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AYODHYA NEWS-अयोध्या में बढ़ती भीड़ धक्का-मुक्की, आपाधापी व भगदड़ के चलते  आधा दर्जन से ज्यादा घायल हो गए थे.और चोर लुटरों की मौज

अयोध्या में बढ़ती भीड़ धक्का-मुक्की, आपाधापी व भगदड़ के चलते  आधा दर्जन से ज्यादा घायल हो गए थे.और चोर लुटरों की मौज
अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं के साथ हुई घटनाओं की खबर देने से परहेज क्यों कर रहा मीडिया?
अयोध्या में मीडिया के एक हिस्से द्वारा ‘नकारात्मक’ खबरों को नकारने का सिलसिला राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के अगले दिन ही शुरू हो गया था. तभी, जब रामलला के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ की धक्का-मुक्की में कुछ घायल हो गए और इनमें से एक की मौत हो गई तो मीडिया ने इसे प्रसारित करने से परहेज़ किया था.
अयोध्या में बढ़ती भीड़ धक्का-मुक्की, आपाधापी व भगदड़ के चलते  आधा दर्जन से ज्यादा घायल हो गए थे.और चोर लुटरों की मौज
BY-कृष्ण प्रताप सिंह
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अगर आप अयोध्या से ‘बहुत दूर’ रहते हैं और उसकी खबरों के लिए महज अखबारों, न्यूज एजेंसियों व न्यूज चैनलों पर निर्भर करते हैं तो निस्संदेह, इन दिनों आपको लग रहा होगा कि ‘भव्य’ व ‘दिव्य’ होकर वह ‘त्रेता की वापसी’ के ‘अरमान’ से आगे बढ़कर ‘रामराज्य की स्थापना’ का ‘स्वप्न’ साकार होने तक जा पहुंची है.
अपनी जीभ के स्वाद और निहित स्वार्थों के मद्देनजर समाचार देने या दबाने और देने में समाचार व प्रचार का फर्क खत्म कर देने के इस समय में ऐसा लगना अकारण या अस्वाभाविक भी नहीं है, क्योंकि इन माध्यमों द्वारा जोर-शोर से यही दिखाया/सुनाया व पढ़ाया जा रहा है कि गत 22 जनवरी को रामलला की बहुप्रचारित प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अपनी आस्था के राजनीतिक प्रदर्शन के लिए सदल-बल अयोध्या पहुंच रहे विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्री व मंत्री (अपनी सरकारों को इस प्रदर्शन से अलग किए बिना) कृतकृत्य, अभिभूत या ‘मन मस्त मगन’ होकर जता रहे हैं कि सारे देश में और नहीं तो कम से कम अयोध्या में तो रामराज्य की स्थापना हो ही गई है.
इसके साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि आस्थाजनित जन सैलाब से आप्लावित अयोध्या को जल्द ही तीन नए पथों-अवध आगमन पथ, लक्ष्मण पथ और क्षीरसागर पथ-की सौगात मिल जाएगी, जिससे तीर्थ यात्रियों, श्रद्धालुओं व पर्यटकों की कितने भी रेले क्यों न हों, वे सड़क जाम में नहीं फंसेंगे.
ये तीर्थ यात्री, श्रद्धालु व पर्यटक अब सरयू में संत तुलसीदास घाट से गुप्तार घाट तक अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वाटर मेट्रो के जरिये जल विहार का आनंद भी ले सकेंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करके ही उनकी नगरी के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं मान ली है. और अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गत दौरे के दौरान अयोध्या में वाटर मेट्रो का वर्चुअली शुभारंभ करना नहीं भूले हैं.
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इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार की ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी-4 के तहत अयोध्या जिले में 192 औद्योगिक इकाइयों में 10,156 करोड़ के निवेश पर सहमति हो गई है और पर्यटन की अपार संभावनाओं के दोहन के लिए पर्यटकों हेतु विश्वस्तरीय सुविधाएं जुटाने की दिशा में कुछ भी उठा नहीं रखा जा रहा है.
कर्नाटक व तेलंगाना के श्रद्धालुओं के उन जत्थों ने भी, जो गत 10 फरवरी को वाराणसी में काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद आस्था स्पेशल ट्रेन से अयोध्या पहुंचे, अखबारों व न्यूज चैनलों की मार्फत यही सब सुन देख व पढ़ रखा था और जैसे बहुत से दूसरे लोगों को देखे-पढ़े व सुने का ‘दूसरा पहलू’ जानने की जरूरत नहीं महसूस होती, उन्हें भी महसूस नहीं हुई थी.
