थेथरई अनलिमिटेड
(आलेख : बादल सरोज)
जिस समयकाल से हम सब गुजर रहे हैं, हुकुम तो इसे अमृतकाल कहे जाने का है। कुछ दिलजले इसे त्रासद प्रहसन का समय कहते हैं, तो कुछ इसे दिलचस्प समय – इंट्रेस्टिंग टाइम – करार देते हैं। कईयों के मुताबिक़ यह विडम्बना का काल है, तो ज्यादातर के मुताबिक़ इसे अँधेरे की ओर मुसलसल फिसलन के दौर के रूप में दर्ज किया जाएगा। बहरहाल, इन उपमाओं, विशेषणों और संबोधनों से इतर यह वक़्त थेथरई की बहार के सांगोपांग गुलज़ार होने का वक़्त है। इसमें थेथरई जिस ऊंचाई तक पहुंची है, वैसी कभी नहीं पहुंची थी।
फिराक गोरखपुरी के मिसरे में कहें, तो सचमुच आने वाली पीढियां हमसे रश्क करेंगी कि हमे थेथरई का लुत्फ़ और मजा लेने का इस कदर जबरदस्त मौक़ा हासिल हुआ और इस मजे के साथ नत्थी सजा को भुगतने का भी शानदार अवसर मिला ।
थेथरई भोजपुरी, अवधी, मैथिली और मगही बोलियों और इस तरह बिहार की जनता द्वारा गढ़ा गया शब्द है। इसलिए थेथरई के इस सीजन की शुरुआत भी बिहार से ही हुई। इस बार इसे अंग्रेजों द्वारा अपने प्रिय पात्रों को दी जाने वाली उपाधि ‘सर’ का नाम दिया गया – मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण – स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन(SIR-Special Intensive Revision) – कहकर पुकारा गया। अब इसमें स्पेशल क्या था, यह इसके लिए अपनाए गए तरीके और उसमे बरती गयी हड़बड़ियों और यू-ट्यूबर अजीत अंजुम द्वारा साफ़-साफ़ दिखाई गयी गड़बड़ियों से देश और दुनिया दोनों के सामने उजागर हो गया। यह धांधली पूरी गहनता – इंटेंसिटी – और “जो कर सकते हो, कर लो” के ढीठ और बेशर्म अंदाज में की गयी। सुप्रीम कोर्ट पूछता ही रह गया कि ठीक चुनाव के पहले यह कवायद क्यों की जा रही है?, कि आधार कार्ड या मतदाता पहचान पत्र और लगातार कई चुनावों से मतदाता होने को प्रमाण क्यों नहीं माना जा रहा?, कि करोड़ों मतदाताओं की जांच के लिए किस तरह की पद्वत्ति अपनाई जायेगी, यह क्यों नहीं बताया जा रहा? मगर या तो उसने जवाब दिया ही नहीं, अगर दिया भी तो ना में ही दिया।
आनन-फानन असाधारण फुर्ती के साथ किये गए इस पुनरीक्षण में 65 लाख हटाये गए नाम किस-किसके हैं, मरे हुए वोटर्स को जीवन देने और जीते-जागतों को मार डालने के चमत्कार किसके है, इसकी जानकारी राजनीतिक दलों को देना तो दूर रहा, सुप्रीम कोर्ट तक को भी देने से साफ़ इंकार कर दिया गया। बेचारे की सुप्रीमी को भी आईना दिखा दिया और मजेदार यह है कि वह भी इस आईने में अपना-सा मुंह देख कर रह गया। थेथरई इसी को कहते हैं।
थेथरई का मतलब है ऐसी बात बार-बार बोलना, जिसका सचाई से कोई संबंध नहीं हो — उसे बार-बार सही बताने की जिद करना। मना करने, लानत-मलामत करने के बाद भी ऐसी बात निर्लज्जतापूर्वक बार-बार बोलते जाना ; अपने दोषों, भूलों आदि पर ध्यान न देकर सब के सामने सिर उठाकर उद्दंडतापूर्वक असंगत बात करना। थेथरई का अर्थ है निर्लज्जता, बेशर्मी, या धृष्टतापूर्वक किया जाने वाला व्यवहार। इसे “थेथर” होने की अवस्था या भाव भी कह सकते हैं। इसका मतलब है, अपनी बात पर अड़े रहना, चाहे वह गलत ही क्यों न हो, और दूसरों की बात सुनने से इंकार करना। यह एक प्रकार का उद्दंड व्यवहार है, जिसमें व्यक्ति शर्म या संकोच किए बिना, जानबूझकर गलत काम करता है या अभद्र व्यवहार करता है, बिना किसी लिहाज के दूसरों के साथ पेश आता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी गलती को मानने के बजाय, उस पर बेशर्मी से अड़ा रहता है, तो इसे थेथरई कहा जाएगा।
