छापों या जांच का सामना कर रही ज़्यादातर कंपनियां बॉन्ड की बड़ी खरीदार
नई दिल्ली/मुंबई: भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपलोड किए गए चुनावी बॉन्ड के डेटा के अनुसार, (According to the electoral bond data uploaded by the Election Commission of India on its website,)फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज और मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 तक बॉन्ड के शीर्ष खरीदार रहे, जिन्होंने क्रमश: 1,368 करोड़ और 980 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. दोनों क्रमश: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग (आईटी) के निशाने पर रहे थे.
गुरुवार (14 मार्च) को, अदालत द्वारा आदेशित समय सीमा से एक दिन पहले भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने 2019 से खरीदें और भुनाए गए चुनावी बॉन्ड पर भारतीय स्टेट बैंक(State Bank of India) (एसबीआई) द्वारा उसे उपलब्ध कराया गया डेटा अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया. डेटा तब जारी किया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह की शुरुआत में एसबीआई से 2019 के बाद से चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों और भुनाने वालों के सभी विवरण प्रस्तुत करने को कहा था. शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से भी कहा था कि वह 15 मार्च तक अपनी वेबसाइट(website) पर डेटा प्रकाशित करें.Most of the companies facing raids or investigation are big buyers of bonds.
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आयोग ने डेटा के दो सेट अपलोड किए हैं. एक फाइल में कंपनियों द्वारा बॉन्ड खरीद की तारीख-वार सूची है और दूसरी फाइल में बॉन्ड भुनाने वाले राजनीतिक दलों द्वारा जमा राशि की तारीख-वार सूची है.
=====फ्यूचर गेमिंग: ईडी के निशाने पर=====
फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज पीआर ने 21 अक्टूबर 2020 और 9 जनवरी 2024 के बीच 1,368 करोड़ रुपये का दान दिया है, जो सभी 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग वाले चुनावी बॉन्ड में है.
कोयंबटूर स्थित फ्यूचर गेमिंग भारत की सबसे बड़ी लॉटरी कंपनियों में से एक है और इसके संस्थापक सैंटियागो मार्टिन खुद को ‘लॉटरी किंग’ कहते हैं.
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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 23 जुलाई 2019 को ईडी ने एक कथित मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले में उनकी 120 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की थी. उन पर बेहिसाब नकदी से संपत्ति एकत्र करने का भी आरोप लगाया गया था.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कुछ महीने पहले ईडी ने उनसे जुड़े 70 से अधिक परिसरों की तलाशी ली थी.
चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा के अनुसार, कंपनी इस कार्रवाई के बाद चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए आगे आई. इसके द्वारा बॉन्ड की पहली खरीद 21 अक्टूबर 2019 दिखाई गई है.
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हालांकि, कंपनी अभी भी ईडी (ED)के निशाने पर है. एजेंसी ने हाल ही में पिछले हफ्ते कथित रेत खनन मामले के सिलसिले में तमिलनाडु में इसके परिसरों में तलाशी ली है. ऐसा समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक खबर में बताया गया था.
वहीं, 2 अप्रैल 2022 को यह खबर सामने आई कि ईडी ने कंपनी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की है और इसकी 409.92 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पांच दिन बाद 7 अप्रैल 2022 को कंपनी ने करीब 100 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे.
जुलाई 2022 में चुनाव निगरानी संस्था (ADR)एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के चुनाव आयोग को सौंपी गई चुनावी ट्रस्टों की योगदान रिपोर्ट का विश्लेषण किया और पाया कि लॉटरी कंपनी ने प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 100 करोड़ रुपये का दान दिया था. ट्रस्ट ने भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा दिया था.
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कीस्टोन पार्टनर्स के वकील अरुण श्री कुमार ने ट्वीट किया, ‘अगर यह संरक्षण राशि नहीं है, तो छापेमारी का शिकार कंपनियां छापों के बीच में राजनीतिक चंदा क्यों देंगी.’
2017-2018 और 2022-2023 के बीच बेचे गए कुल 12,008 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड में से भाजपा को लगभग 55% या 6,564 करोड़ रुपये प्राप्त हुए.
