क्या UP में BJP को केजरीवाल ने हराया?
BY—-रमा लक्ष्मी
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एक राजनेता हैं, जिन्होंने इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की जीत की गाड़ी को पटरी से उतारने के लिए जो कुछ किया है, उसके बारे में बहुत कम बात की गई है. उनका नाम है आम आदमी पार्टी के सयोंजक अरविंद केजरीवाल. चुनावी कैंपेन के दौरान उनके द्वारा दिए गए एक भाषण का यूपी में बीजेपी पर जो असर पड़ा उसे कई विश्लेषकों ने अनदेखा कर दिया या गंभीरता से नहीं लिया. नतीजों पर बारीकी से नज़र डालिए, और आपको एक पैटर्न दिखाई देगा.
सीएम योगी आदित्यनाथ के बारे में केजरीवाल के भाषण के बाद यूपी में जिस चरण में मतदान हुए उसमें न सिर्फ जीत में तब्दील होने वाली सीटों की संख्या में कमी आई बल्कि वोट शेयर में भी गिरावट आई.
बेशक, लोकसभा चुनावों में बीजेपी के बहुमत खोने के लिए अलग-अलग कारण बताए गए हैं कि- मतदाताओं ने हिंदुत्व को स्वीकार नहीं किया या कहें कि सज़ा दी, बीजेपी के अंदर बहुत घमंड आ गया था, मतदाताओं को मजबूत विपक्ष चाहिए था, आरएसएस ने बीजेपी के पक्ष में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई और आदित्यनाथ के द्वारा सहयोग न किए जाने से लेकर अखिलेश यादव की टिकट वितरण की बेहतरीन रणनीति. ‘भितरघात’ (आंतरिक तोड़फोड़) की भी एक थ्योरी हवा में है. संभवत इन सभी में थोड़ी-थोड़ी सच्चाई है.
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लेकिन सात चरणों के चुनाव प्रचार के बीच में कुछ और भी हुआ, जिसने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी.
11 मई को जेल में बंद नेता केजरीवाल ने एक ऐसा भाषण दिया, जिसने कई लोगों को चौंका दिया. उन्होंने वह बात ज़ोर से कह दी, जिसके बारे में तब तक लुटियंस दिल्ली के गलियारों में कानाफूसी हो रही थी. उन्होंने दो बातें कहीं- एक, कि मोदी को 75 साल की आयु सीमा का सामना करना पड़ेगा, जो उन्होंने खुद पार्टी के लिए तय की है; और दूसरी, कि मोदी और अमित शाह सत्ता में आने के दो महीने के भीतर यूपी के लोकप्रिय सीएम योगी आदित्यनाथ को हटा देंगे.
जेल से जमानत पर रिहा होने के एक दिन बाद केजरीवाल ने एक सार्वजनिक सभा में कहा, “अगर वे यह चुनाव जीतते हैं, तो वे दो महीने के भीतर उत्तर प्रदेश के सीएम को बदल देंगे.”
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इस भाषण के दो दिन बाद 13 मई को चौथे चरण का मतदान हुआ.
लेकिन केजरीवाल यहीं नहीं रुके. उन्होंने 16 मई को समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में लखनऊ में इसे दोहराया. और इसे स्थानीय यूपी मीडिया ने व्यापक रूप से कवर किया.
उन्होंने कहा, “अमित शाह के रास्ते में केवल एक ही व्यक्ति कांटा साबित हो सकता है और वह आदित्यनाथ हैं. अब उन्होंने फैसला कर लिया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वे दो महीने के भीतर योगी आदित्यनाथ को हटा देंगे.”
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उनके दोनों भाषण कई राजनीतिक व्हाट्सएप ग्रुप, सोशल मीडिया और फ्रंट पेज पर चले. उस समय इसे या तो केजरीवाल द्वारा किया गया चुनावी हमला बताकर खारिज कर दिया गया या इसे उनके द्वारा हताशा में दिया गया बयान बताया गया. सीएम आदित्यनाथ ने खुद प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति जेल जाता है, तो उसका दिमाग ‘फिर’ जाता है.
75 वर्ष की आयु सीमा पर उनकी टिप्पणी को लेकर भाजपा के अंदर के मोदी विरोधियों के बीच निराशाजनक प्रतिक्रिया आई. एक भाजपा सदस्य ने मुझे निजी तौर पर बताया कि इसे समय से पहले जोर से कहकर केजरीवाल ने अनजाने में उस सवाल को खत्म कर दिया, जिसकी उन्हें उम्मीद थी कि बाद में पार्टी के भीतर से स्वाभाविक रूप से उठेगा.
