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जासूसी कांड से भरा पड़ा है भारतीय लोकतंत्र का इतिहास,चंद्रशेखर की गिरी सरकार

 

जासूसी कांड से भरा पड़ा है भारतीय लोकतंत्र का इतिहास,चंद्रशेखर की गिरी सरकार

इसे रोकने के लिए कोई नहीं चाहता कानून

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आज पेगासस के मुद्दे पर भले ही देश भर में शोर मच रहा हो, लेकिन जब भारतीय लोकतंत्र का इतिहास देखते हैं तो समझ आता है कि देश में दशकों से जासूसी होती आ रही है. कई बार तो इन जासूसियों की वजह से ही देश में और प्रदेश में सरकारें भी गिरी हैं.

संयम श्रीवास्तव

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भारतीय संसद में जब पेट्रोल और डीजल के मुद्दे पर सरकार को घेरने की जरूरत थी उस वक्त पेगासस (Pegasus) का मुद्दा छाया हुआ है. इजरायली कंपनी का यह स्पाइवेयर भारत के कई नामी पत्रकारों, नेताओं के फोन की जासूसी कर रहा था. सरकार को इस मुद्दे पर घेरने के लिए कांग्रेस ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन भी किया. हालांकि भारतीय राजनीति के इतिहास में नेताओं और पत्रकारों की जासूसी या उनके फोन टैपिंग का यह कोई पहला मामला नहीं है, ऐसे कई मामले दशकों से भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा रहे हैं. बीते दशकों में तो कई ऐसे भी मामले रहे जिसमें देश की सरकार गिर गई, मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ गया या फिर सीबीआई जांच के आदेश हुए.

लेकिन सवाल उठता है कि जब फोन टेपिंग या जासूसी के मुद्दों पर इतना सब कुछ हो सकता है और इतनी बड़ी बड़ी राजनीति हो जाती है तो इस पर रोक क्यों नहीं लगती? पार्टियां जब विपक्ष में होती हैं तो जासूसी के लिए हो-हल्ला करती हैं पर सरकार बनाते ही भूल जाती हैं. क्योंकि सभी जानते हैं कि सरकार बनाने के बाद उन्हें क्या करना है. दरअसल इंडियन टेलीग्राफ संशोधन नियम 2007 के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकारों को फोन टेपिंग कराने का अधिकार है. हालांकि उसके पीछे कोई ठोस वजह होनी चाहिए जैसे जनसुरक्षा या राष्ट्रीय हित से जुड़ा हुआ कोई मुद्दा हो. हालांकि फोन टेपिंग के लिए किसी भी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी को केंद्र या राज्य सरकार के गृह सचिव स्तर के अधिकारी से पूर्व अनुमति लेने की जरूरी होती है और यह अनुमति केवल 60 दिनों के लिए ही मान्य होती है. हालांकि विशेष परिस्थितियों में इसे 180 दिन तक जरूर बढ़ाया जा सकता है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री हेगड़े पर लगे आरोप, देना पड़ा था इस्तीफा
सबसे बड़ा मामला 1988 में सामने आया था, जब एक ऑडियो टेप की वजह से कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को इस्तीफा तक देना पड़ गया था. दरअसल रामकृष्ण हेगड़े 1983 से 1985 तक लगातार दो बार चुनाव जीत चुके थे. उस वक्त देश में राजीव गांधी की सरकार थी और सरकार बो फोर्स के मामले में हर तरफ से घिरी हुई थी. लेकिन जैसे ही उसके सामने रामकृष्ण हेगड़े के फोन टेपिंग का मामला आया उसने इसे जमकर भुनाया और जांच के आदेश दे दिए. जांच में पता चला कि कर्नाटक पुलिस के डीआईजी ने लगभग 50 नेताओं और बिजनेसमैन के फोन टेप करने के ऑर्डर दिए थे. इस लिस्ट में कई हेगड़े के विरोधियों के नाम भी शामिल थे. इस घटना के बाद हेगड़े हर तरफ से घिर गए और आखिरकार उन्हें बाद में अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

