिक लाभ का साधन बनकर रह जाएगी

editor

Leave a Comment

URL