कोई भारत का राष्ट्रपति हो, तो उसका धार्मिक होना सहज संभाव्य है। जहां करोड़ों -करोड़ लोग धार्मिक हों, जहां का प्रधानमंत्री किसी न किसी मंदिर में जाकर त्रिपुंड धारण करता रहता हो, पीत अथवा लाल अथवा कोई और वस्त्र पहनकर धार्मिक होने का ढोंग रचता रहता हो, वहां के राष्ट्रपति का धार्मिक होना स्वाभाविक है!
राष्ट्रपति हैं तो क्या हुआ, उनके मन में भी मथुरा, वृंदावन, बनारस, बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम् आदि जाने की इच्छा पैदा हो सकती है। वैसे भारत का कोई पांच साल के लिए राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हो जाए, इसके बाद उसे ईश्वर से और क्या चाहिए? हम तो न कभी राष्ट्रपति रहे, न उपराष्ट्रपति, न प्रधानमंत्री, न मंत्री, न राज्यपाल और न इनके लगुए-भगुए, हमें क्या मालूम कि इन बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोगों को ईश्वर से और क्या चाहिए होता है और ईश्वर जो है नहीं, इन्हें क्या दे देता होगा!
खैर, तो महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu)के मन में मथुरा-वृंदावन जाने की इच्छा पैदा हुई। राष्ट्रपति का एक प्रोटोकॉल होता है। ऐसा नहीं हो सकता कि सुबह इच्छा हुई, तो दोपहर या शाम को चल दिए! उनके मुख से यह बात निकली होगी, तो यह बात सबसे पहले फाइल के रूप में परिणत हुई होगी! फिर फाइल इस से उस और उस से उस और फिर उससे भी उस अफसर तक लटकती-भटकती रही होगी। अफसरों ने उस पर अपनी-अपनी टीप लिखी होगी। मोदी राज है, तो हर फाइल की तरह यह फ़ाइल भी प्रधानमंत्री तक गई होगी। उनकी अनुकंपा से यह फाइल पास हुई होगी! तब जाकर यह तय हुआ होगा कि राष्ट्रपति जी निश्चित रूप से मथुरा-वृंदावन जाएंगी। किस दिन जाएंगी, कैसे जाएंगी, यह भी अधिकारियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय से मिल कर फाइल पर तय किया होगा।
राष्ट्रपति जी को बताया गया होगा कि मैडम जी आपके लिए ट्रेन से यात्रा करना सबसे सुरक्षित होगा। कार से यात्रा करने में आपको कष्ट होगा। आप हेलिकॉप्टर से भी मत जाइए। आजकल कुछ ठीक नहीं है। तब उन्होंने कहा होगा कि जैसा आपने तय किया, ठीक है। मुझे तो वहां जाकर देव-दर्शन करना है, बाकी आप जानें!
उन्होंने इतना कहा होगा कि अधिकारियों की बांछें खिल गई होंगी। वे अपने इस महान मिशन में लग गए होंगे।पहले उन्होंने दिन तय किया होगा। गुरुवार उन्हें सबसे उपयुक्त लगा होगा। क्या पता कुछ ज्योतिष वगैरह का चक्कर हो! राष्ट्रपति जी का नाम चूंकि ‘द’ से शुरू होता है, तो हो सकता है शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जाना ठीक समझा गया हो! फिर ट्रेन का इंतजाम करने के लिए ई-मेल गया होगा।उसका प्रबंध हो गया होगा, तो दिल्ली से मथुरा-वृंदावन तक कितने ही विभागों को, कितने ही ई-मेल और फोन गए होंगे। हर एक ने पुष्टि की होगी कि हमने इंतजाम कर दिया है। फिर इस इंतजाम का अंतिम रूप से निरीक्षण-परीक्षण किया गया होगा। जब सब टनाटन हो गया होगा, तो मामला आगे बढ़ा होगा!
