मोदी जी, जो राम को लाने का दावा कर रहे हैं उनका शासन रामराज में क्या स्थान रखता है
मोदी राज में कितना बदला भारत , जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और लोकतंत्र की स्थिति
BY–मुकुल सरल
How much has India changed under Modi rule, like the situation of education, health, employment and democracy?
राम को मानने वाले भी कहते हैं कि रामराज से ही राम की महिमा है। तो आइए देखते हैं मोदी जी, जो राम को लाने का दावा कर रहे हैं उनका शासन रामराज में क्या स्थान रखता है।
देश में राम नाम की लूट है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा कर बनाए गए आधे-अधूरे राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दी है कि राम आ गए हैं…
राम को मानने वाले भी कहते हैं कि रामराज से ही राम की महिमा है। हालांकि एक स्वस्थ लोकतंत्र में जनता के राज की बात होनी चाहिए लेकिन मान लेते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार रामराज्य का मतलब भी एक आदर्श राज्य है। तो एक आदर्श राज्य की कल्पना के अनुसार आज के संदर्भ में ‘रामराज’ की पहली शर्त क्या हो सकती है। यही कि— कानून का राज हो। इंसाफ़ और बराबरी की बात हो। इसके अलावा भी कई कसौटियां हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और लोकतंत्र की स्थिति।
आइए मोदी राज को इन्हीं कसौटियों पर कसते हैं। क्योंकि मोदी जी पांच साल में देश बदलने आए थे और उन्हें पूरे दस साल हो रहे हैं। तो देखते हैं मोदी जी, जो राम को लाने का दावा कर रहे हैं उनका अब तक का शासन ‘रामराज’ में क्या स्थान रखता है।
देश में अपराध की स्थिति
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताज़ा रिपोर्ट देश में क़ानून की स्थिति बताने के लिए काफ़ी है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद 4 दिसंबर 2023 को जारी की गई एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार
देश में हत्या के 28522 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 में 29272 थे।
अपहरण के कुल 1 लाख 10 हजार 140 मामले, जिनमें 21278 पुरुष, 88861 महिलाएं।
महिलाओं के खिलाफ 4 लाख 45 हजार 256 अपराधों का रिकॉर्ड।
2021 की तुलना में 2022 में 4 फीसदी की वृद्धि।
1 लाख 62 हजार 449 अपराध बच्चों से दुर्व्यवहार का मामला।
बाल शोषण की घटनाओं में 8.7 फीसदी की बढ़ोतरी।
बुजुर्गों के उत्पीड़न के 28 हजार 545 मामले दर्ज किए गए।
वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े केस 11.1 प्रतिशत बढ़े।
साइबर क्राइम में 24.4 फीसदी की बढ़ोतरी।
देशभर से 4 लाख 42 हजार 572 नागरिक लापता हैं।
देश भर में 83350 बच्चे भी लापता हैं।
—–पहले नंबर पर है यूपी——
उत्तर प्रदेश में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत 4 लाख 1 हजार 787 केस दर्ज।
3 लाख 74 हजार 38 अपराधों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है।
मध्य प्रदेश (298578), राजस्थान (236090), केरल (235858) क्रमश: तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर।
हत्या के मामलों में यूपी टॉप पर
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महिलाओं के खिलाफ अपराध में भी यूपी नंबर-1
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यह वही यूपी है जहां ‘डबल इंजन’ की सरकार है। यानी मोदीराज के साथ योगीराज। जिसकी महिमा उप राष्ट्रपति धनखड़ जी भी गाते हैं। जहां सभी बड़े तीरथ धाम हैं—अयोध्या जहां भव्य राम मंदिर बनाया गया है। काशी है, मथुरा है, प्रयाग है।
ऐसे ‘देवलोक’ में भी अपराध का बोलबाला है और कानून की स्थिति दयनीय।
और ध्यान रहे कि यह तो वे आंकड़े हैं जो पुलिस ने दर्ज किए हैं। आप जानते हैं कि ऐसे बहुत से मामले हैं जो दर्ज नहीं किए जाते या दर्ज नहीं कराए जाते।
===दलितों की स्थिति===
