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छुपा है अरबों का खजाना? ‘जानी चोर की बावड़ी’ में किसी रहस्य से कम नहीं है ये

‘जानी चोर की बावड़ी’ में छुपा है अरबों का खजाना? किसी रहस्य से कम नहीं है ये बावड़ी
हरियाणा में जानी चोर की वह रहस्यमयी बावड़ी, जिसमें समाकर पूरी बारात की हो गई थी मौत, जानिये इसके बारे में
Special : जानी चोर और उसकी बावड़ी से जुड़ी बहुत सी बातें आज तक रहस्य बनी हुई हैं।’जानी चोर की बावड़ी’, जोकि हरियाणा के रोहतक में स्थित है। यूं तो इस बावड़ी का निर्माण मुगल काल में हुआ था, लेकिन इसका नाम जानी चोर की बावड़ी अलग से ही पड़ा। इस गुफा की खासियत है जाल की तरह बुनी सुरंगे… जोकि इस बावड़ी में मौजूद है। कहते हैं ये सुरंगे दिल्ली, हिसार व लाहौर तक जाती हैं।
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महम ( रोहतक )
Special :एक वक्त था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, भारत के राजा-महाराजाओं के पास बेशुमार धन-दौलत थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला अंग्रेजों ने सोने की चिड़ियां कहे जाने वाले देश को अपना गुलाम बना लिया और इस देश की सारी धन-दौलत को लूटकर ले गये। लेकिन कहते हैं आज भी हमारे भारत में कई ऐसी जगहें मौजूद है जहां आज की डेट में भी अरबों की धन-दौलत दुनिया से छुपी हुई है। आज हम आपको ऐसी ही एक जगह के बारे में बताने जा रहे है।
राजधानी दिल्ली से 100 से भी कम किलोमीटर की दूर रोहतक जिले में महम शहर है। भिवानी रोड पर स्थित महम के नागरिक अस्पताल के सामने जानी चोर की बावड़ी ( Jani Chor Ki Bawdi ) स्थित है। इस बावड़ी को पुरातत्व विभाग ने अधिग्रहित किया हुआ है।
लेकिन यह न तो यह स्थान पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सका और न ही यहां पर जानी चोर व बावड़ी से जुड़े इतिहास और वस्तुओं का कोई संग्राहलय बनाया गया। महम शहर के लोगों को भी आज तक इस बात का नहीं पता की जानी चोर का जन्म कहां पर हुआ था।
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जानी चोर बहुत ही धनाढ्य व्यक्ति था। उसके मरने के बाद उसका धन कहां गया। उसकी मृत्यु कब और कैसे हुई। महम और आसपास के लोगों का कहना है कि उस समय का प्रसिद्व ज्ञानी चोर चोरी करने के बाद पुलिस से बचने के लिए यहीं आकर छिपता था। कहा जाता है कि ज्ञानी चोर एक शातिर चोर था, जो धनवानों को लूटता था और इस बावड़ी में छलांग लगाकर गायब हो जाता था।
बावड़ी से जुड़ी बहुत सी बातें आज तक रहस्य
जानी चोर और उसकी बावड़ी से जुड़ी बहुत सी बातें आज तक रहस्य बनी हुई हैं। ज्ञानी चोर की गुफा के नाम से प्रसिद्ध यह बावड़ी जमीन में कई फीट नीचे तक बनी हुई है।
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बताया जाता है कि अंग्रेजों के समय में एक बारात सुरंग के रास्ते दिल्ली जाना चाहती थी। कई दिन बीतने के बाद भी सुरंग में उतरे बाराती न तो दिल्ली पहुंच पाए और न ही वापस निकले, तब से यह सुरंग चर्चा का विषय बनी हुई है।
किसी अनहोनी घटना के चलते अंग्रेजों ने इस सुरंग को बंद कर दिया जो आज तक बंद पड़ी है। बावड़ी पर न तो बावड़ी का इतिहास ही चस्पा किया गया है और न ही यह बताया गया है कि बावड़ी के कुंए की शिला पर क्या लिखा हुआ है। यह महज एक शिलालेख की दिखाई देता है।

