आरएसएस शुरू से ही संविधान के खिलाफ रहा है
खतरे में भारतीय प्रजातंत्र और संविधान
चार सौ पार की जरूरत क्यों है? इसका स्पष्टीकरण देते हुए भाजपा के कर्नाटक से सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार हेगड़े ने बताया कि संविधान को बदलने के लिए पार्टी को 400 सीटों की जरूरत होगी।
सत्ताधारी भाजपा(BJP) के नेता इन दिनों ‘चार सौ पार’ की बात कर रहे हैं. उनका मानना है कि आने वाले आम चुनाव(General election) में भाजपा 370 से ज्यादा सीटें जीतेगी और उसके गठबंधन साथी 30 से ज्यादा. और इस प्रकार एनडीए 400 पार हो जायेगा. यह संख्या किसी चुनाव विशेषज्ञ की राय या किसी वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर आधारित नहीं है. यह प्रचार केवल राजनीतिक उद्देश्य से किया जा रहा है.
चार सौ पार की जरूरत क्यों है? इसका स्पष्टीकरण देते हुए भाजपा के कर्नाटक से सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार हेगड़े ने बताया कि संविधान को बदलने के लिए पार्टी को 400 सीटों की जरूरत होगी(Why is BJP desperate to cross 400?). ‘‘कांग्रेस ने संविधान को विकृत कर दिया है. उसका मूल स्वरूप बदल दिया है. उसने संविधान में अनावश्यक चीजें (शायद उनका मतलब धर्मनिरेपक्षेता व समाजवाद (secularism and socialism)से था) ठूंस दी हैं. ऐसे कानून बनाए गए हैं जो हिन्दू समुदाय का दमन करते हैं. ऐसे में अगर इस स्थिति को बदला जाना है, अगर संविधान को बदला जाना है, तो वह उतनी सीटों से संभव नहीं है जितनी अभी हमारे पास हैं.’’
भाजपा ने इस बयान से दूरी बना ली. उसने कहा कि वह अपने सांसद के वक्तव्य का अनुमोदन नहीं करती. ऐसी खबरें भी हैं कि यह बयान देने के कारण हेगड़े को पार्टी के टिकिट से भी वंचित किया जा सकता है. ऐसा होता है या नहीं यह तो समय बतलायेगा मगर एक बात पक्की है. वह यह कि भाजपा के लिए इस तरह के बयान और दावे कोई नई बात नहीं हैं. अनंत कुमार हेगड़े ने यही बात 2017 में भी कही थी जब वे भाजपा की केन्द्र सरकार में मंत्री थे. मगर फिर भी उन्हें 2019 के आम चुनाव में टिकट दिया गया.
कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी और कई अन्य का मानना है कि भाजपा को 400 सीटें उसी उद्देश्य के लिए चाहिए, जिसकी बात हेगड़े कर रहे हैं. राहुल गांधी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर हिन्दी में लिखा, ‘‘भाजपा सांसद का यह बयान कि पार्टी को संविधान बदलने के लिए 400 सीटों की जरूरत होगी, दरअसल, नरेंद्र मोदी और उनके संघ परिवार के गुप्त एजेण्डा की सार्वजनिक उद्घोषणा है. नरेन्द्र मोदी और भाजपा का अंतिम उद्देश्य बाबासाहेब के बनाए संविधान को नष्ट करना है. संघ परिवार न्याय, समानता, नागरिक अधिकार और प्रजातंत्र जैसी संकल्पनाओं से नफरत करता है.’’
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने यह आरोप भी लगाया कि ‘‘समाज को बांटकर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोकें लगाकर और स्वतंत्र संस्थाओं को पंगु कर संघ परिवार भारत के महान प्रजातंत्र को एक संकीर्ण तानाशाही में बदल देना चाहता है और एक षड़यंत्र के तहत विपक्ष को समाप्त किया जा रहा है.’’
प्रजातांत्रिक मूल्यों, जिनमें समानता का मूल्य शामिल है, को कमजोर करने के लिए भाजपा की रणनीति द्विस्तरीय है. उसका पितृ संगठन आरएसएस (RSS)शुरू से ही संविधान के खिलाफ रहा है(RSS has been against the Constitution since the beginning). भारत (BHARAT)का संविधान (constitution of India)लागू होने के बाद आरएसएस के गैर-आधिकारिक मुखपत्र ‘द आर्गनाईज़र’ ने लिखा… ‘‘हमारे संविधान में प्राचीन भारत में हुए अनूठे संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है. मनुस्मृति में वर्णित कानून आज की तारीख में भी दुनियाभर के लिए विशेष आदर का विषय हैं. वे लोगों को स्वभाविक रूप से उनका पालन करने और उनके अनुरूप आचरण करने के लिए प्रेरित करते हैं. लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है.’’
भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए(NDA) ने सन् 1998 में सत्ता में आने के बाद जो पहला काम किया वह था संविधान की समीक्षा के लिए एक आयोग की नियुक्ति. इस आयोग (वेंकटचलैया आयोग) की रिपोर्ट लागू नहीं की जा सकी क्योंकि संविधान के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ का जबरदस्त विरोध हुआ. भाजपा अपने बल पर 2014 से सत्ता में है और तब से उसने कई बार संविधान की उद्देशिका का प्रयोग, उसमें से धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी शब्द हटाकर किया है.
