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RAM RAHIM-डेरा-प्रेमी  वोट बैंक के चलते राम रहीम को बार बार पैरोल और फरलो: सज़ा बदल गई मजे में !

डेरा-प्रेमी  वोट बैंक के चलते राम रहीम को बार बार पैरोल और फरलो: सज़ा बदल गई मजे में !

सभी फोटो क्रेडिट गूगल -फ़ाइल फोटो
BY-अमरीक
हत्या, बलात्कार और आपराधिक षड्यंत्र की विभिन्न संगीन धाराओं में दोहरी उम्रकैद की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा सिरसा (Dera Sachcha Sauda Sirsa)के मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह को हरियाणा की भाजपा सरकार की ओर से बार-बार पैरोल और फरलो के तहत तदर्थ रिहाई दिए जाने पर अदालत ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है।
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने रोहतक के सुनारिया जेल में कैद काट रहे डेरा मुखिया को लगातार पैरोल व फरलो दिए जाने पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
अपनी साध्वियों से बलात्कार के आरोप में गुरमीत राम रहीम को 2017 में सीबीआई की विशेष अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उसके बाद सिरसा के पत्रकार छत्रपति और डेरा सच्चा सौदा के पूर्व प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या में भी उसे उम्र कैद की सख्त सजा सुनाई गई। एक सजा खत्म होने के बाद दूसरी चलेगी। माना गया था कि यह सजायाफ्ता मुजरिम बेहद आपातकालीन परिस्थितियों के अलावा शायद ही कभी पैरोल या फरलो पर, सुनारिया जेल की कोठरी से बाहर आ पाए। उस सरीखे मुजरिम और कैदी के लिए ऐसा ही कानूनी दस्तूर है।
जहां हत्या, बलात्कार और आपराधिक साजिश के मुजरिम अपनी पूरी सजा काटने से पहले एकाध बार ही पैरोल/फरलो पर जेल से बाहर आ पाते हैं; वहीं गुरमीत राम रहीम सिंह अब तक नौ बार यह सुविधा लेते हुए आसानी से बाहर-भीतर आ-जा चुका है। इन दिनों वह फिर 50 दिन की पैरोल पर है। हरियाणा सरकार ने उसे 19 जनवरी 2024 को नौवीं बार राहत दी। उससे दो महीने पहले उसे 21 दिन की पैरोल मिली थी।Due to Dera-loving vote bank, Ram Rahim got parole and furlough again and again: Punishment turned into fun!
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(SGPC)शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने गुरमीत राम रहीम को बार-बार दी जा रही पैरोल व फरलो को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट  में चुनौती दी थी। एसजीपीसी का तर्क था कि डेरा सच्चा सौदा मुखिया कई संगीन मामलों में सजा काट रहा है। इसके बावजूद हरियाणा सरकार उसे बार-बार पैरोल दे रही है। यह गलत है। सो डेरा मुखिया को दी गई पैरोल को रद्द किया जाए और भविष्य में इस बाबत सख्ती बरती जाए।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट का रवैया काफी सख्त रहा। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा कि भविष्य में बिना हाईकोर्ट की इजाजत के राम रहीम को पैरोल न दी जाए। डेरा मुखिया की ताजा पैरोल की अवधि 10 मार्च को खत्म हो रही है।
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हाईकोर्ट ने इसी दिन ही राम रहीम को सरेंडर करने का आदेश दिया है। फिलहाल वह अपने उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित आश्रम में ‘आराम याफ्ता’ है। मामले की अगली सुनवाई 13 मार्च को होगी। माना जा रहा है कि 13 मार्च को ऐसा कोई फैसला आ सकता है जो लंबे अरसे के लिए गुरमीत राम रहीम के आराम में खलल डालेगा और हरियाणा सरकार की लगाम कसेगा।
हाईकोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार से पूछा कि राज्य सरकार बताए कि डेरा सच्चा सौदा मुखिया गुरमीत राम रहीम की मानिंद कितने कैदियों को इसी तरह से पैरोल दी गई।
डेरा सच्चा सौदा सिरसा के मुखिया गुरमीत राम रहीम की सत्ता और राजनीति से नजदीकियां सदा चर्चा का विषय रही हैं। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले लाखों ‘डेरा-प्रेमी’ ऐसा वोट बैंक है; जिसे रिवायती सियासी जमातें लपकने की होड़ में रहती हैं। dera-premee vot baink ke chalate raam raheem ko baar baar pairol aur pharalo: saza badal gaee maze mein !