कुल मिलाकर यह कि थेथरई ढीठपन का विस्तार ही नहीं है – यह एक साथ एक विकृति और विकार है, अशिष्टता और अनाचार है, जिसे भाजपा ने मोदी राज के इन 11 वर्षों में अपना संस्कार और अब तक के सारे चलन और व्यवहारों को ठुकराने का औजार बना लिया है। विधायिका और कार्यपालिका से अलग और उनके चंगुल से स्वतंत्र मानी जाने वाली देश की लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं को थेथरई की विधा में पारंगत बना दिया है। इसका एक और उदाहरण भारत के निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची में धांधली और उसके जरिये वोट और जनादेश चुराने के सप्रमाण भंडाफोड़ पर अपने रवैय्ये से दिया है।
नेता प्रतिपक्ष ने बंगलोर सेन्ट्रल लोकसभा में आने वाले एक विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची का एक-एक नाम जांचने के बाद जो जानकारी सार्वजनिक की, वह देश ही नहीं, संसदीय लोकतंत्र में भरोसा करने वाले हर नागरिक को चौंकाने और स्तब्ध करने वाली थी। यह पता चला कि इस लोकसभा सीट के बाकी सभी विधानसभा क्षेत्रों में हारने के बाद भाजपा ने अकेली इस एक विधानसभा सीट – महादेवपुरा में – ही एक साथ इतने सारे वोट पा लिए कि न सिर्फ बाकी सीटों की पिछाहट की पूर्ति कर ली, बल्कि जीत के लायक बढ़त भी ले ली। जब इस वोट चोरी की गुफा का ‘ खुल जा सिम सिम’ पासवर्ड तलाशा गया, तो पता चला कि अकेले महादेवपुरा में 1 लाख से ज्यादा वोटों की चोरी हुई है। देश की कोई दो-तिहाई विधानसभा सीट्स में जितने वोट मिलने पर प्रत्याशी जीत जाता है, उतने वोटर तो इसमें फर्जी है और वे सूची भर में नहीं हैं, बाकायदा मतदान भी कर रहे हैं।
इनमे 11965 डुप्लीकेट वोटर्स हैं – जिनमे से कुछ तो ऐसे उत्साही लाल है कि वे अपने ही नाम से कर्णाटक की दो-चार सीटों पर तो वोट डालते ही हैं, मोदी की वाराणसी सीट पर भी वोट डालने पहुँच जाते हैं। मुंबई जाकर भी बटन दबा आते हैं। इस जांच में 40,009 वोटर ऐसे मिले, जो बिना पते के हैं या जो पता वे बताते हैं, उसका ही कोई अता-पता नहीं हैं। 10,452 वोटर ऐसे हैं, जिनके एक जैसे पते हैं ; एक-एक कमरे के मकानों में चालीस, पचास, यहाँ तक कि अस्सी की तादाद में बहुत ही सिकुड़-सिमट कर रहते हैं। कोई 4132 बिन फोटो या फर्जी फोटो वाले मिले हैं, तो 33962 ऐसे मतदाता निकले, जिन्होंने नए वोटर बनने का फॉर्म-6 भरकर इस वोटर लिस्ट में जगह बनाई थी। इनमें से 18 या 20 वर्ष का इक्का-दुक्का ही था, बाकी सब प्रौढ़ और बुजुर्ग थे ; न जाने अब तक कहाँ थे कि इस उम्र में नाम लिखाना पड़ा।
अनेक तो ऐसे भी थे, जिनके पिताओं के नाम भी सिंधु घाटी की अपठनीय लिपि की तरह अवर्णनीय और अनुच्चारणीय थे। कुछ के पिता तो लगता है, ता-उम्र पुत्रेष्टि यज्ञ के पुण्य सरोवर में ही तैरते रहे और जन्मते ही बड़े हो जाने वाले 40-50 पुत्रों के बाप बनने का नॉन बायोलॉजिकल कारनामा दिखाते रहे।
