AtalHind
लेख

पेगासस जासूसी को लोकतंत्र के बदनुमा दाग़ के तौर पर देखता हूं: पत्रकार रूपेश कुमार सिंह

पेगासस जासूसी को लोकतंत्र के बदनुमा दाग़ के तौर पर देखता हूं: पत्रकार रूपेश कुमार सिंह

पेगासस जासूसी को लोकतंत्र के बदनुमा दाग़ के तौर पर देखता हूं: पत्रकार रूपेश कुमार सिंह

BY मुकुल सिंह चौहान

Advertisement

 

साक्षात्कार: झारखंड के रामगढ़ में रहने वाले स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह और उनसे जुड़े तीन फोन नंबर पेगासस स्पायवेयर द्वारा जासूसी की संभावित सूची में शामिल हैं. इस बारे में रूपेश कुमार सिंह से बातचीत.

पेगासस जासूसी को लोकतंत्र के बदनुमा दाग़ के तौर पर देखता हूं: पत्रकार रूपेश कुमार सिंह

Advertisement

I see Pegasus spying as a blot on democracy: Journalist Rupesh Kumar Singh

संभावित निगरानी सूची में आने की बात मालूम चलने पर क्या प्रतिक्रिया थी?

जब मुझे पता चला इस बात का कि मेरा और मेरी जीवनसाथी और एक परिवार के सदस्य का नाम सूची में सामने आया है तो अंदर से बहुत ही गुस्सा था. हैरानी नहीं हुई, लेकिन गुस्सा बहुत ज्यादा है कि मतलब आप किसी की निजता के साथ इस तरह से खिलवाड़ कैसे कर सकते हैं.

Advertisement

मैं अपने बेडरूम में क्या कर रहा हूं, मैं किससे बात कर रहा हूं और सिर्फ़ मेरे ही नहीं, आप एक पत्रकार की आवाज़ को दबाने के लिए आप उनके परिजन का भी फोन टैप कर रहे हैं, जिनको हमारी पत्रकारिता से उतना मतलब नहीं है.

खुद को लोकतांत्रिक बताने वाले देश में पत्रकारों के नाम जासूसी की संभावित लिस्ट में होना, कुछ के फोन में स्पायवेयर मिलना क्या सवाल खड़े करता है?

हमारे देश में लोकतंत्र है. ये लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत साबित हो रहा है तो अभी के जो हुक्मरान हैं, उन्होंने सीधा-सीधा इस लोकतंत्र पर कब्ज़ा कर लिया है. मैं ये कह सकता हूं और कि यह वे पहले कदम पर हैं.

Advertisement

जहां तक हम पत्रकारों की बात है, तो साफ-सी बात है कि हम सूत्रों के भरोसे काम करते हैं. हमें गांव से फोन आता है कि हमारे गांव में यह समस्या है या यह आंदोलन चल रहा है, आप आइए. अब कोई भी हमें क्यों फोन करेगा. वह आदमी, अगला डर जाएगा.

ऐसा मेरे साथ पहले भी हुआ, अब हमें पता चल रहा है कि तब हमारी जासूसी हो रही थी, इसलिए कि मैं कहीं भी फोन करता था कि मैं आ रहा हूं तो वहां पर मेरे पहुंचने से पहले कुछ अन्य लोग पहुंच जाते थे और बोलते थे कि किसको बुला रहे हो, क्यों बुला रहे हो.

तो इस तरह की घटनाएं भी घटी हैं और इसे मैं लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक बहुत बड़े बदनुमा दाग के रूप में देखता हूं. और ये निज़ाम जो है, ये इस लोकतंत्र को कब्जाने की साज़िश कर रहा है. साज़िश ही नहीं कर रहा है, बल्कि उसका पाला इस खेल को पार कर चुका है.