दूसरी बात जो उन्होंने योगी आदित्यनाथ के बारे में कही थी उसका यूपी के मतदाताओं के ऊपर एक अलग तरह का प्रभाव पड़ा. इसने उत्तर प्रदेश में योगी को पसंद करने वाले काफी मतदाताओं को डरा दिया होगा. वे या तो घर पर ही रहे या किसी अन्य पार्टी को वोट दे दिया
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केजरीवाल के भाषण से पहले और बाद में
2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की सीटों में गिरावट ने कई राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है. इस राज्य में पिछले एक दशक में भाजपा को ज़बरदस्त सीटें मिली हैं; आदित्यनाथ के रूप में यहां एक बहुत लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं; यह भाजपा के ‘डबल इंजन’ टेम्पलेट का दिल है; और यहीं पर माना जा रहा था कि राम मंदिर की वजह से बीजेपी को मजबूती मिलेगी.
यहां हम आपको बता रहे हैं कि 11 मई को अरविंद केजरीवाल द्वारा योगी आदित्यनाथ के बारे में दिए गए भाषण ने यूपी में वोटिंग पैटर्न पर कैसे असर डाला. राज्य में 11 मई तक तीन चरणों के मतदान हो चुके थे. फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र सहित, जहां पर अयोध्या का राम मंदिर है, पूर्वांचल के बाकी के क्षेत्रों में आगामी चार चरणों में मतदान होना बाकी था.
11 मई से पहले यूपी के 24 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हो चुकी थी जिनमें से बीजेपी ने 12 सीटों पर जीत हासिल की. भाषण के बाद बाकी के 51 सीटों पर मतदान हुए जिनमें से बीजेपी ने 21 सीटें जीतीं. इन पहले और बाद की अवधि में जिन सीटों पर उसने चुनाव लड़ा गया, उन पर भाजपा का वोट शेयर भी 46.07 प्रतिशत से गिरकर 42.9 प्रतिशत हो गया.
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तुलना के लिए, आइए यूपी में पिछले लोकसभा चुनावों पर नजर डालें. 2019 में, भाजपा ने पहले 24 सीटों में से 17 पर जीत हासिल की. 51 सीटों के दूसरे सेट में, उसने 44 सीटें जीतीं. इस तरह से केजरीवाल के भाषण के बाद बीजेपी की सीटों में आई गिरावट बिल्कुल स्पष्ट है.
अगर हम यह कहें कि केजरीवाल का 11 मई का भाषण 13 मई तक इतनी तेज़ी से नहीं फैल पाया होगा कि वह वोटिंग को प्रभावित कर सके, तो 20 मई, 25 मई और 1 जून को हुए मतदान पर भी नज़र डालें.
16 मई से पहले के चार चरणों में (जब केजरीवाल ने लखनऊ में फिर से इस मुद्दे को उठाया), भाजपा ने 37 सीटों में से 20 पर जीत हासिल की, जिसमें उसका वोट शेयर 45.5 प्रतिशत रहा. पिछले तीन चरणों में, भाजपा ने 38 सीटों में से सिर्फ़ 13 पर जीत हासिल की, जिसमें उसका वोट शेयर 42.37 प्रतिशत रहा.
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हो सकता है कि आदित्यनाथ ने नहीं बल्कि उनके मतदाताओं ने ही बीजेपी को नुकसान पहुंचाया हो, क्योंकि उन्हें संभवतः डर रहा होगा था कि उनके नेता को सत्ता से बाहर किया जा सकता है.
यह स्पष्ट रूप से मतदाताओं के व्यवहार पर असर डालने वाले कई कारकों में से एक है. लेकिन यह एक ऐसा कारक है जिसे काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है, खासकर इसलिए क्योंकि केजरीवाल को इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में नहीं देखा गया, जैसा कि AAP के नतीजों से भी ज़ाहिर है. लेकिन 11 मई से पहले और बाद के आंकड़े विचार करने लायक है.
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केजरीवाल अब वापस जेल में हैं. उनकी पार्टी दिल्ली और पंजाब में ध्वस्त हो गई है. उनकी विश्वसनीयता और सत्ता में बने रहने की शक्ति अब सवालों के घेरे में है. लेकिन उनके इस ‘बयान’ ने शायद वही किया है जिसके लिए वे जाने जाते हैं – हमेशा की तरह राजनीतिक हलचल पैदा करना.
(रमा लक्ष्मी दिप्रिंट में ओपिनियन और ग्राउंड रिपोर्ट की संपाद हैं. उनका एक्स हैंडल @RamaNewDelhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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