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मुख्यमंत्री मनोहर लाल कैथल श्री ग्यारह रुद्री शिव मंदिर में चल रहे महारुद्र यज्ञ में डालेंगे आहुती

 डीसी प्रदीप दहिया व एसपी मकसूद अहमद ने भी दल-बल के साथ मंदिर परिसर का दौरा किया।

 

मुख्यमंत्री मनोहर लाल कैथल श्री ग्यारह रुद्री शिव मंदिर में चल रहे महारुद्र यज्ञ में डालेंगे आहुती

तीसरे दिन महारुद्र यज्ञ में हुई भगवान शिव की पूजा

कैथल(राजकुमार अग्रवाल ) श्री ग्यारह रुद्री शिव मंदिर में चल रहे महारुद्र यज्ञ के तीसरे दिन श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ गई। लगातार तीसरे दिन मंदिर परिसर में बनी यज्ञशाला में विद्यान पंडितों ने भगवान शिव की अराधना की। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यजमान बनें श्रद्धालुओं ने घी व सामग्री की आहुतियां डालीं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल आज 11 बजे महारुद्र यज्ञ में आहुति डालने पहुंचेंगे। इसके लिए डीसी प्रदीप दहिया व एसपी मकसूद अहमद ने भी दल-बल के साथ मंदिर परिसर का दौरा किया। पूरे आयोजन की डीसी ने बारीकि से जानकारी हासिल की। साथ ही सीएम के मंदिर प्रवास के दौरान सभी तरह की तैयारियों पर चर्चा की। 

मंदिर सभा के प्रधान विनोद मित्तल एवं महासचिव डा. राजेश गोयल ने बताया कि महारुद्र यज्ञ में जिले भर से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। यह सबसे बड़ी खुशी की बात है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने महारुद्र यज्ञ में भाग लेने की सहमति देते हुए शनिवार को पहुंचने का कार्यक्रम बनाया है। वे 11 बजे मंदिर परिसर में पहुंचेंगे। पहले यज्ञशाला की परिक्रमा करेंगे। इसके बाद श्री ग्यारह रुद्री मंदिर में ग्यारह रुद्रों का अभिषेक करेंगे। उनके दौरे से पूर्व डीसी प्रदीप दहिया, एसपी मकसूद अहमद व भाजपा जिला अध्यक्ष अशोक गुर्जर ने मंदिर परिसर का दौरा किया है। शनिवार को ही स्थानीय निकाय मंत्री डा. कमल गुप्ता भी महारुद्र यज्ञ में पहुंचेंगे।

शुक्रवार को सिविल जज कैथल अश्वनी गुप्ता व सिविल जज प्रमोद कुमार ने महारुद्र यज्ञ में पहुंच कर स्वामी यतिंद्रानंद जी से आशीर्वाद लिया और यज्ञशाला की परिक्रमा की। उन्होंने कहा कि मंदिर सभा के सभी सदस्यों द्वारा यहां हर संभव सहयोग किया जा रहा है। कोई प्रसाद की ड्यूटी दे रहा है। कोई खाने के लिए ड्यूटी दे रहा है। कोई विद्वान ब्राह्मणों की सेवा-सुश्रुषा कर रहा है। मंदिर सभा सभी सदस्यों व जिले भर से सहयोग कर रहे श्रद्धालुओं की आभारी है। 

प्रधान विनोद मित्तल व महासचिव डा. राजेश गोयल ने बताया कि यज्ञशाला के चारों ओर परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं की भी भीड़ बढ़ रही है। लोगों का इस महारुद्र यज्ञ में खूब सहयोग मिल रहा है। मंदिर सभा की कामना है कि यह यज्ञ सभी के लिए कल्याणकारी हो।

ये रहे आज के यजमान-घी की सामग्री डालने वालों में कुलदीप गर्ग, नरेश बरोट, मुकेश जिंदल, राजीव सिंगला, अनिल मित्तल, नरेश गोयल व सामग्री से आहुति डालने वालों में पवन कुमार, सत्यनारायण, रमेश गर्ग जींद, सोहन लाल, नीरज गोयल, राजेश सैनी, विशाल सैनी, ईश्वर मास्टर, दीपक मित्तल, रमेश गर्ग, राजेंद्र गुप्ता, सुरेंद्र गर्ग, ऋषिपाल गर्ग, ईश्वर दलाल, प्रवीण अरोड़ा, विक्रांत सैनी, पप्पू्र सुरेश मित्तल, राजेश सैनी,, तरसेम मित्त, संजीव चौधरी, सुनील कुमार गर्ग शामिल रहे।