=====मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड======
दूसरे सबसे बड़े चंदा दाता मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने 12 अप्रैल 2019 से 12 अक्टूबर 2023 के बीच 1 करोड़ रुपये मूल्यवर्ग के 980 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं.
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मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, जिसका मुख्यालय हैदराबाद में है, अपनी वेबसाइट पर खुद को ‘वैश्विक बुनियादी ढांचे के परिदृश्य में एक उभरती हुई कंपनी’ बताती है.
पीवी कृष्णा रेड्डी और पीपी रेड्डी के स्वामित्व वाली कंपनी के कार्यक्षेत्र में सिंचाई, जल प्रबंधन, बिजली, हाइड्रोकार्बन, परिवहन, भवन और औद्योगिक बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं शामिल हैं. वेबसाइट यह भी बताती है कि कंपनी केंद्र और राज्य सरकारों के साथ पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) में अग्रणी रही है और वर्तमान में देश भर के 18 से अधिक राज्यों में परियोजनाएं चला रही है.
इंटरनेट पर कंपनी के बारे में खोजबीन करने से पता चलता है कि कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं इसकी झोली में गई हैं, जिनमें सितंबर में मंगोलिया में 5,400 करोड़ रुपये का क्रूड ऑइल प्रोजेक्ट (मंगोल रिफाइनरी दोनों सरकारों के बीच की एक पहल है), मई में कुल 14,400 करोड़ रुपये की बोली के लिए मुंबई में ठाणे-बोरीवली ट्विन टनल परियोजना के निर्माण के लिए दो अलग-अलग पैकेज और जून में अपनी कंपनी आईकॉम (IComm) के लिए रक्षा मंत्रालय से 500 करोड़ रुपये का ऑर्डर शामिल है.
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इसकी वेबसाइट के अनुसार, कंपनी जम्मू कश्मीर में जोजिला सुरंग पर भी काम कर रही है. वेबसाइट पर और भी कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का उल्लेख है जिनमें मुख्य तौर पर चारधाम रेल सुरंग, विजयवाड़ा बाईपास की छह लेन, दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेस वे, महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग, सोलापुर – कुरनूल – चेन्नई आर्थिक गलियारा जैसी प्रमुख परियोजनाएं शामिल हैं.
समूह की वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड ने भी चुनावी बॉन्ड में 220 करोड़ रुपये का चंदा दिया है, जो सबसे बड़े चंदादाताओं की सूची में सातवें पायदान पर है.
हिंदू बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 12 अक्टूबर 2019 को आयकर विभाग ने हैदराबाद में समूह के कार्यालयों का ‘निरीक्षण’ किया था. हालांकि, कंपनी ने एक बयान में इस बात से इनकार किया था कि यह कोई छापा या तलाशी थी और इसे ‘नियमित निरीक्षण’ बताया था.
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जनवरी 2024 में डेक्कन क्रॉनिकल ने अपनी एक रिपोर्ट में कैग की ऑडिट रिपोर्ट का जिक्र किया था, जिसमें मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ तेलंगाना की एक प्रमुख सिंचाई परियोजना ‘कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई योजना (केएलआईएस)’ में किए गए काम को लेकर गंभीर आरोप लगाए गए थे, कहा गया था कि कंपनी ने हजारों करोड़ रुपये के सरकारी धन का गबन किया.
डेक्कन क्रॉनिकल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा केएलआईएस पर ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी को केवल चार पैकेजों में 5,188.43 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया था.
कंपनी को तत्कालीन भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार का संरक्षण प्राप्त होने की बात कही जाती है.
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बहरहाल, पिछले दिनों द न्यूज मिनट और न्यूज़लॉन्ड्री की एक हालिया रिपोर्ट में भी यह पाया गया था कि ईडी और आईटी जांच का सामना कर रहीं 30 कंपनियों ने पिछले पांच वर्षों में भाजपा को 335 करोड़ रुपये का दान दिया है.
=====चेन्नई ग्रीनवुड्स======
यह अनजान-सी मैन्युफैक्चरिंग फर्म शीर्ष 20 चंदादाताओं में से एक है, जिसने 105 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं. कंपनी का स्वामित्व आंध्र प्रदेश स्थित रामकी (Ramky) समूह के पास है. जुलाई 2021 में रामकी पर आयकर विभाग ने छापा मारा था. विभाग ने कहा था कि आईटी अधिकारियों को कई आपत्तिजनक दस्तावेज़ और कागज़ात मिले थे, जिनसे समूह के बेहिसाब लेनदेन से जुड़े होने का संकेत मिलता है.
