नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार रक्षकों ने देश में हो रहे तानाशाही बदलाव पर चिंता जताई
नई दिल्ली:(Civil rights activists, human rights defenders expressed concern over the dictatorial change taking place in the country.) नागरिक समाज के सौ से अधिक सदस्यों, मानवाधिकार रक्षकों, पूर्व सिविल सेवकों, मीडिया पेशेवरों और शिक्षाविदों का एक समूह ने 10 और 11 फरवरी को एकत्र होकर भारत में बढ़ते तानाशाही बदलावों के बारे में चिंता जाहिर की.
Civil rights activists दो दिवसीय लोकतंत्र सम्मेलन (डेमोक्रेसी कन्वेंशन) 2024 को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, सांसद कपिल सिब्बल, कश्मीर के माकपा नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रवक्ता सुहैल बुखारी ने संबोधित किया.
इस दौरान डेमोक्रेसी कन्वेंशन द्वारा रखे गए प्रस्तावों में नए भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयकों की समीक्षा करने का आह्वान किया गया, जो महज संदेह के आधार पर गिरफ्तारी की अनुमति देते हैं और आतंकवाद की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए इसमें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, रास्ता जाम करना शामिल है.
इसके अतिरिक्त, सम्मेलन में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और जम्मू और कश्मीर के सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) जैसे कठोर कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की गई.अन्य प्रमुख प्रस्तावों में 1947 की कट-ऑफ तिथि के साथ 1992 के उपासना स्थल अधिनियम का कड़ाई से पालन और एक व्यापक घरेलू भेदभाव-विरोधी कानून बनाना, विभिन्न क्षेत्रों में भेदभाव के खिलाफ नागरिकों की सुरक्षा और 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को निरस्त करना शामिल है.
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