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नारनौल में विधायक व पूर्व चेयरमैन के बीच बिजली अधिकारी को लेकर तू तू – मैं मैं

नारनौल में विधायक व पूर्व चेयरमैन के बीच बिजली अधिकारी को लेकर तू तू – मैं मैं

नारनौल(ATAL HIND )भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज के पूर्व चेयरमैन गोविंद भारद्वाज ने कष्ट निवारण समिति की बैठक की अध्यक्षता कर रहे मंत्री जे. पी. दलाल के समक्ष नारनौल में बिजली की समस्या व बिजली निगम के कार्यकारी अधिकारी अविनाश यादव के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार का मुद्दा मंत्री के समक्ष उठाया। इस पर नांगल चौधरी के विधायक अभय सिंह यादव ने अपनी आपत्ति जताते हुए एक्सईएन का पक्ष ले लिया, जिससे दोनों नेताओं की आपस में मंत्री व सभी अधिकारियों के समक्ष ही उलझ गए। मीडिया और आम जनता के बीच भाजपा का अनुशासन की धज्जी उड़ती देखी गई। बताया जाता है कि बाद में विधायक नेता को समझ में आने व फजीहत से बचने के लिए कवर कर रहे मीडिया कर्मियों को वीडियो सार्वजनिक ना करने की गुहार लगाते दिखे।

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गौरतलब है कि पिछले काफी दिनों से क्षेत्र में बिजली की भारी समस्या है। हल्की सी हवा चलते ही या दो चार बारिश की बूंद पड़ते ही बिजली को काट दिया जाता है। इसके अलावा अघोषित कटों का भी कोई पता नहीं, कब लगा दिए जाएं। ऐसे में बिजली विभाग के एक्सईएन व एसई के द्वारा फोन ना उठाने या शिकायतों पर कार्रवाई ना करने की बात सामने आ रही थी। इस बात की शिकायत भाजपा के वरिष्ठ एवं पुराने नेता गोविंद भारद्वाज ने जिला कष्ट निवारण समिति की अध्यक्षता कर रहे हरियाणा के कृषि मंत्री जे. पी. दलाल के समक्ष रखी ही थी कि तत्काल ही नांगल चौधरी के विधायक द्वारा वरिष्ठ अधिकारी द्वारा पक्ष लेने से मामला गरमा गया। जिससे दोनों नेताओं में सार्वजनिक रूप से तू तू – मैं मैं हो गई। मंत्री भी समझाते दिखे। उन्होंने पार्टी की फजीहत होने की बात कहते हुए, ऐसे विवाद बंद कमरे में सुलझाने का सुझाव भी दिया। जब विधायक जी को लगा कि नौक झोंक की खबर व वीडियो जनता में जाने से उनकी फजीहत होगी, तो उन्होंने पत्रकारों से वीडियो सोशल मीडिया में जारी ना करने का अनुरोध किया।

चर्चा का विषय यह रहा कि क्या अब भाजपा में चुनाव के समय नए आये हुए नेता, पुराने वरिष्ठ नेताओं को इस तरह से अपमानित करेंगे? आखिर विधायक अधिकारी का खुलकर पक्ष क्यों ले रहे थे? क्या भ्रष्टाचार में मग्न  विधायक का पूरी शह प्राप्त है या या कुछ और विधायक नांगल चौधरी को इस पर सार्वजनिक तौर पर बताना चाहिए कि एक अधिकारी का सरेआम इस तरह पक्ष लेना कौन सा नीतिगत फैसला है।

इसे अधिकारी का पक्ष लेना कहा जाए या यूँ कहें की सत्ता का नशा सर चढ़ कर बोलने लगा है। वैसे अधिकारियों के सामने ही उनकी गलतियों पर पर्दा डालने से उनके हौंसले अधिक बढ़ेंगे। जनप्रतिनिधियों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए। कहा यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री की शह पर राव राजा इंद्रजीत सिंह से पंगा लेकर विरोध करने वाले कथित विकास पुरुष होने का दावा जताने वाले अब भाजपा के कर्मठ लोगों का विरोध क्यों कर रहे हैं? आज की घटना आने वाले समय में उनके लिए बड़ी समस्या बन सकती हैं। मामला निश्चय पार्टी मैं ऊपर तक जाएगा यह कोई छोटी घटना नहीं है।

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