स्वामी सहजानंद सरस्वती ने पहली बार किसानों के हक में उठाई थी आवाज? मिल मालिकों को झुकना पड़ा, हुई किसानों की जीत
हरियाणा: जींद के दाता सिंहवाला बॉर्डर पर पुलिस का लाठीचार्ज
खनौरी सीमा पर पुलिस और किसानों में जंग आमने-सामने की लड़ाई में चले लाठी-डंडे
चंडीगढ़. पंजाब से दिल्ली कूच कर रहे किसानों और पुलिस के बीच मंगलवार को हरियाणा के जींद के निकट टकराव हुआ,पुलिस ने किसानों को जींद जिले में खनौरी बॉर्डर से हरियाणा में प्रवेश करने से रोका. इस दौरान यहां पर भी किसानों का आंसू गैस और पानी की बौछारों से सामना हुआ.एक-दूसरे पर लाठी डंडे भी चलाए गए. किसानों को हरियाणा के अंबाला में शंभू बॉर्डर पर भी इसी तरह की पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा. जिसमें एक दर्जन पुलिसकर्मी घायल हो गए. कई किसानों को भी चोटें आई हैं. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हरियाणा के जींद में दातासिंह वाले बॉर्डर पर किसानों को रोकने के प्रयासों के तहत पुलिस ने लाठीचार्ज किया और इससे किसान (KISSAN)भड़क गए और उन्होंने भी अर्धसैनिक बलों को निशाना बनाया.
स्वामी सहजानंद सरस्वती ने पहली बार किसानों के हक में उठाई थी आवाज?
इस सबके बीच जानते हैं कि देश में पहला किसान आंदोलन (KISAN ANDOLAN)किसने छेड़ा था? इस आंदोलन में किसान(KISAN )पीछे हटे या सरकार को झुकना पड़ा?भारत में ‘किसान आंदोलन का जनक’ कहलाने वाले दंडी स्वामी सहजानंद सरस्वती स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे. लेखक डॉ. पीएन सिंह स्वामी सहजानंद सरस्वती के जीवन और उनके कामों पर लिखी अपनी किताब ‘गाजीपुर का गौरव बिंदु राजनीति में क्रांतिकारी सन्यासी स्वामी सहजानंद’ में कहते हैं कि 5 दिसंबर 1920 को पटना में मजहर उल हक के घर पर महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात हुई. फिर उनके विचारों से प्रभावित होकर राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में जुट गए.
नेहरू से जेल में हुई स्वामी सहजानंद की मुलाकात
खुद स्वामी सहजानंद ने 1941 में प्रकाशित आत्मकथा ‘मेरा जीवन संघर्ष’ में महात्मा गांधी के जादुई असर के बारे में लिखा है. बता दें कि स्वामी सहजानंद का जन्म गाजीपुर के देवा गांव में 22 फरवरी 1889 को हुआ था. डॉ. पीएन सिंह किताब में लिखते हैं कि स्वामी सहजानंद 1922 में पहली बार स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए जेल गए. जेल में उनकी मुलाकात पंडित जवाहर लाल नेहरू समेत कई नेताओं से हुई. वह एक साल जेल में रहने के बाद बाहर आए. इसके बाद वह 1925 तक गाजीपुर में सक्रिय रहे. उन्होंने 1932 में बिहार के बिहिटा में चीनी मिल खोलने में बड़ी भूमिका निभाई
डालमिया की मिल में किसानों-मजदूरों से अन्याय
बिहार में इसी साल गांधीवादी विचारों को मानने वाले उद्योगपति आरके डालमिया ने चीनी मिल शुरू की. गांधीवादी आरके डालमिया गांधी टोपी पहनते थे और खुद को कांग्रेसी कहते थे. मिल के प्रबंध निदेशकों में डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी शामिल थे. इस मिल का उद्घाटन पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया था. डालमिया की चीनी मिल के उद्घाटन के दौरान मजदूर और किसानों के हितों की सुरक्षा की बातें की गई. लेकिन, कुछ समय बाद ही मिल में अंग्रेज मिल मालिकों से भी ज्यादा क्रूरता होने लगी. अंग्रेज मिल मालिकों के मुकाबले डालमिया की मिल में किसानों से आधी कीमत पर गन्ना खरीदा जाने लगा. मिल में काम करने वाले मजदूरों को कम मेहनताना दिया जाने लगा.
स्वामी सहजानंद ने ठुकराई पैसों से मदद की पेशकश
स्वामी सहजानंद को खामोश करने के लिए आरके डालमिया ने खुद दोस्ती करने की कोशिश की. आरके डालमिया उनके आश्रम को दान देने लगे. जल्द ही स्वामी सहजानंद माजरा समझ गए. उन्होंने डालमिया से कहा कि आश्रम को रुपये ना दें. अगर ये नहीं रुका तो आप गरीबों पर जुल्म करेंगे. ये रुपये मेरा मुंह बंद कर देंगे. मिल में किसानों और मजदूरों के हालात खराब होते गए तो स्वामी सहजानंद ने आरके डालमिया के खिलाफ किसानों और विरुद्ध मजदूरों के हक में आंदोलन छेड़ दिया. डालमिया ने स्वामी सहजानंद को चुप रखने के लिए उनके बिहिटा आश्रम को मदद के बहाने 10 हजार रुपये एकमुश्त और 200 रुपये हर महीने देने की पेशकश भी की. लेकिन, उनकी दौलत स्वामी सहजानंद को खरीद नहीं पाई.
मिल मालिकों को झुकना पड़ा, हुई किसानों की जीत
स्वामी सहजानंद ने आंदोलन का नेतृत्व किया. उनके आह्वान पर किसानों ने आरके डालमिया की मिल को गन्ना देना बंद कर दिया. किसान आंदोलन को रास्ते से भटकाने करने के लिए नकली यूनियन भी खड़ी कर दी गई. इसके बाद भी किसानों और मजदूरों की एकता को तोड़ने में सफलता नहीं मिली. आखिर में किसानों की जीत हुई. किसानों और मजदूरों को स्वामी सहजानंद ने अपने हक के लिए आंदोलन की जो राह दिखाई, किसान आज भी उसी पर चलते हुए सड़क पर उतर पड़ते हैं.
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किसानों के लिए महात्मा गांधी से भी भिड़ गए
स्वामी सहजानंद स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गई. कारावास के दौरान गांधीजी का जमींदारों के प्रति नरम रुख को देखकर वह नाराज हो गए थे. बिहार में 1934 के भूकंप से तबाह किसानों को मालगुजारी में राहत दिलाने की बात को लेकर वह गांधीजी से भी भिड़ गए थे. हालात कुछ ऐसे बने की दोनों में अनबन हो गई. इसके बाद उन्होंने एक झटके में ही कांग्रेस छोड़ दी और अलग होकर अकेले ही किसानों के लिए जीने-मरने का संकल्प ले लिया. वह अपनी अंतिम सांस तक किसानों और मजदूरों के हक के लिए लड़ते रहे. 26 जून 1950 को किसान आंदोलन के जनक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वामी सहजानंद का निधन हो गया.
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