(आलेख : सवेरा, अनुवाद : संजय पराते)
2000 के दशक की शुरुआत में मुस्लिमों को निशाना बनाकर किए गए कई बम विस्फोटों ने देश को हिलाकर रख दिया था। ये थे मालेगांव (2006, 2008), समझौता एक्सप्रेस (2007), हैदराबाद की मक्का मस्जिद (2007), अजमेर शरीफ दरगाह (2007) और मोडासा (2008)। इससे पहले, सार्वजनिक स्थानों पर कई बम विस्फोट हुए थे, जिनकी जिम्मेदारी इस्लामी समूहों ने ली थी। ऐसा माना गया था कि बाद के विस्फोट हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा किए गए बदला लेने वाले हमले थे। लेकिन यह सिर्फ एक बहाना साबित हुआ, क्योंकि बाद की जांच में एक और भी खतरनाक दृष्टि और योजना का पता चला, जैसा कि हम इस आलेख में आगे देखेंगे। कई साल बाद 2021 में अपनी गिरफ्तारी के बाद स्वामी असीमानंद ने पुलिस के सामने कबूल किया कि संघ परिवार के विभिन्न संगठन और उनसे जुड़े व्यक्ति वास्तव में बाद के विस्फोटों के लिए ज़िम्मेदार थे। यहां तक कि उन्होंने आरएसएस के कुछ प्रचारकों और एक वरिष्ठ आरएसएस नेता को भी साजिश में शामिल बताया था।
आखिरकार हाल ही में, मुंबई की एनआईए अदालत ने सितंबर 2008 में हुए मालेगांव विस्फोट (Malegaon bomb blast)मामले का फैसला सुनाया। मालेगांव कस्बे की एक मस्जिद के पास एक देसी बम विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और लगभग 100 घायल हुए थे। सभी 11 आरोपी जमानत पर बाहर थे, जिन्हें अदालत ने अब बरी कर दिया है। इनमें पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कुछ पूर्व सैन्यकर्मी और संघ परिवार के कुछ असंतुष्ट सहयोगी शामिल हैं। जब यह पाया गया था कि देश के विभिन्न हिस्सों में हुए विस्फोट आपस में जुड़े हुए हैं, तब एनआईए ने 2011 में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) से यह मामला अपने हाथ में ले लिया था। 2014 में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सत्ता में आने के बाद, एनआईए का रुख बदल गया और 2016 में उसने प्रज्ञा ठाकुर को बरी करने के लिए मामले में एक पूरक आरोप पत्र दायर किया, लेकिन अदालत ने याचिका खारिज कर दी और 2018 में मामले की सुनवाई शुरू हुई। एटीएस की शुरुआती जांच को एनआईए अदालत ने विभिन्न तकनीकी और प्रक्रियात्मक ‘खामियों’ के कारण काफी हद तक अस्वीकार्य पाया। अदालत ने कहा कि हालांकि इस मामले ने गहरा संदेह पैदा किया है, लेकिन अभियोजन पक्ष ने आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया है। विशेष एनआईए अभियोजक रोहिणी सालियान ने 2015 में ही इस बात का संकेत दिया था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि एनआईए चाहती थी कि वह ‘उच्च अधिकारियों’ के निर्देश पर मामले में धीमी गति से आगे बढ़े।
एटीएस द्वारा दायर आरोप पत्र में, अपने आरोप के समर्थन में भारी मात्रा में साक्ष्य संलग्न किए गए थे, जिनमें अभियुक्तों द्वारा आयोजित विभिन्न बैठकों की वीडियो रिकॉर्डिंग (जो प्रतिभागियों में से एक द्वारा की गई थी), पूछताछ के रिकॉर्ड, अन्य बैठकों के टेप, सामान्य फोरेंसिक रिपोर्ट आदि शामिल थे। 2010 में, इन अभिलेखों का विश्लेषण क्रिस्टोफ़ जैफ्रेलोट, सीईआरआई-साइंसेज पीओ/सीएनआरएस, जो पेरिस में वरिष्ठ रिसर्च फेलो और किंग्स कॉलेज लंदन में भारतीय राजनीति और समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे, ने इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (4 सितंबर 2010) में अपने एक विशेष लेख में किया था। यह लेख और इस मामले से संबंधित कई प्रमुख दस्तावेज ऑनलाइन उपलब्ध हैं। उसी का सारांश ‘द वायर’ ने 5 अगस्त 2025 को उन्हीं केस दस्तावेजों के साथ प्रकाशित किया है।
