रिपोर्ट : शांतनु डे, अनुवाद : संजय पराते
अपने संस्मरण “मेमोरी ऑफ़ फ़ॉरगेटफुलनेस” में, प्रतिष्ठित फ़िलिस्तीनी कम्युनिस्ट कवि महमूद दरवेश ने अपने मित्र, प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के साथ एक गहन बातचीत का वर्णन किया है। यह प्रभावशाली पुस्तक लेबनानी गृहयुद्ध के दौरान बेरूत की 88 दिनों की भयावह घेराबंदी और 1982 में लेबनान पर इज़राइली आक्रमण का वर्णन करती है।
पाकिस्तान से हमारे महान मित्र, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, एक और सवाल पूछने में व्यस्त हैं:
‘कलाकार कहाँ हैं?’
‘कौन से कलाकार, फ़ैज़?’ मैं पूछता हूँ।
बेरूत के कलाकार।’
‘आप उनसे क्या चाहते हैं?’
‘इस युद्ध को शहर की दीवारों पर चित्रित करना।’
‘आपको क्या हो गया है?’ मैं चकित हूँ।
‘क्या आपको दीवारें गिरती हुई नहीं दिख रही हैं?’
फ़ैज़ और दरवेश अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत ज़िंदा है। बेरूत की आत्मा आज भी ज़िंदा है, अटूट। लेबनान ज़िंदा है। और उनकी आत्मा कवियों, कलाकारों और लेखकों की आवाज़ों में ज़िंदा है।
दीवारें खड़ी हैं, अपने निशान और चटक रंगों के साथ। पिछले साल सितंबर में इज़राइली आक्रमण के बाद बचे खंडहरों में भित्तिचित्र — जो विनाश से उपजी एक चुनौतीपूर्ण कला है — जान फूंकते हैं।
यह शहर भूमध्य सागर के बिल्कुल किनारे बसा है, और यदि आप यहां घूमेंगे, आप देखेंगे कि ऊँची, बहु-मंज़िला इमारतों की दीवारें अद्भुत, चमकदार भित्तिचित्रों से सजी हैं। यहाँ तक कि छोटी, ढहती दीवारें भी प्रतिरोध की शक्तिशाली पुकार हैं। उदाहरण के लिए, क्राउन प्लाज़ा की ओर जाने वाले रास्ते को ही लें, जहाँ एक छोटी-सी दीवार, जो सिर्फ़ 2.5 फ़ीट ऊँची है, पर लाल सुलेख में एक आकर्षक भित्तिचित्र बना है : ‘निरंतर संघर्ष की शपथ’। यह अरबी लिपि में लिखा है, और उसके ऊपर दाहिने कोने में अंग्रेज़ी अनुवाद लिखा है— ‘आज का गौरव सिर्फ़ गोली के लिए है’। कैफ़े में, आपको अक्सर स्टालिन, चे ग्वेरा और कभी-कभी पुतिन के चेहरे भी भित्तिचित्र कला में साथ-साथ दिखाई देंगे।
विद्रोही बेरूत की दीवारें क्रांतिकारी कला से सजी हैं। शहीद चौक के पास, लाल रंग से लिखे जीवंत भित्तिचित्रों पर बेबाकी से लिखा है, ‘#फिलिस्तीन + लेबनान = क्रांति।’ यह प्रतिष्ठित चौक लंबे समय से विरोध प्रदर्शनों का केंद्र रहा है, जिनमें फिलिस्तीन के प्रति एकजुटता जताने वाले प्रदर्शन भी शामिल हैं।
हसन हमदान, जिन्हें महदी अमेल के नाम से ज़्यादा जाना जाता है, एक प्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक थे, जिन्होंने मार्क्सवादी अवधारणाओं को अरब संदर्भ में ढालने के लिए अथक प्रयास किया। हालाँकि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत आज भी कायम है। स्टेंसिल द्वारा बनाए गए उनके चित्र बेरूत में जगह-जगह लगे हैं, जिन पर लिखा है— ‘महदी अमेल को पढ़ें!’ अमेल लेबनानी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और लेबनानी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के एक प्रमुख सदस्य थे। 18 मई, 1987 को उनके घर के पास अल्जीरिया स्ट्रीट पर उनकी हत्या कर दी गई थी। उनका पसंदीदा कथन है : ‘जब तक आप प्रतिरोध कर रहे हैं, तब तक आप पराजित नहीं होते।’
यही कारण है कि लेबनान और लेबनानी कम्युनिस्ट पार्टी आज भी दृढ़ता से यह विश्वास करती है कि प्रतिरोध कभी मरता नहीं — यह दृढ़ विश्वास इस शक्तिशाली धारणा में निहित है कि जब तक आप प्रतिरोध करते हैं, तब तक आप पराजित नहीं होते।
इससे पहले हमारी चर्चा में शामिल, 20वीं सदी के महानतम उर्दू शायरों में से एक, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने जून 1982 में इज़राइली आक्रमण के बीच, “एक नगमा कर्बला-ए-बेरूत के लिए” (बेरूत के युद्धक्षेत्र के लिए एक गीत) लिखा था। यह कविता बेरूत को इस प्रकार चित्रित करती है:
हर योद्धा, सिकंदर महान की ईर्ष्या का विषय,
हर लड़की, लैला जैसी खूबसूरत।