पुरातत्व विभाग द्वारा न ही यहां पर कोई ऐसा व्यक्ति गाइड के रूप में लगाया गया है, जो इस प्राचीन धरोहर के बारे में कुछ बता सके।
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सरकार और पुरातत्व विभाग को इस बारे में खास काम करने की जरूरत है, ताकि यहां पर बावड़ी देखने के लिए आने वाले सैलानियों को बावड़ी और जानी चोर के इतिहास के बारे में पता चल सके।
मुगलकाल की यह बावड़ी यादों से ज्यादा रहस्यमयी किस्से-कहानियों के लिए जानी जाती है। चर्चा यह भी है कि इस बावड़ी में अरबों रुपयों का खजाना छिपा हुआ है।
दावा किया जाता है कि यहां सुरंगों का जाल है जो दिल्ली, हांसी, हिसार और पाकिस्तान तक जाता है। इस बावड़ी में एक कुआं है, जिस तक पहुंचने के लिए 101 सीढ़ियां थी, लेकिन फिलहाल 32 ही बची हैं। 1995 में आई भीषण बाढ़ ने बावड़ी के एक बड़े हिस्से को बर्बाद कर दिया था।
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धन्ना सेठों को लूटकर गरीबों में धन बांटता था जानी चोर
इस ऐतिहासिक बावड़ी में जानी नाम का चोर चोरी करके छिप जाता था। इस बावड़ी को शाहजहां ने पानी के स्रोत के रूप में विकसित किया था। लेकिन जानी चोर ने इसे अपना आश्रय स्थल बना लिया था और वह चोरी करने के बाद इसमें छिप जाता था और पुलिस कभी उसे ढूंढ नहीं सकी।
बताते हैं कि इस बावड़ी में एक लंबी सुरंग थी, जो हांसी, हिसार और दिल्ली तक जाती थी। जानी चोर एक ऐसा चोर था, जो बड़े-बड़े पूंजीपतियों और धन्ना सेठों को लूटता था और लूटे गए धन को गरीबों में बांटता था।

बावड़ी में 110 सीढ़ियां जमीन में उतरती थी
बावड़ी में 110 सीढ़ियां जमीन में उतरती थी। जमीन के अंदर कई कमरे थे। अधिकतर सीढ़ियों व कमरे जमीन के अंदर मिट्टी व दलदल में दब चुके हैं। बताते हैं बावड़ी में दो सुरंगें थी।
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एक सुरंग दिल्ली और दूसरी लाहौर तक जाती थी। राजा-महाराजा उस वक्त इन सुरंगों का इस्तेमाल करते थे। बाद में ज्ञानी नाम के मशहूर चोर ने इस बावड़ी को अपना आश्रय स्थल बना लिया।
वह दिल्ली व आस पास के क्षेत्र के धनाढ़य लोगों को लूटता था और इस बावड़ी की सुरंगों के माध्यम से यहां पहुंचता था। इसलिए इस बावड़ी को ज्ञानी चोर की गुफा भी कहा जाता है।
ज्ञानी चोर लूटे गए धन को गरीबों में बांटता था। इस बावड़ी की शिल्प कला को देखने के लिए दूराज क्षेत्रों से लोग यहां आते हैं। इस बावड़ी के निर्माण के निर्माण की बात करें, तो बावड़ी के कुंएं पर एक पत्थर लगा हुआ है। जिस पर फारसी भाषा में लिखा गया है कि यह स्वर्ग का झरना शाहजहां के छत्रप सैदुकलाल ने 1656 ई. में बनवाया।
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जानी चोर ने ज्योतिषी पंडित का रूप धारणकर नार महकदे को छुड़ाया था अदली खां की जेल से
राजा सुल्तान और जानी चोर की अच्छी दोस्ती थी। सरजू बंजारा और गोधू जाट भी जानी चोर के दोस्त थे। एक लड़की जिसका कोई भाई नहीं था, ये सभी दोस्त उसका भात भरने के लिए जा रहे थे।
रास्ते में वे एक नदी में स्नान करने लगे। यहां पर चिटठी पड़ी मिली, जिसमें लिखा गया था कि मैं एक हिंदुआनी औरत हूं और मुझे अदली खाँ पठान ने अपनी कैद में डाल रखा है। महिला ने अपना नाम नार महकदे लिखा था। जानी चोर ने नार महकदे को अदली खां पठान की कैद से निकालने की कसम खाई।
