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बीजेपी में शुरू हुआ विवाद,यूपी  ही नहीं ,गुजरात,एमपी ,उत्तराखंड,गोवा ,और कर्नाटक तक फैला 

बीजेपी में शुरू हुआ विवाद,यूपी  ही नहीं ,गुजरात,एमपी ,उत्तराखंड,गोवा ,और कर्नाटक तक फैला
BJP शासित राज्यों में ये क्या हो रहा है?
गुजरात (Gujarat) से लेकर कर्नाटक और उत्तारखंड तक बीजेपी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है. 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में अगर बीजेपी क्षेत्रीय स्तर पर चल रहे अपने अंतर्कलह को शांत नहीं कर पाती है तो इसकी वजह से उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है.

      संयम श्रीवास्तव
बीते दिनों उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में चले नाटकीय घटनाक्रम ने पूरे देश में संदेश दे दिया कि बीजेपी (BJP) के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है. सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक में यह बात चली कि बीजेपी इस वक्त एक बड़े अंतर्कलह से जूझ रहे हैं. हालांकि बाद में योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditya Nath) दिल्ली गए और उन्होंने वहां गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) से मुलाकात की और लखनऊ वापस चले आए. जिसके बाद यह मुद्दा शांत हो गया. लेकिन बीजेपी में अंतर्कलह सिर्फ यूपी में ही नहीं सामने आया बल्कि अन्य कई राज्यों में बीजेपी इस वक्त अंतर्कलह से जूझ रही है.

