“नैनू से” कोरोना में इन “कुत्तों का रोना” बन गया “अनकहा दोस्ताना”
सुबह शाम बेसब्री से इंतजार रहता है दर्जनों आवारा कुत्तों को दोस्त का
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कुत्तों का यह दोस्त और कोई नहीं दयानंद शर्मा उर्फ नैनू शर्मा संवेदनशील इंसान
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रहने के लिए शेल्टर होम और देखभाल के लिए एक सहायक भी मौजूद
आवारा कुत्तों और नैनू शर्मा के बीच निस्वार्थ दोस्ती की अनकही कहानी
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अटल हिन्द ब्यूरो /फतह सिंह उजाला
रामपुर रोड / टोडापुर। बेजुबान की जुबान को समझे वह भी इंसान और जो बेजुबान की जुबान को नहीं समझे वह भी इंसान । बेजुबान में गिनती विभिन्न जानवरों की ही होती है। जानवरों की वफादारी और उनकी संवेदनशीलता के किस्सा, कहानी और मामले सामने आते ही रहते हैं । यह निश्चित रूप से बहस का मुद्दा हो सकता है कि सबसे अधिक वफादार जानवर किसे कहा जाए ? जब जानवर की वफादारी का नाम आता है तो केवल और केवल कुत्ता नाम प्राथमिकता से लिया जाता है । कुत्ता जानवर को स्वान, कुकर, अंग्रेजी में डॉग भी कहा गया है।
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बिना किसी भूमिका के सीधे शब्दों में बात करते हैं ऐसे संवेदनशील मामले और दोस्ती से लेकर दोस्ताना माहौल की। जिसकी चर्चा अब धीरे-धीरे विशेष रूप से पटौदी क्षेत्र में होते हुए एक पाठशाला से कम भी नहीं कहीं जा सकती । पटौदी जाटोली मंडी नगर परिषद के पुराना हेलीमंडी नगर पालिका इलाके से टोडापुर बस्ती से होते हुए रामपुर के लिए सड़क मार्ग है । यहीं पर ही महिला पार्षद नीरू शर्मा और उनके पति दयानंद शर्मा उर्फ नैनू शर्मा का आवास भी है। सामाजिक कार्यकर्ता की पृष्ठभूमि वाले नैनू शर्मा की दोस्ती अपने घर से लेकर फार्म हाउस तक दर्जनों आवारा कुत्तों के साथ इतनी मजबूत बन गई है कि सुबह और शाम दोनों को ही एक दूसरे का बेसब्री से इंतजार बना रहता है। बेजुबान की भाषा को समझना बुद्धिमान इंसान की संवेदनशीलता और उसकी मानसिक खुबसूरती भी कहीं जा सकती है।
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लगभग 70 आवारा कुत्तों को सुबह शाम दूध, रोटी, बिस्कुट व अन्य खाने का सामान उपलब्ध करवाने वाले नैनू शर्मा से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कोरोना महामारी के समय में जब सभी लोग अपने-अपने घरों में कैद थे। ऐसे समय में घर के सामने बैठे कुत्ते भूख प्यास से कई बार रोने लगते थे। इन आवारा कुत्तों का इस प्रकार से विचलित होना देखा नहीं गया और इन्हें सुबह शाम जैसी भी घर में रोटी होती थी, देनी आरंभ कर दी। धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता चला गया । रेनू शर्मा ने बताया रामपुर रोड पर ही उनका एक छोटा सा फार्म हाउस भी है। सुबह शाम यहां तक आना-जाना होता रहता है । इसी आने जाने के सिलसिले के दौरान बीच रास्ते में जितने भी कुत्ते मिलते सभी को कुछ ना कुछ खाने पीने के लिए अपने समर्थ के मुताबिक देना आरंभ कर दिया और देखते ही देखते अब ऐसे आवारा दोस्तों की संख्या लगभग 70 के करीब पहुंच चुकी है। यही फार्म हाउस में ही रात के समय इनका बंद रखा जाता है । सुबह और शाम लेकर फार्म हाउस तक बीच-बीच में कुत्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। घर से और फार्म हाउस का मोटरसाइकिल पर आवा गमन हो या फिर पैदल ही आना जाना हो, यह आवारा दोस्त साथ-साथ ही फार्म हाउस तक चले आते हैं।
यह बेजुबान देते रहते हैं अपनी दुआ