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वह अदली खां के महल में ज्योतिष ब्राह्मण का रूप धारण करके चला गया और नार महकदे को अदली खां पठान की कैद से छुड़ाकर ले आया। जानी चोर जो भी वेश धारण करता था, वही उस पर जंचता था। पुलिस से बचने के लिए, चोरी करने के लिए और घटिया मानसिकता के लोगों को सबक सिखाने के लिए उसने कई बार महिला का भी वेश धारण किया। जानी चोर को लोगों की सेवा करने, अनाथ और बेसहारा लोगों की मदद के लिए जाना जाता है।
बावड़ी के कुंए पर लगे पत्थर पर फारसी भाषा में लिखा है- स्वर्ग का झरना
ज्ञानी चोर की गुफा के नाम से प्रसिद्ध महम की ऐतिहासिक बावड़ी ( Maham ki Bawdi ) भिवानी रोड स्थित कस्बे के नागरिक अस्पताल से कुछ मीटर की दूरी पर ही स्थित है। सड़क से पूर्व दिशा में एक रास्ता बावड़ी की ओर जाता है। पहले यह खेतों के बीच स्थित थी, लेकिन अब यह किशनगढ़ गांव और शहर की बस्ती के बीच में आ गई है। इस बावड़ी को देखने के लिए दूर दराज से पर्यटक यहां आते हैं। यह बावड़ी शाहजहां काल ( Shahjahaan ki bawdi ) की वास्तुकला का एक बेजोड़ नमुना है।
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इस बावड़ी का निर्माण शाहजहां काल में हुआ था। इस बावड़ी को शाहजहां के एक मंत्री सैदुकलाल ने बनवाया पेयजल संकट को दूर करने के लिए बनवाया था। उस समय महम क्षेत्र में पेयजल के स्रोतों का अभाव था। बावड़ी पर एक चौड़ा व गहरा कुंआ बनवाया गया है।
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इस कुंए से पानी की निकासी के उपकरण और पानी निकालने के बाद उसके भंडारण के लिए टैंक बनाए गए हैं। राहगीरों के ठहरने, नहाने, कपड़े धोने और पानी पीने की उचित व्यवस्था की गई थी। उस जमाने में अधिकतर लोग पैदल चलते थे। साथ में घोड़ा, बैल व अन्य प्रकार के पशु होते थे। उनको पानी पिलाने व विश्राम के लिए भी यहां व्यवस्था थी।
बावड़ी का इतिहास बहुत पुराना और रोचक
बावड़ी का इतिहास बहुत पुराना है और रोचक भी है। इसके चाहने वाले पर्यटकों की भी कमी नहीं है। लेकिन महम की यह बावड़ी पुरातत्व विभाग की अनदेखी की वजह से उपेक्षा का शिकार है। यहां एक बोर्ड लगा दिया गया है और बाड़बंदी कर दी गई है। इसके अलावा यहां पर पुरातत्व विभाग की ओर से किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं की गई है।
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लोगों का यहां तक कहना है कि यदि सैदुकलाल आज इसको स्वर्ग से देख रहा होगा तो वह इस बावड़ी की बदहाली पर आंसू बहा रहा होगा। हालांकि 1987 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने इस बावड़ी की सुध ली थी। उन्होंने यहां पर पानी निकासी के लिए कई मोटरें व पंप लगाकर काम शुरू किया था। लेकिन भूमिगत जल स्तर ऊपर आ जाने की वजह से जमीन में धंस चुके बावड़ी के राज उजागर नहीं हो सके। बताते हैं कि बावड़ी को देखने के लिए एक बारात सुरंग में चली गई। लेकिन बाराती रास्ता भटक गए और उनमें से एक भी बाराती बाहर नहीं आ सका। पूरी की पूरी बारात बावड़ी की सुरंग में समा गई थी।
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