ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में दिल्ली आ रहे किसान…रास्ते में कंटीली तारें, भारी नाकेबंदी से सामना!
आख़िर ये तैयारी किसके लिए की जा रही है? कौन दिल्ली आ रहे हैं? क्या ये कोई देश के दुश्मन हैं?
बीजेपी सरकार ने हरियाणा में कश्मीर जैसे हालात बना दिए हैं। पुलिस हमारे घरों में जाकर पासपोर्ट, ज़मीन आदि ज़ब्त करने की धमकी दे रही है।”
By-मुकुंद झा |
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किसानों का दिल्ली कूच शुरू हो चुका है। पंजाब के कई इलाकों से किसान दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। मंगलवार, 13 फरवरी की सुबह फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे में किसान मज़दूर मोर्चा के नेताओं ने ‘दिल्ली चलो’ की सफलता के लिए प्रार्थना की।
एक तरफ जहां किसानों के हौसले एक बार फिर बुलंद हैं और केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए संघर्ष के लिए तैयार हैं। वही दूसरी तरफ सरकार ने भी इन्हें रोकने की पूरी तैयारी की हुई है। हरियाणा-पंजाब बॉर्डर को किसी देश की सरहद की तरह मजबूत और अभेद्य बनाया गया है। सीमेंट की दीवारें, लोहे के बैरिकेड्स, कंटीली तारें और यही नहीं सड़कों पर लोहे की मोटे कीलें भी जड़ दी गई हैं।(Farmers coming to Delhi in tractor-trolleys… barbed wires on the way, facing heavy blockade!)
इस बीच ख़बर है कि शंभू बॉर्डर पर किसानों को रोकने और तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल किया, किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल किया गया। इस बीच सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए लाल किले को भी बंद कर दिया गया है और बैरीकेडिंग लगा दी गईं।
दिल्ली कूच पर निकले किसानों का कहना हैं कि “हमने धरती में फसल और फूल बोये हैं और अब हम जब अपना हक़ लेने दिल्ली जा रहे हैं तो वो (सरकार) हमारे लिए कील और कांटे बो रही है।”
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राजस्थान की किसान यूनियन ग्रामीण किसान मज़दूर समिति के संतवीर सिंह मोहनपुरा ने एक वीडियो संदेश जारी कर सरकार द्वारा किसानों को रोकने के लिए रास्तों को अवरुद्ध करने को लेकर गुस्सा ज़ाहिर किया। उन्होंने कहा, “हम दिल्ली जाएंगे। सरकार रोक सकेगी तो रोक लेगी। हम से जाया जाएगा तो हम चले जाएंगे।”
Farmers Protest, आज सुबह मार्च शुरू करने से पहले किसान नेताओं ने मीडिया से बात की और किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के महासचिव श्रवण सिंह पंढेर ने कहा, “हम सरकार से बातचीत कर मामला हल करना चाहते हैं लेकिन सरकार मांगें मानने के बजाय एक बार फिर सिर्फ़ आश्वासन ही दे रही है।”
#Farmers protest Haryana, पंढेर ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक तरफ सरकार बातचीत का दिखावा कर रही है, दूसरी तरफ हमारे लोगों को डराया-धमकाया जा रहा है। बीजेपी सरकार ने हरियाणा में कश्मीर जैसे हालात बना दिए हैं। पुलिस हमारे घरों में जाकर पासपोर्ट, ज़मीन आदि ज़ब्त करने की धमकी दे रही है।”(The BJP government has created a situation like Kashmir in Haryana. The police are threatening to go to our homes and confiscate passports, land etc.”)