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री मोदी शबरी से लेकर निषादराज तक का ज़िक्र करते हैं लेकिन देश में दलितों-आदिवासियों की क्या स्थिति है किसी से छिपी नहीं है। मोदी जी ने दलित और आदिवासी राष्ट्रपति बनाने का श्रेय तो ले लिया लेकिन नई संसद के उद्घाटन से लेकर राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तक उन्हें दूर ही रखा गया।
यही नहीं अपने ‘मित्र उद्योगपतियों’ के लिए आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन लगातार छीने जा रहे हैं और दलित उत्पीड़न लगातार जारी है। इसे पुराने आंकड़ों के अलावा इस एक ताज़ा ख़बर से समझा जा सकता है।
अभी दो दिन पहले राजस्थान के झालावाड़ जिले के खानपुर थाने के अंतर्गत मुंडला गांव से खबर आई कि दलितों के पैसे से भगवान राम को भोग नहीं लगेगा, इससे प्रभु श्री राम अपवित्र हो जाएंगे और जो परसादी बनेगी वह भी अपवित्र हो जाएगी। इसलिए उनका पैसा भगवान श्री राम के प्रसाद के लिए नहीं लिया जा सकता।
—UAPA और हेट स्पीच—-
इतना ही नहीं NCRB के सालाना आंकड़ों में खुलासा हुआ है कि 2021 के मुकाबले 2022 में भारत में हेट स्पीच और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2022 में UAPA के तहत 23 फीसदी तो हेट स्पीच के मामलों में 45 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। जो बेहद चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा करती है।
यहां यह भी बता दें कि UAPA के तहत ऐसे बौद्धिक और मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखक-पत्रकारों पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है जो जनता के हक की बात करते हैं।
—शिक्षा की स्थिति—-
देश के 25 फीसदी 14 से 18 आयु वर्ग के छात्र कक्षा दो की क्षेत्रीय भाषा की पुस्तक पढ़ने में असमर्थ हैं। आधे से अधिक युवा भाग के सामान्य सवाल हल करने में पीछे हैं।
यह खुलासा वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर) 2023 में हुआ है। दिल्ली में 17 जनवरी को भारत में सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को दर्शाती ‘असर रिपोर्ट 2023’ जारी की गई है। असर रिपोर्ट के लिए 26 राज्यों के 28 जिलों में 14 से 18 आयु वर्ग के 34745 बच्चों पर सर्वेक्षण किया है।
रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से अधिक युवा गणित के सामान्य सवाल हल करने में पिछड़ते हैं। 14 से 18 आयु वर्ग के 25 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं, जो कक्षा दो की क्षेत्रीय भाषा की पुस्तक पढ़ने में असमर्थ हैं। इसके साथ ही करीब 43 प्रतिशत छात्र अंग्रेजी के वाक्य पढ़ने में असमर्थ हैं। यह जानकारी ‘वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर) 2023’ में दी गई है। वहीं 90 प्रतिशत से अधिक युवा स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं।
यही नहीं उच्च शिक्षा को लेकर भी बुरा हाल है। नई शिक्षा नीति (NEP) को लेकर देशभर के छात्र आंदोलित हैं। अभी बीते 12 जनवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर देशभर से आए छात्रों ने एक बड़ी रैली की और ‘SAVE EDUCATION-REJECT NEP’ का नारा बुलंद किया।
—-रोज़गार की स्थिति——
रोज़गार पर अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ताज़ा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में 15 प्रतिशत से ज्यादा ग्रेजुएट बेरोजगार हैं। यही नहीं, 25 साल से कम उम्र के स्नातकों के बीच बेरोजगारी दर 42 प्रतिशत है।
हालांकि एनएसएसओ की ताजा आवधिक श्रम बल रिपोर्ट (पीएलएफएस) में जुलाई 2022 से जून 2023 के अनुसार देश में 15 साल से अधिक उम्र के नागरिकों में बेरोजगारी दर 3.2 प्रतिशत दर्ज हुई है। यह 6 साल में सबसे कम है। पिछले साल बेरोजगारी दर 4.1 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी दर का मतलब है कि उपलब्ध मानव श्रम में से कितने प्रतिशत के पास काम नहीं है। एनएसएसओ अप्रैल 2017 से यह रिपोर्ट जारी करता आ रहा है, इस बार इसका छठवां संस्करण है।
न्यूज़क्लिक में पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकार सुबोध वर्मा लिखते हैं–
