अटल हिन्द /अजय कुमार,लखनऊ
उत्तर प्रदेश की राजनीति फिर से धार्मिक और सामाजिक रंगों में रंगती दिख रही है। यह कोई अचानक उभरा मुद्दा नहीं है, बल्कि सावन की सोंधी हवा में ‘हरा’ और ‘भगवा’ का टकराव पहले से कहीं अधिक तीखा हो चुका है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके सांसदों की संसद भवन के पास मस्जिद में हुई एक मुलाकात की तस्वीरों ने सियासी गलियारों में तूफान ला दिया है। वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(Yogi Adityanath alias Ajay Singh Bisht Chief Minister Uttar Pradesh) कांवड़ यात्रियों पर पुष्पवर्षा कर रहे हैं और हिंदुत्व की राजनीति को और प्रखर बना रहे हैं। ये घटनाएं इशारा कर रही हैं कि 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी अब पूरी ताकत के साथ शुरू हो चुकी है, और इसका थीम पहले से तय हो गया है ‘हरा बनाम भगवा’।23 जुलाई को संसद भवन के बगल की मस्जिद में अखिलेश यादव, मोहिबुल्ला नदवी, धर्मेंद्र यादव, डिंपल यादव और जिया उर रहमान बर्क के साथ बैठते हुए तस्वीरें सामने आईं। तस्वीरों में दो महिलाएं भी नजर आईं, जिनमें से एक को मैनपुरी सांसद डिंपल यादव और दूसरी को कैराना सांसद इकरा हसन बताया गया। भाजपा ने तुरंत इस मुद्दे को तूल दिया। भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने आरोप लगाया कि अखिलेश ने संसद के बगल स्थित एक धार्मिक स्थल को राजनीतिक बैठक के लिए प्रयोग किया, जो संविधान का उल्लंघन है। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने उन्हें ‘नमाजवादी’ कह दिया और तीखा तंज कसा। उनका कहना था कि किसी भी धार्मिक स्थल का राजनीतिक इस्तेमाल संविधान के खिलाफ है और समाजवादी पार्टी बार-बार इसकी अनदेखी करती रही है।

इतना ही नहीं, भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने डिंपल यादव के परिधान पर सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि जब मस्जिद में गई थीं तो उन्हें सिर ढंकना चाहिए था। इस बयान को सपा ने तूल देने की कोशिश बताया और इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिश करार दिया। अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा कि आस्था का मतलब जोड़ना होता है, जबकि भाजपा समाज में दूरियां पैदा करना चाहती है। उन्होंने साफ किया कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक मुलाकात थी जिसमें मोहिबुल्ला नदवी की पत्नी भी मौजूद थीं।उधर, भाजपा ने मोर्चा खोलते हुए कहा कि मस्जिद को सपा कार्यालय बना दिया गया है। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने कहा कि मस्जिदें सिर्फ इबादत का स्थल हैं, उन्हें राजनीति का मंच नहीं बनाया जा सकता। वहीं कई मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने भी इस मुद्दे पर असहमति जताई और मोहिबुल्ला नदवी से इस्तीफे की मांग कर डाली। मस्जिद की राजनीति ने दोनों पक्षों को न सिर्फ आक्रामक बना दिया है, बल्कि अब धार्मिक संगठनों की नाराजगी भी सपा के लिए एक नई चुनौती बन गई है।
इस विवाद के बीच योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सावन के महीने में कांवड़ यात्रा को भव्य रूप देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। हेलिकॉप्टर से कांवड़ियों पर पुष्पवर्षा की गई, जगह-जगह सेवा शिविर लगाए गए और विशेष पुलिस बंदोबस्त किए गए। मुख्यमंत्री ने मेरठ और मुजफ्फरनगर में हवाई निरीक्षण कर व्यवस्थाओं की समीक्षा की और कांवड़ियों पर फूल बरसाए। उन्होंने चेतावनी भी दी कि कांवड़ यात्रा के नाम पर उपद्रव फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और उनकी पहचान सीसीटीवी कैमरों से की जाएगी। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि उनके हिंदुत्व एजेंडे का विस्तार है।वहीं समाजवादी पार्टी ने इसे ‘दिखावा’ करार दिया है। अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा पिछले 11 सालों से केंद्र में और 9 साल से यूपी में सरकार चला रही है, लेकिन कांवड़ियों के लिए कोई स्थायी ढांचा नहीं बना सकी। उन्होंने ऐलान किया कि सत्ता में आने पर सपा सरकार कांवड़ियों के लिए विशेष कॉरिडोर बनाएगी। इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी अब भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे को चुनौती देने के लिए खुद मैदान में उतर आई है। कैराना की सांसद इकरा हसन कांवड़ सेवा शिविर में पहुंचीं और शिवभक्तों को प्रसाद वितरित किया। उनका भगवा पटका पहनकर प्रसाद बांटते हुए वीडियो वायरल हुआ। उन्होंने कहा कि देश की साझा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वे हर धर्म का सम्मान करती हैं।
