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बाबा रामदेव की कंपनी से हरियाणा सरकार ने पाँच करोड़ पैंतालिस लाख की दवाई आधे कन्सेशन पर खरीदी

बाबा रामदेव की कंपनी से हरियाणा सरकार ने पाँच करोड़ पैंतालिस लाख की दवाई आधे कन्सेशन पर खरीदी

*सरकार ने अधूरी सूचना देते हुए हाई कोर्ट के वकील प्रदीप रापडिया सूचित किया ।
*रापडिया ने सरकार की मंशा पर  उठाए  सवाल: बोले सीबीआई जाँच की माँग करेंगे !

चंडीगढ़- (atal hind): हरियाणा सरकार ने जैसे ही ऐलान किया है कि राज्य में कोरोना मरीजों को बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि की विवादित आयुर्वेदिक दवा ‘कोरोनिल’ की किट दी जाएगी और कोरोनिल का आधा खर्च हरियाणा सरकार के कोविड राहत कोष ने वहन किया जाएगा तो पंजाब पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के वकील प्रदीप रापडिया ने सरकार के निर्णय के बारे में सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगी थी । हरियाणा सरकार ने एडवोकेट प्रदीप रापडिया को सूचित किया है कि मुख्यमंत्री ने 17 मई को दो करोड़ बहतर लाख पचास हज़ार  रूपए की दवाई खरीद की मंजूरी दी और 18 मई को खरीद का ऑर्डर (परचेज ऑर्डर) भी जारी कर दिया गया और  भी  रोचक बात ये है कि स्वास्थ्य मंत्री ने 24 मई को ही ट्वीट करके सरकार के फैंसले की जानकारी दी, इसका अर्थ है कोरोनिल की खरीद करने पर विचार काफी पहले से चल रहा था और स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा से पहले ही कोरोनिल खरीदी जा चुकी थी! और   फरवरी महीने में रामदेव ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की मौजूदगी में कोरोनिल को लॉन्च किया था । घटनाक्रम से लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कोरोनिल हरियाणा सरकार को बेचने के लिए ही लांच की गई थी । हैरान करने वाली बात तो ये है कि हरियाणा सरकार ने दवाई खरीद पर कुल खर्च तो बता दिया है लेकिन कोरोनिल को कोरोना के इलाज़ में प्रयोग में लाने की इज़ाज़त देने वाले प्रमाण पत्र की कॉपी, हरियाणा सरकार और पतंजलि योग पीठ के बीच खरीद के करार की कॉपी और दवाई खरीद के टेंडर की कॉपी अपीलीय अधिकारी के आदेशों के बाद भी उपलब्ध नहीं करवाई है । संयुक्त निदेशक  आयुष ने अपने 10 जून के आदेशों में इंचार्ज एन.ए.एस. शाखा को साफ़ साफ़ आदेश दिए थे कि चाही गई सूचना एक दिन के अन्दर उपलब्ध करवा दी जाए, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है ।

  रामदेव ने दावा किया था कि यह कोरोना की पहली दवा है. इसके बाद इस पर काफी विवाद हुआ था. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सवाल किया था कि एक डॉक्टर और एक स्वास्थ्य मंत्री कैसे देश में एक ‘अवैज्ञानिक’ प्रोडेक्ट को देश में बढ़ावा दे सकते हैं.

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आर.टी.आई आवेदन में इन बिन्दुओं पर सूचना मांगी गई :
1.       कोरोनिल को कोरोना के इलाज़ में प्रयोग में लाने की इज़ाज़त देने वाले प्रमाण पत्र की कॉपी!
2.       हरियाणा सरकार और पतंजलि योग पीठ के बीच खरीद के करार की कॉपी!
3.       दवाई खरीद के टेंडर की कॉपी
4.       दवाई खरीद पर कुल कितना खर्च आएगा!

“IMA की स्टेटमेंट के अनुसार कोरोनिल कोविड के इलाज़ की प्रमाणित दवाई नहीं है और इसके भरोसे रहने से डेथ रेट बढ़ सकता है! ऐसे में बहुत साड़ी अन्य टोनिकों की तरह कोरोनिल भी सिर्फ एक इम्युनिटी बूस्टर टोनिक हो सकता है ! ऐसे में सरकार टेंडर प्रक्रिया अपनाकर सबसे वाजिब रेट देने वाले विक्रेता से टॉनिक खरीदना चाहिए! टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई या नहीं वो आर.टी.आई. के जवाब से ही पता चलेगा” – प्रदीप रापडिया, एडवोकेट

बता दें कि इससे पहले प्रदीप रापडिया केन्द्रीय सूचना आयोग और नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी  को लॉ ऑफिसर के तौर पर लम्बे समय अपनी कानूनी सेवाएं दे चुके हैं; और ऐसे में कानूनी पहलु से उनके सवाल बहुत मायने रखते हैं ।

अपने आवेदन में प्रदीप रापडिया ने IMA की स्टेटमेंट का हवाला देते हुए कहा है कि एसोसिएशन ने कोरोनिल दवाई के हरियाणा सरकार के फैंसले का विरोध किया है और कहा है कि कोरोनिल के भरोसे रहने से मृत्यु दर बढ़ सकती है, ऐसे में उनके द्वारा मांगी गई सूचना लोगों की जान और सुरक्षा से सम्बंधित है जो कि आवेदन प्राप्त होने के 48 घंटे के अन्दर उपलब्ध करवानी होती है । लेकिन हरियाणा सरकार  ने आज तक भी पूरी सूचना नहीं दी है । रापडिया ने बताया कि पूरी सूचना मिलने के बाद वो दस्तावेजों के आधार पर वो पूरे मामले की सीबीआई जांच के लिए केस डालने पर विचार करेंगे ।

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