भारत में नौकरियों की स्थिति पर हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि दो प्रमुख रोजगार संकेतकों – श्रम बल भागीदारी दर और श्रमिक जनसंख्या अनुपात – दोनों में सुधार दिखा है, और बेरोज़गारी दर में गिरावट आई है। 2022-23 के लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) नामक रिपोर्ट, लगभग 4.2 लाख व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 1 लाख घरों के वार्षिक सर्वेक्षण पर आधारित है।
पीएलएफएस रिपोर्ट में दिए गए डेटा के विवरण से पता चलता है कि यह आशावाद गलत है। रिपोर्ट एक वास्तविकता को दर्शाती है जहां अवैतनिक श्रम, विशेष रूप से महिलाओं का श्रम, काफी बढ़ गया है, अनौपचारिक काम बढ़ गया है, कृषि तेजी से काम का मुख्य आधार बन रही है और कम भुगतान वाले स्वरोजगार दुनिया पर हावी है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक लिखते हैं— अक्टूबर 2023 के लिए दिए गए नवीनतम CMIE आंकड़े बताते हैं कि देश में बेरोजगारी दर 10.05% थी। ग्रामीण बेरोजगारी दर 10.82% थी जबकि शहरी बेरोजगारी दर 8.44% थी। समग्र बेरोजगारी दर न केवल पिछले महीने की तुलना में अधिक थी जब यह 7.09% थी बल्कि मई 2021 के बाद से सबसे अधिक थी जब इसमें तेज वृद्धि हुई थी (पिछली तेज वृद्धि कोविड-19 के मद्देनजर 2020 में नरेंद्र मोदी द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के कारण हुई थी)।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि भारत का युवा ऐसी तरक्की का हकदार है जो उसे अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरी दे, न कि ‘बेरोजगारी और पकोड़े की दुकान।’
‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2023 में 25-29 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी 15.5 प्रतिशत रही जो लगभग चार वर्षों में सबसे अधिक है।
—-स्वास्थ्य व्यवस्था—-
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था (RHS) का क्या हाल है आइए जान लेते हैं—
—ग्रामीण क्षेत्र—–
* स्वीकृत पदों की तुलना में 14.4 प्रतिशत एचडब्ल्यू (महिला)/ एएनएम {सब सेंटर (एससीएस)+प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में} रिक्त हैं।
* देश के स्तर पर पीएचसी में एलोपैथिक डॉक्टरों की 3.1 प्रतिशत कमी है।
* सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में सर्जन की 83.2%, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों की 74.2%,चिकित्सकों की 79.1%, और बाल रोग विशेषज्ञों में 81.6% की कमी है। इस तरह आज की आवश्यकता के अनुसार कुल मिलाकर सीएचसी में 79.5 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी है।
—-शहरी क्षेत्र—–
31 मार्च 2022 तक भारत में कुल 6118 यू-पीएचसी कार्यरत हैं। शहरी जनसंख्या मापदंडों के अनुसार यू-पीएचसी के लगभग 39.7% की कमी है। 63.9% यू-पीएचसी सरकारी भवनों में स्थित हैं। 26.9% किराये के भवनों में चल रहे हैं। 9.2% बिना किराये के भवनों में स्थित हैं।
* शहरी क्षेत्रों में पीएचसी स्तर पर एचडब्ल्यू एफ/एएनएम 13.4%पद खाली हैं
* यू-पीएचसी में 18.8% डॉक्टर, 16.8% फार्मासिस्ट, 16.8%लैब टेक्निशियन, 19.1% स्टाफ नर्स की कमी है।
* यू-पीएचसी स्तर पर सभी पदों में कमी देखी गई है।
* यू-सीएससी में भी बड़े पैमाने पर पद खाली हैं।
विस्तार से स्वास्थ्य व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए आप स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर इसे पढ़ और समझ सकते हैं।
—-महंगाई—–
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की महंगाई से तो सभी त्रस्त हैं। लेकिन इसी के साथ खाने-पीने के सामानों की महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है।
पत्रकार सुबोध वर्मा लिखते हैं कि सरकार ने खाद्यान्न क्षेत्र का कुप्रबंधन इतने बड़े पैमाने पर किया है कि किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। हालांकि सरकार द्वारा पेश किए गए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक डेटा से पता चला है कि अगस्त 2023 में खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति में कुछ कमी आई है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पिछले कुछ वर्षों में, शुद्ध मूल्य वृद्धि असहनीय रूप से अधिक रही है।
