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INDIA-हमारा संविधान कहां तक सुरक्षित है? का सवाल अब उठ खड़ा हुआ है।

मोदी जी ने “चार सौ पार” का नारा यूं ही नहीं दिया है। देश के मौजूदा संविधान को बदलना है और इसके सामान्य बहुमत से काम नहीं चलेगा। इस बयान से भाजपा ने भले ही किनारा कर लिया कि - यह उनके निजी विचार हैं।

परिचर्चा :  हमारा संविधान कहां तक सुरक्षित है? का सवाल अब उठ खड़ा हुआ है।


BY-अनिल अंशुमन
यूं तो जारी लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण का मतदान संपन्न हो चुका है। देश के 102 संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का महत्वपूर्ण मतादेश “ईवीएम मशीन” में दर्ज़ किया जा चुका है। शेष चरण के मतदान की प्रक्रिया भी पूरे शबाब पर है।
प्रथम चरण के मतदान से मात्र एक दिन पहले बाबा साहब अंबेडकरर की 133 वीं जयंती समारोह के बहाने देश के संविधान व लोकतंत्र पर बढ़ते खतरे को लेकर विधि-न्यायिक क्षेत्र में सक्रीय रहनेवालों द्वारा गहन विमर्श किया जाना, काफी मायने रखता है।
राजधानी पटना के केंद्रीय न्यायिक क्षेत्र बिहार उच्च न्यायालय परिसर स्थित ‘एडवोकेट एसोसिएशन (शताब्दी भवन)’ के अहाते में बाबा साहब अंबेडकर की जयंती समारोह मनाते हुए हाई कोर्ट के युवा एवं वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने यह विमर्श किया।
ऑल इंडिया लायर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (आइलाज़) के तत्वावधान में ‘डा. अम्बेडकर निर्मित संविधान पर मंडराते खतरे’ विषय पर आयोजित परिचर्चा का आयोजन हुआ।
परिचर्चा आरम्भ होने से पहले जन संस्कृति मंच पटना के कलाकारों ने दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल- ”हो गयी है पीर परवत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए” प्रस्तुत करते हुए इस पहलू पर ध्यान आकृष्ट किया कि- देश में जारी लोकसभा चुनाव कहने को तो हर पांच बरस पर होनेवाला “आम चुनाव” जैसा है। मगर केंद्र में काबिज़ सत्ताधारी दल ने लोकतंत्र के इस महापर्व को भी एक अघोषित युद्द जैसा बना दिया है, जिससे यह “आम चुनाव” एक “चुनौतीपूर्ण चुनाव” में बदल गया है।
आइलाज़ बिहार संयोजिका युवा अधिवक्ता मंजू शर्मा ने परिचर्चा के विषय पर प्रकाश डाला। लोकसभा के जारी चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं और प्रत्याशियों द्वारा जगह जगह सभाओं में सार्वजनिक रूप से देश के मौजूदा संविधान को बदलने की बात कहे जाने पर गहरी चंता जताई।
कार्यक्रम में शामिल अधिवक्‍ताओं का स्वागत करते हुए पटना हाई कोर्ट के युवा एडवोकेट कुमार उदय प्रताप ने कहा कि परिचर्चा का विषय काफी गंभीर है। क्योंकि जिस तरह से सत्ता पक्ष द्वारा आये दिन देश के संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ और खिलवाड़ किया जा रहा है, उससे संविधान और लोकतंत्र दोनों ही के सामने जटिल चुनौतियां दि‍ख रहीं हैं। जिसकी ज़द में पूरा न्यायिक तंत्र भी साफ़ दि‍ख रहा है। ऐसे में हर मतदाताओं को इससे अवगत कराना बेहद ज़रूरी है।
