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भूपेंद्र हुड्डा ने हरियाणा कांग्रेस पर कर लिया “कब्जा”

भूपेंद्र हुड्डा ने हरियाणा कांग्रेस पर कर लिया “कब्जा”
कांग्रेस की सरकार बनाने वाले सबसे बड़े वोट बैंक पंजाबी समुदाय को “हाशिए” पर डाला
तीसरे सबसे बड़े वोट बैंक के किसी नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के “लायक” भी नहीं समझा

==अटल हिन्द ब्यूरो —
चंडीगढ़। कांग्रेस हाईकमान को प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए “झूकाकर” पिछलग्गू उदयभान को हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर भूपेंद्र हुड्डा ने बेशक हरियाणा कांग्रेस पर “कब्जा” कर लिया है लेकिन इस उलटफेर के जरिए एक बार फिर भूपेंद्र हुड्डा की “खराब” सोच का “पर्दाफाश” हो गया है।
यह एक बार फिर साबित हो गया है कि भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा के उस बेहद “प्रभावशाली” वोट बैंक के सबसे बड़े दुश्मन हैं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनवाने में “हमेशा” सबसे ज्यादा योगदान दिया।
जी हां हम बात कर रहे हैं पंजाबी समुदाय की।
हरियाणा में वोट बैंक के प्रतिशत के हिसाब से जाट और एससी वोटरों के बाद तीसरे नंबर पर आने वाले पंजाबी समुदाय को भूपेंद्र हुड्डा ने “हाशिए” पर डालने का काम किया है।
2005 में भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के समय हरियाणा में पंजाबी समुदाय के लक्ष्मण दास अरोड़ा, बलबीर पाल शाह, धर्मवीर गाबा, ऐसी चौधरी, सुभाष बत्रा, सुरेंद्र मदान, लीला किशन व अमीरचंद मक्कड़ एक दर्जन बड़े नेता थे।
इन नेताओं के कारण पंजाबी समुदाय हमेशा कांग्रेस के साथ “खड़ा” रहा और इसलिए कांग्रेस की सरकार बनती रही। कांग्रेस की सरकारों में पंजाबी नेताओं को “भरपूर” मान सम्मान मिलता रहा।
1991 से 96 की भजनलाल सरकार में पंजाबी समुदाय के आधा दर्जन मंत्री और एक दर्जन चेयरमैन थे।
1991 में
अंबाला कैंट- ब्रिज आनंद
पानीपत -बलबीर पाल शाह
कैथल- सुरेंद्र मैदान
रोहतक -सुभाष बत्रा
सोनीपत- श्यामदास मखीजा फरीदाबाद- ऐसी चौधरी
गुड़गांव -धर्मबीर गाबा
हांसी- अमीरचंद मक्कड़
फतेहाबाद -लीला कृष्ण
सिरसा -लक्ष्मण दास अरोड़ा
कांग्रेस के 10 विधायक थे। इनमें से छह नेताओं को भजनलाल ने अपनी सरकार में मंत्री बनाया।
2005 में कांग्रेस की “आंधी” बनाने में पंजाबी नेताओं और पंजाबी वोटरों की बेहद अहम भूमिका रही।
2005 में
पानीपत -बलबीर पाल शाह
रोहतक- शादीलाल बत्रा
सोनीपत- अनिल ठक्कर
फरीदाबाद- ऐसी चौधरी
गुड़गांव -धर्मबीर गाबा
हांसी- अमीरचंद मक्कड़
सिरसा -लक्ष्मण दास अरोड़ा
कांग्रेस के विधायक थे।
लेकिन…..भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनते ही पंजाबी नेताओं के “दुर्गति” के दिन शुरू हो गए। भूपेंद्र हुड्डा पंजाबी नेताओं को पसंद नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने तमाम पुराने पंजाबी नेताओं को “खुड्डेलाइन” कर दिया। भूपेंद्र हुड्डा को पंजाबी नेताओं में सिर्फ चापलूसी करने वाले रोहतक के शादीलाल बत्रा और भारत भूषण बतरा ही प्रिय रहे।
बाकी पंजाबी नेताओं को भूपेंद्र हुड्डा ने हाशिए पर डाल दिया।
उसे भी बड़ी बात यह रही कि भूपेंद्र हुड्डा ने पांच दशक तक पंजाबी विधायक देने वाले सीटों पर गैर पंजाबी नेताओं को आगे कर दिया।
-सिरसा में लक्ष्मण दास अरोड़ा के परिवार की जगह भूपेंद्र हुड्डा ने गोपाल कांडा को मंत्री बनाकर आगे किया।
-फतेहाबाद में भूपेंद्र हुड्डा ने लीला किशन के परिवार की जगह प्रहलाद सिंह गिला खेड़ा को महत्व दिया।