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नैनू शर्मा ने बताया आवारा कुत्तों को इस प्रकार से सुबह शाम खाना खिलाना और इनके साथ समय बिताना मन को बहुत ही शांति प्रदान करता है। अधिकांश जानवर बेजुबान ही होते हैं। विशेष रूप से कुत्ते के विषय में कहा जाए तो घर के बाहर या गली में जहां भी यह है, इनको दो रोटी सूखी मिल जाए, उसी में ही खुश रहते हैं । कुछ दिन यह सिलसिला बना रहने के बाद उसी गली मोहल्ले को अपना ठिकाना भी बना लेते हैं । यह भी देखा जाता है कि जब गली मोहल्ले में अथवा घर से कुछ खाने को ना मिले तो चौखट पर ही बैठ जाते हैं। रूखी सूखी रोटी खाकर उसके बदले में उनकी वफादारी की कीमत नहीं चुकाई जा सकती । यह गली मोहल्ले में अनजान आदमी को देखकर भोकना आरंभ कर देते हैं । यही इन आवारा कहे जाने वाले कुत्तों की वफादारी का सबूत भी है । रूखी सूखी खाने के बाद इन आवारा जानवर कहे जाने वाले कुत्तों की दुआ को केवल महसूस किया जा सकता है इसके लिए कोई शब्द नहीं है।
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इनका सामाजिक और प्राकृतिक संतुलन में योगदान
सामाजिक कार्यकर्ता नैनू शर्मा जो की एक अदाकार अथवा कलाकार भी है, पिछले करीब 30 वर्ष से रामलीला में रावण का किरदार निभाते आ रहे हैं। उनका कहना है कि जानवर कोई भी हो उसका सामाजिक और प्राकृतिक संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान बना हुआ है । गांव में दुधारू पशु के रूप में गाय और भैंस को पाला जाता है । यह दुधारू पशु पालक के परिवार की आर्थिक स्थिति सहित भरण पोषण में भी अपना अमूल्य योगदान देते रहते हैं। बकरी का दूध विभिन्न प्रकार के रोगों उपचार में काम आता है । गाय का दूध जननी के बाद सबसे श्रेष्ठ पोषक तत्व चिकित्सा जगत में माना गया है। इसी कड़ी में विभिन्न महंगी नस्ल के कुत्ते को धनवान लोग खरीद कर अपने यहां पलते हैं । ऐसे ही उदाहरण और भी बेजुबान जानवरों के लिए मिल जाएंगे। जिनका सामाजिक और मानव जीवन में महत्वपूर्ण योगदान बना हुआ है।
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जानवरों से दूर ही चलाए जाएं पटाखे
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जानवरों के प्रति संवेदनशील नैनू शर्मा का कहना है कि अब दीपावली का पर्व आ चुका है । ऐसे में आतिशबाजी अथवा पटाखे चलाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने विशेष रूप से सभी का आह्वान किया है कि तेज धमाके अथवा आवाज वाले पटाखे जहां कहीं भी बेजुबान जानवर है, उनसे अलग या फिर दूर ही इन पटाखों को चलाया जाए। उन्होंने कहा अभिभावक भी इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बच्चे पटाखे चलाते समय चलते पटाखे जानवरों की तरफ नहीं छोड़ें। इसके साथ उन्होंने और एक महत्वपूर्ण बात यहीं कहीं की अब सर्दियां आ रही है , जहां कहीं भी सड़क पर या खुले में आवारा जानवर दिखाई दे । उनके गले में चमकीली रेडियम की पट्टी बनाकर अवश्य बांधने का काम किया जाए। रात के समय सड़क पार करते हुए जानवरों के गले में बंधी यही रेडियम की पट्टी चमकने पर जानवर के साथ-साथ वाहन चालक को संभावित दुर्घटना या हादसे से बचने का काम करेगी ।
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कुत्तों के लिए विशेष रूप से रसोई
यहां फार्म हाउस पर रहने वाले सभी कुत्तों के लिए सुबह-शाम भोजन तैयार करने के वास्ते विशेष रूप से रसोई की व्यवस्था की गई है। यहां रसोई में भोजन बनाने के लिए सहायक भी रखा गया है । यह सहायक कुत्तों के लिए रोटी बनाने के अलावा कभी-कभी पकवान इत्यादि भी बनाता रहता है। इतना ही नहीं दलिया खिचड़ी भी कुत्तों को खाने के लिए बना कर दी जाती है । कुत्तों को केवल मात्र रोटी ही नहीं उन्हें सुबह शाम पीने के लिए दूध भी उपलब्ध करवाया जा रहा है । इसके अलावा बिस्कुट या अन्य प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें कुत्ते खा लेते हैं वह भी उपलब्ध करवाया जा रहा है । नैनू शर्मा ने बातचीत का सिलसिला समाप्त करते हुए कहा कोरोना काल से आरंभ हुआ बेजुबान कुत्तों के साथ दोस्ताना जब समर्थ रहेगा, इस दोस्ताना को उनकी सेवा करते हुए निभाया जाएगा।
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