आग, आक्रोश और आशा: नेपाल का नया अध्याय
[छह महीने, एक भरोसा—क्या टिकेगा नेपाल?]
नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता ने हाल ही में एक नाटकीय मोड़ लिया, जब पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।यह कदम जनरेशन जेड के युवा (Youth of Generation Z)प्रदर्शनकारियों की जोशीली मांगों का परिणाम है, जिन्होंने भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और सामाजिक मीडिया प्रतिबंधों के खिलाफ उग्र विरोध प्रदर्शन किए। इन प्रदर्शनों ने देश को हिलाकर रख दिया—51 लोगों की जान गई, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास को आग के हवाले कर दिया गया, और देशव्यापी कर्फ्यू लागू करना पड़ा। केपी शर्मा ओली की सरकार के इस्तीफे के बाद उठाया गया यह कदम नेपाल के राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण है। लेकिन सवाल यह है: क्या यह नियुक्ति नेपाल के लिए स्थायी स्थिरता ला पाएगी, या यह केवल अस्थायी राहत है?
सुशीला कार्की का चयन एक अभूतपूर्व प्रक्रिया का नतीजा है। 73 वर्षीय कार्की, जो 2016 से 2017 तक नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं, अपने न्यायिक सुधारों और भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर रुख के लिए जानी जाती हैं। जेन जेड प्रदर्शनकारियों ने डिस्कॉर्ड ऐप पर ऑनलाइन वोटिंग के जरिए उनका नाम चुना, जिसमें उन्होंने 31% वोट हासिल कर काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह (27%) को पछाड़ा। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल ने संवैधानिक विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया। जेन जेड समूह की संसद भंग करने और छह महीने में नए चुनाव कराने की मांग को भी स्वीकार किया गया। युवाओं ने कार्की को “ईमानदार, निडर और दृढ़” बताते हुए उन्हें “राष्ट्र निर्माण का सशक्त विकल्प” करार दिया।
नेपाल की राजनीतिक उथल-पुथल में सुशीला कार्की की अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति एक उम्मीद की किरण है, लेकिन यह कितनी कारगर साबित होगी? कार्की की तटस्थता और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका अडिग रुख उन्हें जेन जेड प्रदर्शनकारियों की नजर में एक आदर्श विकल्प बनाता है।किसी राजनीतिक दल से न जुड़ी होने के कारण उनकी नियुक्ति निष्पक्षता का प्रतीक है, जो हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहे नेपाल में “सुधारों की नई सुबह” का वादा करती है। 73 वर्षीय कार्की, नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश, अपने कठोर न्यायिक सुधारों और भ्रष्टाचार विरोधी रुख के लिए जानी जाती हैं। जेन जेड ने डिस्कॉर्ड पर ऑनलाइन वोटिंग के जरिए उन्हें चुना, जो उनकी विश्वसनीयता को दर्शाता है। उनकी भारत से गहरी सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव—विशेष रूप से बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से उनकी शिक्षा और भारत-नेपाल संबंधों के प्रति सकारात्मक रवैया—दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूती दे सकता है। एक साक्षात्कार में कार्की ने कहा, “मैं गंगा की यादों को संजोती हूं और भारत के योगदान को सम्मान देती हूं।” यह भारत के लिए एक अवसर है, खासकर तब, जब ओली सरकार के दौरान सीमा विवाद और चीन की बढ़ती उपस्थिति ने चिंताएं बढ़ाई थीं। कार्की की नियुक्ति नेपाल में जवाबदेही और पारदर्शी शासन की दिशा में एक साहसिक कदम हो सकती है।
लेकिन यह राह आसान नहीं है। कार्की के सामने चुनौतियों का पहाड़ है। संवैधानिक प्रक्रिया में अस्पष्टता और संसद भंग करने के प्रावधान पर सहमति की कमी उनके लिए शुरुआती अड़चन है। प्रदर्शनों की आग में 51 से अधिक लोगों की जान गई, संसद और सरकारी भवनों को नष्ट किया गया, और 15,000 कैदियों के जेल से भागने ने अराजकता को बढ़ाया। सेना को कानून-व्यवस्था संभालनी पड़ी, जो अस्थिरता की गंभीरता को दर्शाता है। नेपाल, 2008 में राजतंत्र समाप्त होने के बाद से ही राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। युवा बेरोजगारी और विदेश पलायन जैसी समस्याओं ने जेन जेड के आक्रोश को हवा दी, जिन्होंने “नेपो किड्स” और भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोला। कार्की को अब न केवल शांति बहाल करनी है, बल्कि आर्थिक सुधार और भ्रष्टाचार की जांच जैसे जटिल कार्य भी करने हैं। उनकी उम्र (73 वर्ष) और विशुद्ध न्यायिक पृष्ठभूमि राजनीतिक नेतृत्व की जटिलताओं के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती। 2017 में उनके खिलाफ लाया गया महाभियोग प्रस्ताव, भले ही जन दबाव में वापस ले लिया गया, उनकी राह में अविश्वास का सबब बन सकता है। यदि राजनीतिक दल सहयोग नहीं करते, तो यह अंतरिम सरकार एक और विफल प्रयोग बन सकती है। क्या कार्की इन तूफानों को पार कर नेपाल को स्थिरता की ओर ले जाएंगी, या यह नियुक्ति केवल एक अस्थायी पड़ाव है?
