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ख़ाली पड़े सूचना आयोग के पदों से आपको परेशान होना चाहिए?: आरटीआई

ख़ाली पड़े सूचना आयोग के पदों से आपको परेशान होना चाहिए?: आरटीआई

कीर्ति दुबे(बीबीसी संवाददाता)

आरटीआई यानी सूचना का आधिकार, जिसके बारे में मेन-स्ट्रीम मीडिया में शायद ही बीते कई साल में बात हुई हो, आम जनता के जानकारी पाने के इस अधिकार पर एक नया संकट छाया हुआ है.

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आरटीआई से जुड़ी सबसे ज़रूरी संस्था केंद्रीय सूचना आयोग बीते एक महीने से बिना मुख्य आयुक्त के काम कर रही थी. और आज ही यानी सोमवार को 11 बजे हीरालाल समरिया ने केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त पद की शपथ ली है.

तीन अक्टूबर, 2023 को जब केंद्रीय सूचना आयोग के प्रमुख आयुक्त यशोवर्धन सिंह राठौर इस पद से रिटायर हुए तब से ही ये पद खाली पड़ा था. इतना ही नहीं 6 नवंबर को केंद्रीय सूचना आयोग के चार अन्य आयुक्त रिटायर हो रहे हैं.

सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्त होते हैं. यानी कुल 11 लोगों का स्टाफ़ होता है.

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ये सूचना आयोग केंद्र में और राज्यों में होते हैं. ठीक वैसे ही जैसे केंद्र में चुनाव आयोग और राज्यों के अपने चुनाव आयोग होते हैं.

एनजीओ सार्थक नागरिक संगठन ने सूचना आयोग पर एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें ये पता चला है कि देशभर में छह सूचना आयोगों में मुख्य सूचना आयुक्त के पद खाली पड़े हैं और चार राज्यों के सूचना आयोग लंबे समय से काम ही नहीं कर रहे हैं.

स्टाफ़ की कमी इतनी है केंद्र और राज्य के 27 सूचना आयोग में इस साल 30 जून तक 3.2 लाख शिकायतें सामने पड़ी हैं जिनकी सुनवाई ही नहीं हो सकी है.

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भारत एक ऐसा देश है जहां दुनिया में सबसे ज़्यादा सूचना के अधिकार का इस्तेमाल होता है. आंकड़े बताते हैं कि हर साल 60 लाख आरटीआई डाली जाती हैं, ऐसे में जब इन आयोगों के पास स्टाफ़ ही नहीं होगा तो कैसे हमारे-आपकी ओर से मांगी गई जानकारी मिल पाएगी?

कई राज्यों में तो शिकायतों पर सुनवाई का औसत समय एक साल तक है. यानी अगर आपके सवाल का सरकार जवाब ना देना चाहे और आप उसके ख़िलाफ़ अपील करें तो आपको सालभर का इंतज़ार करना पड़ा सकता है.

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लेकिन सीआईसी यानी केंद्रीय सूचना आयोग है क्या, और अगर ये ऐसे ही कमज़ोर होता रहा तो इसके आपके लिए क्या मायने होंगे?

आरटीआई कानून के अनुसार केंद्र में और राज्य में सूचना आयोग होते हैं. सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और इसके साथ-साथ 10 और आयुक्त होते हैं. यानी कुल 11 लोगों का स्टाफ़ होता है.

ये सूचना आयोग किसी आरटीआई याचिका दायर करने वाले की आख़िरी उम्मीद होते हैं. अगर कोई विभाग किसी आरटीआई का जवाब देने से इंकार कर दे तो आरटीआई दायर करने वाला शख़्स सूचना आयोग का दरवाज़ा खटखटाता है और सूचना आयोग इस शिकायत पर सुनवायी कर संबंधित विभाग को जानकारी देने या जानकारी ना देने की वाजिब वजह बताने को कहते हैं. इस पद पर किसी का ना होना आम लोगों के जानकारी पाने के अधिकार पर ख़तरा है.

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ठीक इसी तरह राज्यों में भी सूचना आयोग होते हैं. लेकिन राज्यों के सूचना आयोगों की हालत भी खस्ता है.

झारखंड का सूचना आयोग बीते तीन साल से काम ही नहीं कर रहा, त्रिपुरा का सूचना आयोग 27 महीनों से ठप पड़ा है. मिज़ोरम का सूचना आयोग इस साल जून से बंद है. वजह यही कि यहां पर मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति ही नहीं हुई.