इसके बाद 300 करोड़ रुपये की बेहिसाब आय का आरोप झेल रही इस कंपनी ने जनवरी 2022 में चेन्नई ग्रीनवुड्स के माध्यम से अपना पहला चुनावी बॉन्ड खरीदा. इसके बाद अप्रैल 2022 और 2023 में भी इसने बॉन्ड खरीदे.
====क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड=====
मुंबई की इस कंपनी ने 410 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं.
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ज़ौबा कॉर्प पर उपलब्ध कंपनी की जानकारी के अनुसार, कंपनी की स्थापना 23 साल पहले 2000 में हुई थी. ईसीआई की वेबसाइट पर अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार, रिलायंस समूह से जुड़ी कंपनी क्विक सप्लाई चेन ने 5 जनवरी 2022 को पहली बार बॉन्ड खरीदा. पांच दिन बाद 10 जनवरी को इसने फिर बॉन्ड खरीदे. इसके बाद अगली खरीद 11 नवंबर 2022 और फिर साल भर बाद 17 नवंबर 2023 को हुई. खरीदे गए सभी बॉन्ड 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में थे.
कंपनी के दो वर्तमान निदेशक विपुल प्राणलाल मेहता और तापस मित्रा हैं. ज़ौबा कॉर्प के अनुसार, तापस मित्रा रिलायंस ऑयल एंड पेट्रोलियम, रिलायंस इरोज प्रोडक्शन, रिलायंस फोटो फिल्म्स, रिलायंस फायर ब्रिगेड्स, आरएएल इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, रिलायंस फर्स्ट प्राइवेट लिमिटेड, रिलायंस पॉलिएस्टर सहित अन्य के निदेशक भी हैं.
2021-2022 के बीच कंपनी के ‘पूर्णकालिक निदेशक’ के रूप में मित्रा का वेतन 46.1 लाख रुपये था, साथ ही 3.53 लाख रुपये के अतिरिक्त भत्ते भी मिलते थे.
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जोबा कॉर्प पर अपलोड डेटा के अनुसार, कंपनी का कहना है कि उनके पास दक्षिण मुंबई में धोबी तालाब में दफ्तर की जगह है.
कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड अपने ग्राहकों को लॉजिस्टिक्स और अन्य सपोर्ट सर्विस देने का काम करती है.
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए कंपनी के रिटर्न और शेयरधारक डेटा में प्रमुख टर्नओवर (91.1%) भूमि परिवहन (land transport) का है, बाकी 8.3% अन्य संगठनों की सपोर्ट सर्विस देने से और एक छोटा-सा हिस्सा थोक व्यापार से आया बताया गया था.
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=====वेदांता ====
वेदांता चुनावी बॉन्ड का चौथा सबसे बड़ा खरीदार है. यह उस समय खबरों में रहा था जब चुनावी बॉन्ड पेश करने के लिए वित्त विधेयक लाने के विवादास्पद तरीके का इस्तेमाल किया गया था.
यह लगभग वही समय था जब विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) में पूर्वव्यापी संशोधन के लिए वेदांता को शामिल करते हुए एक मनी बिल लाया गया था.
मोदी सरकार ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को वेदांता के चंदे को वैध बनाने के लिए एफसीआरए में महत्वपूर्ण संशोधन किए थे, जिससे भाजपा और कांग्रेस को अधिनियम की धारा 3 का उल्लंघन करने से छूट मिल गई. यह धारा राजनीतिक दलों, उनके पदाधिकारियों और किसी भी सदन के सदस्यों को विदेशी कंपनियों या भारत में विदेशी फर्मों द्वारा नियंत्रित कंपनियों से योगदान पाने से रोकती है.
