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विवाह सर्टिफिकेट के बिना कोई मर नहीं रहा-केंद्र सरकार

विवाह सर्टिफिकेट के बिना कोई मर नहीं रहा-केंद्र सरकार

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को तमाम कानूनों के तहत मान्यता प्रदान करने के लिए दायर याचिका पर सोमवार को तत्काल सुनवाई के लिए विरोध किया और कहा कि इसके बिना कोई मर नहीं रहा है.लाइव लॉ के मुताबिक केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा, ‘अस्पतालों में विवाह सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होती है, कोई इसके बिना मर नहीं रहा है.’केंद्र सरकार ने इस मामले को टालने की गुजारिश की और कहा कि न्यायालय इस समय सिर्फ ‘बेहद जरूरी’ मामले सुन रहा है. इस पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने छह जुलाई तक इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी.एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सौरभ किरपाल ने कहा कि सिर्फ न्यायालय द्वारा तय किया जाना चाहिए कि कौन सा मामला कितना जरूरी है, वहीं वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कोर्ट को बताया कि इसके चलते अस्पताल में भर्ती होने और इलाज कराने में समस्या आ रही है.हालांकि केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दावे को खारिज किया और कहा कि अस्पताल में भर्ती होने के लिए विवाह प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं होती है.इससे पहले केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि हमारा समाज, हमारा कानून और हमारे नैतिक मूल्य इसकी मंजूरी नहीं देते.दरअसल समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में पिछले साल कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिस पर सुनवाई चल रही है.दूसरी याचिका भारत के एक प्रवासी नागरिक कार्डधारक पराग विजय मेहता और एक भारतीय नागरिक वैभव जैन द्वारा दायर की गई थी, जिनकी 2017 में वॉशिंगटन डीसी में शादी हुई थी और जिनके विदेशी विवाह अधिनियम के तहत विवाह के पंजीकरण के लिए आवेदन को न्यूयॉर्क में भारत के दूतावास ने खारिज कर दिया था.इसी तरह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए रक्षा विश्लेषक अभिजीत अय्यर मित्रा और तीन अन्य लोगों द्वारा एक याचिका दायर की गई थी.इस याचिका में कहा गया कि हिंदू मैरिज एक्ट यह नहीं कहता कि शादी महिला-पुरुष के बीच ही हो. साल 2018 से भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है, फिर भी समलैंगिक शादी अपराध क्यों है.मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर, 2018 को अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था.अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे. हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.

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