ये मामला सिर्फ़ एक संस्था में खाली पदों के बारे में ही नहीं है लेकिन इससे कहीं ज़्यादा ये मामला लोकतांत्रिक पारदर्शिता का है. सीआईसी के पदों का खाली रहने का मतलब है सरकार की आम लोगों के प्रति जवाबदेही कम होती जाएगी. जो लोग सरकार की स्कीम पर सीधे तौर पर निर्भर हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपनी परेशनियों का हल तलाशने के लिए आरटीआई डालेंगे उनके जवाब पाने की उम्मीद धूमिल होती जाएगी.

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साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के मुनिरका में सीआईसी मुख्यालय का उद्घाटन किया था. इस उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि लोकतंत्र में एक “मज़बूत नागरिक लोकतंत्र की जान होता है.” आज सीआईसी का यही दफ़्तर अपनी आधी से भी कम क्षमता में काम कर रहा है.

सेवानिवृत्त कमांडर लोकेश बत्रा एक आरटीआई कार्यकर्ता हैं. उनकी आरटीआई के जवाब से ये पता चला कि बीते साल दिसंबर में ही केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्त पद के लिए 256 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन लगभग 10 महीने बाद भी सरकार ने इस पद के लिए किसी की नियुक्ति नहीं की. ये नियुक्तियां क्यों नहीं हुईं इसकी कोई वजह सामने नहीं आई.

अंजलि भारद्वाज एक जानी मानी आरटीआई कार्यकर्ता हैं. उनकी संस्था सतर्क नागरिक संगठन ने इस साल अक्टूबर में आरटीआई और सूचना आयोग के संकट पर एक रिपोर्ट जारी की है.

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इस रिपोर्ट में ही सामने आया कि लाखों की संख्या में शिकायतें आयोगों के पास पड़ी हुई हैं और कई आयोग काम नहीं कर रहे हैं.

अंजलि भारद्वाज कहती हैं, “आरटीआई के बीते 18 साल के समय को देखें तो इस दौरान ऐसा कोई बड़ा घोटाला नहीं है जो आरटीआई के ज़रिए सामने ना आया हो. भारत सबसे ज्यादा आरटीआई कानून का इस्तेमाल करता है और हर साल जो 60 लाख आरटीआई डाली जाती हैं उसमें समाज का निचला तबका सबसे ज़्यादा आरटीआई डालता है.”

“जो लोग पेंशन और अन्य सरकारी स्कीम पर निर्भर रहते हैं वो सबसे ज्यादा इस अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन बीते सात से आठ सालों में आरटीआई को कमज़ोर करने की लगातार कोशिशें की गई हैं. साल 2014 के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ कि केंद्र सरकार ने खुद सूचना आयुक्त का कार्यकाल ख़त्म होने पर नियुक्ति कर दी हो. हमेशा कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है. ”

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“सरकारें कभी नहीं चाहतीं कि आम लोग उनसे सवाल पूछें, मंत्रियों के बारे में जानकारी जानें इसलिए संस्था को कमज़ोर किया जा रहा है.”

सीआईसी के ख़ाली पद और लाखों पेंडिंग पड़ी शिकायतें
एक आरटीआई के जवाब में ये बात सामने आई की केंद्रीय सूचना आयोग में 11 लोगों का स्टाफ़ होना चाहिए लेकिन सात पद खाली हैं और ये आयोग चार लोगों के स्टाफ़ के साथ चल रहा है.

20 दिसंबर 2022 को केंद्र सरकार की ओर से सूचना आयुक्त पद के लिए नोटिफिकेशन जारी करके आवेदन मांगे गए थे. जनवरी 2023 तक आवेदन भेजने की तारीख भी रखी गई थी.

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इसमें ये भी कहा गया था कि साल 2019 में आरटीआई एक्ट में हुए संशोधन के अनुसार सूचना आयुक्त की सैलरी और उनके कार्यकाल और पेंशन तय किए जाएंगे. हालांकि इसके बावजूद ये पद अब तक खाली ही पड़ा हुआ है.

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशिएटिव के निदेशक वेंकटेश नायक कहते हैं, “जो भी लोग सूचना आयुक्त बनते हैं या बनाए जाते हैं उन्हें चुनते हुए ये देखा जाना चाहिए कि उन्होंने पारदर्शिता को लेकर कितना काम किया है, या फिर वो इसके कितने समर्थक रहे हैं. लेकिन होता ये है कि सरकार के ‘यस बॉस’ लोगों को पद मिलते हैं. कई ऐसे राज्य हैं जहां सूचना आयुक्त का पद उन लोगों को दे दिया गया जो पहले सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े थे, उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दिया और आयुक्त बना दिए गए.”

