पांच चरणों के संदेशे साफ़ है – जैसे जैसे अवाम की अंगुली सत्ता से निष्कासन का आदेश सुनाने वाले बटन की ओर बढ़ती जा रही है वैसे वैसे अभी तो सिर्फ भैंस याद आ रही हैं; आगे आगे न जाने किन किन की याद आयेगी!!
BY—बादल सरोज
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सिर्फ श्याम रंगीला ही परेशान नहीं है – नामी स्टैंडअप कॉमेडियन्स की टीआरपी गिरने की आशंकाएं वास्तविक संभावनाएं बनती दिख रही हैं, क्योंकि लोग मिमिक्री से ज्यादा मनोरंजन लाइव और ओरिजिनल परफ़ॉर्मर में देखने लगे हैं। हास्यास्पद दावों वाले भाषणों ने कार्टूनिस्ट्स को क्या छोड़ें क्या दर्ज करें के पशोपेश में डाल दिया है। यह साहित्य की व्यंग्य और हास्य दोनों विधाओं के लिए चुनौतीपूर्ण समय है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मतदान के पांच चरण हुए हैं। अभी तो दो चरण और बाकी हैं इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मतदान के तीन ही चरण हुए हैं, तब यह हालत है। अभी तो दो चरण और बाकी हैं। ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा का चुनाव अभियान पहले दो चरणों के बाद से ही भरे पूरे कॉमेडी सर्कस – ट्रेजी-कॉमेडी(Comedy Circus – Tragi-Comedy) – त्रासद प्रहसन में बदल चुका है।
मोदी और भाजपा की कालजयी पहचान ही यह है कि वे उनके बारे में सोची गई बुरी से बुरी आशंका से भी आगे जाकर और ज्यादा ही बदतर अंजाम देते पाए जाते हैं। मोदी की गारंटी, मंदिर का निर्माण और उनकी दम पर चार सौ पार का बखान तो न जाने कब का पीछे छूट गया है(Narendra Modi’s guarantee, the construction of the temple and the boast of crossing four hundred on his own power have been left behind long ago.)। बात हिन्दू मुसलमान, मंगलसूत्र पुराण, क्रिकेट टीम में मुसलमान, पहले डरा हुआ से अब खुश होता दिख रहा है पाकिस्तान आदि इत्यादि से होती हुई अंतिम चरण तक कहां तक जाएगी पता नहीं। रफ़्तार इतनी तेज है कि एक पर आयी हंसी रुक नहीं पाती कि तब तक उससे आगे वाला व्याख्यान शुरू हो जाता है। उसकी गूंज खत्म होने के पहले उससे भी अगले वाला और भी ताजा आ जाता है। ठेठ ऊंचाईयों पर बैठकर नीचाईयों को अथाह बना देने की होड़ में पूरे गिरोह में दे दनादन सी मची हुई है। मगर तब भी ये किसी ने भी – भैंस ने भी – कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा आयेगा जब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र (Democracy)कहे जाने वाले देश में, खुद को ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा उसको चुनावी मुद्दा बनाने पर आ जायेगी; नया भारत बनाने, अलाने फलाने से देश बचाने से हट कर बात भैंस बचाने पर आयेगी। सो भी किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे के जरिये नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री मोदी उसके बचाव के लिए खुद को तीसरी बार जिताने की गुहार लगाएंगे।
मगर हुआ ऐसा ही। गुजरात की एक चुनावी सभा में बोलते हुए मोदी ने कहा कि अगर इंडिया गठबंधन (india alliance)जीता तो वह तुम्हारे पास यदि 10 एकड़ जमीन है तो संतानों को बस आधी मिलेगी, उसमे से 5 एकड़ सरकार ले जायेगी; अगर दो भैंसें होंगी तो एक सरकार ले जायेगी। वे यहीं तक नहीं रुके उन्होंने यह भी बताया कि इस भैंस को लेकर वह “वोट बैंक” को दे देगी। इस बार उन्होंने बिना नाम लिए ही हिन्दू मुसलमान का पांसा चला। मोदी ने दावा ठोका कि यह सब बातें इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के घोषणापत्र में लिखी हुई हैं। यह घोषणापत्र सार्वजनिक दस्तावेज है, छापकर बांटा जा रहा है, अखबारों में भी छपा है और उसमे भैंस, मंगलसूत्र तो छोडिये जमीन या संपत्ति के इस तरह के पुनर्वितरण का जिक्र