चंडीगढ़/16 जुलाई /अटल हिन्द /राजकुमार अग्रवाल
हरियाणा शिक्षा विभाग की खरीद प्रक्रिया में कथित कमीशनखोरी में घिरे असिस्टेंट डायरेक्टर (शैक्षणिक) राजीव वत्स (Haryana’s Assistant Director (Education) Rajiv Vats)ने मंगलवार (15 जुलाई) को एक ही झटके में करोड़ों रुपये के छपाई घोटाले की नींव रख दी। उन्होंने पहले टेंडर को गलत कैटेगरी में लिस्ट कराने में सफलता हासिल की और अब अपनी मर्जी से छपाई की दरें फिक्स कर दी। यह सब षड्यंत्र दो साल से रचा जा रहा था, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पा रहे थे। एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा शिक्षा विभाग के एसीएस को जांच के आदेश देने के बावजूद राजीव के हौसले में कोई कमी नहीं आई और उन्होंने एक ही झटके में अपनी प्लानिंग को अमलीजामा पहना दिया।
वरिष्ठ पत्रकार अजय दीप लाठर की रिपोर्ट के अनुसार सेट (SAT) प्रश्न-उत्तर पुस्तिकाओं की छपाई को लेकर शुरू हुई टेंडर प्रक्रिया पहले दिन ही विवादों में आ गई। राजीव वत्स ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखकर फॉर्मेट भेजते हुए उन्हें टेंडर को फाइनल करने के निर्देश जारी कर दिए। टेंडर का जो नमूना जिलों में भेजा गया, उसमें टेंडर को गलत कैटेगरी में लिस्ट करने को कहा गया, ताकि इनके चहेते प्रिंटर्स को फायदा पहुंचाया जा सके। पिछले साल 30 से अधिक प्रिंटर्स ने टेंडर में हिस्सा लिया, जिससे दरें कम आईं और सरकारी धन की बचत हुई। दरें मात्र 20-25 पैसे प्रति पेज और 44-50 पैसे प्रति शीट रहीं। लेकिन, राजीव वत्स ने इस वर्ष वही कार्य तीन गुना ज्यादा दर पर लगभग 1.25 रुपये प्रति शीट जिलों में देने की व्यूहरचना रच दी। टेंडर में बदलाव कर करीब 64 पैसे प्रति पेज और 1.28 रुपये प्रति शीट ज्यादा दर लगाई गई। टेंडर को गलत कैटेगरी में डालने से केवल 4 बिडर्स डायस प्रिंट सैटर्स, फ्लोरिड प्रिंट एंड पैक प्राइवेट लिमिटेड, मंजू ट्रेडिंग कंपनी (समग्र इंटरप्राइजेज की सिस्टर कंसर्न), समग्र एंटरप्राइजेज (मंजू इंटरप्राइजेज की सिस्टर कंसर्न) ही भाग ले सके।Printing scam in Haryana Education Department
प्रिंटिंग घोटाले की बू शिक्षा निदेशालय से बाहर आने लगी तो एडीजीपी, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को शिकायत दे दी गई, जिसकी जांच अपने स्तर पर मुख्य चौकसी अधिकारी के माध्यम से कराने के लिए 30 जून को एसीबी ने हरियाणा शिक्षा विभाग के एसीएस को पत्र लिख दिया। लेकिन, इसके बाद भी प्रिंटिग घोटाले की पटकथा रचने में लगे राजीव वत्स हताश होने की बजाए और अधिक उत्साह से जुट गए। 15 जुलाई को राजीव वत्स ने सभी मौलिक शिक्षा अधिकारियों (फरीदाबाद, कैथल, पंचकूला, रेवाड़ी को छोड़कर) को पत्र 16/3-2025 एसीडी(15) लिखते हुए कक्षा 4 से 8 के लिए सेट, हॉफ इयरली व अन्य मूल्यांकन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र व अन्य छपाई को 84 पैसे की दर से रेट निर्धारित करने की जानकारी दी। साथ ही कह दिया कि इस रेट में वे एल-1 को कार्य अलॉट कर दें। यानी, जिला स्तर पर टेंडर को फाइनल करने का कार्य सिर्फ ढकोसला था, सारा रिमोट राजीव वत्स के हाथ से चल रहा था। जो रेट फाइनल किया गया, वह पिछले साल से कहीं अधिक है। जबकि, 10-12 साल से इस कार्य को कर रहे वेंडर आज भी पुरानी दरों पर कार्य करने को तैयार हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार को इस पूरे प्रकरण में शामिल कथित भ्रष्टाचारियों पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। टेंडर रद्द करना चाहिए, शर्तों में बदलाव करने के दोषियों व सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने वालों को सबक सिखाना चाहिए।
2 साल पहले का आदेश दरकिनार
2023-24 में भी ओईएम (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर) कैटेगरी डालकर इसी तरह दरें बढ़ाने की कोशिश की गई थी, लेकिन मामला उठा तो पत्र संख्या 20/5-2020 ACD (15) दिनांक 26.07.2023 के माध्यम से यह शर्त हटा दी गई, जिससे दरों में कम आईं। लेकिन, इस बार साल ओईएम कैटेगरी डालकर कथित कमीशनखोरी के लिए चहेते प्रिंटर्स को तीन गुना दर पर कार्य देने की योजना बनाई। इसलिए ही टेंडर को गलत प्रॉडक्ट कैटेगरी में डाला गया, जबकि यह सेवा श्रेणी का कार्य है। ओईएम की शर्त अवैध व अव्यावहारिक है, क्योंकि प्रश्न पत्र का डिजाइन शिक्षकों द्वारा होता है, कोई व्यापारी इसका ओईएम नहीं हो सकता।
सिर्फ 4 वेंडर के ग्रुप पर खास मेहरबानी!
मौजूदा बदलाव के चलते सिर्फ 4 वेंडर ने टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया। आपस में जुड़े होने के कारण इन्होंने रिवर्स ऑक्शन में भाग नहीं लिया। मंजू ट्रेडिंग कंपनी व समग्र इंटरप्राइजेज पति-पत्नी की फर्म हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय ट्रेडिंग है, स्वयं की कोई प्रिंटिंग प्रेस नहीं है। एमएसएमई सर्टिफिकेट पर एक ही पता था, जो बाद में बदला गया। माना जा रहा है कि ये बहादुरगढ़ की फर्म को वेंडर असेसमेंट सर्टिफिकेट पर बिड डाल कर कार्य उन्हें सबलेट करेंगे, जो बिड क्लॉज का उल्लंघन होगा।
28 को शनिवार, फिर टेंडर डिसक्वालिफाई कैसे?
28 जून को काफी टेंडर डिसक्वालिफाई किए गए, लेकिन उस दिन शनिवार की सरकारी छुट्टी थी। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि पोर्टल के लॉग इन व पासवर्ड उन वेंडर को उपलब्ध कराए गए, जिन्हें कार्य अलॉट करने का षड्यंत्र चल रहा था। अधिकतर जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को आज भी पोर्टल चलाना नहीं आता, फिर भी छुट्टी के दिन उनके कार्य करने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 28 जून को टेंडर धड़ाधड़ डिसक्वालिफाई करने को भी जांच में शामिल किया जाना चाहिए।
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