वेंकटेश नायक पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर के उस बयान का ज़िक्र करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि दिल्ली के मस्जिदों के इमाम को सरकार की ओर से मिलने वाली तनख्वाह देश में ‘गलत मिसाल’ पेश कर रही है.

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नायक कहते हैं कि किसी शख़्स का इस पर पर बने रहते हुए इस तरह का बयान देना किसी भी सूरत में सही नहीं है.

वो कहते हैं, “आरटीआई इकलौता ऐसा कानून है जहां सरकार को कानून का पालन करना है बाकि सभी कानून आम जनता के लिए बनाए जाते हैं. साल 2005 में ये कानून तो आ गया लेकिन इसे लेकर सरकारों में कभी भी कड़ायी से लागू करने की मंशा नहीं रही और 2014 के बाद से ये मंशा और भी कम होती गई है.”

केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति एक पैनल के सुझाव पर राष्ट्रपति करते हैं. पैनल में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री होते हैं. ठीक इसी तरह राज्यों के सूचना आयुक्त को राज्यपाल मुख्यमंत्री, कैबिनेट के मंत्री और विपक्ष के नेता की पैनल के सुझाव पर चुनता है.

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दो हालिया संशोधन जिसने इस क़ानून को कमज़ोर किया
साल 2019 में जब नरेंद्र मोदी दूसरी बार सत्ता में आए तो उनकी सरकार ने आरटीआई एक्ट में सबसे अहम संशोधन किया. साल 2005 में आए आरटीआई क़ानून में आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल तय किया गया था और उन्हें मिलने वाली तनख्वाह मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के बराबर रखी गई थी.

राज्यों के सूचना आयुक्तों की तनख्वाह राज्य के चुनाव आयुक्तों जितनी थी. लेकिन 2019 में ये नियम बदल दिया गया और ये अधिकार सरकार के पास आ गया. यानी अब केंद्र और राज्य सरकार ये तय करती है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन कितना होगा और उन्हें कितनी पेंशन मिलेगी इसका फ़ैसला भी केंद्र और राज्य सरकार करती है.

इसके बाद साल 2023 में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल आया जिसके बाद आरटीआई के तहत किसी ऐसे व्यक्ति की जानकारी नहीं हासिल की जा सकती “जिसका सार्वजनिक गतिविधि से कोई संबंध नहीं है.” यानी अगर कोई किसी व्यक्ति विशेष की जानकारी चाहता है तो ये तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक यह ‘देश हित’ का मामला ना सिद्ध हो.

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अंजलि भारद्वाज कहती हैं कि तीन स्तर पर आरटीआई क़ानून को कमज़ोर किया जा रहा है. पहला है संशोधन लाकर, दूसरा है देशभर में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले करके और तीसरा है इससे जुड़ी संस्था को कमज़ोर करके. यानी सीआईसी को इस तरह कर दिया जाए कि वो लगभग ना के बराबर काम करने लगे, यहां आने वाले मामले सालों साल पड़े रहे.

आरटीआई कानून में ऐसी कोई समय अवधि तय नहीं है कि कितने वक्त में सूचना आयुक्तों को शिकायतों पर फ़ैसला लेना होगा इसलिए सालों साल ये शिकायतें पड़ी रहती हैं, और जब तक सीआईसी किसी शिकायत पर फ़ैसला नहीं लेता आरटीआई दायर करने वाला व्यक्ति कोर्ट के पास भी नहीं जा सकता. यानी कुल मिला कर सीआईसी की भूमिका सरकार से सूचना पाने के लिए बेहद अहम है.

अंजलि भारद्वाज और सेवानिवृत्त कमांडर लोकेश भारद्वाज ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में हो रही देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

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इस मामले की 30 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी राज्य और केंद्र के सूचना आयोग में 31 मार्च 2024 तक कितने पद खाली होने वाले हैं उनकी रिपोर्ट तैयार की जाए और कितनी शिकायतें यहां पड़ी हुई हैं उसका ब्यौरा कोर्ट को दिया जाए. साथ ही राज्यों और केंद्र के आयोग में पदों को भरने के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाए.

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