—प्रेस की आजादी —- —
पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए कार्य करने वाले अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा 180 देशों में पत्रकारिता की स्थिति का विश्लेषण भी पढ़ लीजिए।
‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023’ में भारत 11 पायदान गिरकर 161 वें स्थान पर आ गया है। जबकि 2022 में, भारत 150 वें स्थान पर था। भारत में प्रेस की आजादी बहुत गंभीर स्थिति में पहुंच गई है। जबकि पाकिस्तान को 150, अफगानिस्तान को 152, सुडान को 148, श्रीलंका को 135 और लीबिया को भी 149 वें स्थान पर रखा गया है।
यहां यह भी बता दें कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दस साल में एक भी खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है। यानी उन्होंने सीधे तौर पर पत्रकारों के सवालों का सामना नहीं किया है। हां बस अपने कुछ प्रिय पत्रकारों या गोदी मीडिया को ही व्यक्तिगत तौर पर इंटरव्यू दिए हैं।
—लोकतंत्र के हालात—–
जिस देश में प्रेस को आज़ादी न हो या ज्यादातर मीडिया गोदी मीडिया बन जाए उस देश का लोकतंत्र वाकई ख़तरे में होगा।
वी-डेम डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 के चुनावी लोकतंत्र सूचकांक में भारत 108वें स्थान पर है। यानी तंजानिया, बोलीविया, मैक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे देशों से काफी नीचे है। मार्च, 2023 में जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में शीर्ष 10 निरंकुश देशों में भारत का भी नाम है। रिपोर्ट के इलेक्टोरल डेमोक्रेसी इंडेक्स (ईडीआई) में भारत की रैंकिंग 2022 में 100वें स्थान से गिरकर इस साल 108वें पर आ गई, जबकि लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स (एलडीआई) में यह 97वें स्थान पर थी।
—-ग्लोबल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स——
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार ग्लोबल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 2023 में भारत विश्व के 191 देशों में 132वें स्थान पर है। वर्ष 2019 में 129वें स्थान पर था। यानी पिछले पांच साल में भारत तीन पायदान नीचे गया है।
—-वर्ल्ड हंगर इंडेक्स——
वर्ल्ड हंगर इंडेक्स 2023 में भारत विश्व में 111 वें स्थान पर है। जबकि वर्ल्ड हंगर इंडेक्स 2022 में भारत विश्व में 107 वें पायदान पर था। यही नहीं वर्ष 2014 में भारत 55 वें स्थान पर था। हालांकि आपको बता दें कि भारत सरकार वर्ल्ड हंगर इंडेक्स पर सवाल उठाती रही है और मानती है कि वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भूख को मापने का पैमाना सही नहीं है।
—-वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट—–
चलिए अब ख़ुशी की बात करते हैं। वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट 2023 के हिसाब से भारत 137 देशों में 126वें स्थान पर है। वर्ष 2015 में भारत वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट के अनुसार 117 वें स्थान पर था। यानी पिछले आठ सालों में भारत 20 पायदान नीचे गया है।
खास बात यह है कि खुशहाल देशों की लिस्ट में भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश और चीन भी खुशहाली में आगे हैं। हैपिनेस रिपोर्ट 2023 में 137 देशों को आय, स्वास्थ्य और जीवन के प्रमुख निर्णय लेने की स्वतंत्रता की भावना सहित कई मापदंडों के आधार पर रैंक किया गया है।
तो अब आप इन कसौटियों के आधार पर मोदी राज को कस लीजिए और ईमानदारी से बताइए कि आप कितने नंबर देंगे?
अंत में प्रेमचंद के शब्दों में—
क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न करोगे…
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