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वेदांता ने 400.65 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं. 10 जनवरी 2022 को इसने 1 करोड़ रुपये मूल्य के 73 बॉन्ड खरीदे. लाइव मिंट ने 14 जनवरी 2022 को बताया था कि वेदांता समूह ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) को खरीदने के लिए बोली लगाई थी और यह ‘इसके अधिग्रहण के लिए 12 अरब डॉलर खर्च करने को तैयार था.’ यह देश की परिसंपत्तियों सबसे बड़ी बिक्री में से एक है और जिसके पूरा होने में खासी देरी हुई है.’
एक साक्षात्कार में इसके अरबपति अध्यक्ष अनिल अग्रवाल के हवाले से कहा गया था कि वे ‘बढ़-चढ़कर बोली नहीं लगाने जा रहे हैं, लेकिन सही कीमत लगाएंगे.’ उनका यह भी कहना था कि ‘कंपनी का मार्केट कैप लगभग 11 बिलियन डॉलर से 12 बिलियन डॉलर है, इसलिए वे निवेश की यही राशि सोच रहे हैं.’
अगर यह सौदा हो गया होता, तो यह निजीकरण की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक होता, लेकिन इसे रद्द कर दिया गया, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को हासिल करने में रुचि दिखाने वाली तीन कंपनियों में से दो ने अपनी बोलियां वापस ले लीं.
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अग्रवाल ने 22 अप्रैल 2022 को बिजनेस वेबसाइट मनीकंट्रोल को बताया था कि सरकार ने बीपीसीएल में अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव वापस ले लिया है और एक नई रणनीति लेकर आएगी. मालूम हो कि इंडियन ऑयल के बाद यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी है.
वेदांता के बारे में द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु जोड़ते हैं, ‘दिलचस्प बात यह है कि वेदांता समूह ने तब बॉन्ड खरीदे जब यह 2019 से 2022 तक ईडी/सीबीआई की जांच के दायरे में था. इसी समय के आसपास इस समूह को गुजरात में पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी सेमीकंडक्टर परियोजना के लिए भी चुना गया था, जिसके लिए सरकार ने 5 बिलियन डॉलर के बड़े अनुदान का प्रस्ताव रखा था. हालांकि परियोजना चली नहीं.’
=====हल्दिया एनर्जी लिमिटेड=====
चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पांचवां सबसे बड़ा दानकर्ता संजीव गोयनका की हल्दिया एनर्जी लिमिटेड है, जिसने 1 अक्टूबर 2019 और 5 जनवरी 2024 के बीच 377 करोड़ रुपये का दान दिया. कोलकाता स्थित अरबपति आरपी-संजीव गोयनका समूह के मालिक हैं, जिसका बिजली और ऊर्जा, खुदरा, आईटी, एफएमसीजी, मीडिया और मनोरंजन, बुनियादी ढांचे और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में कारोबार है.
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हल्दिया एनर्जी लिमिटेड पश्चिम बंगाल की बंदरगाह टाउनशिप हल्दिया में कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट भी चलाती है और आरपी-संजीव गोयनका समूह की प्रमुख कंपनी कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है.
कंपनी ने 1 अक्टूबर 2019 को चुनावी बॉन्ड खरीदना शुरू किया जब उसने 1 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. हालांकि, फिर प्रत्येक आने वाले वर्ष में खरीदारी अधिक होती गई, यहां तक कि दान भी बढ़ता गया. कंपनी ने 2020 में तीन किस्तों में 21 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे और 2021 में पांच किश्तों में 105 करोड़ रुपये खर्च किए.
इसी तरह, इसने 2022 में 85 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे, जबकि 2023 में इसने चुनावी बॉन्ड में 115 करोड़ रुपये खर्च किए. इसकी आखिरी खरीदारी 5 जनवरी 2024 को हुई थी, जब इसने 35 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे थे.
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हल्दिया ने अपना पहला बॉन्ड 7 मई 2019 को खरीदा. इसने कुल 24 बॉन्ड खरीदे, जिनमें 1 करोड़ मूल्यवर्ग के 14 और 10 लाख मूल्यवर्ग के 10 बॉन्ड शामिल थे.
पिछले साल, पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने चुनावी बॉन्ड और अन्य माध्यमों से तृणमूल कांग्रेस को फंडिंग करने को लेकर संजीव गोयनका पर निशाना साधा था.
