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Supreme Court-भारतीय नागरिक द्वारा पाकिस्तान को आजादी की शुभकामनाएं देना अपराध नहीं -सुप्रीम कोर्ट

भारतीय नागरिक द्वारा पाकिस्तान को आजादी की शुभकामनाएं देना अपराध नहीं -सुप्रीम कोर्ट

It is not a crime for an Indian citizen to wish Pakistan independence – Supreme Court

नई दिल्ली:() सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि यह समय भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और ‘उचित सख्ती की सीमा’ पर हमारी पुलिस को संवेदनशील बनाने और शिक्षित करने का है. ऐसा कहते हुए शीर्ष न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया और महाराष्ट्र के एक कॉलेज प्रोफेसर के खिलाफ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आलोचना करने वाला वॉट्सऐप स्टेटस डालने और पाकिस्तान को उसके स्वतंत्रता दिवस(pakistan independence day) पर शुभकामनाएं देने के लिए दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया. जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘भारत के प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू कश्मीर की स्थिति में बदलाव की कार्रवाई की आलोचना करने का अधिकार है.’It is not a crime for an Indian citizen to wish Pakistan independence – Supreme Court

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘जिस दिन अनुच्छेद 370 निरस्त किया गया उस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में वर्णित करना विरोध और पीड़ा की अभिव्यक्ति है. यदि सरकार के कामों की हर आलोचना या विरोध को धारा 153 ए के तहत अपराध माना जाएगा, तो लोकतंत्र- जो भारत के संविधान की एक अनिवार्य विशेषता है- जिंदा नहीं रहेगा.’

भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए ‘धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने वाले कार्य करने’ को दंडनीय अपराध बनाती है.पीठ का फैसला जावेद अहमद हजाम की याचिका पर आया, जो कोल्हापुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर थे. 10 अप्रैल 2023 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी.
अदालत ने कहा, ‘अगर भारत का कोई नागरिक 14 अगस्त (जो पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस है)pakistan independence day  को पाकिस्तान के नागरिकों को शुभकामनाएं देता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. यह सद्भावना का संकेत है. ऐसे मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि इस तरह के कृत्यों से विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य या शत्रुता, घृणा या द्वेष की भावना पैदा होगी. अपीलकर्ता के इरादों को केवल इसलिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह एक विशेष धर्म से है

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