गुजरात (Gujarat) से भी कुछ ऐसी ही खबर सामने आ रही है. राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि इन दिनों गुजरात में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील (CR Patil) और प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी (Vijay Rupani) के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. दरअसल बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के दौरे पर थे और इस दौरे में विजय रुपाणी से ज्यादा सी आर पाटिल को तवज्जो दिया गया. जिससे विजय रुपाणी घबराए हुए हैं. केंद्रीय स्तर पर छोड़ दिया जाए तो बीजेपी इस वक्त क्षेत्रीय स्तर पर कई जगह अंतर्कलह से जूझ रही है. चाहे उत्तराखंड हो, राजस्थान हो, मध्य प्रदेश हो, गोवा हो, कर्नाटक हो या फिर उत्तर प्रदेश. आने वाले 2 साल में लोकसभा के चुनाव हैं अगर क्षेत्रीय स्तर पर बीजेपी इन समस्याओं से पार नहीं पाती है उसके लिए 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना और जीतना बेहद मुश्किल हो जाएगा.
गुजरात बीजेपी में बवाल
दरअसल 19 मई को प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के दौरे पर आए थे, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के साथ ताउते तूफान से प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया. लेकिन इस सर्वेक्षण के बाद मोदी ने गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष सी आर पाटिल के साथ एक अलग बैठक की और इस बैठक में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को नहीं बुलाया गया. शायद सी आर पाटिल यह संदेश देना चाहते थे कि वह मोदी के ज्यादा करीब हैं और आने वाले समय में उन्हें गुजरात में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. दरअसल विजय रुपाणी के समर्थकों का सीआर पाटिल पर हमेशा आरोप रहता है कि उन्होंने संगठन पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है और विजय रुपाणी के समर्थकों को नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं.
बीते दिनों ही जब गुजरात कोरोनावायरस से प्रभावित था और लोग रेमडेसीविर इंजेक्शन के लिए दर-दर भटक रहे थे, तब सीआर पाटिल ने 5000 रेमडेसीविर इंजेक्शन बांट दिए थे, जिस पर पूरे देश में काफी बवाल मचा था. जब पत्रकारों ने इस मामले में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से सवाल किया तो उन्होंने झल्लाते हुए कहा था कि इसका जवाब पत्रकार पाटिल से ही पूछें. दरअसल फरवरी में हुए नगर निगम चुनाव में बीजेपी की भारी जीत ने सीआर पाटिल को पीएम मोदी और अमित शाह के करीब ला दिया है. इस जीत के पीछे सरकार से ज्यादा संगठन का हाथ बताया गया, इस वजह से भी सी आर पाटिल और मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के बीच तल्खी बढ़ी है.
उत्तर प्रदेश में अब नया बवाल शुरू हो गया है
अभी बीते दिनों तक सिर्फ यही चर्चा थी कि केंद्रीय नेतृत्व और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेद हैं, लेकिन अब जो नया बवाल सामने आया है उसमें यह बात सामने आ रही है कि केशव प्रसाद मौर्य जो इस वक्त बीजेपी सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं वह चाहते हैं कि प्रदेश में ‘असम मॉडल’ पर चुनाव हो. यानि बिना किसी मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव और चुनाव के बाद ही विधानमंडल यह फैसला करें कि उत्तर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा. दरअसल 2017 का विधानसभा चुनाव भी इसी मॉडल पर हुआ था और केशव प्रसाद मौर्य उस वक्त बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, तब केशव प्रसाद मौर्य और उनके तमाम समर्थकों को यह लगता था कि पार्टी अगर सूबे में जीतती है तो केशव प्रसाद मौर्य को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और ऐन मौके पर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई. हालांकि, केशव प्रसाद मौर्य की यह मांग कितनी मानी जाएगी इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन जो बात बीजेपी के अंदर से निकल कर आ रही है उससे तो यही लगता है कि 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा.
उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में भी अंतर्कलह
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के बीच एक नया विवाद पैदा हो गया है. दरअसल हरिद्वार के कुंभ मेले के दौरान एक घोटाला सामने निकल कर आया जिसमें कोविड-19 के फर्जी परीक्षण किए गए थे. जब इस घोटाले पर मौजूदा मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से सवाल किए गए तो उन्होंने अपना बचाव करते हुए कहा कि यह सारा मामला उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले का है यानि सीधा-सीधा उनका आरोप था कि यह सब कुछ त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार में हुआ था. तीरथ सिंह रावत यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि हमने इसके जांच के आदेश दे दिए हैं.
तीरथ सिंह रावत के इस बयान के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी बयान दिया है, उन्होंने इसके लिए न्यायिक जांच की मांग की है. उनका कहना है कि वह एसआईटी के जांच के खिलाफ नहीं है, लेकिन अदालत पर ज्यादा विश्वास है. तीरथ सिंह रावत से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार में ब्यूरोक्रेसी का जबरदस्त दखल होता था. इस वजह से स्थानीय नेता और बीजेपी के कार्यकर्ता त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराज चल रहे थे. इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने फैसला लिया कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे.
मध्यप्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान की सरकार इस वक्त डर के साए में जी रही है कि कब नेतृत्व परिवर्तन हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई थी और कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई थी. लेकिन कांग्रेस की सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई क्योंकि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तनाव इतना बढ़ गया था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ते ही मध्य प्रदेश में सरकार गिर गई और बीजेपी की सरकार बन गई इसके बाद शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया. लेकिन अंदर ही अंदर अब यह मांग उठने लगी है कि मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन किया जाना चाहिए.
गोवा और कर्नाटक में भी बवाल चल रहा है
गोवा में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे के बीच बवाल चल रहा है. यह बवाल कोरोना महामारी के दौरान से ही चल रहा है. दरअसल गोवा में 4 दिन के भीतर 75 मौतें हुई थीं जिसे लेकर गोवा सरकार पर सवाल उठे थे. लेकिन अंदर ही अंदर यह बात सामने आई थी कि यह सब कुछ इसलिए हुआ क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के बीच तालमेल नहीं है. इसे लेकर उस समय जेपी नड्डा ने दोनों नेताओं से बात कर उन्हें अपने बीच के मतभेदों को भुलाकर राज्य की स्थिति नियंत्रित करने की सलाह भी दी थी.
कर्नाटक में यदियुरप्पा मुख्यमंत्री हैं, लेकिन अब वहां नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट तेज है. हालांकि बीजेपी के महासचिव अरुण सिंह फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन में बदलाव से इनकार करते हैं. लेकिन यदियुरप्पा को पता है कि आने वाले समय में कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन होना तय है. लेकिन बीजेपी को भी पता है कि यदियुरप्पा एक जिद्दी नेता हैं और इतनी जल्दी इतनी आसानी से वह नेतृत्व परिवर्तन की बात नहीं स्वीकार करेंगे. बीजेपा जानती है कि कर्नाटक में उसका अस्तित्व यदियुरप्पा के नाम से ही है अगर यदियुरप्पा पार्टी से नाराज हो जाते हैं तो कर्नाटक में बीजेपी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा.
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