सन 2000 में आरएसएस (RSS)के मुखिया बनने के बाद के. सुदर्शन ने बिना किसी लाग लपेट के कहा था कि भारत का संविधान (The constitution of India)पश्चिमी मूल्यों पर आधारित है और उसके स्थान पर एक ऐसा संविधान बनाया जाना चाहिए जो भारतीय पवित्र ग्रन्थों पर आधारित हो. सुदर्शन ने कहा कि संविधान भारत के लोगों के लिए किसी काम का नहीं है क्योंकि वह (Government of India)गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट 1935 पर आधारित है. उन्होंने यह भी कहा कि हमें संविधान को पूरी तरह से बदल डालने में संकोच नहीं करना चाहिए.
अभी पिछले साल अगस्त में ‘लाइव मिंट’ में प्रकाशित अपने एक लेख में प्रधानमंत्री की आर्थिक परामर्शदात्री परिषद के मुखिया डॉ. विवेक देबराय ने भी संविधान को बदलने की जरूरत बताई थी. इस प्रकार भाजपा संगठन और सरकार के प्रमुख कर्ताधर्ता समय-समय पर संविधान को बदलने की बात करते रहते हैं और भाजपा और सरकार, आधिकारिक रूप से कहती रहती है कि वह इन विचारों का अनुमोदन नहीं करती.
इसके साथ ही अपनी सरकार के पिछले एक दशक के शासनकाल में भाजपा ने भारतीय संविधान के मूलभूत मूल्यों को क्षति पहुँचाने का हर संभव प्रयास किया है. प्रजातांत्रिक राज्य के सभी स्तम्भों और संवैधानिक संस्थाओं सहित सभी एजेन्सियों पर सरकार का नियन्त्रण है. सरकार का मतलब है एक व्यक्ति. चाहे वह ईडी हो, सीबीआई हो, आयकर विभाग या चुनाव आयोग हो – सभी एक व्यक्ति के नियंत्रण और निर्देशन में काम कर रहे हैं. जहाँ तक न्यायपालिका का प्रश्न है उसे भी अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग तरीकों से कमजोर कर दिया गया है. वरना आखिर क्या कारण है कि उमर खालिद के तीन साल से जेल में होने के बावजूद कोई अदालत उसकी जमानत की अर्जी पर विचार करने को तैयार नहीं है.
जहाँ तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है वह लगभग गायब हो चुकी है. मुख्यधारा का मीडिया सरकार के प्रशंसक कार्पोरेट घरानों के नियंत्रण में है और सभी बड़े टीवी चैनल और अखबार सरकार के भोंपू बन गए हैं. स्वतंत्रता से सोचने वाले और आज़ादी से बोलने वालों के लिए बहुत कम जगह बची है और यह तब जब हम सब जानते हैं कि बोलने की आज़ादी प्रजातांत्रिक समाज का प्रमुख स्तम्भ है.Freedom of expression ends in India, Indian democracy and Constitution in danger
अनेक अंतर्राष्ट्रीय सूचकांकों के अनुसार भारत में धार्मिक स्वतंत्रता कमज़ोर होती जा रही है. अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता वॉचडॉग के अनुसार भारत ‘‘विशेष चिंता’’ का विषय है. वी-डैम के अनुसार प्रजातंत्र के सूचकांक पर भारत का नंबर 104 है और वह नाईजर और आईवरी कोस्ट के बीच है. यह गिरावट पिछले दस सालों में ही आई है. सरकार अपनी एजेंसियों और अपने निर्णयों के जरिये प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताओं का गला घोंट रही है.
बहुत समय नहीं हुआ जब लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि भारत में अघोषित आपातकाल लागू है(Undeclared emergency imposed in India). देश में हिन्दू राष्ट्रवाद के लड़ाके हर तरह की आज़ादी को कुचल रहे हैं. सरकारी तंत्र भी यही कर रहा है. सरकार दर्शकदीर्घा में है और इन तत्वों को उसका साफ संदेश है कि वे अल्पसंख्यकों और समाज के कमजोर वर्गों के प्रजातांत्रिक अधिकारों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर सकते हैं और उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा.
अगर हम अपने आसपास देखें तो पायेंगे कि हर धार्मिक राष्ट्रवादी संस्था को प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताओं से एलर्जी होती है. वे सभी संविधान को बदलना चाहते हैं और उनके कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर बाँटने और दमन करने वाली राजनीति करते हैं. पाकिस्तान और श्रीलंका में यही होता आया है. अब भारत भी प्रजातंत्र को कुचलने वाले देशों के इस क्लब में शामिल होने की कोशिश में है. भाजपा की रणनीति साफ है-एक ओर संविधान को बदलने की बात करो और दूसरी तरफ जो संविधान अभी है उसे कमज़ोर और निष्प्रभावी कर दो.
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया; लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं –
BY–सबरंग इंडिया
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