नई दिल्ली/अटल हिन्द ब्यूरो
कोविड-19 की डेल्टा लहर के चार साल बाद अब सरकार ने कई रिपोर्ट्स जारी की हैं जो उस समय बताए गए आधिकारिक मौतों के आंकड़ों पर सवाल उठाती हैं. ये रिपोर्ट्स काफी समय तक रोक कर रखी गई थीं.
इनसे यह साफ होता है कि डेल्टा लहर ने न सिर्फ भारी तबाही मचाई, बल्कि देश में मृत्यु दर को कम करने की जो सालों की प्रगति थी, वह 2021 में पलट गई.
सरकार द्वारा जारी की गई प्रमुख रिपोर्ट्स में से एक है सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) 2021 की रिपोर्ट.
सीआरएस में बताया जाता है कि कितनी मौतें आधिकारिक तौर पर दर्ज हुईं. सभी मौतें सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होती.
सीआरएस में एक साल में सभी कारणों से हुई मौतों की संख्या दी जाती है, जिसे ‘ऑल कॉज़ मोर्टेलिटी (एसीएम)’ कहा जाता है. 2021 में कुल 1.02 करोड़ (10.2 मिलियन) मौतें दर्ज हुईं.
यह संख्या 2020 की तुलना में लगभग 20 लाख (2 मिलियन) ज़्यादा थी — यानी करीब 26% की बढ़ोतरी. जबकि 2016 से 2020 के बीच हर साल मौतों की संख्या में जो वृद्धि हुई, वह 2% से 10% के बीच रही. इसकी तुलना में 2020 से 2021 के बीच 26% की अचानक वृद्धि बहुत असामान्य है.
ऐसे में सवाल उठता है — 2020 से 2021 के बीच इतनी तेज बढ़ोतरी का कारण क्या है, जबकि इससे पहले के वर्षों में ऐसा नहीं हुआ था?
2021 में डेल्टा वेरिएंट की खतरनाक कोविड-19 लहर के अलावा कोई अन्य बड़ा हादसा नहीं हुआ था. क्या यह आकस्मिक वृद्धि इस बात की ओर इशारा करती है कि बहुत-सी कोविड मौतें सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं की गईं?
भारत में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी, इसलिए 2021 में हुई कुल मौतों का अनुमान लगाने के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग द्वारा जारी 2020 और 2021 की अनुमानित जनसंख्या का उपयोग किया गया.
इन अनुमानों के अनुसार, भारत में 2020 में लगभग 81.1 लाख लोगों की मृत्यु हुई. यह आंकड़ा 2021 में बढ़कर 1.043 करोड़ (10.43 मिलियन) हो गया – यानी 27% की वृद्धि. दूसरे शब्दों में कहें तो 2020 की तुलना में 2021 में करीब 20 लाख ज्यादा मौतें हुईं.
अब इसकी तुलना करें 2017-2019 के वर्षों से, जब मौतों की संख्या में साल दर साल कमी आ रही थी. 2019 से 2020 के बीच – यानी कोविड की पहली लहर के दौरान – मौतों में केवल 1.63% की वृद्धि हुई थी.
यह ध्यान में रखना जरूरी है कि एसआरएस बुलेटिन में जो मौतें दर्ज हैं, वे सभी कारणों से हुई मौतें हैं, सिर्फ कोविड-19 से नहीं.
2016 से 2020 के बीच, पंजीकृत मौतों में साल दर साल 2% से 10% के बीच ही वृद्धि देखी गई. 2021 में यह वृद्धि 26% हो गई.
लेकिन फिर वही सवाल उठता है: 2020 से 2021 के बीच यह अचानक बढ़ोतरी कैसे हुई, जब पिछले पांच सालों में ऐसा नहीं देखा गया? 2021 में कोई अन्य बड़ी घटना नहीं हुई, सिवाय डेल्टा वेव के.
सरकार द्वारा जारी किया गया तीसरा महत्वपूर्ण डाटा सेट है सैंपल रजिस्ट्रेशन बुलेटिन (एसआरएस). एसआरएस मृत्यु दर का अनुमान देता है, जबकि सीआरएस (सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम) में उन मौतों की वास्तविक संख्या दर्ज होती है. एसआरएस के आंकड़े सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित होते हैं.
यह बुलेटिन बताता है कि 2021 में भारत ने 2012 के बाद सबसे अधिक मृत्यु दर (प्रति 1,000 आबादी पर मौतों की संख्या) दर्ज की. 2021 में मृत्यु दर 7.5 थी. 2012 में भी यही दर थी और तब से लगातार घट रही थी, सिवाय 2020 के, जब यह थोड़ी सी बढ़ी थी.
2020 में मृत्यु दर प्रति 1,000 लोगों पर 6 थी. 2021 में यह बढ़कर प्रति 1,000 लोगों पर 7.5 हो गई. यह बदलाव भले ही छोटा दिखे, लेकिन वास्तविक संख्या में यह एक बड़ा इजाफा है.
एक और रोचक बात यह है कि इस दौरान सभी उम्र के लोगों की मौतों की पंजीकरण दर बढ़ी, जबकि शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई. दूसरे शब्दों में, वयस्कों की मृत्यु दर बढ़ी लेकिन बच्चों की घटी. पिछले वर्षों में ऐसा ट्रेंड नहीं देखा गया था.
कोविड-19 का असर बच्चों की तुलना में वयस्कों पर ज्यादा हुआ. एसआरएस 2021 का ट्रेंड भी इसी निष्कर्ष के अनुरूप है.
एमसीसीडी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2020 में लगभग 1.6 लाख (160,000) और 2021 में लगभग 4.1 लाख (410,000) लोगों की मौत कोविड-19 से हुई — कुल मिलाकर 5.7 लाख (570,000) मौतें.
लेकिन यहां एक अहम बात है — रिपोर्ट खुद मानती है कि सिर्फ 23.4% मौतें ही किसी कारण से प्रमाणित हुईं, यानी कुल मौतों के बड़े हिस्सा का कारण अज्ञात है.
इसका मतलब यह हुआ कि कोविड-19 से हुई मौतों का सिर्फ छोटा हिस्सा ही सिस्टम में सही ढंग से दर्ज हो पाया.
पहले सरकार ने आंकड़े दिए थे कि 2020 और 2021 में कुल 4.7 लाख (470,000) की कोविड-19 से मौतें हुईं.
लेकिन एमसीसीडी की रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 से 5.7 लाख मौतें हुईं. और ध्यान रहे — यह रिपोर्ट केवल कुल मौतों के एक छोटा हिस्सा ही है.
इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि कोविड-19 से बड़ी संख्या में हुईं मौतें सिस्टम में ठीक से दर्ज नहीं हो पाईं और न ही उन्हें सही कारण के साथ वर्गीकृत किया जा सका.
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