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अलग किस्म की ‘बाबागिरी’ के लिए बदनाम गुरमीत राम रहीम कभी कांग्रेस के करीब था। चौटाला परिवार की अगुवाई वाले इंडियन नेशनल लोकदल पंजाब के बादलों की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल को भी उसका आशीर्वाद हासिल रहा है। इन दोनों सजायाफ्ता होने के बावजूद वह भाजपा के नजदीक है।
इसका एक सीधा फायदा उसे आराम से पैरोल व फरलो के रूप में मिलता रहा है। जब उसे सजा सुनाई गई थी तो हरियाणा और केंद्र में भाजपा का ही शासन था। (BJP was in power in Haryana and Centre)साल 2017 में जेल की सलाखों में जाने के बाद गुरमीत राम रहीम का साम्राज्य एकबारगी तहस-नहस हो गया था। डेरा सच्चा सौदा सिरसा और उसके बाकी उप-डेरे पूरी तरह वीरान हो गए थे और संस्थाएं निष्क्रिय। सत्ताई राजनीति ने रफ्ता-रफ्ता डेरे के ढांचे को फिर खड़ा करने में सहयोग दिया।
सरगोशियां हैं बदनाम डेरा मुखिया से बाकायदा ‘डील’ की गई। इसके पीछे का मकसद था डेरा अनुयायियों के वोट हासिल करना। बेशक गुरमीत राम रहीम सजा काट रहा है लेकिन अनुयायियों पर उसका प्रभाव जस का तस कायम है। देश भर में बजबजाते डेरावाद और अंधविश्वासी संस्थाओं का यह काला सच है कि उसके पैरोकार कत्ल व बलात्कार करें, तमाम तरह का अमानवीय शोषण करें लेकिन अंततः ‘पवित्र’ रहते हैं। शासन व्यवस्था भी उनके आगे नतमस्तक रहती है। गुरमीत राम रहीम इसका बड़ा उदाहरण है। बेशक इकलौता नहीं। पैरोल या फरलो पर उसकी रिहाई पर राजनीति का गहरा साया सदैव रहा। तमाम बार वह अपने डेरे के पॉलिटिकल विंग के संपर्क में रहा। वैसे जेल से भी उसका संपर्क विंग से बरकरार रहता है।
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फरवरी 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले डेरा मुखिया को  21 दिन की पैरोल दी गई। उसके बाद जून 2022 में हरियाणा नगर निगम चुनाव थे। तब गुरमीत राम रहीम को 30 दिनों के लिए जेल से बाहर किया गया। तकरीबन 4 महीने के बाद हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव था। उप चुनाव से पहले वह 40 दिन के लिए पैरोल पर रिहा हुआ। राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले भी उसे छोड़ा गया। इस साल मई में लोकसभा आम चुनाव और हरियाणा सहित कुछ राज्यों में विधानसभा होने हैं। इसी साल के दूसरे पखवाड़े में हरियाणा सरकार की खास मेहरबानी से उसे 19 जनवरी को पचास दिन की पैरोल मिली। इससे कुछ हफ्ते पहले ही डेरा मुखिया फरलो काटकर दोबारा जेल लौटा था।
अदालत के सीधे आदेश (अथवा हस्तक्षेप) के बाद यह ‘खुला खेल फर्रुखाबादी’ फौरी तौर पर बंद होने की संभावना है। देखना होगा कि मौकापरस्त राजनीति और बाबागिरी/डेरावाद का नापाक गठजोड़ अदालती आदेश का क्या तोड़ निकलता है। अदालत सख्त है तो दूसरा पक्ष बेशर्म और खुद को (भीतर खाते) संविधान के दायरे से बाहर मानने वाला!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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