साजिश और षड्यंत्रकारी
एक पूछताछ प्रतिलेख के अनुसार, 2006 में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने अभिनव भारत (‘नया भारत’) नामक एक संगठन की स्थापना की थी। इसका नाम 1905 में वी.डी. सावरकर द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की याद में रखा गया था। बहरहाल, नाथूराम गोडसे की भतीजी और सावरकर के भतीजे की पत्नी हिमानी सावरकर का दावा है कि इस संगठन की स्थापना आरएसएस के एक प्रचारक समीर कुलकर्णी ने की थी।
विभिन्न अभियुक्तों और अन्य लोगों द्वारा दिए गए बयानों के अनुसार, इस विस्फोट में शामिल प्रमुख लोगों में स्वामी अमृतानंद देव तीर्थ (जिन्हें सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर धर और दयानंद पांडे के नाम से भी जाना जाता है), साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, बी.एल. शर्मा और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल थे। संगठन को आकार देने और उसके सिद्धांतों को विकसित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर बैठकें हुईं थीं।
ये लोग धार्मिक हस्तियों, पूर्व सैन्यकर्मियों और संघ परिवार के कार्यकर्ताओं का एक ज्वलनशील मिश्रण थे। स्वामी अमृतानंद देव तीर्थ ने खुद को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में स्थित श्री शारदा सर्वज्ञ पीठ का शंकराचार्य घोषित किया था। उनका पंजीकृत कार्यालय जम्मू में और एक “कैंप कार्यालय” फरीदाबाद के पास था। मेजर रमेश उपाध्याय एक पूर्व रक्षा सेवा अधिकारी थे। वह और उनके प्रमुख सहयोगी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित (Lt. Col. Prasad Purohit)युवा कार्यकर्ताओं को सैन्य प्रशिक्षण दे रहे थे और हथियार व विस्फोटक हासिल करने में अहम भूमिका निभा रहे थे। पुरोहित जुलाई-अगस्त 2008 में पचमढ़ी (मध्य प्रदेश) चले गए थे, जहाँ उन्होंने हथियारों और विस्फोटकों को चलाने के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए। इन दोनों आरोपियों के अलावा, अन्य पूर्व सैन्यकर्मी भी ‘अभिनव भारत’ में शामिल थे। एक बैठक में “पैराशूट रेजिमेंट” के कर्नल आदित्य धर का परिचय कराया गया था और पुरोहित ने मेजर पराग मोदक का “हमारे अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय के प्रभारी” के रूप में भी उल्लेख किया था। षड्यंत्रकारियों में संघ परिवार के घटक के रूप में प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Pragya Singh Thakur)भी शामिल थीं, जो 1997 तक उज्जैन और इंदौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की नेता थीं और फिर उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य बनीं। बाद में, 2019 में, उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के रूप में भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। समीर कुलकर्णी एक पूर्णकालिक आरएसएस कार्यकर्ता (प्रचारक) थे। 1940 से आरएसएस कार्यकर्ता रहे बी.एल. शर्मा ने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता के रूप में राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था और बाद में उन्होंने 1991 और 1996 में पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से विजय हासिल की थी। उन्होंने 1997 में अपनी सीट और भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और वीएचपी के राज्य सचिव के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