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केंद्र सरकार ने कल 12 फरवरी को किसान संगठनों के साथ चंडीगढ़ में लगभग 5 घंटे वार्ता की लेकिन उससे कोई हल नहीं निकला। इसके बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और पीयूष गोयल ने मीडिया से बातचीत की और कहा, “अधिकतर मुद्दों पर हम समाधान की ओर हैं लेकिन कुछ मुद्दे हैं जिनपर कई अन्य लोगों से बातचीत कर हल होना है। हमारा मानना है कि हर मुद्दे का हल बातचीत से निकलेगा और हम खुले मन से किसानों से बातचीत करने को तैयार हैं।” हालांकि वे किसानों को रोके जाने के तरीके को लेकर कुछ भी बोलते से बचते दिखे।
हरियाणा और दिल्ली के बॉर्डर पर पुलिसिया व्यवस्था और सख्ती देखकर हर कोई हैरान हैं। कई लोग सवाल कर रहे रहे हैं कि आख़िर ये तैयारी किसके लिए की जा रही है? कौन दिल्ली आ रहे हैं? क्या ये कोई देश के दुश्मन हैं? (After all, for whom are these preparations being made? Who is coming to Delhi? Are they enemies of any country?)किसानों का आरोप है कि सरकार अपने भाषणों में किसान को अन्नदाता कहती है लेकिन जब वो अपने हक़ की बात करते हैं तो सरकार का रवैया बदला हुआ नज़र आता है।
कुछ इसी तरह की तस्वीर हमने साल 2020 के किसान आंदोलन के दौरान भी देखी थीं जब सरकारों ने नेशनल हाइवे खोदने से लेकर लोहे की कंटीले तारें और आंसू गैस के गोलों से किसानों को रोकने की कोशिश की थी लेकिन किसान दिल्ली सीमाओं तक आने में कामयाब हुए थे और यहां वे एक साल से अधिक समय तक डटे रहे जिसके बाद सरकार को इनकी बात माननी ही पड़ी और तीन कृषि कानून रद्द करने पड़े।
इस बार भी किसान अचानक दिल्ली कूच पर नहीं निकले हैं बल्कि कई महीने पहले से इन्होंने जिले और ग्रामीण स्तर पर आंदोलन किए और कई बार राष्ट्रीय आंदोलन और कन्वेन्शन के ज़रिए अपनी मांगें दोहराईं। किसान दो साल पहले सरकार द्वारा दिए गए लिखित आश्वासनों को पूरा किए जाने की मांग कर रहे हैं।
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किसानों का आरोप है कि “सरकार ने हमारी मांगों को अनसुना किया और जब हम बड़ा मोर्चा लेकर निकले हैं तब एक तरफ सरकार हमसे बातचीत कर रही है और दूसरी तरफ हमारे आंदोलन पर दमन की तैयारी।”
सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि हम कमेटी बनाकर इनके मुद्दे हल करेंगे। इस पर किसान पूछ रहे हैं कि “सरकार ने दो साल से क्या किया? पहले MSP गरंटी कानून के लिए कमेटी बनाई उसका क्या हुआ? अब हमें नई कमेटी या आश्वासन नहीं, समाधान चाहिए।”
MSP गारंटी प्रमुख मांग
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किसानों की एक बड़ी मांग फसलों की MSP गारंटी की है। किसान चाहते हैं कि सरकार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए गारंटी दे और इसके लिए संसद से कानून बनाया जाए। किसानों का कहना है कि इससे किसानों की निश्चित आय तय हो सकेगी। किसानों का कहना है कि उनकी उपज और मेहनत का फायदा व्यापारी उठा लेते हैं जबकि उन्हें अक्सर लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। कई बार देखा गया कि टमाटर और प्याज़ के भाव आसमान पर चढ़े और कई बार इतने कम हुए कि किसानों को लागत निकालना मुश्किल हो गया। किसानों को इस तरह के नुकसान से उबारने के लिए MSP गारंटी की मांग की जा रही है। इसके अलावा भी किसानों की कई अन्य मांगें हैं:
अब तक क्या-क्या हुआ?