वैसे ट्रेन राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री को चाहिए, तो भारत की कोई ताकत रोक नहीं सकती। अकेला ट्रंप है, जो कुछ भी कहीं भी रोक सकता है। शुक्र है कि राष्ट्रपति जी की इस यात्रा से अमेरिकी हितों को कोई चोट नहीं पहुंच रही होगी, तो ट्रंप ने आपत्ति नहीं जताई होगी! हो यह भी सकता है, मोदी जी ने उसके संज्ञान में यह बात आने नहीं दी होगी, मगर जिस दिन उसे यह पता चलेगा कि मोदी जी ने यह बात उससे छुपाई है, वह दस फीसदी टैरिफ और बढ़ा देगा!
खैर राष्ट्रपति जी के लिए देश की सबसे महंगी और शाही ट्रेन ‘महाराजा एक्सप्रेस’ के प्रेसिडेंशियल सुइट को फिर से सुसज्जित किया गया होगा, जिसका आम तौर पर किराया लगभग इक्कीस लाख रुपए होता है। उसमें पांच सितारा होटल से भी अधिक सुविधाएं हैं। नाम राष्ट्रपति का, मजे अधिकारियों के आ गए होंगे! ऐसी ट्रेन में मुफ्त यात्रा का एक दिन का सुयोग भी कम नहीं है। यह कुछ भाग्यवानों को ही मिलता है और ऐसे भाग्यवानों में भारत सरकार के आईएएस-आईएफएस अधिकारी अग्रिम पंक्ति में होते हैं!
अब अधिकारियों को इसकी क्या परवाह कि सामान्य कामकाजी दिन राष्ट्रपति जी जाएंगी, तो उनकी सुरक्षा का जो लंबा-चौड़ा लवाजमा होता है, उसके लिए यहां से वहां तक न जाने कितनी तरह के कितनी जगह इंतजाम किए जाएंगे। हर आदमी, हर वाहन को संभावित बम माना जाएगा और दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे,आकाश में, पाताल में शत्रु ही शत्रु देखे जाएंगे और हर जगह ट्रैफिक रोका जाएगा। इससे कितने कर्मचारियों, मजदूरों, दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों, पैदल चलने वालों की उस दिन की जिंदगी जाम हो जाएगी। इस भयानक गर्मी में खड़े-खड़े उनकी ज़िंदगी झंड हो जाएगी! काम पर देर से आने के कारण कितने ही मजदूरों की आधे दिन की मजदूरी काट ली जाएगी या उस दिन की पूरी दिहाड़ी छिन जाएगी!अधिकारियों को इसकी चिंता नहीं होती, बल्कि उन्हें खुशी हुई होगी कि राष्ट्रपति जी के कारण हमारे भी कितने ठाठ हो गए हैं कि ये लाखों ‘कीड़े-मकोड़े’ कितने परेशान हो रहे हैं। अफसरी का असली सुख तो दूसरों को दुखी देखने में है। मन ही मन देते रहें लोग गालियां। गालियों से क्या होता है! तीन-तीन किलो रोज गालियां खानेवाले का आज तक क्या बिगड़ा, जबकि उसे कांग्रेसियों द्वारा कथित रूप से दी गई हर गाली मुंहजबानी याद है! कहो तो वह आज और अभी यहीं सुना दे!
खैर द्रौपदी मुर्मू जी राष्ट्रपति हैं और भारत जैसे गरीब देश की राष्ट्रपति हैं, इसलिए सारे इंतजाम शाही तो होने ही थे! भारत के गणतंत्र बनने के बाद से यही परंपरा चली आ रही है, सो उसे मिटाया भी नहीं जा सकता, वरना लोकतंत्र और गणतंत्र खतरे में पड़ जाता! और भारत सरकार लोकतंत्र और गणतंत्र की रक्षा के प्रति इतनी अधिक प्रतिबद्ध है कि वह हर खतरा उठा सकती है, मगर यह नहीं ! संकेत में भी ऐसी सलाह देना देशद्रोह की श्रेणी में आ सकता है, इसलिए आप गवाह हैं कि मैंने देशभक्ति दिखाने में बिलकुल भी कंजूसी नहीं की है! आप कहो तो वन्देमातरम तथा जन-मन-गण गाकर भी दिखा दूं!
(कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार, पत्रकार और जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)