तक नहीं है। मगर इसके बाद भी मोदी एक के बाद एक सभाओं में इसे दोहराए ही जा रहे हैं। लोग अचरज में हैं कि सूचना विस्फोट के इस दौर में जब सारी जानकारियां पीसी और लैपटॉप की एक क्लिक, मोबाइल के एक स्पर्श भर की दूरी पर हैं तब बिना पलक झपकाए, बिना झिझके, बिन शर्माए कोई इतना जबरदस्त झूठ आखिर कैसे बोल सकता है!! वे मुगालते में हैं; अगर मोदी है तो यह मुमकिन है; इसे उनके दांये बांये हाथ का काम कहना उनकी मिथ्याभाषिता की धाराप्रवाहिता को कम करके आंकना होगा, यह तो उनकी छोटी उंगली कनिष्ठा का खेल है। झूठ पर शर्माने का रिवाज भाजपा के व्यवहार का हिस्सा वैसे भी कभी नहीं रहा, अब तो बिलकुल भी नहीं है। उन्हें अपने कॉरपोरेट मीडिया और आईटी सेल और भक्त समूह की त्रयी पर फुल कांफीडेंस है कि वे उनके झूठ को सच बता देंगे और सच बोलने वालों को शर्मसार करके परवीन शाकिर के मशहूर शेर के मिसरे “वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा” (he will lie and do terrible things)को अमल में लाकर ही मानेंगे।
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मोदी और उनके अरबपति मित्रों के चंगुल से बाहर का जो देश दुनिया का मीडिया है वह झूठ बोलने के विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले ट्रम्प को खुद उनके ही ख़ास दोस्त द्वारा दी जा रही चुनौती के मजे ले रहा है।
बहरहाल यदि मोदी ब्रांड हो गए जुमले में कहें तो इस आपदा में भी अवसर है – मगर वह अवसर है सिर्फ भैंस के लिए। भाजपा की इस अक्लमंदी को देखकर खामखा ही अकल से छोटी बताई जाने वाली भैंस इन दिनों स्वयं को सम्मानित, प्रमुदित और आल्हादित महसूस कर रही होगी। होना भी चाहिए – अब तक सिर्फ, केवल, मात्र गाय को ही सब कुछ मानने वाले खालिस एशियाई देशों में पाई जाने वाली, अकेले भारत में ही 11 करोड़ से ज्यादा तादाद में होने और देश की पौष्टिक दूध – घी – दही की जरूरतों का बड़ा हिस्सा पूरा करने वाली होने के बावजूद प्रतिष्ठापूर्ण पहचान से वंचित थी। उसे यमराज की सवारी बनने और संस्कृत और हिन्दी में रानी के समतुल्य महिषी शब्द के सिवाय कुछ नहीं मिला था। उसे अच्छा लगा होगा कि अंततः गोबराभिषेकित, गौमूत्र पोषित, सच्चे गौ-पुत्र अपनी मां गाय को छोड़ उसे तरजीह दे रहे हैं; उसे बचाने के लिए संकल्पबद्ध हो रहे हैं, चुटिया में गांठ बांध रहे हैं। जो गरुड़ पुराण सहित सारे शास्त्र अब तक वैतरणी पार कराने के लिए पुरुषोत्तम मास में गाय की पूंछ को पकड़ना ही एकमात्र जरिया मानते थे, मोदी ने चुनावी माह में गाय तो गाय मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाने वाले राम तक से आगे भैंस को बिठा दिया है और उसे बचाने की बीन बजाते हुए उसकी पूंछ पकड़ कर चुनाव की वैतरणी पार करने में जी जान से जुट गए हैं। यह वैतरणी बिहार के राजगीर या ओड़िसा में पाई जाने वाली वैतरणी नाम की नदियां नहीं है। मोदी ने गरुड़ पुराण में लिखी वैतरणी की तरह इस चुनाव की वैतरणी को सीधे यमलोक ले जाने वाली खून और मवाद से भरी नदी की तरह झूठ और नफरती द्वेष से सराबोर नदी बना दिया है। भैंस की ननिहाल होने का दावा ठोंकने वाले मथुरा में तो वोट डाले जा चुके थे – इसकी ददिहाल माने जाने वाले रोहतक, हिसार, जींद और करनाल और सबसे बड़ी भैंस बसाहट माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में अभी मतदान होना बाकी है। जिस तरह से एक के बाद एक सभाओं में मोदी अपना झूठ दोहरा रहे हैं उसे देखकर लगता है कि अब भैंस को ही सारी जिम्मेदारी उठानी होगी।
