दीपेंद्र हुड्डा ने “कड़वाहट” का “नमक” डालकर एक ही झटके में सारा “सत्यानाश” कर दिया।
दीपेंद्र हुड्डा ने पिता भूपेंद्र हुड्डा की मेहनत पर “फेरा” पानी
कुलदीप बिश्नोई से “उलझ” कर दीपेंद्र हुड्डा ने दिखाई नासमझी
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—राजकुमार अग्रवाल —
नई दिल्ली। हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने के लिए बेहद “जल्दबाजी” में चल रहे सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने अपने पिता भूपेंद्र हुड्डा की बड़ी मेहनत पर पानी “फेरने” का काम किया है। भूपेंद्र हुड्डा पिछले 3 साल से कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई को अपने “साथ” लेकर “चलने” के लिए लगातार कोशिश कर रहे थे। उन्होंने कुलदीप बिश्नोई के साथ रिश्तों की “खटास” और “दूरियों” को मिटाने के लिए अपने घर पर संक्रांति पर बुलाकर “हलवा” भी खिलाया था। भूपेंद्र हुड्डा यह बखूबी जानते हैं कि प्रदेश कांग्रेस के विरोधी नेताओं को “पछाड़ने” के लिए कुलदीप बिश्नोई का “साथ” लेना बेहद जरूरी है।
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बेटे दीपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी दीपेंद्र हुड्डा को कुलदीप बिश्नोई बेहद महत्वपूर्ण शख्सियत नजर आते हैं। भूपेंद्र हुड्डा को यह एहसास है कि जाट वोटर तो उनके नाम पर “लामबंद” हो जाएंगे लेकिन गैर जाट वोटरों का समर्थन हासिल करने के लिए कुलदीप बिश्नोई का साथ “खड़ा” होना बेहद जरूरी है। इसलिए भूपेंद्र हुड्डा ने कुलदीप बिश्नोई के साथ रिश्ते सुधारने के लिए लगातार “प्रयास” किए। भूपेंद्र हुड्डा इस बात पर “रजामंदी” बना रहे थे कि दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए तो कुलदीप बिश्नोई को नेता प्रतिपक्ष का पद दे दिया जाए।
भूपेंद्र हुड्डा जानते हैं कि दीपेंद्र हुड्डा तभी “सफल” हो पाएंगे जब कुलदीप बिश्नोई का समर्थन उनके साथ खड़ा होगा लेकिन दीपेंद्र हुड्डा इस जमीनी हकीकत को “समझ” नहीं पाए और कल राहुल गांधी के साथ बैठक में कुलदीप बिश्नोई के साथ “बेवजह” उलझ गए। प्रदेश कांग्रेस में जाट और गैर जाट नेतृत्व के मुद्दे पर कुलदीप बिश्नोई के साथ दीपेंद्र हुड्डा बहसबाजी कर बैठे। कुलदीप बिश्नोई ने बैठक में चर्चा के दौरान यह बात कह दी कि 2005 में भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनते समय कांग्रेस के 67 विधायक थे जो 2014 तक आते-आते 15 पर रह गए।
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दीपेंद्र हुड्डा को कुलदीप बिश्नोई की है बात नागवार गुजरी और उन्होंने “पलटवार” करते हुए कुलदीप बिश्नोई को “कटघरे” में खड़ा करते हुए कह दिया कि आपने भी तो अलग पार्टी बनाई थी, उसमें आपने क्या कर लिया। यह बात कुलदीप बिश्नोई को नागवार गुजरी और उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा की अगुवाई में हुए कांग्रेस के “पतन” के “तथ्य” बैठक में रख दी। दीपेंद्र हुड्डा को साथी नेताओं से समर्थन मिलने की उम्मीद थी लेकिन बाकी नेताओं ने भी इस मामले में हुड्डा परिवार को ही “कटघरे” में खड़ा कर दिया।
वरिष्ठ नेता किरण चौधरी ने भी कहा कि कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय हुड्डा परिवार खुद को मजबूत कर रहा है। उन्होंने “टीम दीपेंद्र” बनाए जाने के औचित्य पर दीपेंद्र हुड्डा से सवाल किया जिसका उनके पास कोई “जवाब” नहीं था। रणदीप सुरजेवाला ने दोनों नेताओं के बीच बीच-बचाव जरूर किया लेकिन इसके बीच में उन्होंने भी इस बात की हामी भरी कि भूपेंद्र हुड्डा की अगुवाई में कांग्रेस को लगातार “नुकसान” का सामना करना पड़ा। दीपेंद्र हुड्डा को उम्मीद थी कि उनके समर्थन में आफताब अहमद और फूलचंद मुलाना कुछ बोलेंगे लेकिन हालात को “भांपते” हुए दोनों ही नेताओं ने दीपेंद्र हुड्डा का पक्ष नहीं लिया।
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इस सारे मामले को भूपेंद्र हुड्डा अपनी आंखों के सामने चुपचाप देखते रहे। उन्होंने कुलदीप बिश्नोई और दीपेंद्र हुड्डा की खींचातानी से खुद को दूर रखा। भूपेंद्र हुड्डा को यह पता है कि कुलदीप बिश्नोई को नाराज करना उनके लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि बाकी दूसरे बड़े नेता तो पहले ही उनके खिलाफ हैं। ऐसे में अगर कुलदीप बिश्नोई विरोध में खड़े हो गए तो उनके समीकरण “बिगड़” जाएंगे। और ऐसे में उनके हाथ में न तो कांग्रेस की बागडोर आएगी और न ही वे बेटे दीपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री बनवा पाएंगे।
दीपेंद्र हुड्डा ने अपनी “नासमझी” में बने बनाए अच्छे रिश्ते में कड़वाहट “घोलकर”भूपेंद्र हुड्डा के कई साल के प्रयासों का बंटाधार कर दिया। भूपेंद्र हुड्डा तो कुलदीप बिश्नोई को अपने साथ सेट करने के लिए “हलवे” में और अपनेपन की “चीनी” डालकर “मीठा” करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन दीपेंद्र हुड्डा ने उसमें “कड़वाहट” का “नमक” डालकर एक ही झटके में सारा “सत्यानाश” कर दिया।
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