नेपाल का भविष्य अब एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। सुशीला कार्की की अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति एक साहसी कदम है, लेकिन क्या यह देश को स्थायी स्थिरता की ओर ले जाएगा? यह अस्थायी समाधान जेन जेड के जोश और उनके “राष्ट्र निर्माण” के सपने को दर्शाता है, परंतु इसकी सफलता कई अनिश्चितताओं पर टिकी है। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने राजनीतिक दलों को एकजुट होने का आह्वान किया है, जबकि सेना की भूमिका कानून-व्यवस्था बनाए रखने में निर्णायक होगी। जेन जेड ने छह महीने में नए चुनावों की घोषणा की है, जिसमें युवा अपने नेतृत्व का चयन करेंगे। इस बीच, कार्की की अगुवाई में भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच, आर्थिक सुधार और युवा रोजगार पर ध्यान केंद्रित करने की योजना है। कार्की की भारत-प्रेमी टिप्पणियां—जैसे गंगा की स्मृतियों और भारत के योगदान की प्रशंसा—पाल की विदेश नीति में बदलाव का संकेत देती हैं, जो ओली सरकार की चीन-केंद्रित नीतियों को संतुलित कर सकती हैं। उनके शब्द, “मेरा पहला कदम प्रदर्शनकारियों के परिवारों को न्याय और सहायता देना है,” दृढ़ संकल्प को दर्शाते हैं। सोशल मीडिया पर “जय नेपाल” और “नया अध्याय” जैसे उत्साहपूर्ण नारे गूंज रहे हैं, लेकिन कुछ चेतावनियां भी हैं कि एकता और धैर्य जरूरी है, वरना अराजकता फिर लौट सकती है।
हालांकि, चुनौतियां कम नहीं हैं। संवैधानिक संशोधन की मांग और पुरानी राजनीतिक संरचनाओं से टकराव कार्की के लिए बड़ी बाधा है। नेपाल, जो भारत और चीन के बीच सामरिक रूप से स्थित है, को क्षेत्रीय शक्तियों के प्रभावों से सावधान रहना होगा।आर्थिक अस्थिरता, बेरोजगारी और विदेश पलायन जैसे मुद्दे जेन जेड के आक्रोश को भड़का सकते हैं। कार्की की नियुक्ति जेन जेड की लोकतांत्रिक शक्ति का प्रतीक है, लेकिन उनकी उम्र और न्यायिक पृष्ठभूमि राजनीतिक जटिलताओं से निपटने में अपर्याप्त साबित हो सकती है। यदि वह कानून-व्यवस्था बहाल कर निष्पक्ष चुनाव करा सकीं, तो यह नेपाल के लोकतंत्र की ऐतिहासिक जीत होगी। लेकिन अगर राजनीतिक दल और युवा आंदोलन के बीच एकता टूटी, तो यह एक और संकट को जन्म दे सकता है। नेपाल को केवल राहत नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत चाहिए। कार्की और जेन जेड की यह साझेदारी क्या इतिहास रचेगी, या यह एक अधूरी कहानी बनकर रह जाएगी?
प्रो. आरके जैन “अरिजीत