Advertisement

भारत में अभी ख़ासकर के पत्रकारिता के लिए मैं मान सकता हूं कि ये एक अघोषित आपातकाल है. ये घोषित नहीं किया गया है, ये अघोषित आपातकाल है और हाल के ही घटनाक्रम देख लीजिए, किस तरह से दैनिक भास्कर, भारत समाचार के कार्यालय में आयकर के छापे पड़े हैं. कोरोना की दूसरी लहर के समय दैनिक भास्कर ने बहुत ही अच्छी रिपोर्टिंग की, भारत समाचार के बृजेश जी लगातार यूपी के सवालों पर बोलते रहे हैं.

आने वाले समय में ख़ासकर पत्रकारों की जासूसी का मामला सामने आने के बाद लोग तो डरेंगे ही और ये लोकतंत्र के लिए बहुत ही खतरनाक है. इस सरकार ने हमारे देश को इमरजेंसी के हालात में ला दिया है, जो आगे चलकर अगर हम पत्रकारिता में हैं तो सरकार के द्वारा जो नाकेबंदी की गई है, इसको तोड़कर ही हम लोगों को बाहर निकलना होगा. हमें अपने सूत्रों को फिर से तैयार होगा. कह सकते हैं कि ये पत्रकारिता का एक बहुत ही बड़ा संकट काल है.

आपके इस सूची में शामिल होने की क्या वजह हो सकती है?

Advertisement

हमारे देश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट होती रहती है, उनका दोहन होता है. मैं जिस राज्य में रहता हूं और जो खबरें कवर करता हूं, वे प्राकृतिक संसाधनों की लूट से जुड़ी होती हैं. मेरी ज्यादातर खबरें झारखंड में जो विस्थापन की समस्या है, विस्थापितों का जो आंदोलन है, यहां जो फोर्स एनकाउंटर है, आदिवासियों की माओवादियों के नाम पर जो व्यापक गिरफ़्तारी हुई है, उन्हें जेल में बंद किया गया है, तो मैं उस संघर्ष को व्यापक फलक पर रखने की कोशिश कर रहा था.

और इस संसाधनों की लूट में सिर्फ झारखंड के लोग शामिल नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया के देशी-विदेशी पूंजीपति, जिन्हें हमारी सरकार ने न्योता दिया है वे प्राकृतिक संसाधनों की लूट करते हैं. मैं उस पर लिख रहा था, बोल रहा था, सो मुझे लगता है कि इसीलिए मेरा इसमें नाम सूची में है.

सूची में नाम होने की बात सार्वजनिक होने के बाद किस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है?

Advertisement

सबसे पहले तो जब मेरा नाम आया तो जो भी मेरे फ्रेंड सर्कल के लोग थे या जो मुझे, मेरे काम को जानते थे, उनका अच्छा रिस्पॉन्स आया. जो भी झारखंड और देश के संघर्षकारी लोग थे, उन्होंने विशेष तौर पर फोन किया.

इतना होने के बाद भी उन्होंने उसी रात से फोन करना शुरू किया, कहा कि आपके साथ हूं. आप जिस सवाल को उठा रहे हैं और जिसके कारण आज इस स्थिति में हैं, जो आपके साथ किया गया है, उसके लिए हम आपके साथ हैं.

मैं जिनकी आवाज उठाता हूं, जो हमारे लोग थे और मैं जिनकी आवाज उठा रहा हूं, उन तमाम गांवों से भी मुझे फोन आ रहे हैं कि आपके साथ हम लोग हैं. डरने की बात नहीं है. मुझे लोगों का, ख़ासकर जो प्रोग्रेसिव लोग हैं, जो संघर्षकारी लोग हैं, उनका समर्थन मिला है.

Advertisement

मैं गोदी मीडिया की बात नहीं कर रहा हूं. वह गांव जहां अभी मैं रह रहा हूं, बहुत सारे हिंदी अख़बार हैं और चैनल भी हैं, लेकिन किसी ने भी मुझसे संपर्क नहीं किया. इनके लिए मैं पत्रकारिता करता भी नहीं हूं. मैं पत्रकारिता करता हूं जनता के लिए और जनता हमारे साथ है और संघर्षकारी लोग हमारे साथ हैं और यह अच्छी प्रतिक्रिया आई है.

