घर घर में है रावण बैठा, अब इतने राम कहां से लाऊं !
पटौदी रामलीला मैदान और आश्रम हरिमंदिर में रावण पुतले का दहन
पुतला दहन को लेकर छोटे बच्चों में दिखाई दिया जबरदस्त उत्साह
अपने अंदर के रावण रूपी राक्षसी प्रवृति पर इंद्रीय जीत प्राप्त करें
फतह सिंह उजाला
कलयुग बैठा मार कुंडली, जाऊं तो मैं कहां जाऊं-अब हर घर में रावण बैठा, इतने राम कहां से लाऊं। इन्हीं पंक्तियों के साथ शुक्रवार को दशहरा पर्व राम द्वारा रावण के वध की लीला के मंचन के साथ समाप्त हो गया। कोरोनाकाल के बीच बीते वर्ष स्वास्थ्य कारणों को लेकर लागू सख्त पाबंदी के उपरांत इस वर्ष भी रामलीला मंचन की संख्या में बहुत कमी साफ साफ दिखाई दी है। फिर भी विभिन्न क्षेत्रों में विजय दशमी – दशहरा का पर्व धूमधाम और श्रद्धाभाव के साथ मनाया गया। इस अवसर पर रावण, कुंभकरण व मेघनाथ के पुतलों का दहन किया गया। यह पर्व असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई व अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।
सही मायने में दशानन लंका का राजा , ब्रह्मांड का अजर अमर राजा था । अपने तपोबल से महादेव को प्रसन्न कर मनचाहे वरदान प्राप्त किए , तीनों लोक का विजेता और चारों वेदों का मर्मज्ञ रावण ही था। लेकिन आसुरी कुल का होने की वजह से रावण पर आसुरी प्रवृत्ति की भी छाया बनी हुई । आज के परिवेश में देखें तो आसुरी प्रवृत्ति की व्याख्या करना बहुत मुश्किल और जटिल भी है। कम शब्दों में अधिक व्याख्या की जाए तो यही है कि अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रख पाना ही आसुरी, दुराचारी, अपराधी जैसी प्रवृत्ति कहा जा सकता है । जिसके कारण विभिन्न प्रकार के अपराध और अपराध करने के घृणत से घृणत तरीके नित्य प्रति सामने आ रहे हैं । जिसका खामियाजा हर धर्म वर्ग संप्रदाय के लोगों भुगतना भी पड़ रहा है ।
आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय पटौदी के पीठाधीश्वर समाज सुधारक चिंतक धर्म ग्रंथों के मर्मज्ञ महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव का कहना है कि रावण जैसा विद्वान अजय अमर ज्ञानी योद्धा जिसने अपने तपोबल के दम पर मनचाहे वरदान प्राप्त कर काल को भी अपने वश में किया हुआ था। लेकिन राक्षस कुल में जन्म लेने की वजह से राक्षसी प्रवृत्ति या फिर समाज के अहितकारी विचारधारा और गुण का असर अथवा प्रभाव किसी न किसी रूप में रावण पर बना ही रहा। जिसकी वजह से रावण के द्वारा ऐसे कृत्य किए गए, जो किसी भी दृष्टिकोण से सभ्य समाज और राष्ट्र के अनुकूल नहीं कहे जा सकते हैं । रावण ने अपने भाई विभीषण पर भी भरोसा नहीं रखा । लेकिन फिर भी रावण में जो गुण और अच्छाई थी उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता । महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा सभ्य समाज और मजबूत राष्ट्र निर्माण के लिए आज के परिवेश में सबसे अधिक जरूरी बात और जरूरत यह है कि अपने अंदर रावण रूपी बैठे तमाम दु्रगुण – बुराइयां समाज और राष्ट्र विरोधी विचारधारा तथा मानसिकता पर मजबूत मनोबल के साथ में काबू पाने सहित विजय प्राप्त करनी होगी।
महंत लक्ष्मण गिरि गौशाला बूचावास के संचालक महंत बिठ्ठल गिरि ने कहा कि लंकाधिपति रावण ब्रहमांड में सबसे ज्ञानी और विद्वान राजा/योद्धा था। उसके ज्ञान को अभिमाान की काली चादर ने ऐसा ढ़का कि सोने की लंका ही भस्म हो गई। वास्तव में भगवान राम और रावण के बीच हुए युद्ध को अभिमान और ज्ञान के बीच हुए युद्ध के रूप में ही देखा जाने की जरूरत है। ज्ञानी को अपने ज्ञान पर अभिमान नहीं करना चाहीए, अभिमान बुद्धि को खराब कर देता है। ऐसा ही रावण के साथ भी हुआ था। उन्होंने कहा कि भगवान राम और रावण दोनों ही महादेव शंकर भगवान के उपासक थे, दोनों को ही मनवांछित वरदान सहित असीम शक्तियां प्राप्त हुई। भगवान राम ने इन शक्तियों का इस्तेमाल लोकहित में और रावण ने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए किया। इसी का परिणाम है कि राम रूपी ज्ञान के रूप में सत्य की जीत और अभिमान के रूप में रावण के रूप में आसुरी समाज का विधवंस हुआ। उन्होंने कहा कि घर, समाज और राष्ट्र में एकता सहित शांति के लिए आज के माहौल में रावण जैसी विचारधारा का अंत किया जाना जरूरी है। वैसे ही कैकई, ताड़का, मंथरा और सूपर्णखा जैसी घृणित मानसिकता सहित सामाजिक बुराई से छूटकारा पाना होगा। भगवान-ईष्ट को हमें हमेशा याद करना चाहिए और भगवान के द्वारा प्रदान किए गए मानव जीवन में ऐसे कर्म करने चाहिए कि परिवार-समाज-राष्ट्र मजबूत और खुशहाल बना रहे।