हालांकि ऐसा नहीं है कि इन चुनावों में भैंस कहीं थी ही नहीं; वह थी। हर कुछ देखने सुनने के बावजूद निर्वाचन सदन में निठल्ले बैठकर पगुराते केन्द्रीय चुनाव आयोग के चलते मुहावरों में तो वह पहले से ही मैदान में थी – अब खुद प्रधानमंत्री ने उसे नामजद करके कर्नाटक के तीन हजारिये बलात्कारी प्रज्वल रेवन्ना के कुकर्मी कारनामों, इलेक्टोरल बांड्स के महाघोटालों, विश्व कुख्यात यौन आरोपी ब्रजभूषण शरण सिंह के बेटे को भाजपा की टिकिट आदि से असली मुद्दों की भैंस को पानी में पहुंचा दिया है। चुनाव आचार संहिता के धड़ाधड़ उल्लंघनों की भैंस तो पहले से ही पोखर में विराज चुकी थी; अब उसे सशरीर मैदान में लाकर मुद्दों की रानी साहिबा – महिषी – का दर्जा दे दिया है।
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बात इसके बाद भी बनती नहीं दिख रही। जनमत की भैंस हर चरण में सत्ताधीशों को लतियाए ही जा रही हैं। इसलिए जो इधर के घोषणापत्र में नहीं है उसका हौआ बनाया जा रहा है और कौआ कान ले गया का शोर मचाकर तेजी के साथ अभियान को उन्मादी बनाया जा रहा है। अयोध्या में प्रधानमंत्री का रोड शो और उसमे दिखाई गयी धजा इसका एक नमूना है; सिर्फ एक नमूना। विरोधियों के प्रति अपशब्द अब गाली गलौज तक पहुंचने लगे हैं। उनके खेमे में सेंध लगाने के लिए सूरत, इंदौर, खजुराहो के बाद अब पुरी करने के बाद अब गांधीनगर करने की तैयारी जारी है। दूसरों के मैनिफेस्टो में भले न हो मगर भैंस के साथ जुडी उसे चुराने की विधा इनके मैनिफेस्टो का अभिन्न और अटूट हिस्सा है। यह काम अव्यवस्थित, स्वतःस्फूर्त कतई नहीं है। मोदी की भाजपा दुनिया की अकेली ऐसी पार्टी है जो कभी इसे कभी उसे, कभी इस बहाने तो कभी उस बहाने तोड़कर लाने और अपने तबेले में बांध लेने के लिए भी एक डिपार्टमेंट – दलबदल प्रकोष्ठ – बनाये हुए है और ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स ही नहीं अपने राज वाले राज्यों के पुलिस और प्रशासन को उसके अधीन कर रखा है। इन महकमों का काम है सामने वालों की छोटी मोटी चूकें, गलतियों और तरलता की फाइल का जाल बनाना और अपने आकाओं को सौंप देना ताकि उनके आधार पर कहीं अमित शाह, कहीं कैलाश विजयवर्गीय तो कहीं संबित पात्रा मछलियां, इन दिनों के विमर्श में कहें तो भैंसें, फांस सकें।
मगर इतना सब कुछ जानने के बाद भी उनकी घबराहट बनी हुयी है तो इसलिए कि उन्हें असली भैंसों के खुरों की पटापट से धरातल में हो रहे कम्पन की जानकारी है; उन्हें पता है कि भैंस के बारे में जितना वे जानते हैं उससे ज्यादा इस देश की जनता जानती है। हालात की नजाकत उन्हें पता हैं और चूंकि मुहावरे और कहावतें तो लोक ने ही गढ़ी रची हैं इसलिए इन्हें हालात के माकूल कहावते याद भी हैं। इंडिया दैट इज भारत के मालवा में एक कहावत है कि “भरोसा की भैंस पाड़ो ब्याणी ले” (भरोसा की भैंस पाड़ा जनती है) मतलब अगर आंख मूंद कर सिर्फ मुंहबोले का यकीन कर लिया तो हिस्से में पाड़ा ही आयेगा – दुधारू पड़िया का पहाडा ठग पढ़ जायेंगे। सुकून की बात यह है कि अब तक के रुझान यही बताते हैं कि भैंस भी जागी हुयी है, भैंस वाला भी जगा हुआ है। सिर्फ जागा ही नहीं है, चकाचौंधी तिलिस्म चीरकर साफ़ साफ़ देख रहा है और समझ रहा है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस में लाठी का मतलब सिर्फ तख़्त पर बैठे अडानी अम्बानी के टुकड़खोर लठैत की लाठी नहीं होता – लोकतंत्र में इस लाठी का एक मतलब अंगुली से बटन दबाकर दिया जाने वाला वोट भी होता है।
पांच चरणों के संदेशे साफ़ है – जैसे जैसे अवाम की अंगुली सत्ता से निष्कासन का आदेश सुनाने वाले बटन की ओर बढ़ती जा रही है वैसे वैसे अभी तो सिर्फ भैंस याद आ रही हैं; आगे आगे न जाने किन किन की याद आयेगी!!
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(लेखक लोकजतन के संपादक हैं और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। विचार निजी हैं।)
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