किसान पिछले कई महीने से इस आंदोलन की चेतावनी दे रहे थे लेकिन सरकार ने इसे अनदेखा किया। कल 12 फरवरी को किसानों और सरकार के बीच दो दौर की वार्ता हुई जिससे कोई ठोस हल नहीं निकला। दूसरी तरफ किसानों के दिल्ली कूच को रोकने के सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक नाकेबंदी की गई। इसके तहत प्रमुख किसान नेताओं के ‘एक्स’ अकाउंट को बंद कर दिया गया। इसके अलावा हरियाणा सरकार ने पहले ही इंटरनेट बंद कर दिए थे। 13 तारीख को राजस्थान के भी तीन जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया। यूपी के बॉर्डर पर भी भारी बैरीकेडिंग की गई है, जबकि अभी यूपी से किसी मोर्चे की सूचना नहीं है। कुछ इसी तरह की व्यवस्था दिल्ली के सभी बॉर्डर पर की गई है। पुलिस ने ड्रोन से लेकर आंसू गैस के गोले छोड़ने का अभ्यास किया।
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किसने किया आंदोलन का आह्वान?
किसानों के ‘दिल्ली चलो’ का पहला आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और कुछ अन्य किसान संगठनों ने किया था। हालांकि इस मार्च में SKM शामिल नहीं है। अब इस मोर्चा का नाम किसान मज़दूर मोर्चा रखा गया है जिसमें लगभग 200 किसान संगठनों के शामिल होने का दावा है। ये सभी किसान संगठन दो साल पहले दिल्ली की सीमाओं पर चले आंदोलन का हिस्सा थे और सभी उस समय के संयुक्त किसान मोर्चा के साथ थे लेकिन बाद में इनमें कुछ राजनैतिक मतभेद हुए और एक नया संगठन बना।
इस मोर्चे के एक प्रमुख घटक ‘भारतीय किसान यूनियन एकता सिधूपुर’ के प्रदेश अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि “केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक किसान आंदोलन को स्थगित करते समय लिखित वादा किया था कि MSP गारंटी कानून बनाया जाएगा। आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज की गई एफआईआर रद्द की जाएगी। लखीमपुर खीरी के शहीद किसानों के परिवारों को पूरा न्याय दिया जाएगा और किसानों से चर्चा किए बिना बिजली संशोधन बिल नहीं लाया जाएगा।”
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दल्लेवाल ने आगे कहा कि “सरकार ने इनमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया है और न ही 2014 के चुनाव में किसानों का कर्ज माफ करने और डॉ. स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने का वादा पूरा किया। उल्टे, बदले की भावना से किसानों के प्रति लापरवाही बरतते हुए कृषि जिंसों पर आयात शुल्क खत्म करने या कम करने की धूर्त रणनीति अपनाकर देश के किसानों को परेशान करने का काम किया जा रहा है।”
SKM ने सेंट्रल ट्रेड यूनियन के साथ लगभग इन्ही मांगों को लेकर भारत बंद का आह्वान किया है। SKM ने सरकार द्वरा प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर सरकार की निंदा की है। एक बयान में SKM ने कहा, “हमने पहले स्पष्ट किया है कि हमने 13 फरवरी को दिल्ली चलो का आह्वान नहीं किया है और SKM का इस विरोध कार्रवाई से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, SKM के अलावा अन्य संगठनों को विरोध करने का अधिकार है और यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे विरोध प्रदर्शनों पर राज्य दमन करने के बजाय लोकतांत्रिक तरीके से व्यवहार करे।”
SKM ने पीएम मोदी से यह स्पष्ट करने का आग्रह किया कि “उनकी सरकार लोगों की आजीविका की मांगों पर 16 फरवरी 2024 को देशव्यापी ग्रामीण बंद और औद्योगिक/क्षेत्रीय हड़ताल के आह्वान के संदर्भ में किसानों और श्रमिकों के मंच से चर्चा के लिए तैयार क्यों नहीं है?”
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