-हांसी में अमीरचंद मक्कड़ के परिवार की भूपेंद्र हुड्डा ने पूरी तरह से अनदेखी की। वहां पर दलबदलू विनोद भ्याना और सुभाष गोयल को प्राथमिकता दी।
-गुड़गांव में धर्मबीर गाबा को पूरी तरह खत्म कर दिया और उनकी जगह सुखबीर कटारिया को स्थापित कर दिया।
-फरीदाबाद में बडै पंजाबी नेता ऐसी चौधरी को भूपेंद्र हुड्डा ने ठिकाने लगा दिया और पंजाबियों की बहुलता वाली बड़खल सीट पर महेंद्र प्रताप को आगे कर दिया।
-सोनीपत सीट पर श्यामदास मुखीजा, देवराज दीवान और अनिल ठक्कर जैसे पंजाबी नेता विधायक बनते रहे,लेकिन भूपेंद्र हुड्डा ने इस पंजाबी बहुल सीट पर सुरेंद्र पवार को आगे कर दिया।
-पानीपत सीट पर दिग्गज पंजाबी नेता बलबीर पाल शाह को भूपेंद्र हुड्डा ने मंत्री बनाकर भी उनकी फजीहत करने में कोई कसर नहीं रखी।
जींद, करनाल, यमुनानगर और अंबाला की पंजाबी बहुलता वाली सीटों पर भी भूपेंद्र हुड्डा ने किसी पंजाबी नेता को उभरने नहीं दिया।
बात यह है कि भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने से पहले पंजाबी नेताओं की कांग्रेस में भरपूर मान सम्मान मिलता था। कई-कई मंत्री बनाने के अलावा बलबीर पाल शाह और हरपाल सिंह जैसे पंजाबी नेताओं को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया गया।
लेकिन भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनते ही पंजाबियों नेताओं के साथ “दोयम दर्जे” का व्यवहार शुरू हो गया। भूपेंद्र हुड्डा को इस बात की “खुंदक” थी कि पंजाबी नेताओं और पंजाबी वोटरों का लगाव स्वर्गीय भजनलाल के साथ था।
लेकिन भूपेंद्र हुड्डा कभी यह नहीं समझ पाए कि पंजाबी वोटरों और नेताओं ने हमेशा कांग्रेस का साथ दिया और सत्ता दिलाने में हमेशा अग्रिम भागीदारी की।
भूपेंद्र हुड्डा ने पंजाबी नेताओं को हाशिए पर डाल दिया जिसके कारण पंजाबी वोटर कांग्रेस को छोड़कर भाजपा की तरफ चले गए।
पंजाबी वोटरों के पाला बदलते ही सत्ता भी कांग्रेस से मुंह फेर गई। जिन पंजाबी वोटरों के बलबूते पर कांग्रेश कई बार सत्ता में आई उन्हीं पंजाबी वोटरों के बलबूते पर भाजपा 2014 और 2019 में सत्ता पर काबिज हो गई।
2009 से पहले जब भी कांग्रेस सत्ता में आई तब उसके 8 से लेकर 10 तक पंजाबी विधायक रहे। जब भी कांग्रेस के छह से ज्यादा पंजाबी विधायक बने तब उसकी सरकार बनी लेकिन भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2009 में तीन… 2014 में 0 और 2019 में सिर्फ 1 पंजाबी कांग्रेस से विधायक बना। पंजाबी वोटरों के कांग्रेस को “ठुकराते” ही वह सत्ता से बाहर हो गई और किसके लिए सिर्फ और सिर्फ भूपेंद्र हुड्डा “जिम्मेदार” रहे।
2014 और 2019 में भाजपा के टिकट पर 9 और 10 पंजाबी नेता विधायक बने। यानी पंजाबी वोटरों ने दो बार भाजपा की सरकार बना दी।
यही सच्चाई है कि पंजाबी वोटरों के कारण कांग्रेस की सत्ता बनती रही और अब वही पंजाबी वोटर भाजपा को सत्ता की सरकार बना रहे हैं।
भूपेंद्र हुड्डा की अक्ल पर “पत्थर” पड़ गया जिसके कारण उन्होंने कार्यकारी अध्यक्षों की सूची में एक भी पंजाबी नेता को शामिल करना “गवारा” नहीं समझा।
भूपेंद्र हुड्डा ने उनकी कोठी पर समोसा सप्लाई करने वाले नेता को तो कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया लेकिन कांग्रेस को सत्ता के “सिंहासन” पर बैठाने वाले पंजाबी समुदाय से “आंखें” फेर ली।
2005 से लेकर अब तक पंजाबी नेताओं का “खात्मा” करने के कारण ही भूपेंद्र हुड्डा पंजाबियों के सबसे बड़े “दुश्मन” हैं।
पंजाबी समुदाय की बेकद्री और अनदेखी भूपेंद्र हुड्डा को भारी पड़ेगी और पंजाबी वोटों की मुखालफत के कारण 2024 में भी भूपेंद्र हुड्डा कांग्रेस को सत्ता नहीं दिलवा पाएंगे।
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