देश-दुनिया के मीडिया के सामने तथ्यों और प्रमाणों के साथ उजागर किया गया यह घोटाला भारत के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में अभूतपूर्व और असामान्य है। स्वाभाविक अपेक्षा थी कि इसे देखने के बाद देश का निर्वाचन आयोग तुरंत इसका संज्ञान लेगा, गहन पुनरीक्षण के इस सबसे फिट केस में सारे आरोपों की जाँच कर दूध और पानी अलग-अलग करेगा और इस तरह लोकतंत्र और अपनी निष्पक्षता में जनता के विश्वास को बहाल करेगा। मगर उसने थेथरई के सिवा कुछ नहीं किया : दिल्ली में बैठने वाला कान और दिमाग बंद किये बैठा रहा, मगर कर्नाटक वाले राज्य निर्वाचन अधिकारी को थेथरई दिखाने के लिए छू कर दिया। संसदीय लोकतंत्र में जिसकी दूसरे नंबर की हैसियत होती है, उस नेता प्रतिपक्ष से हलफनामा माँगा जाने लगा।
थेथरई यहीं तक नहीं रुकी, सभी दलों के लिए बराबर और समभाव रखने के संवैधानिक निर्देशों और प्रावधानों में बंधे होने के बाद भी चुनाव आयोग खुलेआम सत्ता पार्टी की तरफ से राजनीतिक बयान झाड़ने लगा। जो शब्द खुद भाजपा नही बोल पा रही थी, उन शब्दों में घोटाला उजागर करने वालों पर ही चीखने-चिंघाड़ने लगा। बावजूद इसके कि खुद पूर्व भाजपा अध्यक्ष और आज भी कुछ के द्वारा प्रधानमंत्री पद के छुपे रुस्तम – डार्क हॉर्स – माने जाने वाले नितिन गडकरी तक ने कहा है कि उनके लोकसभा क्षेत्र के भी कोई साढ़े तीन लाख वोट चोरी हो गए थे, केंचुआ ने इनकी भी नहीं सुनी। यह थेथरई की उच्चतर अवस्था है ; इसमें थेथर ज्यादा ढीठ, ज्यादा निर्लज्ज और बेहद धृष्ट हो जाने के प्रमाद में पहुँच जाता है।
पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई बहस और लगातार अविरल, अविराम, निर्बाध गति से चल रहे ट्रम्पियापे पर जवाब देते में भी सच को छुपाने के लिए जो बोला-बताया गया, वह अपने किस्म की थेथरई थी। राजनाथ सिंह सहम-सहम कर कह रहे थे, तो अमित शाह धमक-धमक कर ; मोदी जी इन दोनों के नेता है, सो उनकी इनसे ऊंची वाली होनी ही थी, हुई भी । भारत को दुनिया में इस कदर अलगाव और सार्वजनिक रूप से किये जा रहे तिरस्कार की दशा में पहुंचा दिए जाने के बाद भी मूल मुद्दे की बजाय गैर-मुद्दों पर हाथ नचाकर अन्त्याक्षरी-सी खेलने के लिए कुछ और भी आला दर्जे की थेथरई वापरने की जरूरत होती है। विश्वगुरुत्व इसी विधा में तो है।
ग़ालिब के हिसाब से कहें, तो थेथरई के यही उस्ताद थोड़े ही हैं, हाल के जमाने तक एक धनखड़ भी हुआ करते थे ; यह अलग मसला है कि इन दिनों खुद उनके साथ वही हो रहा है। थेथरई की खासियत यह है कि वह निस्संग होती है – किसी की सगी नहीं होती। थेथरई के ऊँटो को भी पहाड़ के नीचे आना पड़ता है। कल तक उपराष्ट्रपति रहे ये श्रीमान इन दिनों खुद इसके पात्र और शिकार बने, पहाड़ के नीचे आये हुए हैं। वे हैं भी, नहीं भी हैं – पूर्व निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार की तरह इनके भी पते नहीं चल रहे। यह भी पता नहीं चल पा रहा कि वे कोपभवन या स्वास्थ्य सदन में आत्मनिर्वासित हैं या जुबान न खुल जाए, इस आशंका से जबरिया निरोधित है। वे स्वयं जैसे और जहाँ हैं, वे जिस पद पर बैठते थे, उस पद का अगला अधिकारी कब आयेगा, इस बात के भी सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। यह अलग ही प्रजाति की थेथरई है।