चार्जशीट के अनुसार, महाराष्ट्र के नासिक में मुस्लिम बहुल कस्बे मालेगांव में बम विस्फोट की साजिश 2008 में चार बैठकों में तैयार की गई थी। 25-27 जनवरी, 2008 को पुरोहित, उपाध्याय, कुलकर्णी, चतुर्वेदी और स्वामी अमृतानंद फरीदाबाद के पास मिले। मुख्य एजेंडा हिंदू राष्ट्र के संविधान पर चर्चा और उसे अंतिम रूप देना था। इसमें हिंदुओं को एकजुट करने की रणनीतियों पर भी चर्चा हुई। 11-12 अप्रैल, 2008 को यही लोग भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर(Pragya Singh Thakur) से मिले और बम विस्फोट का स्थान तय किया – मालेगांव का घनी आबादी वाला इलाका। पुरोहित ने विस्फोटकों का इंतजाम करने की जिम्मेदारी ली, वहीं प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आश्वासन दिया कि वह उन्हें लगाने के लिए लोगों को नियुक्त करेंगी। बाद में, प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आरएसएस से जुड़े रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे को अपने दो विश्वसनीय व्यक्तियों के रूप में अमृतानंद देव तीर्थ से मिलवाया। 3 अगस्त, 2008 को उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की धर्मशाला में हुई एक बैठक में, कलसांगरा और डांगे को आरडीएक्स खरीद कर देने के लिए पुरोहित को कहा गया। इसके बाद, पुरोहित ने राकेश धावड़े को, जो “विस्फोट करने और तात्कालिक विस्फोटक उपकरण बनाने में प्रशिक्षित विशेषज्ञ” था, को पुणे में कलसांगरा और डांगे को विस्फोटक उपलब्ध कराने के लिए कहा, जहाँ वे 9 और 10 अगस्त 2008 को मिले।
हिंदू राष्ट्र ही लक्ष्य था
“हम अपने राष्ट्र के लिए संविधान से लड़ेंगे” : पुरोहित ने 2008 के गणतंत्र दिवस पर आयोजित फरीदाबाद सभा की शुरुआत इस तरह की। वे भारतीय संविधान का ज़िक्र कर रहे थे : “हमें इस देश की स्थापना वैदिक रीति से करनी है, हम सनातन धर्म, वैदिक धर्म चाहते हैं”, उन्होंने समझाया।
पुरोहित ने हिंदू राष्ट्र के संविधान का एक मसौदा तैयार किया था, जिसके कुछ अंश उन्होंने बैठक में रखे। इसमें “एक दलीय शासन” और “राष्ट्रपति प्रणाली” वाली सरकार का प्रावधान था। जैसा कि पुरोहित ने समझाया, असहमति के लिए बहुत कम गुंजाइश होगी : “एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात : उन लोगों का राजनीतिक बहिष्कार होगा, जिनके विचार हिंदू राष्ट्र के लिए हानिकारक हैं… उनमें से कुछ को मार दिया जाना चाहिए।”
यह लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जाए? यह सुझाव दिया गया कि पहला कदम सभी हिंदुओं को एकजुट करना था। यह मुसलमानों को आतंकित करके ही संभव था, क्योंकि इससे वे एकजुट होने के लिए मजबूर होंगे और अंतिम युद्ध की ओर अग्रसर होंगे, जिसे हिंदुओं को जीतना ही था। फरीदाबाद की बैठक में उन्होंने कहा, “जिस दिन मुसलमान एकजुट हो जाएंगे, वह हमारी सबसे बड़ी जीत होगी। […] योजना यह है कि उन पर हमला शुरू किया जाए और इमाम बुखारी को अपने समुदाय के लिए खड़ा होने दो। उन्हें कहना होगा कि मैं महाराष्ट्र में अन्याय बर्दाश्त नहीं करूँगा ; उन्हें एकजुट होना चाहिए, एक साथ चिल्लाना शुरू करना चाहिए… हम इस्लाम, ईसाइयों और माओवादियों को हमारे खिलाफ एकजुट करने के लिए काम कर रहे हैं।”
पुरोहित कहते हैं कि शुरुआत में, ‘अभिनव भारत’ को एक “प्रेत संगठन – मानो कहीं से प्रकट हुआ कोई भूत हो” बनना चाहिए। मुसलमानों पर लगातार हमले करने से और किसी भी हमले की ज़िम्मेदारी न लेने से, उसे “उपद्रव मूल्य” मिलेगा। अंततः, इस “उपद्रव मूल्य” से उसे कुछ सौदेबाजी की शक्ति मिलेगी, इतनी कि यह संगठन राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल हो सके — विहिप की जगह लेकर और खुद को एक राजनीतिक दल में बदलकर।
साफ़ है कि सिर्फ़ इस्लामी आतंकवादी गतिविधियों का बदला लेने के लिए ही ये लोग एक साथ काम नहीं कर रहे थे। रणनीतिक लक्ष्य कहीं ज़्यादा बड़ा था, इसके बावजूद कि कार्ययोजना काफ़ी काल्पनिक थी।
फरीदाबाद में, पुरोहित ने दावा किया कि अभिनव भारत पहले ही दो विस्फोट कर चुका है। 25 जनवरी, 2008 को स्वामी अमृतानंद और मेजर उपाध्याय के बीच हुई एक निजी बातचीत से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनमें से एक हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद विस्फोट था। उपाध्याय कहते हैं, “आईएसआई [इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस] या कही और से कोई भी इसमें शामिल नहीं था। यह केवल हमारे ही आदमी थे। मैं अपनी जानकारी के आधार पर यह कह सकता हूँ। यह कर्तव्य के नाम पर किया गया था।” दूसरा हमला नांदेड़, परभणी या जालना का हो सकता है। ये दो बम विस्फोट थे, जिनमें राकेश धावड़े – मालेगांव मामले के एक आरोपी – को आरोपित किया गया था।
संगठन के पास धन की कमी नहीं थी। मालेगांव विस्फोट की एफआईआर में कहा गया है कि पुरोहित ने अपनी योजनाओं के प्रचार के लिए काफी धन इकट्ठा किया था, “अपने और अपने अभिनव भारत संगठन के लिए 21,00,000 रुपये तक”।
विदेशी समर्थन की तलाश
जैसा कि पुरोहित ने फरीदाबाद बैठक में बताया था, हिंदुओं को एक ऐसी राष्ट्रीयता माना जा सकता है जो आधिकारिक मान्यता की तलाश में है, और यह मान्यता संयुक्त राष्ट्र से प्राप्त की जा सकती है। वे “एक निर्वासित केंद्रीय हिंदू सरकार” बनाना चाहते थे और संयुक्त राष्ट्र को अपने मुद्दों के समर्थन के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे, ठीक वैसे ही जैसे कश्मीरियों (जेकेएलएफ और हुर्रियत) ने करने की कोशिश की थी।
एक और सभ्यतागत स्वप्न की चर्चा है : “इस्लामी और ईसाई आक्रमणों से लड़ने के लिए” हिंदू और बौद्ध राष्ट्रों का एक संघ। पुरोहित भविष्य में एक राजनीतिक संघ की कल्पना करते हैं, जिसे वे “हिंदू और प्राच्य राष्ट्र संघ” कहते हैं। इसमें “कंबोडिया, थाईलैंड, भारत, नेपाल, भूटान, जापान, कोरिया” शामिल हैं।
लेकिन इन सभी ऊंची और महत्वाकांक्षी बातों के अलावा, तत्काल भौतिक सहायता के लिए विदेशी प्रायोजकों की भी आवश्यकता थी। पुरोहित ने फरीदाबाद की बैठक में बताया कि उन्होंने इजराइल और नेपाल में लोगों से संपर्क कर लिया है और उन्हें सहयोग मिल गया है : “मैंने इजराइल में संपर्क स्थापित कर लिया है – हमारा एक ‘कैप्टन’ वहाँ जाकर वापस आ चुका है। हमें उनकी ओर से बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने हमसे कहा, ‘आपको हमें जमीनी स्तर पर कुछ करके दिखाना चाहिए’।”
उन्होंने कहा कि उन्होंने “उनसे (इज़राइलियों से) चार चीज़ें माँगी थीं” : i) उपकरणों और प्रशिक्षण की निर्बाध आपूर्ति ; ii) तेल अवीव में भगवा ध्वज के साथ एक कार्यालय शुरू करने की अनुमति ; iii) राजनीतिक शरण ; iv) “संयुक्त राष्ट्र में हमारे हिंदू राष्ट्र के निर्माण के उद्देश्य का समर्थन”। पुरोहित के अनुसार, “एक बार जब हम जमीनी स्तर पर कुछ करके दिखाएंगे”, तो इज़राइली राजनीतिक शरण, उपकरण और प्रशिक्षण के लिए सहमत हो जायेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि इज़राइली भी तेल अवीव में भगवा ध्वज फहराने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदू राष्ट्र का समर्थन करने के विचार से कतरा रहे थे। पुरोहित का कहना है कि इज़राइली इन दावों को लेकर इसलिए हिचकिचा रहे थे, क्योंकि हाल के दिनों में भारत के साथ उनके संबंध सुधरने लगे थे और वे इसे खतरे में नहीं डालना चाहते थे।