बहुतों ने कहा कि आप सुप्रीम कोर्ट जाएं, होगा तो हम लोग आपको चंदा करके देंगे, गांव-गांव से मैसेज इस तरह से मिला है.

सरकार जासूसी की बात को नकार रही है. इस पर आपकी क्या राय है?

Advertisement

ये तो सबसे पहली बात है कि ये जो हमारी केंद्र सरकार है, ये झूठी है और ये डरपोक सरकार है. इसके झूठ को पूरी दुनिया ने देखा. भारत में ऑक्सीजन के बिना लोगों की मृत्यु हुई, उन्होंने लोकसभा में कहा कि कोई नहीं मरा.

तो मैं कह रहा हूं कि अगर आपने (जासूसी) नहीं करवाया है और आपके देश के इतने पत्रकारों, नौकरशाहों, आपके मंत्रियों, विपक्ष के नेता आदि का फोन किसी दूसरे देश के लोगों ने सर्विलांस पर रखा हुआ है तो मैं कह रहा हूं कि यह हमारे देश की संप्रभुता के लिए खतरा है.

और अगर आप कहते हैं कि हम एक सर्वशक्तिमान देश हैं, हम एक संप्रभु देश हैं तो आप इस पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं. ये तो आपके देश की और भी इज़्ज़त का सवाल होना चाहिए.

Advertisement

कहिए कि हमारे देश के लोगों का दूसरे देश के लोग कैसे जासूसी करवा सकते हैं. यह बड़ा सवाल है. अगर उसने नहीं किया है तो मैं कहता हूं कि सरकार झूठ बोल रही है, क्योंकि तब तो आपको जांच करवानी चाहिए कि क्योंकि इस चीज का संप्रभुता पर संकट है.

इस मामले को लेकर क्या कोर्ट का रुख करेंगे?

मैंने अभी कहा आपको कि मैं तो एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट हूं और जो सुप्रीम कोर्ट का खर्च है, वह भी वहन करने की स्थिति में नहीं हूं, लेकिन लोगों का समर्थन हमारे साथ है. तो मैंने कल भी वकीलों को बुलाया, सलाह लिया है. वे लोग भी सलाह लेंगे और उस पर क्या खर्च आएगा, वह सब देखेंगे, लेकिन अगर पत्रकार सामूहिक रूप से कोर्ट जाएं, इसके लिए मैं अपील भी कर रहा हूं तो तो लगता है कि ज्यादा प्रभाव पड़ेगा और अगर नहीं होता है तो हम सलाह ले रहे हैं.

Advertisement

मैं व्यक्तिगत तौर से भी सुप्रीम कोर्ट में रिट फाइल करवाने की कोशिश करूंगा. मैंने पहले ही कहा कि मैं खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हूं, फिर भी हम लोग कोशिश करेंगे, क्योंकि ये मेरी निजता पर सरकार ने हमला किया है.

सरकार पूरी तरह से संविधान विरोधी साबित हुई है. संविधान ने हमें अधिकार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजता का अधिकार लोगों का मौलिक अधिकार है तो उन्होंने हमारी निजता के साथ खिलवाड़ किया है तो हम तो कोर्ट जाएंगे, लेकिन अगर सब लोग मिलकर जाएं तो ज्यादा अच्छा है, नहीं तो मैं व्यक्तिगत तौर पर भी जाऊंगा.

Advertisement
Advertisement

Related posts

राजनाथ सिंह झूठ क्यों बोले? उमर खालिद या कन्हैया जैसे छात्रों के खिलाफ वे हिंसा और घृणा भड़काना चाहते थे

admin

आरक्षण को लेकर हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा और गुजरात में पटेलों के लिए रास्ता आसान हो गया है?

admin

भूखा मरता भारत , 75 फीसदी जनता भूख से बेहाल

admin

Leave a Comment

URL