गोयनका, जो आईपीएल टीम लखनऊ सुपरजाइंट्स और कोलकाता के आईएसएल फुटबॉल क्लब मोहन बागान सुपरजाइंट के भी मालिक हैं, पूर्वोत्तर राज्यों में भी अपने कारोबार का विस्तार कर रहे हैं, जहां उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने की योजना बनाई है. उनकी कंपनी के अधिकारियों ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास राज्य मंत्री बीएल वर्मा के साथ एक बैठक की थी, जिसमें उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों में कुछ जल-विद्युत परियोजनाओं को विकसित करने में अपनी रुचि व्यक्त की थी.
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बताया गया है कि सीईएससी की राजस्थान और गुजरात में सौर ऊर्जा उत्पादन में दिलचस्पी है, जहां वह अपनी प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए 50,000 एकड़ से अधिक भूमि का अधिग्रहण करना चाह रहा है.
जनवरी 2024 में, सीईएससी ने 10,500 टन प्रति वर्ष हरित हाइड्रोजन उत्पादन सुविधा स्थापित करने के लिए एसीएमई क्लीनटेक सेम्बकॉर्प, ग्रीनको, अवाडा, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जेएसडब्ल्यू एनर्जी और अडानी समूह जैसी कंपनियों को पछाड़ दिया था. निविदा सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा आमंत्रित की गई थी.
संजीव गोयनका की सीईएससी और आरपीजी एंटरप्राइजेज 1993-95 के दौरान देवचा पचामी, तारा पश्चिम, महान और दक्षिण दादू में कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश से संबंधित मामले में 2012 से सीबीआई जांच के दायरे में हैं.
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30 फार्मा और स्वास्थ्य सेवा कंपनियों ने मिलकर 900 करोड़ रुपये से ज़्यादा के चुनावी बॉन्ड खरीदे
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट(SUPREME COURT) के आदेशानुसार चुनाव आयोग ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(SBI) से मिली चुनावी बॉन्ड की जानकारी अपनी वेबसाइट पर गुरुवार को सार्वजनिक कर दी है. इस डेटा से कई अहम खुलासे हुए हैं.रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 30 फार्मा और हेल्थकेयर कंपनियों ने 5 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड खरीदे, जिसकी कीमत लगभग 900 करोड़ रुपये है. यह जारी किए गए डेटा में उल्लिखित कुल 12,155 करोड़ रुपये की राशि का लगभग 7.4% है.Pharma and healthcare companies
चुनावी बॉन्ड के इन शीर्ष खरीदारों में यशोदा सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल (162 करोड़ रुपये), हैदराबाद की डॉ रेड्डीज लेबोरेटरी (80 करोड़ रुपये), अहमदाबाद की टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स (77.5 करोड़ रुपये), हैदराबाद स्थित नैटको फार्मा (69.25 करोड़ रुपये) और हैदराबाद-हेटेरो फार्मा और इसकी सहायक कंपनियां शामिल हैं.electoral bonds from State Bank of India
इन कंपनियों के अलावा बायोकॉन लिमिटेड की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ ने भी 6 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं. उद्योग जगत से चुनावी बॉन्ड के अन्य बड़े खरीदारों में सिप्ला (39.2 करोड़ रुपये) का नाम भी इस सूची में है.हैदराबाद स्थित वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक (10 करोड़ रुपये) और बायोलॉजिकल ई (5 करोड़ रुपये), जिन्हें कोविड-19 टीकों के लिए सरकारी मंजूरी मिली थी, इन कंपनियों का नाम भी इस लिस्ट में शामिल हैं.
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वित्त मंत्रालय द्वारा ‘हाई रिस्क’ मानी गई कम से कम तीन कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड खरीदे
नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड के प्रकाशित डेटा के अनुसार, राजनीतिक दलों (Political parties)को फंड देने के लिए चुनावी बॉन्ड खरीदने वाली कम से कम तीन कंपनियां- कामना क्रेडिट्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड, इनोसेंट मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड और रेणुका इन्वेस्टमेंट फाइनेंस लिमिटेड- ऐसी हैं, जिन्हें वित्त मंत्रालय की मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम (पीएमएलए) के तहत नियमों का उल्लंघन करने के लिए ‘उच्च जोखिम वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवाओं (एनबीएफसी)’ की वार्षिक सूची में शामिल किया गया था.
