प्रशंसा के परदे में सौदे की पटकथा: ट्रंप की रणनीतिक चाल
[मोदी–ट्रंप 2.0: डील से परे — विश्वास का इंटरस्टेलर दौर]
[कूटनीति की गोलियों में लिपटा कॉम्प्लिमेंट: ट्रंप का ‘किलर’ बयान]
दक्षिण कोरिया का ग्यॉंगजू। एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) के सीईओ लंचियन सम्मेलन के मंच पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आवाज़ गूंजी – “नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)सबसे अच्छे दिखने वाले व्यक्ति हैं,(नरेंद्र मोदी सबसे अच्छे दिखने वाले व्यक्ति-डोनाल्ड ट्रंप) जैसे आपके फादर हो, लेकिन एक किलर (दमदार व्यक्ति) हैं, कठोरता से कठिन!” हंसी का ठहाका, तालियां, और फिर सन्नाटा। क्योंकि यह सिर्फ़ एक बयान नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक संकेत था जो बताता है कि सालों से अटकी हुई ट्रेड डील अब अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। यह 29 अक्टूबर की वह ऐतिहासिक पल थी, जब ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता की दिशा ही बदल दी। ट्रंप ने स्पष्ट कहा कि वे भारत के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता कर रहे हैं और मोदी के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान और प्रेम है।
यह तारीफ महज संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी कूटनीतिक चाल थी। मात्र दो महीने पहले, अगस्त 2025 में, ट्रंप प्रशासन ने भारतीय निर्यातों पर 50 प्रतिशत तक भारी टैरिफ थोप दिया था – आभूषण, झींगा, वस्त्र सबकी कमर टूट गई। वजह? भारत का रूस से तेल आयात। पलटवार में भारत ने अमेरिकी बादाम और सेब पर जवाबी टैरिफ लगा दिया। तनाव आसमान छू रहा था, दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध की आग सुलग रही थी। लेकिन सितंबर में एक निर्णायक फोन कॉल ने सब पलट दिया – ट्रंप और मोदी की घंटों लंबी, गहन बातचीत। उसके बाद वार्ताओं का तूफान उठा। अब अमेरिकी अधिकारी खुलकर बता रहे हैं कि डील की पहली किस्त नवंबर 2025 तक मुहरबंद हो सकती है। ट्रंप का यह जोरदार बयान उसी ऐतिहासिक प्रगति का जीता-जागता सबूत है।
ट्रंप ने ‘किलर’ और ‘फादर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया? यह उनका पुराना हथियार है – प्रशंसा की आड़ में दबाव की सुई चुभोना। उन्होंने मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष का जिक्र छेड़ा, जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया गया। ट्रंप का दावा: उन्होंने मोदी को चेताया था – “पाकिस्तान से लड़ोगे तो व्यापार सौदा भूल जाओ।” मोदी का करारा जवाब: “नहीं, हम लड़ेंगे।” लेकिन महज दो दिन बाद युद्धविराम। ट्रंप इसे अपनी कूटनीतिक जीत बताते हैं। भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज किया – भारतीय पक्ष का स्पष्ट मत: सीजफायर पाकिस्तान की सैन्य मजबूरी और अपील पर हुआ, किसी बाहरी दबाव पर नहीं। फिर भी ट्रंप ने इसे अपनी सफलता का तमगा बना लिया और मोदी को “फादर जैसा दयालु, लेकिन किलर योद्धा” का खिताब दे डाला – एक प्रशंसा जो सम्मान के साथ-साथ रणनीतिक संदेश भी देती है।