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जब चंद्रशेखर की सरकार गिरी
दरअसल रामकृष्ण हेगड़े भी उस वक्त उन कुछ गैर कांग्रेसी नेताओं में से थे जो प्रधानमंत्री की रेस में थे. हालांकि फोन टेपिंग मामले के बाद जब हेगड़े रेस से बाहर हो गए तो चंद्रशेखर के लिए रास्ता साफ हो गया और कांग्रेस के समर्थन से वह देश के प्रधानमंत्री बन गए. हालांकि बाद में उन पर आरोप लगे कि उन्होंने राजीव गांधी की कथित तौर पर जासूसी कराई. दरअसल उस वक्त हरियाणा सीआईडी के 2 पुलिसकर्मी राजीव गांधी के घर के बाहर निगरानी करते हुए पकड़े गए थे. जिसके बाद चंद्र शेखर और राजीव गांधी के बीच तल्ख़ियां बढ़ गईं उसके बाद प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भले ही एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा इस मामले की जांच की पेशकश की लेकिन राजीव का मन चंद्रशेखर से उखड़ गया था जिसके बाद कांग्रेस ने सरकार से अपना हाथ खींच लिया और चंद्रशेखर को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि बाद में इस जासूसी की घटना के बारे में ज्यादा कुछ लिखा और सुना नहीं गया.

व्यापारी वर्ग भी नहीं रहा है अछूता
सबसे बड़ी मात्रा में अगर किसी की बातचीत को इंटरसेप्ट किया गया था, तो वह पहला उदाहरण था टाटा टेप्स का. इस टेप में भारत के 3 बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट नुस्ली वाडिया, रतन टाटा और केशव महिंद्रा की बातचीत थी. जिसमें यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानि ‘उल्फा’ कैसे टाटा के स्वामित्व वाले चाय बागानों से धन उगाही कर रहा था इस पर बातचीत हो रही थी. इस टेप के सामने आने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री आई के गुजराल ने ऑडियो टेप लीक को लेकर सीबीआई जांच के आदेश भी दिए. लेकिन इसके तुरंत बाद ही सबूतों के अभाव में इस जांच को बंद कर दिया गया. हालांकि इस बात का जवाब कभी सामने नहीं आ पाया कि इन उद्योगपतियों के टेलीफोन टेप करने का आदेश किस एजेंसी ने और किसके आदेश पर किया था.

गहलोत से लेकर येदियुरप्पा पर भी लगे थे आरोप
बीते साल जब राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मतभेद काफी ज्यादा बढ़ गए थे और सचिन पायलट अपने विधायकों के साथ बगावत करने निकल गए थे तब भी एक ऑडियो टेप सामने आया था. इसमें कांग्रेस का दावा था कि इस टेप में बीजेपी के नेता कांग्रेस के विधायकों को करोड़ों रुपए देकर खरीदने की बात कर रहे हैं. हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने इस टेप को फर्जी बताया था और मामले में सीबीआई की जांच की मांग की थी.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर भी फोन टेपिंग के आरोप लगे थे. 2019 में जब कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार थी तब एक ऑडियो टेप सामने आया था जिसमें कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि बीजेपी कर्नाटक में ब्लैक मनी के इस्तेमाल से सरकार गिराने की साजिश रच रही है. इस ऑडियो में कांग्रेस की तरफ से कहा गया था कि येदियुरप्पा कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों से बात कर रहे हैं. टेप के सामने आने के कुछ दिन बाद येदियुरप्पा और तीन लोगों के खिलाफ एफ आई आर भी दर्ज हुई. लेकिन कुछ ही दिनों बाद जेडीए और कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया और येदियुरप्पा कि कर्नाटक में सरकार बन गई. सरकार बनते ही खुद येदियुरप्पा जिन पर टेप कांड का आरोप था उन्होंने इसकी सीबीआई जांच करवाने की अनुमति दे दी.

नीरा राडिया टेप कांड
किसी सरकारी एजेंसी द्वारा यह सबसे बड़ा खुलासा था. भारतीय आयकर विभाग ने 2008 से 2009 के बीच नीरा राडिया के साथ कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और राजनेताओं और कॉरपोरेट घरानों के अधिकारियों की बातचीत रिकॉर्ड की थी. इस बातचीत में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और पैसे की लेनदेन की बात सामने आई थी. इस टेप के जरिए ही आयकर विभाग को पता चला था कि कैसे कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के नाम पर वसूली हो रही थी और इसी टेप के माध्यम से आरोपी नीरा राडिया पर पॉलिटिकल लॉबिंग का भी आरोप लगा था. जिसमें यह बात सामने आई थी कि नीरा राडिया पॉलिटिकल लॉबिंग के जरिए तय करती थी कि किस नेता को कौन सा पद मिलना है. आयकर विभाग ने इस दौरान लगभग 300 से अधिक फोन टेप किए थे. जिसमें कई नेताओं और बिजनेसमैन के नाम का खुलासा हुआ था. इसी केस के बाद तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा का भी नाम सामने आया था इसके बाद उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम मामले में इस्तीफा देना पड़ा था.

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