परिचर्चा के मुख्या वक्ता के रूप में बोलते हुए भाकपा माले राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि- आज सिर्फ पटना ही नहीं बल्कि पूरे देश में जगह जगह तमाम लोकतंत्र पसंद लोगों में देश के संविधान को लेकर जो गहरी चिंता है, वह यूं ही नहीं है। हमारा संविधान कहां तक सुरक्षित है? का सवाल जब उठ खड़ा हुआ है तो निस्संदेह लोगों को आश्वस्त करना और संविधान के पक्ष में खड़ा होना तमाम आज़ाद ख़याल और लोकतंत्र में भरोसा रखनेवाले वाले नागरिकों का प्राथमिक दायित्व बन जाता है। बाबा साहब डा. अंबेडकर निर्मित संविधान पर बढ़ते खतरों के सन्दर्भ में लोकसभा चुनावी परिदृश्य की चर्चा करते हुए कहा कि – इस चुनाव में एक गज़ब की स्थिति बन गयी है कि देश के इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार हो रहा है कि जिस संविधान के द्वारा स्थापित लोकतंत्र के तहत यह लोकसभा चुनाव हो रहा है, उसी संविधान के विरोध में चर्चायें हो रहीं हैं जिसे चुनाव का एक प्रमुख मुद्दा बना दिया गया है। एक तरफ, पिछले कुछ दिनों से देश के संविधान के विरोध में भाजपा नेताओं के लगातार बयान आ रहें हैं।Constitution is in danger
कर्नाटक के भाजपा नेता अनंत कुमार हेगड़े द्वारा खुले रूप से कहा गया कि “चार सौ पार” का नारा मोदी जी ने यूं ही नहीं दिया है। देश के मौजूदा संविधान को बदलना है और इसके सामान्य बहुमत से काम नहीं चलेगा। इस बयान से भाजपा ने भले ही किनारा कर लिया कि – यह उनके निजी विचार हैं(Modi ji has not given the slogan of “Chaar Sau Paar” just like that. The existing Constitution of the country has to be changed and simple majority will not suffice. Even though BJP distanced itself from this statement, these are their personal views.)। लेकिन ये बात तो साफ़ तौर से सामने खुलकर आ ही गयी कि “चार सौ पार” के पीछे असली मकसद क्या है।
अनंत कुमार हेगड़े कोइ अपवाद नहीं रहे, राजस्थान में भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा ने भी अपने चुनवी प्रचार अभियान में यही राग आलापा। जिसे आगे बढाते हुए उत्तर प्रदेश गिद्धौर के वर्तमान भाजपा सांसद और भाजपा प्रत्याशी वरिष्ठ नेता लल्लू सिंह जी तो ऐलानिया कह दिया कि- “चार सौ पार” सिर्फ इसलिए है कि वर्तमान संविधान की जगह हमें नया संविधान ही लाना है। जिस तर्क का जामा पहनाते हुए रामायण सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता और भाजपा के प्रत्याशी अरुण गोविल ने तो यहां तक कह दिया कि – जब मोदी जी ने कह दिया है – चार सौ पार तो सोच-समझ कर ही कहा है। जिस समय यह संविधान पारित किया गया था वह परिस्थिति अब बदल गयी है। ऐसे में संविधान में बदलाव तो प्रगति की निशानी है।
The State will have no religion of its own in India” and equal rights will be ensured for all the citizens living here without any discrimination.
दूसरी तरफ, देश ने मोदी जी को भी सुना है। जिसमें वे सवाल उठाने वालों को ही निशाना बनाते हैं कि – संविधान को लेकर कौन सवाल उठा रहा है? जबकि उन्हें तो देश के सुचिंतित नागरिकों को आश्वस्त करना चाहिए था कि ‘संविधान सुरक्षित’ है(Indian Constitution is in danger)। जिसके लिए बाबा साहब का नाम लेने की बजाय गोलवरकर का नाम लेना चाहिए था। जिन्होंने खुलकर इस संविधान का विरोध करते हुए “मनु स्मृति” आधारित संविधान को लागू करने की सबसे मुखर आवाज़ उठायी थी।
जब यह संविधान पारित किया जा रहा था तो उस दौर में भी आरएसएस के मुखपत्रों में संपादकी लिखकर खूब शोर मचाया गया कि – यह विदेशी है, पश्चिम से आयातीत है, हिन्दुस्तान की ज़मीन से जुड़ा हुआ नहीं है, इत्यादि। इसलिए यह बात बिलकुल सही है कि देश के लोगों को जो लग रहा है कि “संविधान खतरे में है”, यूं ही नहीं है(The feeling among the people of the country that “the Constitution is in danger” is not just like that.)।
दीपंकर जी ने जोर देते हुए कहा कि बाबा साहब को इसका साफ़ अंदेशा था कि हमने जो संविधान पारित किया है तो वो बहुत सुरक्षित है! उन्होंने कत्तई ये दवा नहीं किया था कि इस संविधान को लेकर देश की गाड़ी बिलकुल आराम से चलेगी! संविधान के पारित होते समय भी यह साफ़ रूप से कहा था कि – मुख्य सवाल है कि किस तरह के लोगों के हाथों में यह संविधान रहेगा और वे इसका अनुपालन कैसे करते हैं? क्योंकि संविधान सभा में होनेवाली बहसों में कई तरह के ऐसे मुखर विरोधी मत भी थे जो लोकतांत्रिक और संसदीय प्रणाली की बजाय “राष्ट्रपति केंद्रित अमेरिकी मॉडल” की शासन प्रणाली लागू करने पर अड़े रहे और इस देश को “हिन्दू राष्ट्र” घोषित करने पर आमादा रहे। लेकिन उनकी एक नहीं चली और बाबा साहब के नेतृत्व में संविधान सभा ने संविधान को पूरी मजबूती से पारित कर दिया। जिसमें साफ़ तौर से इस बात की घोषणा की गयी कि भारत एक लोकतान्त्रिक और पंथ निरपेक्ष राष्ट्र होगा। जिसमें “राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा” और यहां रहने वाले सभी नागरिकों के लिए बिना किसी भेदभाव के एक समान अधिकार सुनिश्चित रहेंगे(The state will have no religion of its own” and equal rights will be ensured for all the citizens living here without any discrimination.)। इस देश में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को लागू करते हुए हरेक नागरिकों के लिए “वोट के अधिकार” भी सुनिश्चित किये गये। यह केन्द्रीय व्यवस्था की गयी कि देश का सर्वोच्च निकाय ‘संसद’ होगी जिसके प्रति हर शासन-सत्ता को जवाबदेह रहना अनिवार्य होगा।
आगे चलकर बाबा साहब ने यह भी स्पष्ट रूप से कह दिया कि – यदि यह देश हिन्दू राष्ट्र बनेगा तो यह सबसे बड़ी विपत्ति से अधिक कुछ नहीं होगा। जो सबसे अधिक यहां के दालितों, सभी वंचित समुदायों के साथ साथ अन्य धर्मावलम्बियों के लिए विनाशकारी होगा।
बाबा साहब निर्मित संविधान के तहत ही संविधान सभा की बहसों से गुजरते हुए जिन विचारों को खारिज़ करते हुए इस देश के संविधान का निर्माण किया, आज वही विचार-बहसें और वही साजिशें संविधान के खिलाफ देश में हावी हो रहीं हैं। आलम ये है कि भाजपा पार्टी का चुनाव घोषणपत्र भी पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को धता बताकर सिर्फ “मोदी गारंटी” के अधिनायकवाद प्रलाप कर रहा है।
इसी लिहाज से संविधान पर बढ़ते खतरों और हमलों से कारगर और एकजुट मुकाबला इस चुनावी समर में सबसे केंदीय मुद्दा बनाकर ही हर नागरिक को सक्रीय होना बिलकुल अनिवार्य हो गया है।
परिचर्चा में अन्य कई युवा एवं वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपने सवाल रखते हुए ‘संविधान पर बढ़ते खतरे” से सहमती जताते हुए इस सवाल पर व्यापक जन अभियान की आवश्यकता बतायी।
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