डेमोक्रेसी निलम्बित है
BY-डॉ. द्रोण कुमार शर्मा |
Democracy is suspended आगे से सरकार जी को नियम बना देना चाहिए कि सांसद सदन में सवाल नहीं पूछेंगे। अगर सवाल पूछेंगे तो उनका स्वत: निलम्बन हो जाएगा। सवाल पूछें और सदन से बाहर चले जाएं।
देश में डेमोक्रेसी है और ‘टू मच डेमोक्रेसी’ है। पहले से कहीं ज्यादा डेमोक्रेसी है। हमेशा से ज्यादा डेमोक्रेसी है। जितनी डेमोक्रेसी आजकल है इतनी ज्यादा डेमोक्रेसी पहले कभी भी नहीं थी। पुराने लोग बताते हैं कि इंदिरा गांधी की इमरजेंसी में भी इतनी डेमोक्रेसी नहीं थी जितनी आजकल है।
उससे भी अधिक पुराने लोग यह बताते हैं कि आजकल अंग्रेजों के जमाने से भी अधिक डेमोक्रेसी है। अधिक हो या न हो पर अंग्रेजों के जमाने के बराबर डेमोक्रेसी तो अवश्य ही है। क्योंकि यह डेमोक्रेसी भी उतनी ही बहरी है जितनी अंग्रेजों के जमाने में थी। अंग्रेजों के जमाने की डेमोक्रेसी को जगाने के लिए धमाके की जरूरत पड़ती थी और आज की डेमोक्रेसी को जगाने के लिए भी धमाके की जरूरत पड़ती है। वैसे अंग्रेजों की सरकार भी धमाके से भी नहीं जागी थी और अब की सरकार भी धमाके से नहीं जागती है।
Democracy is suspended बुजुर्ग लोग कहते हैं, जगाया उसको जाता है जो सो रहा हो पर जो सोने का नाटक किए हुए हो, जो पहले से ही जागा हुआ हो, उसे तो जगाया ही नहीं जा सकता है। उसे किसी भी धमाके, ढोल-बाजे से नहीं जगाया जा सकता है। अब सरकार जी तो पहले से ही जागे हुए हैं। उन्हें सब पता है। और और कोई नहीं, उनकी सरकार के आंकड़े ही उन्हें सब कुछ बताते हैं। बताते हैं कि कितनी बेरोजगारी है। यह बेरोजगारी पिछले पैंतालीस-पचास वर्ष में सबसे ज्यादा है। इसीलिए तो वे चुनावी सभाओं में रोजगार देने की बात करते हैं। फिर चुनाव खत्म होते ही फिर सो जाते हैं। जागे हुए सो जाते हैं। एक चुनाव से दूसरे चुनाव के बीच सरकार जी जागते हुए सोए रहते हैं।
सच्ची बात तो यह है कि सरकार जी सोते ही नहीं हैं। यह जो दो-तीन घंटे सोने की बात थी, वह अब पुरानी है। अब तो सरकार जी सोते ही नहीं हैं। जब सरकार जी सोते ही नहीं हैं तो उन छह सात बेरोजगारों ने सरकार जी को उठाने की हिमाकत कैसे की। उन्होंने यह कैसे सोचा कि सरकार जी को बेरोजगारी की समस्या से अवगत नहीं हैं। उनकी अपनी संस्था छह-सात वर्ष पहले ही बता चुकी है कि देश में पिछले पैंतालीस वर्ष में सबसे अधिक बेरोजगारी है। उसके बाद सरकार जी ने बेरोजगारी समाप्त करने के लिए यह बढ़िया कदम उठाया है कि उस संस्था को ऐसी कोई भी रिपोर्ट प्रस्तुत करने से ही मना कर दिया है।
Democracy is suspended लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार जी इतनी देर रात तक जागते हैं और इतनी सुबह जल्दी उठ जाते हैं फिर भी कोई काम नहीं करते हैं। अब देखो, बीते हफ्ते ही डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए कितना अधिक काम किया है। ठीक है, सरकार जी के किसी भी कदम से न तो बेरोजगारी कम हुई है, न महंगाई कम हुई है और न ही गरीबी कम हुई है। सरकार जी इन सब चीजों को तो कम करने के लिए पैदा ही नहीं हुए हैं। ये सब चीजें तो बढ़ी ही हैं। साथ ही वैमनस्य बढ़ा है, सांप्रदायिकता बढ़ी है, देश पर कर्ज बढ़ा है, अमीर गरीब के बीच खाई बढ़ी है। और साथ ही डेमोक्रेसी भी बढ़ी है।
डेमोक्रेसी सरकार जी के कार्यकाल में इतना अधिक बढ़ी है कि अब हमारा देश ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहलाने लगा है। कोई और कहे या न कहे पर सरकार जी तो यह कहते ही हैं। सरकार जी ने डेमोक्रेसी को इतना अधिक बढ़ाया है कि हम सरकार जी को बेहिचक ‘डैड ऑफ डेमोक्रेसी’ कह सकते हैं। सरकार जी ने अपनी डेमोक्रेसी को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले तो सारी संस्थाओं में डेमोक्रेसी खत्म की। अब सारी की सारी संस्थाएं सरकार के लिए, सरकार जी के लिए काम करने लगी हैं। फिर सरकार जी ने चुनाव आयोग की ओर कदम उठाया और चुनाव आयुक्त के चुनाव में डेमोक्रेसी लागू की। अब चुनाव आयुक्त को सरकार जी ही स्वयं डेमोक्रेटिक ढ़ंग से चुनेंगे।
अब बीते हफ्ते की ही बात लो। बीते हफ्ते में सरकार जी ने संसद को भी अधिक डेमोक्रेटिक बनाया है। सरकार जी ने, सरकार जी द्वारा नियुक्त बाशिंदों ने संसद में प्रश्न पूछने को अनडेमोक्रेटिक घोषित कर दिया है। पहले ‘अ’ पर सवाल करना, उसका नाम लेना असंसदीय था, अपराध था। उस अपराध पर ही संसद सदस्यता समाप्त की जाती थी। पर अब संसद की सुरक्षा पर सवाल पूछना भी अपराध हो गया है। संसद सदस्यों का इस पर भी निलंबन हो सकता है। सरकार जी ने डेमोक्रेसी को इतनी अधिक ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।
ये विपक्षी सांसद सवाल बहुत पूछते हैं इसलिए उनका निलम्बन ठीक है। क्या कभी भाजपा के सांसद सवाल पूछते हैं? क्या उन्होंने सदन में कभी ‘अ’ का नाम लिया? क्या उन्होंने कभी बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी का जिक्र किया? क्या भाजपा के किसी सांसद ने सरकार जी से संसद की सुरक्षा पर बयान देने के लिए कहा? नहीं ना! तो विपक्षी सांसदों तुम भी ऐसे ही क्यों नहीं बन जाते। नहीं बन सकते तो निलम्बन झेलो।
आगे से सरकार जी को नियम बना देना चाहिए कि सांसद सदन में सवाल नहीं पूछेंगे। अगर सवाल पूछेंगे तो उनका स्वत: निलम्बन हो जाएगा। सवाल पूछें और सदन से बाहर चले जाएं। एक दिन के लिए जाएं, उस सत्र के लिए जाएं, छह महीने के लिए जाएं या फिर पूरे कार्यकाल के लिए जाएं, यह सवाल की गम्भीरता पर निर्भर है। तभी हम पूरी तरह से मदर ऑफ डेमोक्रेसी बनेंगे। वही सम्पूर्ण ‘निलम्बित डेमोक्रेसी’ होगी।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)