नेपाल में, स्पष्ट रूप से अभिनव भारत समूह कुछ ऐसे राजभक्त समूहों के संपर्क में था, जिन्हें हाल ही में आतंकवादी समूह घोषित किया गया था, डॉ. आर.पी. सिंह ने एक बैठक में बोलते हुए बताया। पुरोहित ने दावा किया कि हर छह महीने में भारत के 200 लोगों को नेपाली सेना द्वारा सैनिकों के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने नेपाली लोगों से कहा था कि उन्हें चेकोस्लोवाकिया से “एकेएस” खरीदना चाहिए, जिसके लिए “हम पैसे देंगे”।
भाजपा से निराशा
बैठकों के रिकॉर्ड हिंदू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में आरएसएस/भाजपा के धीमी गति से आगे बढ़ने के प्रति फैल रही निराशा को दर्शाते हैं। जैसा कि बीएल शर्मा ने फरीदाबाद की बैठक में तीखे शब्दों में कहा : “एक साल हो गया है, जब मैंने लगभग तीन लाख पत्र भेजे हैं, 26 जनवरी को अखंड भारत के 20,000 नक्शे बाँटे हैं, लेकिन इन ब्राह्मणों और व्यापारियों ने न तो कभी कुछ किया है और न ही करेंगे। …. अंततः वे वही करते हैं, जो संभव है। एक चाणक्य उभरता है और एक उदार शासक बन जाता है। …. मेरा मानना है कि आपको समाज में आग जलानी होगी, कम से कम एक चिंगारी तो जलानी ही होगी।”
इसी भावना ने संघ परिवार के कई कार्यकर्ताओं को अभिनव भारत जैसे समूहों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। स्वामी असीमानंद ने अपने इकबालिया बयान (सीआरपीसी की धारा 164 के तहत) में ऐसे कई लोगों के नाम बताए हैं।
लेकिन यह सब तो 2000 के दशक की शुरुआत की बात है। 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से क्या हो रहा है? ऊपर वर्णित केस दस्तावेजों में विभिन्न षड्यंत्रकारियों द्वारा जिन विचारों और आकांक्षाओं का समर्थन किया गया है, वे आज सत्ता में बैठे अधिकांश लोगों की सोच का अभिन्न अंग हैं, चाहे वे केंद्र में हों या राज्यों में। इनमें से कुछ विचारों को सरकारी कार्रवाई द्वारा वास्तविकता में बदला जा रहा है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है – संविधान और उसके तीन स्तंभों, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संघवाद को धीरे-धीरे और लगातार ध्वस्त किया जाना। जहाँ तक ‘हिंदुओं को जागृत करने’ का उद्देश्य है, सरकार इस जिम्मेदारी को आरएसएस जैसी गैर-सरकारी ताकतों के साथ साझा कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या मंदिर का उद्घाटन कर रहे हैं, जबकि आरएसएस प्रमुख भागवत हिंदू भारत के गौरवशाली अतीत का गुणगान कर रहे है। लेकिन और भी प्रत्यक्ष कार्रवाई – जैसी कि अभिनव भारत के षड्यंत्रकारी कल्पना कर रहे थे – अब कट्टर हिंदू वर्चस्ववादी विचारधारा से जुड़े कई संगठनों को सौंप दी गई है। वे भीड़ द्वारा हत्याओं को भड़का रहे हैं, कथित गोमांस खाने वालों की हत्या कर रहे हैं, मस्जिदों और चर्चों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं, तर्कवादी विचारकों की हत्या कर रहे हैं, दुश्मनों के खिलाफ सैन्य उन्माद भड़का रहे हैं, तथाकथित घुसपैठियों का शिकार कर रहे हैं, और कमजोर अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ बहिष्कार और हिंसा का आह्वान कर रहे हैं। अगर अपराधी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा पकड़े भी जाते हैं, तो उनके मामले या तो कमजोर हो जाते हैं या फिर वे बरी हो जाते हैं। यहाँ तक कि जघन्य अपराधों के दोषियों को भी अपनी सजा में छूट मिल रही है, जैसा कि बिलकिस बानो मामले में हुआ। आज हम जिस विषवृक्ष को देख रहे हैं, उसके बीज मालेगांव के षड्यंत्रकारियों के विचारों में पाए जा सकते हैं।
(लेखक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)