इसलिए उन्होंने कल्पना तक नहीं कर रखी थी कि ‘अयोध्या में रामराज्य’ की जमीनी हकीकत इतनी कड़वी होगी और रामजन्मभूमि पथ पर व हनुमानगढ़ी के पास चोर-उचक्के उनका ऐसा ‘स्वागत’ करने को ‘आजाद’ होंगे कि न उनके गले के बेशकीमती लाॅकेट उनके गले में रहने देंगे, न चेन. यहां तक कि सुहाग का चिह्न मंगलसूत्र और एक मुखी रुद्राक्ष जैसी चीजें भी नहीं.
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इसलिए आनंद, सुषमा, सुधाकर राय, अदावली मंजुला, उपेंद्र राय, अहिल्या, कटेपु रेणुका, सुरेंद्र रेड्डी, कक्करा श्रीमती, चिदुवेता रानी व कलानी विद्यालक्ष्मी नामक इन श्रद्धालुओं को, जिनमें कई आपस में पति-पत्नी थे, चोर-उचक्कों के शिकार होने के बाद एक बारगी कुछ सूझा ही नहीं कि क्या करें, कहां जाएं और किससे फरियाद करें.
उनमें से कई के लाॅकेट व चेन 30 से 80 ग्राम सोने के थे और वे इतनी बड़ी क्षति का सदमा बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थे. अच्छी बात यह थी कि उनके बीच हैदराबाद हाईकोर्ट के एक वकील भी थे, जिनकी मदद से वे सब थाना राम जन्मभूमि पहुंचे, लेकिन वहां थाने की पुलिस को उनसे कोई सहानुभूति नहीं दिखी और वह बिना देर किए जांच व कार्रवाई में लगने के बजाय हीलाहवाली कर उन्हें टालने में लगी रही.
‘रामराज्य की स्थापना’ के प्रबलतम दावेदारों में से एक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस निर्देश का भी उस पर कोई असर नहीं दिखा कि अयोध्या आए तीर्थयात्रियों, श्रद्धालुओं व पर्यटकों से शिष्टता से पेश आया जाए, ताकि वे अपने दिलो-दिमाग में अच्छी यादें लेकर और मन व आंखों में अयोध्या के साथ उत्तर प्रदेश की भी बेहतर छवि बसाकर वापस जाएं.
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पीड़ित श्रद्धालुओं का यहां तक कहना था कि उनके द्वारा कुछ संदिग्धों को इंगित किए जाने के बावजूद पुलिस ने आसानी से उनकी एफआईआर नहीं लिखी. इसके लिए उन्हें रामजन्मभूमि थाने में धरना देकर ‘न्याय चाहिए, न्याय चाहिए’ और ‘हमें हमारा गोल्ड वापस चाहिए’ के नारे लगाने पड़े.
पुलिस की ही तरह मीडिया ने भी इन पीड़ितों से कोई हमदर्दी नहीं दिखाई. ज्यादातर अखबारों व न्यूज चैनलों ने उनसे छिनैती की खबर देने में दिलचस्पी नहीं ली. जिन्होंने ली भी, खबर का टोन इतना डाउन करके प्रसारित किया, ताकि अयोध्या में राम राज्य और प्रदेश सरकार की ‘प्रतिष्ठा’ पर आंच न आए.
स्वाभाविक ही यह ‘प्रतिष्ठा’ पीड़ितों के दर्द पर भारी पड़ी. जानकारों के अनुसार इसका एक कारण यह भी था कि इस कांड के अगले ही दिन समूची उत्तर प्रदेश सरकार विपक्षी पार्टियों (समाजवादी पार्टी को छोड़कर) के साथ रामलला के दर पर हाजिरी देने आने वाली थी और पुलिस व मीडिया का बड़ा हिस्सा चाहता था कि उसकी हेठी या रंग में भंग करने वाला कोई विसंवादी स्वर व उभरे. इससे आम लोग हकीकत जानने से वंचित रह जाएं या श्रद्धालुओं की हकतलफी हो जाए तो उनकी बला से.
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लेकिन बाद में पुलिस ने बिहार के एक कथित गिरोह के 16 सदस्यों को गिरफ्तार करके उनसे 355 ग्राम की सोने की 11 चेनें (जिनकी अनुमानित कीमत 21 लाख रुपये बताई गई) व कई वाहन बरामद कर उक्त छिनैती कांड के पर्दाफाश का दावा किया तो मीडिया के इस हिस्से द्वारा इसे पुलिस की बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किया गया.