अब जब संसद से सरकार तक, कार्यपालिका से चुनाव पालिका तक चारों तरफ ही माहौल-ए-थेथरई है, तो न्यायपालिका में भी कुछ को लगा कि वे भला इसमें पीछे क्यों रहें!! मुम्बई हाईकोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति ने इस अखाड़े में अपने ज्ञान का कंठलंगोट घुमा ही दिया और आजादी के संग्राम से लेकर आज तक देश के लिए कुर्बानियों के बेमिसाल रिकॉर्ड वाली पार्टी – सी पी आई (एम) – को किन मुद्दों को उठाना चाहिए, किन्हें नहीं, का पाठ पढाते-पढ़ाते राष्ट्रवाद का प्रवचन सुनाने की थेथरई पर आमादा हो गए।
सीपीएम की महाराष्ट्र इकाई ने भारत के परम्परागत दोस्त फिलिस्तीन की जनता पर गज़ा में हो रहे बर्बर अत्याचारों के खिलाफ दुनिया में उठ रही आवाजों के साथ मुंबई की जनता के आवाज मिलाने के लिए आज़ाद मैदान में रैली सभा करने की अनुमति न दिए जाने के पुलिस के आदेश के खिलाफ इन जज साहब के यहाँ दरखास्त लगाई थी। संविधान में दिए गए बुनियादी अधिकारों का हवाला देते हुए उनके संरक्षण की मांग की थी। माननीय ने जो करना था, उसे करने की बजाय वे ऐसी कार्यवाहियों को अनावश्यक, यहाँ तक कि राष्ट्र हितो के अनुकूल न बताने तक पहुँच गए। हालांकि खबर मिली है कि बाद में स्वयं मुंबई पुलिस ने प्रदर्शन की अनुमति देकर उनके प्रवचन की पंजीरी बंटवा दी।
बात इन विवरणों से आगे की है और वह यह है कि यह सब रूप में भले अलग-अलग हो, सार में उस संविधान और लोकतंत्र के साथ की जा रही थेथरई है, जिसे इस देश की जनता ने कुल जमा 190 वर्ष तक चली अनवरत लड़ाई, उसमें दी गई अनगिनत कुर्बानियां, यहाँ तक कि अनेक शहादतों के बाद हासिल किया था। जो इस इतनी लम्बी और इतनी महान लड़ाई में एक घंटा भी शामिल नहीं हुए, एक नाखून तक नहीं कटाया, उलटे इंग्लॅण्ड की महारानी की आरती उतारी, वे आज इस महासंग्राम के हासिल संसदीय लोकतंत्र और उसे मुहैया कराने वाले संविधान का ही घंटा बजाने पर आमादा हैं।
आजादी की 78वीं वर्षगाँठ के ठीक पहले का यह माहौल किसी के लिए भी सुखद संदेश नहीं देता। जिन्हें यह थेथरई दिखाई जा रही है, उन्हें भोजपुरी की यह कहावत पता है कि थेथर की सुनना और मानना अपने पांवों पर ही कुल्हाड़ी मारना है – लिहाजा वे तो अपनी राह ढूंढ लेंगे। मगर थेथरई दिखाने वालों ने ‘थेथर की दाढ़ी में तिनका’ और ‘थेथर की गत, आखिर में दुर्गत’ की कहावतें सुनी हैं कि नहीं?
धनखड़ ने अभी-अभी सुनी है – बाकियों ने अगर नहीं सुनीं, तो अभी चंद रोज पहले बांग्ला देश की जनता द्वारा अपने पूर्व चुनाव आयुक्त के पादुकाभिषेक की तस्वीरें तो जरूर देखी होंगी ; देखी तो अपने अंकल बेनितो मुसोलिनी के निर्णायक अभिषेक की तस्वीरें भी होंगी । मुमकिन है कि उनने समझा होगा कि जब क्षोभ और आक्रोश के दरिया झूमके उठते हैं, तो उन्हें थेथरई के तिनकों से नहीं टाला जा सकता।
(लेखक ‘लोकज़तन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)