===कामना क्रेडिट्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
एफआईयू की 2018 सूची में कामना क्रेडिट्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड (एफआईयू सूची में नंबर 3784) को ‘पीएमएलए और पीएमएल नियमों का अनुपालन न करने, यानी प्रमुख अधिकारियों का पंजीकरण न करने’ के लिए सूचीबद्ध किया गया था.
कोलकाता की इस कंपनी ने 4 जनवरी, 2022 को 5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे. इसके चार दिन बाद चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई थी.
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=====इनोसेंट मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड
पीएमएलए नियमों का उल्लंघन करने के लिए 2018 में मंत्रालय की निगरानी इकाई द्वारा नामजद एक और ‘उच्च जोखिम वाली’ कंपनी इनोसेंट मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड थी. कोलकाता स्थित कंपनी ने 12 अप्रैल, 2019 को 25 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे.
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अभी तक बॉन्ड के विशिष्ट नंबर (unique codes) का खुलासा नहीं किया है, जिससे पता चलेगा कि उसने किस राजनीतिक दल को फंडिंग दी थी. यह बॉन्ड 2019 के आम चुनाव के पहले चरण के मतदान के एक दिन बाद खरीदे गए थे.
====रेणुका इन्वेस्टमेंट फाइनेंस लिमिटेड
एक अन्य कंपनी जो 2018, 2019 और 2022 में मंत्रालय की वार्षिक ‘उच्च-जोखिम’ सूची में शामिल है और जिसने चुनावी बॉन्ड खरीदे थे, वह है रेणुका इन्वेस्टमेंट फाइनेंस लिमिटेड.
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उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में पंजीकृत कंपनी ने 12 अप्रैल, 2019 को 5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड भी खरीदे. यह स्पष्ट नहीं है कि यह राशि किसी राजनीतिक दल द्वारा भुनाई गई है या नहीं.
दिलचस्प बात यह है कि 2018 में एफआईयू ने मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए कोलकाता स्थित कंपनी एबीसी फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड को उच्च जोखिम वाले एनबीएफसी में से एक के रूप में नामित किया था. एसबीआई द्वारा सामने आए चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों में मिलते-जुलते नाम वाली एक कंपनी- एबीसी इंडिया लिमिटेड- ने भी चुनावी बॉन्ड खरीदे. डेटा के मुताबिक, उक्त कंपनी ने 12 अप्रैल,2019 को इसने 40 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे थे.
एबीसी इंडिया लिमिटेड भी कोलकाता में पंजीकृत है. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के दस्तावेज़ बताते हैं कि एबीसी फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड और एबीसी इंडिया लिमिटेड का कोलकाता में पंजीकृत डाक पता और सामान्य निदेशक एक ही है.
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रिलायंस द्वारा नेटवर्क18 के अधिग्रहण से जुड़े व्यक्ति का नाम शीर्ष सौ चंदादाताओं में
नई दिल्ली: चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित चुनावी बॉन्ड से जुड़े डेटा में कई अहम जानकारियां सामने आई हैं. इसमें एक नाम लक्ष्मीदास वल्लभदास मर्चेंट का भी है, जो एक नज़र में तो सामान्य लगता है, लेकिन इसके पीछे एक कहानी छिपी हैलक्ष्मीदास वल्लभदास मर्चेंट, जिन्होंने नवंबर 2023 में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को एक बार में ही 25 करोड़ रुपये दिए हैं, उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल से पता चलता है कि वह रिलायंस समूह में ग्रुप कंट्रोलर हैं, जो कंपनी की कर अनुपालन व्यवस्था देखते हैं. रिलायंस द्वारा नेटवर्क 18 मीडिया समूह के अधिग्रहण से जुड़ीं कम से कम छह कंपनियों के वह निदेशक हैं.हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग द्वारा जारी चंदादाताओं की सूची में रिलायंस समूह की कोई भी लिस्टेड कंपनी शामिल नहीं है, लेकिन इसी समूह से जुड़ी कंपनी क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड का नाम देश के तीसरे सबसे बड़े चुनावी बॉन्ड खरीदार के तौर पर जरूर सामने आया है.
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