यह बताकर कि उक्त गिरोह काशी व मथुरा समेत कई दूसरे धर्मस्थलों में भी दक्षिण भारतीय को, जिनमें कई-कई बेशकीमती स्वर्णाभूषण धारणकर तीर्थ यात्रा पर निकलने का चलन हैं, अपना शिकार बनाता था. इसका एक सदस्य आभूषण पार कर तुरंत गिरोह के दूसरे सदस्य को दे देता था, जिससे उसके पकड़े जाने पर भी आभूषण बरामद नहीं हो पाता था.
क्या आश्चर्य कि पुलिसकर्मियों द्वारा अनौपचारिक तौर पर यह स्वीकार करने के बावजूद कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में भीड़ों के बीच चेन व लाॅकेट वगैरह की छिनैतियां व मोबाइल आदि कीमती सामानों की चोरियां उनका सिरदर्द बन गई हैं.
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पुलिस मीडिया की ओर से इस सवाल का सामना करने से पूरी तरह बची रह गई कि पहले से इतना एहतियात क्यों नहीं बरता गया कि यह गिरोह अयोध्या में सक्रिय होकर श्रद्धालुओं को शिकार बनाने और नवस्थापित ‘रामराज्य’ पर सवाल उठवाने में सफल न हो पाए?
वह बची क्यों न रहे, ‘रामराज्य’ की ‘प्रतिष्ठा’ की रक्षा के प्रति ‘समर्पित’ मीडिया के इस हिस्से द्वारा ‘नकारात्मक खबरों से परहेज’ के अनुपालन में अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं के साथ हुई दुर्घटनाओं की खबरें भी नहीं दे रहा.
गुजरात के श्रद्धालुओं को लेकर काशी से अयोध्या आ रहे एक टैम्पो ट्रावेलर की इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर बीते 18 फरवरी को देर रात बीकापुर कोतवाली क्षेत्र में बिलारीमाफी गांव के समीप गन्ना लदी ट्रैक्टर-ट्राली से भिड़ंत की खबर भी उसने नहीं ही दी.
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भले ही उसमें गुजरात के नवसारी जिले के सिजली थाना क्षेत्र के कोई दर्जन भर श्रद्धालु घायल हो गए थे. इससे एक दिन पहले 17 फरवरी की सुबह अयोध्या में बंदरों की लड़ाई में भक्ति पथ पर दुकानों के छज्जों पर भारी-भरकम लोहे के एंगल में लगाई गई फैंसी लाइट गिरने से एक स्थानीय ठेले वाले व कई श्रद्धालुओं को चोटें आने की खबर की भी उसने खबर नहीं ही ली.
भले ही कई लोग इसे अयोध्या को ‘दिव्य’ व ‘भव्य’ बनाने के काम में भ्रष्टाचार बरते और गुणवत्ता से समझौता किए जाने से जोड़कर देख रहे थे. उनके द्वारा अपनी बात के समर्थन में पिछले दिनों नवनिर्मित सड़कों के कई जगहों पर धंस जाने कह मिसालें दी जा रही थीं.
गौरतलब है कि मीडिया के इस हिस्से द्वारा ‘नकारात्मक’ खबरों को नकारने का सिलसिला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के अगले दिन ही शुरू हो गया था. तभी, जब रामलला के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ ने सारे सुरक्षा प्रबंधों को अपर्याप्त सिद्ध कर दिया था और धक्का-मुक्की, आपाधापी व भगदड़ के हालात में आधा दर्जन से ज्यादा घायल हो गए थे.
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इन घायलों में बिहार की 45 वर्षीय चुन्ना देवी की मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई थी, लेकिन ज्यादातर अखबारों व न्यूज चैनलों ने इसे प्रसारित करने से परहेज बरता और स्थानीय दैनिक जनमोर्चा में इसकी खबर छप जाने के दबाव में प्रसारित भी किया तो भगदड़ में घायल होने या मरने की बात छिपा गए.
आपने यहां तक पढ़ लिया है तो बेहतर है कि अब जाग जाइए. समझिए कि लोगों के हादसों में घायल होने व मरने की खबरों को भी नकारात्मक करार देकर न देने तक आ पहुंचा मीडिया आपको हकीकत बताने में नहीं, ‘जल में थल और थल में जल’ का भ्रम रचकर आपको भरमाने में ज्यादा दिलचस्पी रखता है. इसलिए कि उसके स्वार्थ आपको भरमाने से ही सधते हैं.
आपको भरमाने के लिए ही उसने अयोध्या की उन मीरा मांझी की तकलीफों को स्वर देने के बजाय उनका पक्ष ही पी लिया, गत 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने जिनके घर जाकर चाय पी थी.
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
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