भगवान शिव की तीन बेटियां भी हैं-महामंडलेश्वर

तीसरे दिन शिव कथा में श्री महारुद्र यज्ञ के तहत अनंतश्री विभूषित वरिष्ठ महामंडलेश्वर जूना अखाड़ा योगी यतींद्रानंद जी महाराज ने शिवचरित्र में शिव के विवाह और पुत्र पुत्रियों के संबंध में बताया कि एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से जिद करने लगी कि आपके गले में जो मुंड की माला है, उसका रहस्य क्या है। शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं, वह सभी आपके हैं। सती इस बात का सुनकर हैरान रह गई। सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले यह आपका 108 वां जन्म है। इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। इस माला में अभी एक मुंड की कमी है, इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी। शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा मैं बार-बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं लेकिन आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते।शिव हंसते हुए बोले मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता। इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की। शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें नींद आ गयी और वह कथा सुन नहीं पायी। इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा। शिव ने सती के मुंड को भी माला में गूंथ लिया। इस प्रकार 108 मुंड की माला तैयार हो गई। सती ने अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त होगा और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा। संतान के संबंध में भगवान शिव की 6 संतानें हैं। इनमें तीन पुत्र हैं और इन्हीं के साथ उनकी 3 पुत्रियां भी हैं। इनका वर्णन शिव पुराण में मिलता है। भगवान शिव के तीसरे पुत्र का नाम गणेश जी, कार्तिकेय जी और भगवान अयप्पा हैं। दक्षिण भारत में इनको पूरी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। वहीं शिव की तीनों पुत्रियों के नाम अशोक सुंदरी, ज्योति या मां ज्वालामुखी और देवी वासुकी या मनसा हैं। हालांकि तीनों बहनें अपने भाइयों की तरह बहुत चर्चित नहीं हैं, लेकिन देश के कई हिस्सों में इनकी पूजा की जाती है। इनमें से शिव जी की तीसरी पुत्री यानी वासुकी को देवी पार्वती की सौतेली बेटी माना जाता है। मान्यता है कि कार्तिकेय की तरह ही पार्वती ने वासुकी को जन्म नहीं दिया था।1. अशोक सुंदरी – शिव जी की बड़ी बेटी अशोक सुंदरी को देवी पार्वती ने अपना अकेलापन दूर करने के लिए जन्म दिया था। वह एक पुत्री का साथ चाहती थीं। देवी पार्वती के समान ही अशोक सुंदरी बेहद रूपवती थीं। इसलिए उनके नाम में सुंदरी आया। वहीं उनको अशोक नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वह पार्वती के अकेलेपन का शोक दूर करने आई थीं। अशोक सुंदरी की पूजा खासतौर पर गुजरात में होती है। अशोक सुंदरी के लिए ये भी कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने बालक गणेश का सिर काटा था तो वह डर कर नमक के बोरे में छिप गई थीं। इस वजह से उनको नमक के महत्व के साथ भी जोड़ा जाता है।2. ज्योति- शिव जी की दूसरी पुत्री का नाम ज्योति है और उनके जन्म से जुड़ी दो कथाएं बताई जाती हैं। पहली के अनुसार, ज्योति का जन्म शिव जी के तेज से हुआ था और वह उनके प्रभामंडल का स्वरूप हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार ज्योति का जन्म पार्वती के माथे से निकले तेज से हुआ था। देवी ज्योति का दूसरा नाम ज्वालामुखी भी है और तमिलनाडु कई मंदिरों में उनकी पूजा होती है।3.मनसा-शिव जी की इस बेटी के बारे में नहीं जानते हैं आप, बहुत गुस्सा आता है इस देवी को बंगाल की लोककथाओं के अनुसार, सर्पदंश का इलाज मनसा देवी के पास होता है। उनका जन्म तब हुआ था, जब शिव जी का वीर्य कद्रु, जिन्हें सांपों की मां कहा जाता है, की प्रतिमा को छू गया था। इसलिए उनको शिव की पुत्री कहा जाता है, लेकिन पार्वती की नहीं। यानी मनसा का जन्म भी कार्तिकेय की तरह पार्वती के गर्भ से नहीं हुआ था तथा मनसा का एक नाम वासुकी भी है और पिता व सौतेली मां और पति द्वारा उपेक्षित होने की वजह से उनका स्वभाव काफी गुस्से वाला माना जाता है। आमतौर पर उनकी पूजा बिना किसी प्रतिमा या तस्वीर के होती है। इसकी जगह पर पेड़ की कोई डाल, मिट्टी का घड़ा या फिर मिट्टी का सांप बनाकर पूजा जाता है। चिकन पॉक्स या सांप काटने से बचाने के लिए उनकी पूजा होती है। बंगाल के कई मंदिरों में उनका विधिवत पूजन किया जाता है।

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