बेरूत, लेबनान का हृदय,
बेरूत, हमारी दुनिया का श्रृंगार,
बेरूत, जन्नत के बगीचे जैसा सुंदर।
17 सितंबर, 2024 को लेबनान की सड़कों पर छोटे-छोटे विस्फोटों की एक श्रृंखला गूंज उठी, जिससे व्यापक भ्रम और आतंक फैल गया। पेजर हमले के नाम से जानी जाने वाली इस घटना ने लेबनान के विरुद्ध इज़राइल के युद्ध में एक निर्णायक मोड़ ला दिया। अगले दिन, विस्फोटकों से लदे वॉकी-टॉकियों में धमाके होने से भय की एक और लहर दौड़ गई, जिससे लेबनानी जनता और भी अधिक स्तब्ध हो गई।
22 सितंबर को, इजरायली दैनिक हारेत्ज़ ने बताया कि नेतन्याहू के प्रवासी मामलों के मंत्री अमीचाई चिक्ली ने घोषणा की कि लेबनान को ‘एक राज्य के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता’ और इसलिए इजरायली सेना को लेबनानी क्षेत्र पर ‘कब्जा’ करने और एक ‘बफर ज़ोन’ स्थापित करने का अधिकार है।
23 सितंबर को, जो 1975-1990 के गृहयुद्ध के बाद से देश का सबसे घातक दिन था, इज़राइल ने हवाई हमलों की एक विनाशकारी श्रृंखला शुरू की, जिसके पहले दौर में लेबनान में 500 से ज़्यादा लोग मारे गए।
27 सितंबर को, इज़राइल ने दक्षिणी बेरूत के एक उपनगर दहियाह पर हमला करके लगभग 80 बंकर-तोड़ बम गिराकर हिज़्बुल्लाह के लंबे समय से महासचिव रहे हसन नसरल्लाह की हत्या कर दी, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 33 लोग मारे गए। इसके बाद शुरू हुआ इज़राइली बमबारी अभियान दो महीने से ज़्यादा समय तक चला, जिसमें 3,000 से ज़्यादा लोगों की जान गई और हज़ारों विदेशी नागरिकों और मज़दूरों सहित लगभग दस लाख लोग विस्थापित हुए।
27 नवंबर को, हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच युद्ध विराम सुबह के शुरुआती घंटों में लागू हो गया, जो संघर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास को चिह्नित करता है, (लेबनान के भयानक वर्ष : विस्फोटक पेजर से लेकर इजरायल के कब्जे तक! — अल-जजीरा, 17 सितंबर, 2025)।
लेबनानी कम्युनिस्ट पार्टी के ‘पीपुल्स एड’ संगठन ने इस कमी को पूरा करने के लिए आगे आकर संसाधन जुटाने, आश्रय स्थलों की खोज करने और भोजन की आपूर्ति के लिए एक अभियान शुरू किया है। कम्युनिस्ट स्वयंसेवक भीड़ भाड़ वाली सड़कों और शहरों में गश्त करते हैं, लोगों को शरण दिलाने और चिकित्सा सहायता प्रदान करने में मदद करते हैं। क्रूर हवाई हमलों से पहले, लेबनानी कम्युनिस्ट पार्टी (एलसीपी) के पोलित ब्यूरो ने दुनिया भर की कम्युनिस्ट और मज़दूर पार्टियों को एक खुला पत्र जारी कर एकजुटता की अपील की थी।
एक साल बाद, लेबनानी कम्युनिस्ट पार्टी (एलसीपी) ने लेबनानी और फ़िलिस्तीनी जनता के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता यात्रा का आयोजन किया। एलसीपी के अनुसार, ‘फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ हो रहे नरसंहार, क्षेत्र के लोगों और राज्यों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी आक्रमण के बढ़ने, और लेबनान और उसकी जनता पर आपराधिक ज़ायोनी आक्रमण के बाद—और लेबनानी राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा की स्थापना की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में — एलसीपी ने 14 से 17 सितंबर तक बेरूत, लेबनान में एक अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता यात्रा का आयोजन किया था।
इस एकजुटता यात्रा में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सहित ग्रीस, पुर्तगाल, बेल्जियम, जर्मनी, साइप्रस, स्वीडन, सर्बिया, आयरलैंड, स्पेन, रोमानिया और हंगरी सहित कई देशों की 33 कम्युनिस्ट पार्टियों, समाजवादी पार्टियों, मज़दूर दलों और प्रगतिशील आंदोलनों ने भाग लिया। इस यात्रा में उत्तरी अफ्रीका और मोरक्को के साथ-साथ फ़िलिस्तीन, सीरिया, तुर्की, जॉर्डन, कुवैत और इराक की कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी भाग लिया। वेनेज़ुएला की कम्युनिस्ट पार्टी का भी प्रतिनिधित्व था।
इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बेरूत में फ़िलिस्तीनी शिविर का दौरा करना और विचारों का आदान-प्रदान करना और संवाद में शामिल होना था। पाँच घंटे से ज़्यादा समय तक चले एक दिवसीय सेमिनार में ‘जन संघर्ष और अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता’ पर ध्यान केंद्रित किया गया। अगले दिन, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों और पार्टी की स्वास्थ्य शाखा, ‘पॉपुलर एड एसोसिएशन’ के बीच दहियेह (शाब्दिक रूप से ‘उपनगर’) में एक विस्तृत चर्चा हुई, जो अभी भी इज़राइली बमबारी के निशान झेल रहा था। दहियेह के रास्ते में, बहु-मंज़िला इमारतों के अवशेषों में तबाही साफ़ दिखाई दे रही थी, जो खंडित भूसी में तब्दील हो गई थीं और मलबे की परतों के नीचे दबी हुई थीं, जो 27 सितंबर और 11 अक्टूबर के बीच इज़राइल द्वारा निशाना बनाए गए 50 स्थानों की भयावह याद दिलाती हैं।
इज़राइल राज्य द्वारा बसाई जा रही उपनिवेशवादी बस्तियां एक ‘ग्रेटर इज़राइल’ की अपनी महत्वाकांक्षा से प्रेरित है। यह लक्ष्य 18 जनवरी, 2024 को तब रेखांकित हुआ, जब इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने आई-24 के साथ एक साक्षात्कार में विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘समझौते के साथ या उसके बिना, इज़राइल राज्य को जॉर्डन नदी के पश्चिम के संपूर्ण क्षेत्र पर सुरक्षा नियंत्रण रखना होगा,’ और प्रभावी रूप से ‘नदी से समुद्र तक’ फ़िलिस्तीन पर एकमात्र संप्रभुता का दावा करना होगा।
हाल ही में बनी एक डॉक्यूमेंट्री, ‘इज़राइल: एक्सट्रीमिस्ट्स इन पावर’ में, नेतन्याहू सरकार में एक अति-दक्षिणपंथी व्यक्ति, इज़राइली वित्त मंत्री बेज़ेलेल स्मोट्रिच ने एक ‘यहूदी राज्य’ के अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया। बाइबिल की भविष्यवाणी का हवाला देते हुए, स्मोट्रिच ने घोषणा की कि ‘यरूशलेम का भविष्य दमिश्क तक विस्तार होगा’, और आगे कहा कि यह विस्तारवादी दृष्टिकोण जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, इराक, मिस्र और सऊदी अरब के क्षेत्रों को भी शामिल करता है। नेतन्याहू के नेतृत्व में रंगभेदी ज़ायोनी शासन का दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट है — विस्तृत इज़राइल।
हमारा नारा, ‘नदी से समुद्र तक, फ़िलिस्तीन आज़ाद होगा’, पूर्व में जॉर्डन नदी और पश्चिम में भूमध्य सागर के बीच की ज़मीन को दर्शाता है। गौरतलब है कि नेतन्याहू की लिकुड पार्टी का अलग दृष्टिकोण के साथ : ‘समुद्र और जॉर्डन के बीच, केवल इज़राइली संप्रभुता होगी।’ वास्तव में, उनका अंतिम लक्ष्य संपूर्ण पश्चिमी तट है, जिसे स्मोट्रिच ‘यहूदिया और सामरिया’ कहते हैं।
सीपीआई(एम) प्रतिनिधिमंडल में नीलोत्पल बसु (पीबीएम), शांतनु डे और वी.पी. सानु शामिल थे, जो क्रमशः पश्चिम बंगाल और केरल राज्य समितियों के सदस्य थे। इसी पृष्ठभूमि में, प्रतिनिधिमंडल के नेता नीलोत्पल बसु ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए जन संघर्ष को व्यापक स्तर पर मज़बूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “अमेरिका-इज़राइल धुरी का सामना करने, फ़िलिस्तीन की आज़ादी की लड़ाई का समर्थन करने और क्षेत्र की संप्रभुता व न्यायपूर्ण शांति के संघर्ष को मज़बूत करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता बढ़नी चाहिए।”
इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ने माँग की :
— गाजा में नरसंहार बंद करो!
— फ़िलिस्तीन से दूर रहो – ज़ायोनवादी इज़राइली कब्ज़ा ख़त्म करो!
— फ़िलिस्तीन को तुरंत आज़ाद करो!
— पश्चिम एशिया में इज़राइली आक्रमण बंद करो!
— दुनिया पश्चिम एशिया में शांति चाहती है!
(रिपोर्टर वामपंथी कार्यकर्ता हैं, जो लेबनान में अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता यात्रा में शामिल थे। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)