इस धार्मिक और राजनीतिक खींचतान के बीच यूपी की राजनीति का 2027 मॉडल धीरे-धीरे आकार ले रहा है। सपा का ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला और भाजपा का ‘हिंदुत्व + विकास’ का एजेंडा आमने-सामने खड़े हैं। समाजवादी पार्टी के नेता मंदिरों में दर्शन कर रहे हैं तो भाजपा कांवड़ यात्रा को प्रशासनिक और धार्मिक दोनों स्तर पर भव्य बना रही है। इटावा में अखिलेश यादव ने केदारेश्वर महादेव मंदिर का उद्घाटन कर यह संकेत दिया है कि वे भी हिंदू आस्था के मैदान में कदम रख चुके हैं। वहीं भाजपा सरकार काशी, अयोध्या और मथुरा में कॉरिडोर निर्माण के जरिए धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने भाजपा को झटका दिया। सपा ने 37 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा 33 पर सिमट गई। अब अखिलेश यादव इस लय को विधानसभा चुनाव तक बनाए रखना चाहते हैं। पीडीए समीकरण के तहत वह गैर-यादव पिछड़ी जातियों, दलितों और मुसलमानों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर दांव लगाते हुए हिंदुत्व और विकास का दोहरा कार्ड खेल रही है।
प्रदेश में भाजपा की राजनीति हमेशा हिंदुत्व केंद्रित रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फैसले, चाहे वह ढाबों के नाम बदलना हो या कांवड़ यात्रा को सरकारी संरक्षण देना इन सबका मकसद हिंदू वोट बैंक को अपने पक्ष में बनाए रखना है। वहीं समाजवादी पार्टी खुद को ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की पार्टी बताकर भाजपा की धर्म आधारित राजनीति का विकल्प बनाना चाहती है। यही वजह है कि एक तरफ डिंपल यादव मस्जिद में नजर आती हैं तो दूसरी ओर इकरा हसन भगवा पटका पहनकर कांवड़ियों की सेवा करती दिखती हैं।डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, प्रसाद मौर्य और अमित मालवीय जैसे नेताओं ने अखिलेश यादव को सोशल मीडिया पर घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। मौर्य ने तो यहां तक कह दिया कि अखिलेश मस्जिद गए, लेकिन सफेद जालीदार टोपी लगाना भूल गए। भाजपा के इन बयानों से साफ होता है कि वह अखिलेश को मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्रव्यूह में फंसाने की तैयारी में है।जाहिर है, उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म और आस्था अब केवल निजी भावना नहीं रह गई है, बल्कि यह रणनीति और एजेंडे का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। मस्जिद से लेकर मंदिर, कांवड़ यात्रा से लेकर टोपी और पटके तक हर चीज का राजनीतिक मतलब निकाला जा रहा है। ‘हरा’ और ‘भगवा’ के बीच की यह लड़ाई अब केवल तस्वीरों और बयानों तक सीमित नहीं, बल्कि गांव-देहात के मतदाता तक पहुंचने लगी है। 2027 का विधानसभा चुनाव जब भी होगा, उसकी सियासी जमीन आज तैयार हो चुकी है। और यह भी तय है कि इस बार की लड़ाई महज दलों की नहीं होगी, बल्कि विचारधाराओं की, प्रतीकों की और पहचान की होगी।
crime history of yogi adityanath (योगी आदित्यनाथ के अपराध)
योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट यूपी के सीएम. जितने विवाद योगी से जुड़े रहे हैं, उतने ही आपराधिक मामले भी उनके खिलाफ दर्ज हैं. जिनमें हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले भी शामिल हैं. उनके खिलाफ गोरखपुर और महाराजगंज में लगभग एक दर्जन मामले दर्ज हैं.
जिनका जिक्र उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान अपने हलफनामे में किया था.
योगी के खिलाफ धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने के मामले में आईपीसी की धारा 153 ए के तहत दो मामले दर्ज हैं. इसके अलावा उनके खिलाफ वर्ग और धर्म विशेष के धार्मिक स्थान को अपमानित करने के आरोप में आईपीसी की धारा धारा 295 के दो मामले दर्ज हैं.
उनके खिलाफ कृषि योग्य भूमि को विस्फोटक पदार्थ का इस्तेमाल करके नुकसान पहुंचाने के इरादे से कार्य करने आदि का एक मामला भी दर्ज है. यही नहीं उनके खिलाफ आपराधिक धमकी का एक मामला आईपीसी की धारा 506 के तहत दर्ज है. उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का एक संगीन मामला भी चल रहा है.
आईपीसी की धारा 147 के तहत दंगे के मामले में सजा से संबंधित 3 आरोप भी उन पर हैं. आईपीसी के खंड 148 के तहत उन पर घातक हथियारों से लैस दंगों से संबंधित होने के दो आरोप दर्ज हैं. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 297 के तहत कब्रिस्तान जबरन घुसने के दो मामले हैं.
आईपीसी की धारा 336 के तहत उन पर दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा और जीवन को खतरे में डालने से संबंधित 1 मामला है. जबकि आईपीसी की धारा 149 का एक मामला और उनके खिलाफ चल रहा है. आईपीसी की धारा 504 के तहत उन पर जानबूझकर शांति का उल्लंघन करने का एक आरोप दर्ज है. इसके अलावा आईपीसी के खंड 427 का एक मामला भी उनके खिलाफ दर्ज है.
बतातें चले कि योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर दंगों के दौरान गिरफ्तार किया गया था. दंगों के दौरान एक युवक के मारे जाने के बाद बिना प्रशासन की अनुमति के योगी ने शहर के मध्य श्रद्धान्जली सभा आयोजित की थी और कानून का उल्लंघन किया था. इसके बाद उन्होंने अपने हजारों समर्थकों के साथ गिरफ़्तारी दी थी.उस वक्त आदित्यनाथ को सीआरपीसी की धारा 151A, 146, 147, 279, 506 के तहत जेल भेजा गया था.
ये सभी मामले लोकसभा चुनाव 2014 में दिए गए उनके हलफनामें में दर्ज हैं. हालांकि कितने मामले इनमें से खत्म हुए या बंद हुए. यह जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है.