सहकारी समितियाँ अब आरटीआई के तहत जनता से सूचना साझा करने से नहीं बच सकतीं:
सूचना देने से बचने पर सरस्वती कुंज सोसायटी की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की।
चंडीगढ़/23 सितम्बर/अटल हिन्द ब्यूरो
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय (Punjab and Haryana High Court)ने गुरुग्राम स्थित सरस्वती कुंज को ऑपरेटिव हाउसिंग बिल्डिंग सोसायटी (operative housing building society)द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें हरियाणा राज्य सूचना आयोग (Haryana State Information Commission)के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत मांगी गई सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी ने 3 सितम्बर 2025 को अपना आदेश सुनाया (जो 23 सितम्बर 2024 को वेबसाइट पर अपलोड हुआ), और आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि निजी सहकारी समितियों से संबंधित वह जानकारी, जिसे किसी सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा विधि के अंतर्गत प्राप्त किया जा सकता है, आरटीआई अधिनियम के दायरे में आती है।
सोसायटी ने आयोग के 28 फरवरी और 3 मई 2024 के आदेशों को रद्द करने की मांग की थी। उसका तर्क था कि हरियाणा सहकारी समितियां अधिनियम, 1984 के तहत पंजीकृत एक निजी सहकारी संस्था होने के नाते उस पर आरटीआई अधिनियम लागू नहीं होता। याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के थलप्पलम सर्विस कोऑपरेटिव बैंक बनाम केरल राज्य (2013) के फैसले पर भरोसा किया था, जिसमें कहा गया था कि सहकारी समितियाँ धारा 2(ह) के तहत “सार्वजनिक प्राधिकरण” की श्रेणी में नहीं आतीं।
लेकिन आरटीआई आवेदक के वकील प्रदीप कुमार रापड़िया ने दलील दी कि आवेदन सीधे सोसायटी में नहीं, बल्कि लोक सूचना अधिकारी, सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समितियाँ, गुरुग्राम के पास दाखिल किया गया था, जो अधिनियम के तहत एक “सार्वजनिक प्राधिकरण” है। सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी सूचना जिसे कोई सार्वजनिक प्राधिकरण किसी निजी संस्था से विधि के तहत प्राप्त कर सकता है, उसे आरटीआई कानून के तहत नागरिक को उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
उच्च न्यायालय ने आरटीआई आवेदक के वकील की इस दलील से सहमति जताते हुए निष्कर्ष निकाला कि सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार, जिनके पास वैधानिक निगरानी और प्रशासनिक अधिकार हैं, पर यह दायित्व है कि वे ऐसी सूचनाएँ उपलब्ध कराएं, बशर्ते वे अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत छूट प्राप्त न हों। न्यायालय ने पाया कि आयोग के आदेशों में कोई अवैधता नहीं है और इस प्रकार याचिका को “निराधार” मानते हुए खारिज कर दिया गया।