जब ट्रंप का यह बयान सामने आया, तो जैसे वैश्विक मंच पर एक नई हलचल सी दौड़ गई। सोशल मीडिया गूंज उठा — किसी ने इसे मोदी के प्रभाव की पहचान कहा, तो किसी ने राजनीतिक नाटकीयता का नमूना। पर सच्चाई यह है कि यह ट्रंप का अंदाज़-ए-डिप्लोमेसी है — बातचीत की मेज़ पर बढ़त पाने की कला। 2019 के ‘हाउडी मोदी’ से शुरू हुआ व्यक्तिगत समीकरण अब राजनीतिक पूँजी बन चुका है। दोनों नेताओं के बीच जो भरोसा बना है, वही आज ट्रेड टेबल पर सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है। भारत-अमेरिका संबंधों का इतिहास खुद इसकी गवाही देता है — रणनीति में हम हमेशा साथ, पर व्यापार में अक्सर मतभेदों के बंधन में जकड़े रहे। 2008 का परमाणु समझौता हो या क्वाड गठबंधन — साझेदारी गहरी रही, पर ट्रेड की दीवारें कभी नहीं टूटीं। 2019 में ट्रंप ने भारत की जीएसपी सुविधा छीन ली, और 2025 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद तेल आयात पर नई तनातनी ने रिश्तों में ठंडक ला दी। लेकिन अब हवा बदल रही है — इस बार दोनों देश सिर्फ रणनीतिक साझेदार नहीं, आर्थिक भागीदार बनने की ओर बढ़ रहे हैं।
आने वाली व्यापार डील ऐतिहासिक होगी — नई सोच, नए अवसर और नए समीकरणों की प्रतीक। भारत अमेरिकी सेब और बादाम के आयात को आसान बनाएगा, जबकि बदले में अमेरिका भारतीय कपड़ा, चमड़ा और दवाओं पर लगने वाला टैक्स 50% से घटाकर महज़ 15–16% कर देगा। अनुमान है कि 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार 500 अरब डॉलर की ऊँचाई छू सकता है। वाणिज्य मंत्री का रुख स्पष्ट है — “फैसले जल्दबाज़ी में नहीं, देशहित में होंगे।” यह समझौता ‘मेक इन इंडिया’ और ‘अमेरिका फर्स्ट’ दोनों नीतियों को एक साझा मंच देगा, विशेषकर तकनीक, ऑटोमोबाइल और ऊर्जा क्षेत्रों में। यह सिर्फ एक डील नहीं, बल्कि दो लोकतंत्रों के बीच विश्वास के नए युग की शुरुआत है।
भारत के लिए इसका लाभ विशाल होगा — निर्यात पर करीब 23 अरब डॉलर की छूट से लाखों नई नौकरियों के द्वार खुलेंगे, खासकर उत्तर भारत के छोटे और मध्यम उद्योगों में। एप्पल और टेस्ला जैसी दिग्गज कंपनियों के अरबों डॉलर के निवेश से ‘चीन के विकल्प’ के रूप में भारत की स्थिति और मज़बूत होगी। क्वाड समूह को भी इससे नई गति मिलेगी। फिर भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं। अमेरिका भारत से डेयरी क्षेत्र को खोलने की मांग कर रहा है — जो हमारे किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। वहीं, रूस से तेल खरीद पर ट्रंप की चेतावनी अभी भी छाया बनी हुई है। यदि इस सौदे में कृषि हितों की अनदेखी हुई, तो आर्थिक लाभ के साथ-साथ राजनीतिक तूफान उठना तय है।
यह 20 सालों का सबसे बड़ा व्यापारिक संकट अब इतिहास बनने को तैयार है – बस संतुलन की एक चिंगारी चाहिए। ट्रंप की तारीफें साधारण शब्द नहीं, बल्कि युद्ध का नगाड़ा हैं। यह घोषणा है कि भारत-अमेरिका अब खून के रिश्ते में बंध चुके हैं। पिता का अटूट स्नेह और किलर की अजेय ताकत – यही मोदी का अलौकिक जादू है। नवंबर में मुहर लगते ही 2025 वैश्विक व्यापार का महासंग्राम जीत का उत्सव बनेगा। ‘विकसित भारत 2047’ को रॉकेट नहीं, इंटरस्टेलर स्पेसशिप मिलेगा। दिल थाम लो – यह ‘किलर डील’ नहीं बनेगी, तो इतिहास क्या लिखेगा? समय की सुई अब धड़कन बन चुकी है; बस एक झपकी में सदी का सूर्योदय हो जाएगा।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत


